सोमवार, 28 अगस्त 2017

विद्रूप चेहरे

अनादि काल से ही स्त्री-पुरुष के संबंधों की मर्यादा पर प्रश्नचिन्ह लगते आये हैं. हालाँकि जिम्मेदार वयस्क स्त्री व पुरुषों को निजी संबंधों की पूरी आज़ादी होनी चाहिए, किसी भी तरह की जोर/जबरदस्ती, धमकी, लालच, या हिंसा का प्रयोग करने वाले को कानूनी कार्यवाही के बाद उपयुक्त सजा मिलनी चाहिए. कई साधारण नागरिकों के साथ साथ राजनीति व धार्मिक सगठनों के प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ कई ऐसे आरोप चर्चा में या सुर्ख़ियों में आते है, और अनगिनत मामले भय व भावनाओं की वजह से गर्त में चले जाते हैं. बाहुबल तथा धनबल हमेशा ही ऐसे मामलों में प्रभावी रहा है.

‘सच्चा सौदा’ के सभी आस्थावान व्यक्तियों/परिवारों से हमारी हमदर्दी होनी चाहिए कि उन्होंने जिस मनुष्य में ‘देवता’ का स्वरुप जाना था वह एक वहशी जानवर से कम नहीं है. जिस तरह की बातें बाहर निकल कर आ रही हैं, उनसे सिद्ध होता है कि हमारे समाज में अशिक्षा और अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरी पेठ बनाए हुयी हैं. अब सजायाफ्ता राम रहीम सिंह की मुहबोली बेटी/प्रेयसी हनीप्रीत ने यह बयान दिया है कि “हमारे साथ धोखा हुआ है, पिछले चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी से एक गुप्त डील हुयी थी कि ‘समर्थन’ के बदले वह ‘बाबा’ पर चल रहे केस समाप्त करवा देंगे.” अगर ये सच है तो अफसोस होता है कि इससे निकृष्ट/घटिया राजनीति क्या हो सकती है? 

ऊपर से चमकीले धार्मिक रंगों से लिपे-पुते सत्तानसीनों के चेहरे भी कितने विद्रूप हैं ? इसका आकलन किया जाना चाहिए.
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शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

राष्ट्रभक्ति

राष्ट्रभक्ति के नाम पर काली कमाई करने वाले बेहिसाब लोग हैं, पर कुछ ऐसे भी दृष्टांत जानकारी में आते हैं, जहाँ आभावों में पलने वाले कई लोगों का देशप्रेम का ज़ज्बा अमीर लोगों की सोच से बहुत ऊपर होता है. ऐसे ही एक वृत्तांत में एक झोपड़पट्टी में पलने वाला 10 वर्षीय बालक व्यस्त शहर की एक लाल बत्ती पर अपने पुराने से वाइपर पर पोचे का गीला कपड़ा बाँध कर खड़ी कारों के शीशों को बिना पूछे ही साफ़ करने लगता है. कुछ दयावान लोग उसे छुट्टे सिक्के दे भी जाते हैं. एक बड़े सेठ जी को अपनी लक्ज़री कार के शीशे पर उसका ये पोचा लगाना हमेशा नागवार गुजरता है. बालक ‘जो दे उसका भी भला, जो ना दे उसका भी भला' के सिद्धांत पर अपना काम करता जाता है.

आज स्वतन्त्रता दिवस है, और जब सेठ जी की गाड़ी लाल बत्ती पर रुकी तो वही बालक आज पोचे के बजाय एक छोटा सा तिरंगा लगाने को दौड़ा आया. सेठ जी ने शीशा गिराते हुए बड़े बेमन से उससे पूछा, “इसके कितने पैसा लेगा?”

बालक ने भोलेपन से उत्तर दिया, “साहब, मैं इसको बेचता नहीं हूँ.”  ऐसा कह कर वह अगली गाड़ी पर झंडा लगाने को चल देता है.

सेठ जी अपने मन की सारी कडुवाहट थूक के साथ निगल गए और श्रद्धाभाव से उस बालक के बारे में सोचते रह गए.
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