बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

ये हो क्या रहा है?



एक सज्जन दवा की दूकान से कीड़े मारने की दवा खरीद कर लाये, घर आकर जब उस डिब्बे की खोला तो पाया कि उसमें असंख्य कीड़े कुलबुला रहे थे.

इस दृष्टान्त को आज हम साक्षात देख रहे हैं कि भारत सरकार की निगरानी तंत्र वाली सर्वोच्च संस्था सी.बी.आई. के उच्चाधिकारी आपस में खुलेआम भारी भरकम रिश्वत लेने के आरोप लगा रहे हैं; इनमें से कुछ पर सत्ताधारियों की नजदीकियां जग जाहिर हैं.

इसमें दो राय नहीं हैं कि देश का पूरा पुलिस तंत्र इस सापेक्ष में हमेशा बदनाम रहा है और सत्ता पर काबिज राजनेता इनका भरपूर उपयोग अपने हितों में करते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक बार सी.बी.आई. को सरकारी तोता तक कहा है.

यह भी सही है कि पूर्ववर्ती सरकार के दौरान जिस पत्थर को पलटो उसके नीचे भ्रष्टाचार के कीड़े नजर आने लगे थे, पिछले २०१४ के आम चुनावों में ये मुख्य मुद्दा बना था और लोगों ने भारी बहुमत से नई सरकार को जिम्मेदारी सौंपी थी. हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश व विदेश में कई मौकों पर कहा कि अब उनके राज में कोई घोटाला नहीं हो रहा है उन्होंने एक बड़ा जुमला भी फैंका था कि ‘ना खाऊँ, ना खाने दूगा’ पर हकीकत में ये महज चुनावी गालियाँ बनकर रह गयी. बड़े बड़े बैंक घोटाले उजागर हुए हैं, जिन पर ज्यादातर गुजराती तड़का लगा हुआ है.

नजदीकी लोगों को बेशुमार फायदा पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री जी का नाम राफेल जैसे विवादास्पद विमान सौदे में लिया जा रहा है, सरकार द्वारा इसकी असलियत नहीं बताये जाने से आम लोगों के मन में गंभीर संशय पैदा होना स्वाभाविक है.

जोर-शोर से कोई बात बोल देने से झूठ सच नहीं हो सकता है तथा एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते है, ये पुरानी कहावत है.

आज प्रिंट मीडिया व इलैक्ट्रोनिक मीडिया अकसर सत्य से परे विरुदावली गा रहे हैं ऐसे में कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये हो क्या रहा है?

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