रविवार, 29 मार्च 2015

चुहुल - ७२

(१)
एक आदमी दूधवाली भैंस खरीदने के लिए नजदीक के गाँव में गया. उसने भैंस बेचने वाले किसान से कहा, सबसे बढ़िया भैंस बताओ?
किसान ने एक भैंस की तरफ इशारा करते हुए बताया, ये सबसे ज्यादा दूध देती है. इसकी कीमत भी औरों से ड्योढ़ी है.
खरीदने वाले ने भैंस को आगेपीछे से टटोला तो देखा की भैंस की एक आँख की पलक स्थाई रूप से अधखुली थी. वह बोला, ये तो भेंगी है. इसकी कीमत इतनी नहीं होनी चाहिए.
किसान बोला, तुमको दूध चाहिए या आँख मटक्का करना है?

(२)
पति-पत्नी की एक आकस्मिक दुर्घटना में एक साथ मौत हो गयी. अकाल मृत्यु होने से पति भूत की योनि में आ गया और पत्नी चुड़ैल की योनि में आ गयी.
कुछ समय बाद एक बार जब दोनों की अचानक मुलाक़ात हुयी तो चुड़ैल बोली, भूत बन कर तुम बिलकुल बदल गए हो.
भूत बोला, “लेकिन तुम बिलकुल नहीं बदली हो, वैसी की वैसी हो!

(3)
एक लड़की ने प्यार के सपने देखे थे, पर दुर्भाग्य से उसका ब्वायफ्रेंड बहुत कंजूस व निकम्मा निकला. दु:खी होकर एक दिन वह उससे बोली, तुमसे प्यार करके मैं लुट गयी, बर्बाद हो गयी!
ब्वायफ्रेंड नाक सिकोड़ते हुए बोला, मैं भी कौन सा डॉक्टर या इंजीनियर हुआ हूँ.

(४)
रेल के डिब्बे में चेतावनी लिखी थी बिना टिकट यात्री होशियार, आपको ईनाम में जेल मिल सकती है
एक मन्दबुद्धि ने जब इसे पढ़ा तो सोचने लगा टिकट ना लेने वालों को होशियार बता रहे हैं, साथ में ईनाम भी दिया जा रहा है, हम ही बेवकूफ हैं जो टिकट लेकर जा रहे हैं, वाह रे सरकार, कैसी अंधेरगर्दी चल रही है.

(५)
स्कूल से एक बच्चा रोते हुए घर आया तो मम्मी ने रोने का कारण पूछा, तो वह बोला, टीचर ने मारा.
मम्मी: क्यों मारा उसने तुझे?
बच्चा: मैंने उसको मुर्गी कहा था.
मम्मी: तू मुर्गी क्यों बोला?
बच्चा: वह मुझे रोज अंडा दे रही थी.
***

मंगलवार, 3 मार्च 2015

बैठे ठाले - १३

आज ३ मार्च, अंतर्राष्ट्रीय ईयर-केयर डे यानी कर्ण दिवस (संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य संगठन WHO द्वारा प्रेरित) है. कान हमारे शरीर के पांच महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्रियों में से एक है. परमात्मा ने सर के दोनों तरफ एक एक कान इस तरह फिट किये हैं कि दोनों तरफ के ध्वनि संकेत मिल सकें और देखने में भी खूबसूरत लगें. मनुष्य ही नहीं अधिकांश प्राणीमात्र को ये ज्ञानेन्द्रिय प्राप्त है. बाहरी कान एंटीना की तरह होता है जो संवेदनाओं को अन्दर श्रवण यंत्र तक पंहुचाता है, जिसका सीधा कनेक्शन मस्तिष्क से होता है.

मनुष्यों में बाहरी कान की बनावट तथा आकार देश, काल, व वंश के अनुसार थोड़े अंतर के भी पाए जाते हैं, पर भीतरी श्रवण यंत्र सबका सामान होता है. कुछ ज्योतिषियों की मान्यता है कि बड़े कान वाले सौभाग्यशाली तथा बहुत छोटे कान वाले आल्पायु होते है. पर ये सब गप लगती है क्योंकि खर व खरगोश (खर माने गदहा, गोश माने कान) के कान बड़े होते हैं.

कुछ लोग पैदा तो बाहरी कानों सहित होते हैं, पर उनका श्रवन यंत्र बंद होता है. उनको बहरा कहा जाता है. ये लोग अच्छा मार्गदर्शन मिलने पर सफल जीवन व्यतीत करते है. कभी कभी ऐसा भी होता है कि बाद में कान के अन्दर इन्फेक्शन होने से अथवा चोट लग जाने से श्रवण यंत्र खराब हो जाता है. बुढ़ापे में ऊतक कमजोर हो जाने से अंदरूनी यंत्र की क्षमता कम होती जाती है. हाँ, बहुत से भाग्यवान वृद्धजन  ऐसे भी पाए जाते हैं, जिनके कान अंतिम समय तक सकुशल रहते हैं. उन्हें अक्सर ये सुनने को मिल जाता है, अरे, इनके कान तो कांसे के बने है.

कहते हैं कि साँपों के कान नहीं होते हैं वे अपने स्पर्शेन्द्रिय (त्वचा) से ही संवेदनाएं ग्रहण कर लेते हैं.

आज के शहरी/ सामाजिक परिवेश में तेज ध्वनि (ध्वनि-प्रदूषण) से भी श्रवण यंत्रों की कार्यक्षमता कम हो जाती है. यही नहीं, टेलीफोन या मोबाईल फोन के ज्यादा समय तक कान पर ध्वनि आक्रमण से बहुत क्षति होती है. मेरा अपना अनुभव है कि हमेशा बायें कान से फोन सुनने की वजह से उस कान की सुनने की क्षमता दाहिने के मुकाबले आधी रह गयी है. बायीं तरफ से आने वाली आवाज की पकड़ धीमी होने तथा उसके समझने में होने वाली देरी के कारण मेरे अर्धांगिनी ने मुझे बहरा घोषित करने में कसर नहीं छोड़ी है. वह अपनी सहेलियों तथा मेरे परिचितों/ मित्रों/आगंतुकों से बात बात पर दु:ख जताते हुए कहती है, ये बेचारे, सुनते नहीं हैं. सच बात तो ये भी है कि कई बार मैं जानबूझ कर उसके उपदेशों/आदेशों को अनसुना कर देता हूँ.

जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथी गोवेल्स ने कहा था कि एक झूठ को सौ बार बोलने से वह सच लगने लगता है. ऐसा ही हुआ कि जब मैं कभी सुनता था और कभी अनसुना होता था तो मेरे बड़े बेटे डा.पार्थ ने माँ के आग्रह पर मेरे कान में एक हियरिंग ऐड (माईक्रोफोन) फिट करवा दिया. कुछ दिन तो मैं इस जेवर को पहनता रहा, पर जब लगा कि पहले से ज्यादा असुविधा होने लगी तो निकालकर रख दिया है ताकि भविष्य में  वक्त जरूरत काम आ सके.

इस सम्बन्ध में एक मजेदार संस्मरण भी लिखना चाहता हूँ कि नौकरी के दिनों में जब मैं यूनियन के विषयों को लेकर लेबर कोर्ट जाता था तो मैंने देखा कि माननीय जज काटजू जी (पूरा नाम अब विस्मृत हो गया है), जो कि हियरिंग ऐड इस्तेमाल करते थे, कभी कभी जब मैनेजमेंट का वकील बहस पर आता था तो हियरिंग ऐड निकाल कर रख देते थे; शायद वे समझते थे कि ‘workers are the weaker section of the society’.  ताकतवर मैनेजमेंट  मोटी फीस वाले नामी गिरामी वकीलों की बड़ी बड़ी अनावश्यक टेक्निकल दलीलें वे सुनना नहीं चाहते थे.

कुछ भुक्तभोगी कहा करते हैं कि "ना सुनना भी बड़ी नियामत है." गांधी जी ने भी कहा कि बुरा मत सुनो अच्छा न सुना तो कोई बात नहीं, बुरा तो बुरा ही है, पर कहाँ तक बचोगे?  आजकल अखबार, रेडियो, टेलीविजन, यानी सारे का सारा मीडिया सबसे पहले गंदी बात सुनाते हैं. ये समय की बलिहारी है, परख आपको करनी है. बहरहाल अपने श्रवण यंत्र की हिफाजत जरूर करें और कम सुनने वालों का ठट्टा ना करे.
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