बुधवार, 26 अगस्त 2015

सीमेंट

भवन निर्माण के विकास पर नजर डाली जाए तो मालूम होता है कि कभी गुफाओं में और कभी ऊंचे पेड़ों पर घर बनाने वाले मनुष्य ने पहले झोपड़ा-कच्चा मकान फिर पत्थर-ईटों वाले पक्के मकान बनाए, जिनमें लकड़ी का भी भरपूर इस्तेमाल होता था, लेकिन लकड़ी का दुश्मन कीड़ा दीमक उसको हमेशा परेशान करता रहा होगा. बाद में मिट्टी के गारे के बजाय चूने का गारा लगाया जाने लगा. उस जमाने में पोजलाना को सुर्खी नाम से भी जाना जाता था. चूने को मजबूती देने के लिए उसमें उरद की दाल, गुड़ आदि मसाले भी मिलाये जाते थे. किलेबंदी को मजबूत दीवार देने के लिए राजे-रजवाड़े ऐसी तकनीक ज्यादा प्रयोग किया करते थे. कहीं कहीं पुराने किलों की दीवारें इतनी मजबूत पाई गयी हैं कि ब्लास्टिंग से भी मुश्किल से टूट पाती हैं.

आधुनिक सीमेंट बनाने की प्रक्रिया में लाईम स्टोन (चूना पत्थर) को काली मिट्टी, बॉक्साईट और आयरन ओर को सही मात्रा में या सही अनुपात में मिलाकर, बारीक पीसकर, उच्च ताप पर पकाया जाता है, सीमेंट कारखानों के किल्न (bhatta) इसमें सक्षम होते हैं. इसको पकाने में पिसा हुआ कोयला साथ में जलाया जाता है, जिसकी सम्पूर्ण राख भी उसमें समाहित हो जाती है. (अरब देशों में जहाँ क्रूड ऑइल खूब और सस्ता भी है वहाँ उसी से पकाया जाता है).

किल्न से निकलने के बाद जो पका हुआ माल निकलता है उसे क्लिंकर नाम से जाना जता है. इसमें जिप्सम और पावर प्लांट का रिजेक्ट माल फ्लाई ऐश, राख, मिलाकर फिर से सीमेंट मिलों में पीसा जाता है. उस पाउडर को कन्वेयर बेल्ट्स या प्रेशर पंप्स के जरिये साइलोज (भण्डार) में भरा जाता है. इस तरह से पिसे हुए सीमेंट को ब्लेंडेड/कंपोजिट सीमेंट या पोजलाना सीमेंट के नाम से जाना जाता है. इस सीमेंट को स्वचालित पैकिंग मशीन द्वारा कट्टों में पैक करके अपने निश्चित वजन के बाद स्वत: आगे फिसलते हुए मार्केटिंग के लिए ट्रकों या रेल वैगंस में पहुँचाया जाता है. कारखानों में कई स्तरों पर दिन-रात क्वॉलिटी कंट्रोल की जाती है.

सीमेंट में प्रयुक्त होनेवाली कैमिकल सामग्री में कैल्शियम ऑक्साईड, एल्युमीनियम ऑक्साईड और आईरन ऑक्साइड के मिश्रण होते है. जिन पत्थरों को पीसा जाता है, उनमें 88% चूने की अपेक्षा होती है. अगर इससे घटिया पत्थर हो तो उसमें हाई ग्रेड स्वीटनर मिलाना होता है. संगमरमर का श्वेत पत्थर १००% लाईम स्टोन होता है इसलिए इसका चूरा बहुत काम आता है.

सामान्य उपयोग में आने वाला भूरा सीमेंट पोर्टलैंड सीमेंट होता है, जिसमें फ्लाई ऐश की मात्रा शून्य होती है और यह पोर्टलैंड सीमेंट, पोजलाना सीमेंट की अपेक्षा बहुत ज्यादा गर्मी पैदा करता है. किसी भी प्रकार के सीमेंट को कंक्रीट में परिवर्तित करने के लिए सही अनुपात में महीन रेत, मोटी रेत तथा पानी का इस्तेमाल करना अनिवार्य होता है. ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि सीमेंट तैयार होने से पहले उसे भौतिक तथा रासायनिक प्रक्रिया से अच्छी तरह गुजारा जाता है तभी उसमें विशेष गुणवता आती है.

अलग अलग कार्यों में प्रयुक्त करने के लिए रेत का प्रतिशत तय होता है. समुद्र में आयल वेल के प्रेशर से बनने वाले पाइप्स के लिये बनाया जाने वाले सीमेंट कुछ विशिष्ट होता है, जो चन्द मिनटों में जम कर पक्का भी हो जाता है.

सामान्यतया औसत से ज्यादा रेत मिलाने से सीमेंट की गुणवत्ता कम हो जाती है नतीजन निर्माण जल्दी धराशाही हो जाते हैं. निर्माण में प्रयुक्त लोहे की छड़ों की गुणवत्ता भी बहुत मायने रखती है. सभी सीमेंट उत्पादक कम्पनियां भारत सरकार द्वारा निश्चित किये गए मापदंडों के अनुसार गुणवता बनाए रखती हैं. सीमेंट के बारे में बहुत से अच्छे जानकार लोग हैं, जो निर्माण कार्यों के लिए सही सीमेंट के चुनाव की सलाह दे सकते हैं क्योंकि हर प्रकार के सीमेंट में कुछ खासियत होती है, जिसका सम्बन्ध निर्माण के टिकाऊपन (durability) से होता है. विकास की इस दौड़ में ठेकेदारों और इंजीनियरों की ईमानदारी हमारी बुनियाद में है. ऐसा मान कर चलना चाहिए.

सीमेंट के बारे में कुछ तथ्य ये भी हैं कि हमारे जैसे विकासशील देशों में सीमेंट की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत मात्र 5 किलो बताई गयी है, जबकि विकसित देशों में 95 किलो प्रति व्यक्ति है. हमारे तमिलनाडु राज्य में अन्य प्रान्तों के मुकाबले ज्यादा सीमेंट उत्पादन किया जाता है. वर्तमान में करीब 36 कंपनियां सीमेंट उत्पादन से जुड़ी हुयी हैं. ए.सी.सी, अम्बुजा, और लाफार्ज नाम की बड़ी कंपनियों को स्विस कंपनी होलसिम ने अधिगृहित कर लिया है.
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