उसका नाम लक्की ना जाने
किस तुफैल में रख दिया था, अन्यथा वह तो पैदाइशी बदकिस्मत था. माँ लीलावती अपाहिज तथा
मानसिक रूप से कमजोर थी. बाप का मुख देखना भी उसे नसीब नहीं हुआ. लक्की के पैदा
होने से चार महीने पहले ही एक दुर्घटना का शिकार हो गया था. चाचा-ताऊ सब दकियानूसी व
गैरजिम्मेदार निकले. उन्होंने लीलावती व उसके बच्चे को अपशकुनी समझते हुए अपने लिए
बोझ बता कर मायके में रहने को मजबूर कर दिया.
यों लक्की अपने नाना-नानी
के आश्रय में पला-बढ़ा. ननिहाल में भी लक्की के मामा-मामी ने कोई खैर-खुशी नहीं
जताई. ये लोग बरेली जिले के एक दूर दराज गाँव में रहते हैं. नाना देवीदयाल गुप्ता गाँव
में ही साहूकारी का धन्धा किया करते हैं, और स्वाभाविक रूप से छोटे सिक्कों को भी दांत से पकड़े रहते हैं. लक्की यहाँ पर अभावों में लावारिस बच्चे की तरह परवरिश पाता रहा.
सरकारी स्कूल द्वारा परोसे जाने वाले ‘मिड-डे मील’ का लक्की को
शारिरिक बढ़त देने में बड़ा हाथ रहा है.
लक्की गाँव में ही जब
अच्छे नंबरों से हाईस्कूल पास कर गया तो रुद्रपुर में रहने वाली उसकी बड़ी मौसी ने आत्मीयता जताते हुए अपने घर में रहने व वहीं आगे की पढ़ाई करने का आग्रह किया तो लक्की को वहा
भेज दिया गया. उसकी आगे की पढ़ाई के लिए एडमिशन भी हो गया. मौसी जो की जुबान की बहुत मीठी
है, बोली, ‘मेरे तीन बच्चे हैं, ये
चौथा आ गया है, बेसहारा है, पल जाएगा. आगे कोई ट्रेनिंग-वेनिंग करेगा तो अपने साथ लीलावती
का जीवन भी सुधार लेगा.” पर मौसी का
गुप्त एजेंडा यह भी था कि रोटी के बदले लक्की से घर के सारे काम करवाए जाएँ. बेचारा
लक्की यहाँ एक नौकर की भूमिका में आ गया. लेकिन वह दीन-दुनिया की ख़बरों के साथ साथ
अपनी पढ़ाई में भी बहुत मेहनत करता रहा. अच्छे नंबरों से पास होते हुए बी.काम. फाइनल
तक पहुँच गया.
इस बीच जो उसने भोगा-झेला
वह उसकी अंखियों से छलके हुए मोटे मोटे आंसू बयान करते रहे. मौसेरी बहनें व भाई उसके
साथ भरपूर दुर्व्यवहार करते थे. मौसा-मौसी जानते सुनते भी अनजान बने रहते थे. कुटिल
व स्वार्थी लोगों की दुनिया में बहुत से लक्की जैसे बेबस चुपचाप अपना समय निकालते
हैं, उफ भी करने से डरते हैं. मगर प्रकृति अपना काम करती रहती है. जहाँ लक्की बी.काम.
की परीक्षा में रैंकिंग स्टूडेंट रहा, वहीं उसका मौसेरा भाई लगातार तीन वर्षों से हाईस्कूल
में फेल होता रहा.
खुसखबरी ये है कि स्थानीय
महेश्वरी समाज ने अपनी जाति के इस होनहार लड़के के परीक्षा रिजल्ट व आर्थिक विपिन्नता
की स्थिति का संज्ञान लेते हुए लक्की को बड़ी स्कॉलरशिप देने की घोषणा कर दी है. अब
लक्की को मौसी के घर जूठे बर्तन साफ़ नहीं करने पड़ेंगे. वह वह लखनऊ जाकर आगे की पढ़ाई
जारी रखेगा. वहीं महेश्वरी हास्टल में रहने-खाने की व्यवस्था रहेगी.
यह सच है कि प्रतिभा
किसी की धरोहर नहीं होती है. लक्की के लिए अब बहुत बड़ा खुला आसमान होगा और अनन्त संभावनाएं भी.
शर्मीला भोला-भाला, बुद्धू
सा दीखने वाले लक्की के बारे में अड़ोस-पड़ोस के अल्प परिचित लोगों की धारणा उसके बारे
में एकदम बदल गयी है. पण्डित रमाशंकर शास्त्री जी ने उत्सुकतावश जब लक्की का आईक्यू जांचना चाहा तो वे तआज्जुब कर गए कि लक्की तमाम समसामयिक विषयों की गहरी जानकारी रखता
है. देश की सामाजिक राजनैतिक व्यवस्थाओं पर
अपने बेबाक विचार रखता है. चाचा-ताऊ, मामा-मामी व मौसी के परिवार के लोगों का अपने
प्रति रवैये को वह परिस्थितिजन्य बताता है और किसी के प्रति दुर्भावना नहीं रखता है.
शास्त्री जी सबको बताते फिरते हैं कि “एक दिन यह लड़का अवश्य ही समाज का आदर्श बनेगा.
***
सार्थक संस्मरण।
जवाब देंहटाएं