मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

यादों का झरोखा - ७


पाठक बंधु (स्व. नंदकिशोर एवं स्व.मदनगोपाल)
जिस तरह एक भागती हुयी रेलगाड़ी से पीछे के दृश्य छूटते चले जाते हैं वैसे ही लाखेरी में बिताये दिनों के अनेक सुहृद व्यक्तियों की छवि कई बार मेरे सामने आती है.

अकाउंट्स आफिस में कार्यरत दो पाठक बंधु जो शर्मा उपनाम लिखा करते थे स्व. नंदकिशोर व उनके अनुज स्व. मदनगोपाल; दोनों ही मधुरभाषी और अपने काम में माहिर थे. उन दिनों (१९६० में) कंप्यूटर नहीं होते थे. सारा लेखाजोखा मैनुअल हुआ करता था. अकाउंट्स आफिस एक व्यस्त विभाग होता था. सारे लेजर व वेजेज सीट तैयार करने से लेकर विभागों में जाकर कर्मचारियों को वेतन वितरण करना बाबुओं की ड्यूटी हुआ करती थी. अकाउंटेंट्स सर्वश्री जे.पी. गुप्ता, केशवदत्त अनंत, शरत बाबू (तिवारी), भगवती प्रसाद कुलश्रेष्ठ, प्रभुलाल महेश्वरी, जोबनपुत्रा, मो. इब्राहीम हनीफी आदि अनेक यादगार चेहरों के बीच ये दोनों भाई कम्पनी के अच्छे वर्कर्स में गिने जाते थे.

मूल रूप से झालावाड़ के ताराज गाँव के रहने वाले ये बन्धुद्वय सरकारी स्कूलों का अध्यापन छोड़कर आये थे. उन दिनों ए.सी.सी. का अच्छा वेतन+बोनस व अन्य सुविधाएं सभी को ललचाती थी, और फिर यहीं का होकर रह गए.

सभी पारिवारिक सुख प्राप्त इनके परिवार कालोनी में रहते हुए सभी सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल रहते थे.

नंदकिशोर जी का सुपुत्र प्रदीप पाठक (मैकनिकल इंजीनियर) ए.सी.सी. में ही नियोजित रहे. अब रिटायर होकर कोटा में बस गए हैं. चार पुत्रियाँ अपने अपने घरों में सुखी संपन्न हैं. मैं अपने रिटायरमेंट के बाद एक साल (२००० में) कोटा में अपने पुत्र डॉ. पार्थ के साथ रहा. एक बार नन्दकिशोर जी से मिलने उनके छावनी की घनी बस्ती में बने घर गया तो वे लपक कर गले लग गये, इतना प्यार व अपनापन था.

स्व. मदनगोपाल जी का सुपुत्र अरविन्द, वर्तमान में श्री सीमेंट (ब्यावर) में जनरल मैनेजर, तथा छोटा प्रवीण कोटा के न्यायालय में रीडर के रूप में कार्यरत है. पुत्री अपने सुखी संपन्न ससुराल में है. ये सभी बच्चे मेरे बचपन के दोस्त व मेरे बच्चों के सहपाठी रहे हैं.

स्व. वेदप्रकाश भारद्वाज के अनुज नलिन भारद्वाज (एयर फ़ोर्स) की सुपुत्री अरविन्द की अर्धांगिनी है. इस प्रकार ए.सी.सी. से जुड़े इस परिवार की जड़ें खूब गहरी हैं और वंशबेल बहुत लम्बी व पुष्पित है. मैं अपने इस ग्रुप लाखों के लाखेरियन की तरफ से इनको अनेक शुभ कामनाएं देता हूँ.

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रविवार, 17 दिसंबर 2017

यादों का झरोखा - 6


स्व. श्री गेंदालाल शर्मा
‘लाखेरी दर्शन’ फिल्म बनाने वाले मुख्य किरदार प्रिय पवन शर्मा के नानाजी स्व. गेंदालाल शर्मा एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके बारे में यदि मैं कहूं कि वे सज्जनता की प्रतिमूर्ति थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. वे मेरे लाखेरी आने के कुछ समय बाद सन १९६१ या ६२ में एक टाइपिस्ट के पद पर ए.सी.सी. में भर्ती हुए थे. मूल रूप से आगरा के रहने वाले थे, पर लाखेरी में किस स्रोत से उनका पदार्पण हुआ मुझे ज्ञात नहीं है. वे अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं की टाइपिंग तथा शार्टहैण्ड लेखन में माहिर थे. उनकी गंभीर कार्यशैली और काम के प्रति समर्पणभाव से जूनियर पद से कई प्रमोशन पाते हुए प्लांट हेड के सेक्रेटरी बने और ९० के दशक में सम्मान पूर्वक रिटायर हुए.

मैंने कोआपरेटिव सोसाइटी के सेक्रेटरी/चेयरमैन के पद पर रहते हुए प्रशासनिक मामलों में हमेशा उनकी सलाह/सेवाएँ ली थी. मेरी एक लघु पुस्तिका ‘माँ के पत्र’ (किशोर बेटियों के ज्ञानार्थ) का उन्होंने टाइपिंग/सम्पादन भी किया था.

पारिवारिक जीवन में उन्होंने अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा का मानदंड रखा. उनका बड़ा बेटा राजेन्द्र माइनिंग इंजीनियर है, जो कि कोल इंडिया में सीनियर अधिकारी के रूप में कार्यरत है. बिचला बेटा मुकेश जयपुर में मेडिकल की तयारी कर रहा था, परन्तु दुर्भाग्यवश, बाद में उसकी खबर नहीं मिली. छोटा बेटा नरेंद्र (मैकेनिकल इंजीनियर) आगरा में अपना खुद का व्यवसाय करता है. बेटी श्रीमती निर्मला शर्मा (अध्यापिका) हैं; इनका ही सुपुत्र पवन शर्मा है जो फिल्ममेकिंग टेक्नोलोजी की डिग्री लेकर इस फील्ड में अच्छा नाम कमा रहा है. इन्होने हाल में ‘लाखेरी दर्शन’ नाम से एक यादगार फिल्म बनाई है, जो यू ट्यूब पर भी उपलब्द्ध है. इसमें लाखेरी से सम्बंधित सामाजिक, सांस्कृतिक, व भौगोलिक जानकारी मिलती है. मुझे विशेष प्रसन्नता इस बात पर है कि इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा उन्होंने मेरे लिखी पुस्तक ‘लाखेरी पिछले पन्ने’ से भी ली है. मैंने फिल्म देखकर उनको इस पुस्तक के सफल समायोजन के लिए अनेक शुभ कामनाएं दी हैं.

परिवार के इस सदस्य की इस सफलता के पीछे स्व. गेंदालाल शर्मा जी का अप्रत्यक्ष आशीर्वाद ही है. हम उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करते हैं.
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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - १०

Grapevine: The Christmas Capital of Texas

अभी यहाँ के मुख्य त्यौहार के आने में १०-१५ दिन शेष हैं, पर उसके स्वागत की तैयारी एक महीने पहले से ही बड़े जोर शोर से हो रही है. घरों-बाजारों में अन्दर-बाहर सर्वत्र सान्ताक्लाज छाये हुए हैं. क्रिसमस ट्रीज सितारों से सजे हुए हैं. शाम होते ही नयनाभिराम नज़ारे सामने आते हैं. क्यों ना हो? यहाँ पर ईसा का धर्म मानने वालों की जनसंख्या ७५% से अधिक है. यद्यपि ये लोग भी अन्दुरुनी रूप से बंटे हुए समाज की वजह से उपासना के लिए अपने अपने अलग अलग चर्चों में जाते हैं, पर पैगम्बर क्राइस्ट के प्रति श्रद्धाभाव व अटूट विश्वास सबका एक जैसा है. पवित्र धार्मिक ग्रन्थ, बाइबिल, सबके लिए ‘बाइबिल’ है. उसमें कोई विवाद नहीं है.

ग्रेपवाइन शहर डलास का सबर्ब है, जो एक खूबसूरत विकसित शहर है. उसके डाउन-टाउन (केंद्र) में जो बाजार है, उसे ईस्टर के बाद से ही विशिष्ट ढंग से सजाया जाता है. क्रिसमस पर यहाँ सारे होटल/इन व रिसोर्ट पर्यटकों से भर जाते हैं. दूर दूर से लोग यहाँ छुट्टियां मनाने पहुँच जाते हैं इसीलिये इस शहर को ‘क्रिसमस कैपिटल आफ टेक्सास’ भी कहा जाता है.

अमेरिका में अधिकांश जगह वैसे तो दूर दूर तक कहीं भी आदमजात चलते फिरते नजर नहीं आते हैं, केवल कारों- मोटर गाड़ियों के काफिले सडकों पर चारों दिशाओं में भागते नजर आते हैं, लेकिन हमने देखा कि ग्रेपवाइन के व्यस्त बाजार तथा मनोरंजन पार्क में असंख्य लोग अपने नन्हे-मुन्नों के साथ घूम रहे थे. जिसे देखकर मुझे कोटा का दशहरा मेला याद आ रहा था; फर्क इतना था कि कोटा में आप धूल धक्कड़ से परेशान हो जाते हैं, परन्तु यहाँ कोई प्रदूषण नहीं है. बच्चों के लिए झूलों से लेकर टॉयट्रेन व विविध प्रदर्शनियां, खेल-खिलोने, और लम्बी श्वेत दाढ़ी व लाल नुकीली टोपी वाले बाबा शान्ताक्लाज के जलवे.

इस स्थान का नाम ग्रेपवाइन इसलिए पड़ा था कि यहाँ सब तरफ अंगूरों की लताएँ हुआ करती थी. सन १८४३ में यहाँ एक आर्मी कैम्प लगा तभी इसको यह नाम दिया गया. इस शहर से लगा हुआ एक वृहद आकार का सरोवर है, जो पीने के पानी का स्रोत, मत्स्य-आखेट, तथा जलक्रीडा, व कैंपिंग के लिए प्रसिद्ध है. एक sea-life aquarium (मछली घर) भी पर्यटकों का आकर्षण है.
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बुधवार, 6 दिसंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - 9

Turner Falls  (झरना )
हमारे भारत देश में ६ ऋतुएँ होती हैं और उनका स्वभाव व प्रभाव बहुआयामी होता है. यहाँ अमेरिका में भी साल में चार ऋतुएं- सर्दी, बसंत, गरमी, व पतझड़- होती हैं. आजकल मैं डलास, टेक्सास में हूँ. यहाँ सर्दी और गरमी बहुत ज्यादा होती है. ऐसा लगता है कि यहाँ सर्दी में बेहद ठण्ड और गर्मी में बेहद ऊष्ण होने की वजह से अतीत में बहुत कम बसावट रही होगी. अब भी यहाँ गाड़ी, घर, दूकान-मॉल, या किसी भी रिहायसी जगह का ए.सी. (एयर कन्डीशनर) के बिना होने की कल्पना नहीं की जा सकती है. यहाँ बारिश का अलग से मानसूनी मौसम नहीं होता है. छः महीने wet व छः महीने dry रहता है. मौसम में बहुत उतार चढ़ाव होता है, परन्तु मौसम विभाग की विशेषता यह है कि उसकी भविष्यवाणी  (इतने बजकर इतने मिनट पर आपके इलाके में होगी) सटीक ही होती है.

मैंने देखा है कि यहाँ भी मध्यम दर्जे के पहाड़ तथा झीलों की कमी नहीं है. टेक्सास में बड़ी-बड़ी झीलें भी मानव निर्मित हैं. और जहां भी थोड़ी प्राकृतिक सौन्दर्य वाली या अजूबी जगह होती है, उसे संवार कर दर्शनीय बना कर रखा जाता है.

हमारे देश में भी प्राकृतिक सुन्दरता वाली अनेक जगहें हैं. मैं अपने उत्तराखंड की ही बात करूँ तो वहां सदाबहार जंगल, झरने, ताल-तलैया व अजब-गजब गुफाएं मौजूद हैं, परन्तु अधिकांशतया उनको संवारा नहीं गया है, और ना वहाँ जाने की सड़कें या साधन उपलब्ध हैं.

यहाँ अमेरिका में ऐसी सभी जगहों को पिकनिक स्पॉट बना रखा है. बड़े क्षेत्रफ़ल वाले इलाकों को स्टेट पार्क घोषित करके वहां पर्यटकों के लिए उचित प्रबंध किये गए हैं. इनका प्रचार प्रसार व जानकारी इंटरनेट पर भी उपलब्ध होती है. गत सप्ताह हम इसी तरह के एक आकर्षण, टर्नर फाल्स, को देखने गए थे. यह एक झरना है, जो ओकलाहोमा राज्य के अन्दर डेविस शहर से १५ किलोमीटर दूर आर्वेकल पहाड़ों की गहराई में हनी क्रीक (गधेरा) से बनता है. इस क्रीक की जड़ में ७७ फीट ऊँचाई से गिरते झरने ने एक तलैया (पूल) बनाया है, जिसका निर्मल जल आगे बहता जाता है. पूल के किनारे पुलिया बनी है, और पर्यटकों के लिए अनेक बड़े टेबल-बेंच व अन्य प्रसाधनों की व्यवस्था की गयी है. पहाड़ी के निचली पायदान पर सड़क के ऊपर ब्रिटिश स्टाईल के पत्थरों के छोटे छोटे कैसल (किले) बने हुए हैं.

घाटी के ऊपर एक छोटा रोप-वे देकर इस स्थान को और भी रमणीय बनाया गया है. इस पूरे १५०० एकड़ इलाके को ‘टर्नर पार्क’ नाम दिया गया है, जिसमें सुरक्षा के लिए हर वक्त पुलिस का इंतजाम रहता है. बताया गया कि ऑफ सीजन (सर्दियों) में इसके प्रवेश टिकटों के दाम आधे कर दिए जाते हैं.

 दामाद भुवन जी और बेटी गिरिबाला के साथ मैंने और मेरी श्रीमती ने इस पार्क में जाकर पिकनिक का पूर्ण आनंद लिया, और आपको भी घर बैठे आँखों देखा हाल बताने पर खुशी हो रही है.
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मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ८

Winstar casino (जुआघर)
टेक्सास राज्य की उत्तर दिशा में ओकलाहोमा नामक राज्य है, वहाँ के कुछ दर्शनीय स्थलों को देखने लिए जब हम डलास से चले तो सर्वप्रथम बॉर्डर पर ही दुनिया का सबसे बड़ा ‘कैसीनो’ मिला, जिसकी स्थापना सन २००३ में हुई और विस्तार २०१३ में किया गया. कहते हैं कि अमेरिका में हर चीज ‘किंग-साईज’ में होती है. यह बात इस कैसीनो पर भी लागू होती है. इतना बड़ा और विविध है कि आप चलते चलते और देखते देखते ही थक जायेंगे.

भौतिकवाद के भोगों से ऊबकर, बहुत से अमरीकी आध्यात्म की ओर रुझान किये हुए हैं इसलिए भारत देश से आये हुए ‘गुरुओं’ की यहाँ बहुत मान्यता है. लेकिन अधिकाँश अमेरिकावासी "eat drink and be merry"  के आदर्श पर चल रहे हैं. यहाँ रिटायरमेंट की कोई उम्र तय नहीं है. जब तक काम कर सकते हो करते रहो. बुढ़ापे के लिए किसी बचत की फ़िक्र नहीं होती है क्योंकि सोशल सेक्युरिटी के तहत वृद्ध जनों के लिए बेसिक जरूरतों की व्यवस्था है. यह इसलिए कि काम करते हुए इनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा सरकार टैक्स के रूप में वसूलती रहती है. कुल मिलाकर यहाँ के नागरिकों की लाइफ स्टाइल हम हिन्दुस्तानियों से बिलकुल अलग है.

अपने देश में जुआ, सट्टा व मटका पूर्णरूप से प्रतिबंधित है, पर यहाँ अमेरिका में ऐसा नहीं है. लास वेगस एक पूरा बड़ा शहर तो जुआघरों के लिए ही प्रसिद्ध है. दूर दूर से शौक़ीन लोग वहां जाकर अपना भाग्य अजमाया करते हैं. कुछ जीतते भी होंगे, पर जुआ तो जुआ है, सभी जुआरी अंतत: ख्वार हो जाते हैं ऐसा कहा जाता है. यह एक लत भी है, और जिनके पास अकूत संपत्ति है, उनके मनोरंजन का साधन भी है.

महाभारत की कथा के मूल में झगड़े की जड़ जुआ ही बताई गयी है, पर तब वह चौपड़ के नाम से कौड़ियों से खेला जाता था. अब दुनिया भर में जो जुआ होता है, वह ताश से लेकर इलैक्ट्रोनिक मशीनों द्वारा नए नए स्वरूपों में खेला जाता है.

विनस्टार कैसीनो एक बड़ी ऊंची व लम्बी-चौड़ी बिल्डिंग में एक छत के नीचे है जिसमें खेलने के लिए ७४०० मशीनें लगाई गयी हैं. खिलाड़ियों (जुआरियों) के पीने+खाने के लिए बीच बीच में रेस्टोरेंट, डाइनिंग हाल, स्पा व बुटीक दिन रात खुले रहते हैं. आकर्षण के लिए विश्व के विभिन्न बड़े शहरों के नाम से ‘प्लाजा’ अलग अलग अंदाज में उनके प्रतीक चिन्हों व कलाकृतियों से सजाये गए हैं. जैसे न्यूयॉर्क में स्टेचू आफ लिबर्टी, पेरिस में एफिल टावर, पेकिंग में ड्रेगन आदि. इंडिया का यहाँ कोई प्लाजा नहीं है.

ये जुआघर चौबीसों घंटे खुला रहता है. बाहर दोनों तरफ हजारों गाड़ियों की पार्किग के लिए खुले मैदान हैं. बगल में विनस्टार होटल की सत्रह मंजिला इमारत है, जिसमें १३९५ कमरे ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहते हैं. पीछे इन्हीं का गोल्फ का मैदान है. हमने देखा अनगिनत लोग मशीनों के इर्द सिगरेट व शराब की चुस्कियां लेते हुए मस्त और व्यस्त थे. यहाँ साप्ताहिक पोकर टूर्नामेंट भी होते रहते हैं.

मेरा विशेष आकर्षण बिल्डिंग के चारों तरफ पैंजी के रंग बिरंगे फूलों की क्यारियाँ भी रही. बाहर भी एक अनुपम नजारा था. मैंने अपनी यादगारी के लिए बाहर फूलों के साथ व अन्दर कैसीनो मशीन पर अपनी फोटो अवश्य खिंचवाई है. मुझे इस खेल के तौर तरीकों की  कोई जानकारी नहीं है; हाँ सन १९७२ में मैंने एक रूपये के लाटरी टिकट पर १० रूपये का इनाम अवश्य पाया था, सनद रहे.
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सोमवार, 4 दिसंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ७


टेक्सास वूमंस युनिवर्सिटी (TWU)
कहा जाता है कि यूनाइटेड स्टेट्स में भी प्रजातंत्र को पूरी तरह से स्थापित होने में लगभग दो सौ वर्ष लगे थे. अब यहाँ की कई विशेषताओं में से एक ये है कि स्त्री तथा पुरुष के अधिकार व कर्तव्य के क्षेत्रों में कोई लिंग भेद नहीं है. महिलायें हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चला करती हैं, चाहे वह राजनीति हो, शिक्षा हो, या कोई अन्य क्षेत्र; इसका कारण १००% शिक्षित होना है. १२वीं कक्षा तक सबकी पढ़ाई बिना फीस के होती है. कॉपी-किताबें भी स्कूल से मुहय्या की जाती हैं. भारत की तरह स्कूलिंग में कोई व्यापारिक दृष्टिकोण नहीं है, हालाँकि यहाँ पर भी पैसे वालों के लिए प्राइवेट स्कूल होते हैं. जो कोई अपने बच्चों को स्कूल में नहीं भेजता या होम-स्कूल नहीं करता है, उसे सजा मिला करती है.

उच्च शिक्षा के लिए जागरूकता इस बात से जाहिर होती है कि यहाँ हर उम्र के लोग कॉलेजों में पढ़ने जाया करते हैं. कई लोग जो किसी आर्थिक या पारिवारिक विवशता के कारण कम उम्र में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं, या अपना फील्ड बदलना चाहते हैं, या स्वयं का विकास करना चाहते हैं, वे किसी भी उम्र में यूनिवर्सिटीज में दाखिला ले सकते हैं, और उन्हें हर तरह का प्रोत्साहन दिया जाता है.  

टेक्सास वूमंस युनिवर्सिटी, अमेरिका की एक नामी संस्थान है, जो डेंटन शहर में २७० एकड़ जमीन में स्थापित है, इसके दो हेल्थ साइन्स वाले ब्रांच भी हैं, जो डेलास व ह्यूस्टन में स्थापित हैं. इस युनिवर्सिटी की स्थापना सन १९०१ में कुछ अग्रणीय महिला संगठनों ने की थी. इसकी प्रसिद्धि नर्सिंग एजुकेशन, हेल्थ केयर प्रोसेसिंग, न्यूट्रीशन के अलावा आर्ट, साइंस, तथा बिजनेस के समस्त विषयों में है. सन १९९३ के बाद इसे को-एजुकेशन के लिए भी खोल दिया गया. वर्तमान में १५,००० स्टूडेंट्स इसमें पढ़ाई कर रहे हैं. डेंटन कैंपस में "Blagg-Huey Library" नामक  विशाल पुस्तकालय है, जिसमें ४२,००० से अधिक पुस्तकें व पढ़ाई के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं.

मुझे इस विश्वविद्यालय में घूमकर देखने का सौभाग्य इसलिए प्राप्त हुआ कि मेरी बेटी गिरिबाला इन दिनों यहाँ अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स की डिग्री लेकर अब पी.एच डी कर रही  है ,  साथ ही बतौर Graduate Teaching Assistant के यहाँ पढ़ाती भी है. गिरिबाला ने कई वर्ष पहले जयपुर के निकट बनस्थली विश्वविद्यालय से Inorganic Chemistry में प्रथम श्रेणी M.Sc. की डिग्री भी हासिल की थी. गत वर्षों में अमेरिका में रहते हुए उसने अपना लेखन व ज्ञानार्जन का शौक जारी रखा है. मैं अपने पाठकों को ये शुभ सूचना भी देना चाहता हूँ कि गिरिबाला की बेटी सौभाग्यवती डा हिना जोशी रेसिंग ने गत वर्ष ज्योर्जिया मेडीकल कॉलेज से रेडियोलाजी में M.D. की डिग्री हासिल कर ली थी.

यूनिवर्सिटी कैम्पस के विहंगम दृश्य, विशेषकर लायब्रेरी की व्यवस्था, देखकर जो अकल्पनीय जानकारियां मिली हैं, उन्हें मैं अपने सुधी पाठकों तक पंहुचाने में खुशी महसूस कर रहा हूँ.
क्रमश:
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