सोमवार, 22 जनवरी 2018

बसंत पंचमी

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पांचवी तिथि बसंत पंचमी / श्री पंचमी / बागेश्वरी पंचमी के नाम से जानी जाती है. पौराणिक गाथाओं के अनुसार यह देवी सरस्वती का जन्मदिन होता है और उनकी पूजा की जाती है. भगवती सरस्वती को ज्ञान, संगीत तथा बुद्धि की अधिष्ठाता माना गया है. सनातन विश्वासों के अनुसार इस दिन छोटे बालक/बालिकाओं को कलम पकड़ाने का अनुष्ठान किया जाता है.

हमारे उत्तराखंड में इसे कृषक त्यौहार के पारंपरिक रूप में मनाया जाता है, जौ की हरी पत्तियाँ घरों के मुख्य दरवाजों और जानवरों के गोठ/गोशाला में दोनों तरफ चिपकाए जाते हैं तथा जौ की पत्तियाँ शुभ कामनाओं के साथ माथे पर रखी जाती हैं. छोटी बालिकाएं अपना कर्णछेदन व नकछेदन बसंत पंचमी के दिन करवाती हैं. यह दिन विशेष रूप से पीले वस्त्र, पीले पकवानों, और पीले रंग के फूलों का होता है. ऋतुराज बसंत का आगमन यों भी खुशियों पूर्वक मनाया जाता है कि मौसम परिवर्तन होने से ठिठुरती ठण्ड से मुक्ति मिलती है. बसंत पंचमी को होलिकोत्सव (मदनोत्सव) का आगाज भी हो जाता है. पेड़ पौधों पर नई कोपलें व पुष्प प्रस्फुटित होने लगते हैं.

मेरे परिवार के लिए इस विशिष्ठ दिन का महत्व ये है कि आज ही के दिन सन १९९७  को मेरी पूज्य माताश्री का स्वर्गवास हुआ था. माँ, जिनकी कोई तुलनीय उपमा नहीं होती है, उनसे बिछुड़ने का दर्द इस तिथि पर अवश्य हरा होता है, परंतु इस नश्वर संसार का शाश्वत सत्य है. इसलिए हर वर्ष उनको श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं.
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गुरुवार, 18 जनवरी 2018

Cement Man - श्री भास्कर आगटे

हिन्दी, मराठी, व अंग्रेजी के प्रकांड श्री भास्कर आगटे जी का मुझे सानिध्य तब प्राप्त हुआ जब वे ९० के दशक में लाखेरी सीमेंट कारखाने में डी.जी.एम.(टेक्निकल) के रूप में स्थानांतरित होकर आये थे. उनके पहुँचने से पहले उनके बारे में समाचार पहुँच गए थे कि वे सीमेंट टैक्नोलॉजी के पंडित हैं, और ए.सी.सी. के आधा दर्जन कारखानों में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं. सन १९७२ में फिजिकल कैमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद वे कैमोर स्थित मूलगांवकर इंस्टीट्यूट में मैकेनिकल + इलैक्ट्रिकल + वेल्डिंग + ऑटोमोबाईल + कैमिस्ट्री की विधाओं में  विधिवत ट्रेनिंग पाकर तराशे गए थे. यह सब तब हम लाखेरीवालों की अग्रिम जरूरत भी थी क्योंकि हम कर्मचारीगण इन वर्षों में कारखाने के पराभव के बारे में सहमे हुए थे; इसलिए शुभाकाँक्षी थे कि कारखाना चलता रहे और हमारी रोजी-रोटी बनी रहे. ए. सी. सी., जो कि इस इलाके का एकमात्र बड़ा उद्योग था, लाखेरी नगर तथा आसपास के गांवों के लिए पूर्ववत ‘कंपनी माता’ के स्वरुप में ज़िंदा रहे.

"घोड़ा उड़ सकता है" यह तो एक मुहावरा है, पर हमने प्रत्यक्ष देखा है कि बहुत से सीनियर कामगारों के कष्टपूर्ण बलिदानों (V.R.S.) के परिणामस्वरुप कम लागत पर अधिक उत्पादन की सोच से घाटे में डूबते कारखाने को नवजीवन देकर ऊपर लाने की प्रक्रिया हर कोशिश में थी; ऐसे में मैं तब कामगार संघ का अध्यक्ष के रूप में अपने जनरल सेक्रेटरी श्री रविकांत शर्मा को साथ लेकर आगंतुक टेकनिकल अधिकारी के स्वागत करने उनके कार्यालय में गया था.

उम्र में मुझसे लगभग १० वर्ष छोटे श्री आगटे मिष्टभाषी  हैं. मेरे १९९९ में रिटायरमेंट के बाद भी कई वर्षों तक प्लांट हेड श्री पी.के. काकू और श्री दुर्गाप्रसाद के नेतृत्व में देखभाल करते रहे.

मैंने जब सन २०१४-१५ में अपनी लाखेरी की स्मृतियों को सीरीज के रूप में फेसबुक (ग्रुप- लाखों के लाखेरियन) में प्रकाशन किया तो श्री आगटे (इस लेखन के नियमित पाठक रहे) ने मुझे सलाह दी कि इस सीरीज को "लाखेरी – पिछले पन्ने" के रूप में पुस्तकाकार छपवाया जाये. मैंने इसकी भूमिका लिखने के लिए आगटे जी को ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति समझा और उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार भी कर मुझे अनुगृहीत किया. इस पुस्तक में एक लेख ‘सीमेंट’ भी है जिसमें मैंने अपनी अल्प जानकारी के अनुसार जो तथ्य लिखे थे उनको विस्तार देकर आगटे जी ने एक सम्पूर्ण दस्तावेज बनाकर नवाजा है.

मैंने जब आगटे जी का पूरा प्रोफाईल देखा तो पाया है कि वे एक असाधारण व्यक्ति हैं उनको अगर ‘सीमेंट मैन’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. उन्होंने सीमेंट विषय पर अनेक दस्तावेज/ रिसर्च पेपर्स कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किये हैं. प्रकाशित दस्तावेजों में  "Quality  control in cement plants & quality control of  clinker" बहुचर्चित हैं. सीमेंट के क्षेत्र में उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं.

उनके रिकार्ड में मुझे एक ऐसा भी दस्तावेज देखने को मिला, जिसमें उनकी मानवीय संवेदनाओं की झलक मिलती है. एक अधीनस्थ योग्य अधिकारी को किसी बात पर जब बर्खास्त किया जाने वाला था तो श्री आगटे ने उन परिस्थितियों का अध्ययन कर उसे एक तरह से नवजीवन दिया. आज भी उनके फेसबुक पर मैं देखता हूँ कि जिन कारखानों में भी उन्होंने कार्य किया था वहाँ के अनेक मित्र, सहकर्मी, या मातहत कर्मचारी उनसे लगातार जुड़े रहते हैं. 

ए.सी.सी. से रिटायरमेंट के बाद भी उनकी कर्म के प्रति निष्ठाभाव इस बात से जाहिर होता है कि प्रोफेशनल ट्रेनिंग देने का कार्य वे निरंतर जारी रखे हुए हैं. वे कई संस्थाओं में गेस्ट विजिटिंग फैकल्टी एंड पीएच.डी. मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट पूना के थीसिस प्रूफ रीडिंग आदि रचनात्मक कार्य निरंतर कर रहे हैं.

पारिवारिक जीवन में भी वे एक सुखी व्यक्ति हैं. एक योग्य पुत्र और पुत्री के पिता होने का गौरव उनको प्राप्त है. दोनों ही देश और विदेश में सेवारत रहते हुए आनन्द पूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं. श्रीमती आगटे एक समर्पित सद्गृहणी हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने बड़ी तपस्या की है. वे कारखानों के कैंपस में हुए महिला क्लब द्वारा आयोजित सभी सामाजिक कार्यों में भागीदार रहती थी. आगटे जी अब सगे सम्बन्धियों के साथ पूना में रह रहे हैं. ईश्वर उनको सपरिवार स्वस्थ और सुखी रखे, यही हमारी दुआ है.
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मंगलवार, 9 जनवरी 2018

अटलांटिक के उस पार -१२: The Sixth Floor Museum at Dealey Plaza



इस फोटोग्राफ में मैं उस जगह खड़ा हूँ, जहां पर १९६३ में सयुंक्त राज्य अमेरिका के एक राष्ट्रपति जॉन ऐफ. कैनेडी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. वह एक मुखर स्पष्टवक्ता राजनेता के रूप में जाने जाते थे. आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे और विश्व में शीत युद्ध की जबरदस्त छाया के दौरान शक्तिशाली लीडर के रूप में स्थापित हो चुके थे. अमेरिका के ३५ वें राष्ट्रपति कैनेडी सबसे कम उम्र वाले राष्ट्रपति थे. एक अमीर व्यापारी खानदान में जन्मे जॉन ऐफ. कैनेडी द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिकी नेवी में भी अपनी सेवा दे चुके थे, तथा बाद में १९४७ में प्रतिनिधि सभा में रहे, और १९५३ से १९६० तक सीनेटर रहे.

मैं जब २३-२४ साल का था, तब भी नियमित रूप से विश्व समाचार भी पढ़ा सुना करता था. मुझे अच्छी तरह याद है जब राष्ट्रपति कैनेडी की मृत्यु का समाचार ट्रांजिस्टर पर सुना था. यद्यपि तब मैं किसी राजनैतिक विचारधारा या संकल्पों से जुड़ा हुआ नहीं था, समाचार सुनकर मैं बहुत दु:खी हुआ था क्योंकि वे एक युवा आदर्श थे.

मैं अभी उस बिल्डिंग की छटी मंजिल पर जाकर उस स्मारक म्यूजियम को देख-सुन आया हूँ जिसमें बड़े बड़े चित्रों, लेखों व ऑडियो-वीडियो द्वारा जॉन ऐफ. कैनेडी को ज़िंदा रखा गया है. जब मैं टेक्सास राज्य के डलास शहर के डाउन टाउन में Sixth Floor Museum at Dealey Plaza  नामक संग्रहालय में पहुंचा तो वहां पर्यटकों की लम्बी कतार थी. सभी को व्यवस्था की तरफ से $१६ ($१४ सीनियर सिटिजन्स के लिए) एंट्री फीस लेकर एक guiding tape recorder with head phone  दिया गया, जिससे हर दृश्य का विस्तार से वर्णन सुना जा सकता था. पूरे कार्यक्रम में कैनेडी के कुछ वाक्य बार बार याद आ रहे थे जैसे, “A man may die, nation may rise and fall, but an idea lives on.”

उन्होंने अपने देशवासियों से कहा था कि, “आप ये मत सोचिये कि राष्ट्र आपको क्या दे रहा है, आप सोचिये कि आप राष्ट्र को क्या दे रहे हैं.”

उनकी एक मशहूर पुस्तक Profiles in Courage को पुलित्जर पुरूस्कार प्रदान किया गया था. कैनेडी ने विश्व में परमाणु निशस्त्रीकरण का नया अध्याय शुरू किया. सारे विश्व को प्रभावित करने वाली इस शक्शियत का इस तरह क़त्ल कर दिया जायेगा / करवा दिया जाएगा, ऐसा किसी ने सोचा भी न था. यद्यपि अमेरिकी इतिहास में वे चौथे राष्ट्रपति थे, जिनको अकाल मार दिया गया था.

संग्रहालय में उनके सुखी पारिवारिक जीवन की झांकिया भी चित्रों में दर्शाई गयी हैं, पर दुखद अंत मन में टीस पैदा करता है. यह सब देखकर महात्मा गांधी स्व. इंदिरा गांधी व उनके पुत्र स्व. राजीव गांधी के जीवन बलिदानों की याद ताज हो आई. ये सभी अब इतिहास के अमर पात्र बन गए हैं.
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शनिवार, 6 जनवरी 2018

अटलांटिक के उस पार - ११ Our New Year Eve Celebration 2018

मैं और मेरी अर्धांगिनी कुन्ती पाण्डेय टेक्सास राज्य के डलास शहर में बेटी-दामाद के आतिथ्य का गत दो महीनों से भरपूर आनंद ले रहे हैं. यह स्थान हमारे घर हल्द्वानी से लगभग १३,५०० किलोमीटर दूर है; हम पहले भी दो बार क्रमश: २००६ और २०११ में अमेरिका आ चुके हैं, पर इस बार मैं सोचता हूँ कि ये हमारे पर्यटन का आख़िरी दौर है क्योंकि अब इस उम्र में ऐसा लम्बा सफ़र बहुत दुरूह है. इस बार यहाँ आना यों भी आवश्यक हो गया था कि नातिनी हिना का गत नववंबर में विवाहोत्सव था. तीन महीनों के इस अंतराल में नववर्ष २०१८ का आगाज हो गया है. यहाँ इन बच्चों ने अपने संगी-साथियों के साथ उत्तर दिशा में ओक्लाहोमा राज्य की पर्वतीय उपत्तिकाओं में चीड़ के जंगलों के बीच ब्रोकन बो शहर में नये साल का जश्न मनाने का प्रोग्राम बनाया, जिसके लिए पहले से बुकिंग कर ली गयी थी. यह स्थान करीब २८० किलोमीटर दूरी पर है. कुल आठ भारतीय परिवार अपने नन्हे-मुन्नों के साथ अपनी अपनी गाड़ियों में सड़क मार्ग से ३१ दिसंबर दोपहर बाद वहाँ पहुंच गए थे.

वहाँ लकड़ी के बने हुए सुन्दर मकान, बाहर से खुरदुरे नजर आ रहे थे, पर घरों के अन्दर सभी अत्याधुनिक सुविधायें थी. बाहर का तापमान दिन में भी -४ डिग्री सेल्सियस हो रहा था, लेकिन घर के अन्दर बिजली का अलाव तथा पूरी बिल्डिंग एयर कंडिशन्ड थी; आरामदायक फर्नीचर, बिस्तर, फ्रिज, फर्निश्ड किचन, गैस, शुद्ध ठंडा/गरम पानी वाला स्नानघर, टी.वी., इंटरनेट, और साबुन-तौलिये सब कुछ. जंगल में थोड़ी थोड़ी दूरी पर बने ये ‘लॉग हाउस’ किराए के मतलब से ही पर्यटकों के लिए बनाए गए हैं. हाँ इनके किराए की बात मैं ना करू तो बेहतर होगा क्योंकि हमारे देश के हिसाब से ये कई कई गुना ज्यादा था, पर ये अमेरिका है, यहाँ रहने वाले रुपयों में कन्वर्ट करके नहीं देखते हैं. बहरहाल जंगल में मंगल की कल्पना साकार थी.

ग्रुप के ये सभी लोग नोकिया कंपनी में कार्यरत हैं. सभी की पत्नियां भी यहाँ जॉब करती हैं; बच्चे सभी स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले हैं. पहले से तयशुदा व्यवस्था के अनुसार बहुत सारी खाद्य सामग्री, तेल मसाले से लेकर रेडीमेड व्यंजन लेकर गए थे, तथा बहुत से व्यंजन वहीं ताजे बनाए गए, जिनमें इडली, डोसा, साम्भर, ढोकला, परांठे, पूडियां, सब्जियां, चटनी, पुलाव, मिष्टान्न, सब इन्डियन खुशबू व स्वाद वाले.

शाम होते ही बच्चों का धमाल, महिलाओं का योगा, नृत्य-संगीत आदि एक जीवंत प्रायोजित कार्यक्रम की तरह चला. यद्यपि हम प्रमाणित/ घोषित बुजुर्ग थे परंतु पूरी प्रक्रिया में शामिल रहे. ऐसा लग रहा था कि पूरा परिवार अपना ही था जबकि एक परिवार गढ़वाल (उत्तराखंड) से, एक गुजरात से, दो तमिलनाडु से, एक ओडीसा से, दो बंगाल से, एक आसाम से और हम उत्तराखंड (कुमाऊँ) से वहां थे. अनेकता में एकता के दर्शन हो रहे थे. परिस्थितिवश सभी अंगरेजी बोलने के अभ्यास में थे और बच्चे तो यहीं की पैदावार होने से शुद्ध अमरीकी लहजे में वार्तालाप कर रहे थे. इस कार्यक्रम में मेरा एक पौत्र चि. सिद्धांत भी शामिल था, वह बोस्टन में इंजीनियरिंग की चौथे साल की पढ़ाई  के बीच सर्दियों के अवकाश में हमारे पास आया है. उसने एक ग्रेजुएसन कर रहे हमउम्र बालक के साथ मिलकर पूरे आयोजन में रौनक बनाए रखी.

इस ग्रुप के एक सदस्य मुझे सन २००३ में फिलीपींस से जानते थे, जहां सामूहिक कार्यक्रमों में मैंने खूब चुटकुले सुनाकर लोगों का मनोरंजन किया था, उसने जब सबके सामने मुझसे अनुरोध किया तो मैं भी कुछ समय के लिए सींग कटवा कर बछडा बन सभी का मनोरंजन करता रहा.

आधी रात को १ जनवरी के आगाज होते ही बच्चे जवान सभी थिरकते रहे, और एक दूसरे को Happy New Year की शुभकामनाओं से सरोबार करते रहे.

एक जनवरी का पूरा दिन हँसी-खुशी में बीता. दोपहर बाद गाड़ियों का काफिला साईट सीइंग के लिए दूर नदी-तालाब व पहाड़ियों का अवलोकन करने के लिए निकला; बाहर तापमान -५ डिग्री होने पर भी बड़े और बच्चों ने काफी समय बाहर बिताया. मैं और श्रीमती घूमने का ज्यादा आनंद नहीं ले सके, और कुछ समय पश्चात सभी लोग लॉग हाउस में लौट आये.

शाम की दावत के साथ साथ नाच गाने, मनोरंजक क्विज प्रोग्राम देर रात तक चला. अगली सुबह ब्रेकफास्ट व फोटो सेशन के पश्चात सबने एक दूसरे को शुभ कामनायें दी और लौट चले. चार घंटों के सफ़र में रास्ते में बहुत से शहर आये. दो नाम जाने पहचाने थे; एक मैनचेस्टर (इंग्लेंड में मैनचेस्टर जो बढ़िया कपड़ों के मिलों के लिए प्रसिद्धथा  दूसरा पेरिस (फ्रांस की राजधानी के नाम से), जहाँ एक छोटा एफिल टावर भी बनाया गया है. दरअसल जो लोग जिस देश/शहर से आकर यहाँ बसे उन्होंने वही नाम अपनी बसावट की रख दी होगी.

फ्लावर माउंड में अपने आवास पर आने पर हमने पाया कि गत दो दिनों में यहाँ भी माइनस में तापमान होने से बैकयार्ड में स्विमिंग पूल के झरनों का पानी जमा हुआ था.

इसप्रकार सुखद भविष्य की परिकल्पनाओं के साथ नव संचारित होकर हम लोग २०१८ में पदार्पित हुए. मैं अपने पाठकों को भी नववर्ष की अनेकानेक शुभ कामनाएं प्रेषित करता हूँ.
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गुरुवार, 4 जनवरी 2018

नववर्ष


३६५ दिनों का कालचक्र कई मान्यताओं /गणनाओं/ स्मारकों/ मौसमी बदलाओं का मंथन करने के बाद वर्ष के रूप में बनाया गया है.

पहली जनवरी को नववर्ष मनानेवालों को शायद यह बात मालूम ना हो कि दुनिया भर में नववर्ष अलग अलग दिनों में लगभग ७० बार मनाये जाते हैं क्योंकि सभी मतावलम्बी लोग अथवा सभी देशों के लोग कैलैंडर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं. इस वैज्ञानिक युग में भी चंद्रमा अथवा सूर्य की ज्योतिषीय गणनाओं पर कैलेंडर बनाए जाते हैं.

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, बेबीलोन के लोग ४००० वर्ष पहले भी २१ मार्च को नववर्ष मनाते थे, जो बसंत के आगमन का सूचक हुआ करता था.

रोम के निरंकुश शासक जूलियस सीजर ने ईसा से ४५ वर्ष पूर्व अपना जूलियस कलेंडर चलाया था, जिसके अनुसार एक जनवरी को उत्सव मनाया गया था; तिथि निर्धारण के लिए उसे पिछले वर्ष यानि ईसा पूर्व ४६वाँ वर्ष ४४५ दिनों का करना पड़ा था.

इस्लामी हिज़्र कैलेंडर मुहर्रम से शुरू होता है, जिसमें १० दिन हर वर्ष पीछे खिसकते रहते हैं.

हिन्दुओं का नववर्ष चैत्र नवरात्रियों से शुरू होता है, परंतु भारत में विभिन्न संस्कृतियों के चलते देश के अलग अलग हिस्सों में धार्मिक/स्थानीय मान्यताओं के अनुसार नववर्ष की शुरुआत अलग अलग तिथियों से हुआ करती है. पंजाब में बैसाखी यानि १३ अप्रेल से, सिख नानकसाही १४ मार्च से, आंध्र की उगादी व बंगाली नववर्ष की शुरुआत भी इन्ही दिनों में होती है. दक्षिण में पोंगल मकर संक्रांति पर, सिंधियों का चेटीचंड से शुरू होता है.

उज्जयनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शक शासकों पर अपनी विजय के उपलक्ष में विक्रम संवत ईसा से ५८ वर्ष पूर्व चालाया था जो २१ फरवरी से प्रारम्भ होता है. शक सम्राट कनिष्क ने ईसा पूर्व ७८ वर्ष से शक संवत चलाया था, भारत सरकार ने मामूली फेरबदल करके इसे ही राष्ट्रीय संवत के बतौर अपनाया है.

विश्व भर में आज प्रचलित ईस्वी संवत वाला कैलेंडर, रोमन ग्रेगोरियन कलेंडर पर आधारित है. पोप ग्रेगरी अष्टम ने सन १५८२ में यह कैलेंडर पुन: अपडेट कराया, जिसमें गणना ठीक करने के लिए ‘लीप इयर’ का प्रावधान किया गया. पर ईसाइयों का एक पंथ ‘ईस्टर्न आर्थोडेक्स चर्च’ ग्रेगोरियन कलेंडर को नहीं मानता है; उनके कैलेंडर के अनुसार १४ जनवरी से नववर्ष होता है इनका कलेंडर रूस, जार्जिया, यरूशलम, सर्विया आदि देशों में चलता है. चीन वाले चन्द्रमा की गति से अपना कैलेंडर बनाते हैं, जिसके अनुसार नववर्ष २१ जनवरी व २१ फरवरी के बीच आता है.

हर नववर्ष की शुरुआत पर आम लोगों में उत्साह-उल्लास व सुखद भविष्य की परिकल्पना होती है, और इसी उद्देश्य से सभी मित्र लोगों से या सार्वजनिक रूप से शुभ कामनाओं का आदान प्रदान होता है.

मैंने इस बार वर्ष २०१८ का नववर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वजनों के साथ मनाया, जिसका विवरण अगले लेख में लिखूंगा.
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