सोमवार, 23 नवंबर 2015

बाहर का नजारा

ये मर्मस्पर्शी कहानी किस लेखनी से निकली मुझे भी नहीं मालूम, पर इसे पढ़कर ये  अहसास हुआ कि कुछ लोग दूसरों की ख़ुशी के लिए किस तरह जिया करते हैं.

एक अस्पताल के बूढ़े-बीमार लोगों के अलग से वार्ड में खिड़की की तरफ पलंग पर एक अति बीमार व्यक्ति था. उसके बगल वाली पलंग पर उससे भी ज्यादा कमजोर व्यक्ति था, जो उठ-बैठ भी नहीं सकता था. खिड़की की तरफ वाला वृद्ध उसकी मजबूरी और मनोदशा को खूब समझने लगा था इसलिए रोज सुबह उठ कर उसे खिड़की के बाहर का नजारा बोल बोल कर सुनाता था, सामने सुन्दर पार्क है जिसमें तरह तरह के रंग बिरंगे फूल खिले हुए हैं.... बच्चे हरी दूब पर खेल रहे हैं.... कुछ लोग फुटपाथ पर जॉगिंग कर रहे हैं.... दो तीन महिलायें अपने छोटे बच्चों को स्ट्रॉलर में बिठा कर घुमा रही हैं.... एक तरफ लाफिंग क्लब के सदस्य तालियां बजा कर जोर जोर ठहाका लगा रहे हैं.... पार्क के बगल में जो सड़क है, उसमें अनेक कारें दौड़ रही हैं.... कुछ साइकिल-सवार भी किनारे किनारे चल रहे हैं. यों बहुत सी बातें आँखों देखाहाल में सुनाया करता था और सुना कर खुद भी तृप्त और संतुष्ट हो लेता था. क्योंकि सुनने वाला हल्की आवाज में वाह बोल दिया करता था. उसको अपने पुराने दिन याद आ जाते थे.

एक सुबह खिड़की की तरफ वाला वृद्ध सोता ही रह गया. नर्स ने आकर टटोला तो पाया वह इस संसार से विदा हो चुका था. उसके मृत शरीर को वहाँ से हटा दिया गया. असक्त वृद्ध बेचैन और भावविह्वल हुए जा रहा था. खुद को बहलाने के लिए खिड़की से बाहर देखना चाहता था. बड़ी मशक्कत के बाद वह जैसे तैसे खिड़की के पास गया तो उसने पाया की खिड़की के सामने तो बड़ी सी दीवार थी. उसने नर्स से पूछा, सिस्टर, ये दीवार खिड़की के सामने कैसे आ गयी?

नर्स से उसे बताया कि वह दीवार तो वहां पर बहुत पहले से थी. ये जानकार कि मरने वाला सिर्फ उसकी खुशी के लिए बाहर के नज़ारे की कहानी गढ़ा करता था, उसकी सूखी आँखों की कोटरें डबाडब भर आई.
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