रविवार, 24 नवंबर 2013

बैठे ठाले - १०

Empty mind is devil's workshop stated, nowadays I have no work. Write something like the cold weather had also been fond of reading. But the country's many political, social and literary Pelne big things after repeatedly by media people gathered in me-too is haunted want to lighten the weight of your mind. I also want to say to my dear readers that these lines' Na Na Lettuce Lettuce friendship and enmity "of expressions are written.

(1) Bharat Ratna - I am great fan of Sachin Tendulkar. He has recorded a number of his game. He takes a soft-spoken and simple person by nature. He has been awarded numerous sports and Government. Arjuna Award, Padma Shri, honorary rank in the army, the membership of the Council and also so many prizes. Taking time to retire from cricket Sachin Biksiksikaik Given the tremendous farewell. Sachin's farewell speech was so cute, I heard the whole.

Delhi government hurriedly announced the highest civilian honor for Sachin had been. The government's hasty decision was taken not to have landed my throat. Bharat Ratna is not a trophy, the wins should be the same or get carried away by emotion. Many senior people sitting in their own areas of great achievements. Ginana their name does not seem fair. Sachin along with the game's commercial relations. Sachin cool drinks, insurance companies and other marketable products, promotions are often seen on TV. Whatever be the reason, so young to be given Bharat Ratna not seem like a huge national pride. I believe that such awards to fix a very high-level committee should be apolitical.

(२) भावी प्रधानमंत्री? – गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेंद्र मोदी आजकल मीडिया की सुर्ख़ियों में हैं. उनकी रैलियों में उमड़े जनसैलाब से लगता है कि वे देश के लोकप्रिय जननेता हैं. भाजपा ने उनके ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ की छाप को तुरुप के इक्के के रूप में उछाला है. इससे उसे अवश्य राजनैतिक लाभ मिलेगा, पर मोदी जी के जितने मित्र हैं, उससे ज्यादा दुश्मन भी इस धरा पर मौजूद हैं क्योंकि मोदी की जुबान बहुत कड़वी और अहंकारपूर्ण है. लम्बी रेस के घोड़े को बहुत सावधानियां बरतनी होती हैं, जिनका मोदी जी के स्वभाव में अभाव लगता है. एक तरफ जब आम आदमी महंगाई और व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त है, चाहे अन्ना हजारे जी का आन्दोलन था या रामदेव जी का रामलीला मैदान, वह इन्कलाब चाहता है. ऐसे में अब मोदी के पक्ष में लोग उठ खड़े हो रहे हैं, पर इसे विश्लेषण करने वाले दूसरी दृष्टि से देख रहे हैं कि उनकी भाषा का स्तर बहुत घटिया होता है जिसे सस्ती लोकप्रियता का नाम दिया जा रहा है, जो टिकाऊ नहीं होती है. उनको संजीदा हो जाना चाहिए था. अपने विरोधियों पर व्यक्तिगत कटाक्ष और द्वेषभावना उनकी बड़ी कमजोरी है. मैं उनके घोर समर्थकों को निराश नहीं करना चाहता हूँ, पर यह निश्चित है कि खुदानाखास्ता वे प्रधानमंत्री बन गए तो चल नहीं पायेंगे. हमने सत्तर के दशक में भूतपूर्व गान्धीवादी प्रधानमंत्री स्व.मोरारजी का हश्र देखा है.

(3) You - Delhi Arvind Kejriwal 's Aam Aadmi Party's advance secretly tape colleagues published their image is a setback, however, in its defense, they simply BJP / Congress plot are told. The first thought that came to Delhi after the election they can come in the role of kingmaker, As at As elections are approaching, their graph is coming down, the old electoral ace players are beginning to maneuver. Anna G. went visionary already pulled out of the politics.

(4) SP's Muslim appeasement Sampradayikta- Muzaffarnagar riots in UP 's perspective has been exposed, which have objected to the Supreme Court, and the same community five five lakh compensation to those who have stopped giving but there was more communal character of the riot accused BJP MLAs to glorify Agra rally.

(5) Asumal and Son - every man is sitting inside an animal. Which sooner or later exposes their nature. Mummer Sant Asaram has been divided on the filling of a vessel of sin. And much of that Drinde who exploit gullible people's beliefs and faith are coming. God has called home late, do not despair. Asuml own words, 'humans have to suffer for his deeds.

(6) Tehelka woman journalist colleague -prchidranuvesi Tehelka journalist with big weighty admission of sexual offenses indicates that the dignified positions are so many people leap to their limitations. Similarly, many of the published events Madhya Pradesh, Rajasthan, Uttar Pradesh have been coming from all over. The criminal character of men to women in our country have had to Adimkal. This mindset needs to be changed. In our society, the definition of sin and virtue, attacking some of Western culture parody and caricature of the consequences of misconduct is served in commercial cinema. Which is now becoming incurable.

Abject despair for the environment an individual can not be convicted. Nearly 400 years ago, Goswami Tulsidas Ramcharitmanas in humans Klikal Excellent depict the character as: "Klikal Vihal Mnuja made, not yet the Standard Anuja Tanuja quo."
*** 

सोमवार, 18 नवंबर 2013

बैठे ठाले - ९

वर्तमान में हमारे देश के राजनैतिक आकाश में कोई बड़ा ग्रह न होने की वजह से ज्यों काली रात में टिमटिमाते तारों के बीच एक प्रायोजित धूम्रकेतु नरेंद्र भाई मोदी के रूप में उदित हुए हैं, उनकी प्रतिभा व लच्छेदार भाषण शैली से प्रभावित होकर स्वरसाम्राज्ञी लता जी ने स्वाभाविक रूप से अपने उद्गार प्रकट किये कि ‘मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो उनको खुशी होगी.’

संस्कृत में एक सत्य वचन वाक्य यो लिखा हुआ है ‘यस्मिन देशे द्रुमो नास्ति, अरंडियो अपि द्रुमायते.’ इसका अर्थ है जिस देश-प्रदेश में बड़े पेड़ नहीं होते हैं, वहाँ अरंड के पेड़ को ही बड़ा पेड़ कहा जाता है या समझा जाता है. इस वक्त जो नेतृत्त्व में खालीपन महसूस किया जा रहा है, ये वचन उस परिपेक्ष्य में भी फिट बैठते हैं.

बिलकुल भोली थी लता जी की प्रतिक्रया. वह कोई भगवान/भगवती नहीं हैं, इन्सान हैं. जैसा महसूस हुआ, कह डाला. इस पर महाराष्ट्र के एक कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता ने अपनी भड़ास निकाल डाली कि 'लता जी को सरकार द्वारा दिया गया सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न वापस कर देना चाहिए'. मानो ये उन्होंने लता जी को दान में दिया हो. ये एक महान कलाकार को कृतज्ञ देश द्वारा श्रद्धाभाव से अर्पित सम्मान है. नेता जी का आचरण बड़े शर्म और गैरत वाला है. हालाँकि कॉग्रेस पार्टी के आधिकारिक सूत्रों ने इसे गैर जरूरी बताया बताते हुए अपने को अलग कर लिया है.

राजनैतिक विद्वेष की जड़ में जाने पर मालूम हुआ कि उस व्यक्ति ने यह बात उस सन्दर्भ में चोटिल होकर कही थी, जब ठीक इसी भाषा में एक भाजपा के नेता ने ख्यातिप्राप्त नोबल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री श्री अमर्त्य सेन के लिए कही थी कि उनको दिया गया भारत रत्न सम्मान वापस होना चाहिए. क्योंकि मोदी जी को भाजपा द्वारा अपने भावी प्रधानमंत्री के रूप में घोषित किया है. सेन साहब ने मोदी जी के साम्प्रदायिक चरित्र वाले भूतकाल और अहंकारी बड़बोलेपन पर अपनी प्रतिक्रया दी थी कि ‘जिस दिन मोदी प्रधानमन्त्री बनेंगे, वे देश छोड़ कर चले जायेंगे.’

ये सब अपने अपने व्यक्तिगत विचारों पर आधारित वक्तव्य हैं. हमारा देश एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले संवैधानिक आधार पर मजबूती से टिका हुआ है. इसलिए हिकारत भरे बचकाने वक्तव्यों को नजरअंदाज कर देना चाहिए.

ये सच है कि अभी देश की पूरी जनता लोकतंत्र झेलने के काबिल नहीं बन पाई है. गरीब व अमीर के बीच की खाई बहुत बड़ी है. भ्रष्टाचार हम सब (अपवादों को छोड़ कर) के जीवन का अभिन्न अंग बना हुआ है. जो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने घरों के छतों पर माइक लगाकर दूसरों को कोस रहे हैं, वे खुद भ्रष्टाचार में गहरे तक डूबे हुए हैं.

आजकल चुनाव का मौसम है. विभिन्न राजनैतिक दलों की रैलियों में भिन्डी बाजार की भाषा में घटिया शब्दों में एक दूसरे पर आक्षेप लगाए जा रहे हैं. जो लोग इन विष के बीजों को बो रहे हैं, उनके लिए चेतावनी है कि इसकी फसल भी उनको ही काटनी पड़ेगी.

अरे, दुश्मनी करो, पर ऐसी नहीं कि फिर कहीं मुलाक़ात हो तो नजर भी न मिला सको.
***

शनिवार, 16 नवंबर 2013

ओल्ड इज गोल्ड

अंग्रेजी में एक कहावत है ‘देयर इज नो शॉर्टकट टु एक्सपीरियंस’, इसी को हिन्दी के एक कहावत में यों भी कहा गया है, ‘अक्ल और उम्र की भेंट नहीं होती है.’

प्राचीन साहित्य में, धार्मिक पुस्तकों या कथा-पुराणों में जो बातें लिखी रहती हैं, वे बहुत तपने के बाद बाहर आई हुई रहती हैं. संस्कृत में उन बातों को आप्तोपदेश कहा जाता है. विज्ञान हो या कोई अन्य प्रयोग, जिनकी हमें जानकारी हो जाती है, उनको फिर से जड़ मूल से खोदने की जरूरत नहीं होती है यानि बुजुर्गों के कथन या अनुभवों पर विश्वास किया जाता है.

एक छोटा सा दृष्टांत बुजुर्गों के अनुभव के सम्बन्ध में सुना जाता है कि पुराने समय में एक गाँव में किसी नौजवान लड़के की शादी तय हो गयी. लड़की वाले बड़े चुहुलबाज थे. शर्त रख दी कि बारात में केवल नौजवान लड़के ही आने चाहिए. लड़के के बाप को इस शर्त में कुछ रहस्य सा लगा तो उसने गाँव के एक होशियार बुजुर्ग (wise man) को ढोल बाजे के अन्दर छिपा कर ले जाने का निर्णय लिया.

देर शाम जब बारात गाँव में पहुँची तो लड़की वालों की तरफ से संदेशा दिया गया कि उनके गाँव का रिवाज है कि दूल्हे को लड़की वालों को एक बीस गाँठ वाला बाँस देना होता है.

बड़ी अटपटी बात थी, पर जब wise man  ने पुछवाया कि बाँस की लम्बाई और मोटाई कितनी होनी चाहिए तो उत्तर मिला, ‘लम्बाई-मोटाई कितनी भी हो उसमें बीस गाठें होनी चाहिए.’

छुपे हुए wise man ने अपने लोगों को निर्देश दिया कि ‘नदी तट या दलदल में लम्बी लम्बी दूब जड़ डाले हुए उगी रहती है. तुम बीस गाँठ वाली लम्बी दूब उखाड़ लाओ. इस प्रकार बीस गाँठ से भी ज्यादा गांठों वाली दूब-बाँस लड़की वालों को पेश की गयी तो लड़की वाले समझ गए कि बारात में जरूर कोई बुजुर्ग लाया गया है. और ठिठोली करते हुए ब्याह हो गया. उस बुजुर्ग की बुद्धि की सराहना करते हुए सम्मानित किया गया.

इसीलिए कहा गया है कि ‘ओल्ड इज गोल्ड’, पर संभल के, ये फार्मूला सब जगह फिट नहीं होगा.
***

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

अन्धा मोड़

सुदर्शना अपने अन्य तीन भाई-बहनों से बिलकुल अलग है. बचपन में ही उसकी प्रतिभा नजर आने लगी थी. घर-बाहर सब तरफ उसके बारे में चर्चा होती थी तो वह स्वयं भी अपने आप को १० में से ११ अंक देने लगती थी. कुशाग्रता हो और बाह्य शारीरिक सुंदरता भी हो तो स्वाभाविक तौर पर दर्प भी होना ही था.

आज शहरी मध्यवर्गीय परिवारों की सोच रहती है कि बच्चे जल्दी से पढ़-लिख जाएँ और किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएँ. बच्चे भी समाज के अन्य लोगों की देखा देखी मानसिक रूप से खुद को इसी ढर्रे में ढाले हुए चलते हैं. अब वे दिन चले गए हैं जब माता-पिता बेटी की शादी के बारे में २५ वर्ष होने से पहले ही कोई चिंता करने लगते थे.

सुदर्शना ने पॉलिटिकल साइंस में एम.ए. किया वह साथ साथ आई.ए.एस. की भी तैयारी करती रही, लेकिन प्रिलिमिनरी पास करने के बाद मेन परीक्षा पास नहीं कर पाई. उसने बी.एड. की डिग्री हासिल कर ली और एक अच्छे पब्लिक स्कूल में अध्यापिका हो गयी. अध्यापन को नोबल प्रोफेशन समझा जाता है और अध्यापक/अध्यापिका समाज के आदर्श भी होते हैं. विवाह के बारे में यद्यपि सुदर्शना टाल-मटोल करती थी, पर माता-पिता ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए किसी योग्य वर की तलाश शुरू कर रखी थी पर कहीं बात बन नहीं रही थी. दूर दुनिया के सब्ज-बाग बहुत सुहावने होते हैं. मानव मन तो करता ही है कि कोई मनभावन मिल जाये.

इन्टरनेट की सोशल साइट्स पर अनेक जाने-अनजाने लोगों से संपर्क होता है. अक्सर लोग मित्र बनाने में कोई संकोच या जाँच पड़ताल नहीं करते है. अधिक से अधिक मित्र बनाने की होड़ रहती है. सुदर्शना ने भी अपने मित्रों की सूची ३०० से लम्बी बना डाली. फेसबुक चेक करना अब रोजनामचे का अभिन्न अंग हो गया है. साइबर अपराधों के अलावा भी ये संपर्क बहुत से गुल खिलाने लगे हैं.

सुदर्शना के संपर्क में देवानद प्रिंस नाम का एक व्यक्ति अपने फेसबुक के माध्यम से आया, जिसने अपने प्रोफाइल पर सदाबहार स्व. फिल्म अभिनेता देवानंद की युवावस्था का फोटो लगा रखी थी. यों संयोगवश उससे मित्रता हो गयी और गाहे बगाहे चैटिंग शुरू हो गयी. देवानन्द ने अपनी लच्छेदार भाषा में अपनी ‘दिल की लगी’ लिख दी तो सुदर्शना का कोरा कागज़ सा मन प्यार के हिचकोले खाने लगा. इस प्रकार प्यार भरे शब्दों का आदान प्रदान गुपचुप तरीके से तीन-चार महीनों तक चलता रहा. स्वाभाविक था वह अपने रंगीन सपनों में विचरने लगी थी.

देवानंद प्रिंस दूसरे शहर का निवासी था, उसका एक रिश्तेदार सुदर्शना के शहर में किसी पुलिस थाने का इंचार्ज था. देवानंद ने उसके मार्फ़त चुपचाप सुदर्शना के बारे में सारी जानकारियाँ हासिल कर ली. अब उसने सुदर्शना को भी बता दिया कि ये पुलिस अफसर उसका रिश्तेदार है. आपसी मुलाक़ात के लिए घर या किसी होटल अथवा सुनसान जगह के बजाए उसके थाने में ही मिलने का सुझाव रखा तो सुदर्शना खुश हो गयी और मिलने के लिए उतावली भी थी.

सुदर्शना ने अपने छोटे भाई विजय को हमराज बनाया और अपने साथ ले गयी. पुलिस थाने में दोनों भाई-बहन पंहुचे तो इन्स्पेक्टर को परिचय देने की जरूरत नहीं पड़ी. क्योंकि उसने परदे के पीछे से सारी मालूमात की हुई थी. उसकी आत्मीयता और व्यवहार से लगा कि वह देवानंद का परम हितैषी भी है.

देवानंद अभी वहाँ पहुँचा नहीं था. इस बीच सुदर्शना का दिल व्यग्र था. जोरों से धड़क रहा था. अचानक जैसे नाटक के लिए स्टेज का पर्दा उठता है, एक पछ्पन-साठ वर्ष का पकी उम्र वाला व्यक्ति जिसका चेहरा अनाकर्षक भी था, मुस्कुराते हुए दाखिल हुआ. इन्स्पेक्टर उसका स्वागत करने के लिए गर्मजोशी के साथ खड़ा होकर कहने लगा, “आइये, आइये, देवानंद जी. आपका बेसब्री से इन्तजार हो रहा है.”

आगंतुक को अपनी गुलाबी कल्पनाओं के विपरीत प्रत्यक्ष देखकर सुदर्शना गश खाकर लुढ़क गयी. थोड़ी देर में होश में आने पर पानी पिलाया गया. वह बिना कुछ कहे, भाई के साथ ऑटो रिक्शा में घबराई सी बैठकर ग़मगीन हालत में अपने घर लौट गयी.

इस घटना के बाद सुदर्शना को यह सीख मिल गयी कि इंटरनेट की दुनिया में किसी पर अँधा विश्वास नहीं करना चाहिए. और कुछ दिनों बाद यह घटना सुदर्शना और उसके मित्रों के बीच एक मनोरंजन का विषय बन कर रह गयी.
***