सोमवार, 22 दिसंबर 2014

हींग

एक पुरानी आम बोलचाल की कहावत है, "हींग लगे ना फिटकरी, रंग चढ़े चोखा".  ऐसा लगता है कि बेचारे हींग को जबरदस्ती इसमें घसीटा गया है क्योंकि रंगने-रंगाने में हींग की कोई भी भूमिका नहीं होती है. हींग तो भोजन का एक गुणकारी मसाला है, जो हमारे देस-परदेस में अनंत काल से इस्तेमाल होता आ रहा है. इसमें निहित गुणों की लम्बी फेहरिस्त है. आयुर्वेद, जिसे पाँचवां वेद भी कहा जाता है, उसमें इसके बारे में वृहद चर्चा है. चरक संहिता ने इसे दमा रोगियों के लिए रामबाण औषधि के रूप में प्रमाणित किया है. वैसे पेट में गैस व दर्द संबंधी सभी विकारों में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी होता है दाल-सब्जी में हींग का छौंक केवल खुशबू के लिए नहीं, उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए होता है. हमारे यहाँ पंसारी की दूकान पर हींग की पुड़िया या डिब्बी मिल जाती है, पर शुद्ध हींग हो इस बात की कोई गारंटी नहीं होती. क्योंकि हींग के व्यापारी शुद्ध हींग को गोंद में मिलाकर मुनाफ़ा कमाया करते हैं.

हाल ही में इन्दिरापुरम (गाजियाबाद) के एक पार्क में गुनगुनी धुप सेकते समय, एक "हाथरसी" सज्जन से मेरी मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि हाथरस में हींग की मंडी है. युगों से वहीं से इसका वितरण पूरे देश में होता रहा है. हाथरस की हींग के बारे में उसी तरह प्रसिद्धि बताई जिस तरह हापुड़ के पापड़, मथुरा के पेड़े, अलीगढ़ के ताले, आगरा का पेठा, लखनऊ की गजक, अल्मोड़े की बाल मिठाई, बनारस की साड़ी, आदि, अनेक शहरों के साथ जुड़े हुए उपमान हैं. हालाँकि कई कारणों से अब ये विशेषण गायब होते जा रहे हैं.  

प्यारेलाल हाथरसी ने बताया कि वे स्वयं बैंक आफ इलाहाबाद के कर्मचारी थे, लेकिन हींग का व्यवसाय उनका पुश्तैनी धंधा रहा है. बातें करते करते उन्होंने अपने झोले में से हींग की 50 ग्राम की पॉलिथीन पैकेजिंग के पाउच बाहर निकाला और बताया कि नो प्रॉफिट- नो लॉस के सिद्धांत पर हींग बेच कर मित्रता बढ़ाते रहते हैं. यहाँ वे एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अपने पुत्र के पास आया जाया करते हैं. उन्होंने बातों बातों में कई बार डेबिट-क्रेडिट बराबर जैसे जुमले का इस्तेमाल किये. उनके इस बैंकीय भाषा के आदतन प्रयोग पर मैंने उनको एक लतीफा भी सुनाया कि एक बस कंडक्टर शादी के बाद अपनी सुहागरात की सेज पर चढ़ने से पहले अपनी नवेली वधु से बोला, थोड़ा परे हटके बैठो, एक सवारी और इस सीट पर आयेगी.

बात हींग की हो रही थी. प्यारेलाल हाथरसी ने एक अच्छे सेल्समैन की तरह मुझे ये महसूस करा दिया कि ऐसा शुद्ध हींग इस सस्ती दर पर (100 रुपयों में 50 ग्राम) अन्यत्र नहीं मिल सकता है. मैंने अपनी अर्धांगिनी की सहमति पर उनसे एक पैकेट खरीद भी लिया.

ये तो मुझे मालूम था कि हींग एक हर्बल उत्पाद होता है, पर इसका उत्पादन कहाँ और कैसे होता है, इसकी जानकारी नहीं थी. इस बारे में जब इंटरनेट पर खोजा तो मालूम हुआ कि ये सौंफ की तरह ही दो से चार फुट वाले पौधों से प्राप्त किया जाता है, इसकी खेती ईरान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, व खुरासान की पहाड़ी क्षेत्रों में होती है और वहीं से इसका आयात किया जाता है.

हींग स्वाद में बहुत कटु होता है, इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए गरमी के दिनों में इसका उपयोग कम करना चाहिए. एक घरेलू नुस्ख़ा है कि हींग के साथ सौंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल, अजवाइन, सफेद जीरा, काला जीरा सब बराबर मात्रा में लेकर घी में भून कर बारीक पीस कर चूर्ण बनाकर सादे पानी के साथ सेवन करने से पेट के समस्त विकार दूर होते हैं. आयुर्वेद में वर्णित 'हिंग्वाष्टक चूर्ण (जो सभी आयुर्वैदिक स्टोर्स पर उपलब्ध होता है) बहुत असरकारक दवा है. इसलिए कहा जाता है कि हींग केवल मसाला ही नहीं दर्द-निवारक औषधि भी है.
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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

चुहुल - ६९

(१)
एक चटोरे मास्टर जी ने बच्चे का पूरा टिफिन खा लिया और आँख दिखाते हुए बच्चे से बोले, घर जाकर मत कह देना कि मास्टर जी ने खाया था.
सहमा हुआ बच्चा बोला, नहीं बोलूंगा.
मास्टर जी ने बात पक्की करने के लिए पूछ ही लिया, तो क्या कहेगा? किसने खाया?
बच्चा बोला, मैं कह दूंगा कि कुत्ता खा गया.

(२)
एक महिला ब्यूटी पार्लर से लौट कर घर आई. पति का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ इठलाती सी, शर्माती सी उसके सामने आई, पर वह बेपरवाह होकर कुछ बोला ही नहीं. अत: महिला को मुस्कुराते हुए खुद पूछना ही पड़ा, कैसी लग रही हूँ?
पति उसकी तरफ गौर से देखने के बाद बोला, क्या आज भी पार्लर बंद मिला?

(३)
एक स्मार्ट दादा जी अपने छोटे पोते को पास बिठा कर, उसे अपनी जवानी के तारीफी किस्से सुना कर, खुश हुए जा रहे थे. तभी बीच में टोक कर पोता बोला, वो सब तो आपने बहुत अच्छे अच्छे काम किये हैं, लेकिन एक काम जरूर गलत किया.
दादा ने पूछा, तुझे कौन सा काम गलत लगता है?
पोता बोला, बुढ़िया के साथ शादी की! हा...  हा...  हा...

(४)
सुबह सुबह वह कॉलेज को निकला. मोहल्ले की लड़की रास्ते में मिल गयी. फ्लर्ट करने के इरादे से उससे बोला, हाय, बढ़िया मेकअप, परफ्यूम की गजब महक, खूबसूरत हेयर स्टाईल, कपड़ों की बेहतरीन चॉइस... 
लड़की बीच में ही बोल पड़ी, थैंक यूं, भैया!
लड़का टोन बदल कर मुंह बिगाड़कर बोला, ये सब होते हुए भी राखी सावंत लग रही हो.

(५)
एक कंजूस आदमी की बेटी शादी लायक थी. एक कन्यार्थी मेहमान आया तो फ़ौरन सत्कार के लिए उसके सामने काजू-किशमिश-बादाम-पिस्ता  वाला डिब्बा रखा गया. मेहमान बातें करते हुए कुछ काजू-किशमिश खाता रहा और फिर रुक गया. स्वागतकर्ता  घर के मालिक, ने अनुरोध भरे स्वर में कहा, "अरे, आप रुक क्यों गए, और काजू लीजिये ना.
इस पर मेहमान बोला, तीन-चार खा चुका हूँ. ज्यादा खाना ठीक नहीं होगा.
मेहमाननवाज बोला, खाने को तो आपने 9 काजू, 6 बादाम और 10 किशमिश खा लिए हैं, पर यहाँ कौन गिन रहा है, आप खाते रहिये, अपना ही घर समझिए.
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रविवार, 7 दिसंबर 2014

चिंतन - ३

2014 का लोकसभा चुनाव अपना विशेष ऐतिहासिक महत्त्व रखता है क्योंकि इससे पहले सभी प्रबुद्धजनों का मानना था कि देश में अब पूर्ण बहुमत वाली एक पार्टी सरकार नहीं आ सकती है, यानि ख्याल था कि अब जो बनेगी वह खिचड़ी सरकार ही बनेगी. खिचड़ी सरकारों का हश्र हमने पूर्व में कई बार देख चुके हैं, जो कि बुरा ही रहा है.

इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी के पराभव के अनेक कारण रहे हैं. ऐसा नहीं कि कांग्रेस सरकारों ने कोई अच्छे कार्य या विकास के कार्य नहीं किये, लेकिन समय के साथ साथ उसमें दीमक सी लग गयी थी; पुराने नेता अपनी बपौती समझने लगे थे, निगरानी तंत्र कमजोर होने से सर्वत्र भर्ष्टाचार पनप गया था. पिछले वर्षों में बड़े बड़े घोटाले उजागर होते रहे; कोई दमदार नेता उभर कर नहीं आया. अत: पार्टी बुरी तरह हाशिये पर आ गयी है.

नरेंद्र मोदी जी का अभ्युदय देश में बहुत अरसे से जोर मारती हुई हिंदूवादी शक्तियों के एकीकरण या यों कहिये दूसरी तरफ भी साम्प्रदायिक शक्तियों के ध्रुवीकरण के साथ आम लोगों में परिवर्तन की तीव्र भावना के कारण स्वाभाविक तौर पर हुआ. यद्यपि भाजपा में भी बहुत से अंतर्विरोध थे/हैं, पर मोदी जी ने अपने वाक्चातुर्य से सबको दबा दिया लगता है. कभी कभी ऐसा भी लगने लगता है कि जिस तरह से इंदिरा गांधी वन-मैन आर्मी कही जाती थी, वैसे ही मोदी जी को भी अधिनायकवादी कहा जा रहा है. पर मोदी जी ने अल्पकाल में ही अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी छवि बना ली है वह अभूतपूर्व है.

यूनाइटेड स्टेट्स अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जी मोदी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित बताये जा रहे हैं. मोदी जी ने उनको आगामी गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में बुला भी लिया है. ओबामा जी का मोदी प्रेम/ 'भारत प्रेम के पीछे ओबामा के अपने संस्कार तो हैं, लेकिन अमेरिका एक ऐसा देश है जो अपने राष्ट्रीय हितों के प्रति बहुत स्वार्थी रहा है. वह अपने व्यापारिक दृष्टिकोण से निर्णय लेता है. विशेषकर अपने पुराने हथियारों के लिए मार्केट तलाशता रहता है. उसे दक्षिण एशिया में वर्चश्व बनाए रखने के लिए आर्मी एवं नेवल बेस चाहिए. खाड़ी देशों में तेल भंडारों पर अपना प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण चाहिए. पाकिस्तान जैसे धर्मांध इस्लामिक देश को पालना उसकी नीति का जाना पहचाना चेहरा है. आज भारत के प्रति अमरीकी नेतृत्व का प्यार कोई अबूझ पहेली नहीं है. अमेरिका में चाहे रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में हो या डेमोक्रेटिक पार्टी हो, दोनों की विदेश नीति में कोई सैद्धांतिक भेद नहीं होता है. विगत सात वर्षों में पार्टी की लोकप्रियता घटने से बराक साहब की नजर आगामी चुनाव के मद्देनजर वहां बसे हुए भारतीय मूल के निवासियों पर है, जो वोटों का बैलेंस बनाने में मददगार सिद्ध होंगे. इसलिए एक समय जिसे घोर मानवाधिकार हनन करने वाला मान कर, अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया था, उसपर अब हार्दिक प्यार जताया जा रहा है.

इधर चीन की अपनी विस्तारवादी, विश्वासघाती नीति रही है; वह कभी नहीं चाहेगा कि कोई अन्य एशियाई देश उसके मुकाबले में आगे आये अत: वह हमेशा से पाकिस्तान को थपथपाते हुए  नेपाल, श्रीलंका व मालदीव  को प्रभावित करते हुए, भारत के भू-भागों को अपने नक्शों  में चीन का हिस्सा बताता है, इसप्रकार भारत को रक्षा बजट पर बांधे रखना चाहता रहा है. सीमा पर भी  रोज छेड़छाड़ हो रही है. मोदी जी के साथ उनका झूले पर पेंग मारना, दोस्ती का दिखावा मात्र है.

देश के अन्दर समाजवादी नामक तत्व अब अपना असली रंग खो चुका है. वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, और मूल नीतियों से हट कर परिवारवाद पर केन्द्रित होकर पूंजीवादी-सामंती व्यवहार में आ गया है. तमाम क्षेत्रीय पार्टियों से भी आम लोगों का मोहभंग होता नजर आ रहा है. कुछ क्षत्रप हैं जो अभी भी कुण्डली मार के बैठे हैं, पर मोदी जी के वर्तमान चमचमाती छवि उनको भी जल्दी निगल जायेगी ऐसा सामने दीख रहा है. दिल्ली में केजरीवाल की स्थिति एक बरसाती नाले की तरह है क्योंकि राजनैतिक पार्टी बना कर वे अपने मूल चरित्र से भटक पड़े हैं.

सबसे बुरा हाल टुकड़ों में बंटी हुई साम्यवादी पार्टियों का है, जो कि भारत के राजनैतिक परिदृश्य में हाशिये के भी पल्ली तरफ जा पहुचे हैं. हाँ, कुछ अतिवादी जो अपने को आज भी साम्यवादी बताते हैं नक्सलवादियों के रूप में नासूर बने हुए हैं. सत्ता पर काबिज होने का इनका सपना दूर की कौड़ी है मात्र  दिवादु:स्वप्न है.

ये सियासत है, सबके अपने अपने नजरिये और स्वार्थ हैं, जो लोग कल तक विपक्ष में थे आज सत्तानशीं हैं. जो सत्ता में थे. उनको अभी भी सत्ता के सपने आ रहे हैं. कहते हैं कि कुल्हाड़ी दूसरों के कंधे पर हल्की नजर आती है. जब आप पर जिम्मेदारी आती है, तब आपसे ही सवाल पूछे जायेंगे. देश के अन्दरूनी हालात क्यों नहीं बदल रहे हैं? सीमाओं पर जवान रोज शहीद हो रहे हैं, नक्सलवादी तथा आतंकवादी रोज पूर्ववत वारदातें कर रहे हैं, विदर्भ में किसान आज भी आत्महत्या करने को मजबूर हैं, ठेकेदार आज भी मजदूर का हक मारकर इंजीनियर/नेता जी को मोटा करता जा रहा है. पर आशावादी लोगों का कहना है कि नई सरकार को और समय चाहिये क्योंकि समस्याओं की जड़ें बहुत गहरी हैं.

कुल मीजान ये है कि मोदी नाम के इस धूम्रकेतु को सभी प्रशसक  उगते सूर्य की तरह अनुशंसा कर रहे हैं, पर सूर्य तो सूर्य है, जिसके प्रभाव और प्रकाश से सारी कायनात अस्तित्व में है.
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