तेरी मन-मोहन अखियों में
अपने सपने देखा करता हूँ,
सुधियाँ पाकर सुध खो डाली
सुधियों में खुद खो जाता हूँ.
अवलंबन पाकर भी कोई
उर की पीर बनी रह जाये,
झंकृत तार कसे हैं ऐसे,
कहना चाहूँ कही न जाये
सब भूल भुलैया साथ रहे जब
दूर की दूरी
ही समझाए
कैसे बिन प्रियवर जीवन,
लिखना चाहूँ लिखा न जाये.
बनते रहते गीत मौसमी
उनमें तुमको समा रहा हूँ
उनसे प्यारी सेज कहाँ है?
फलत: तुमको बुला रहा हूँ.
***
वाह...बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंसब भूल भुलैया साथ रहे जब
जवाब देंहटाएंदूर की दूरी ही समझाए
कैसे बिन प्रियवर जीवन,
लिखना चाहूँ लिखा न जाये.
..बहुत खूब प्रेम की बानगी ..