लाखेरी बंधु सहकार
सन 1970 में
ए.सी.सी. मैनेजमेंट ने मेरा स्थानान्तरण कर्नाटक स्थित शाहाबाद कारखाने में कर
दिया. जिन परिस्थितियों में मेरा ये स्थानातरण हुआ उसे मैंने अपने ब्लॉग में "मगर से बैर" शीर्षक से अन्यत्र कुछ वर्ष पूर्व वर्णित किया हुआ है.
दस साल की सर्विस
और एक खुशहाल जिन्दगी में ये परिवर्तन पीड़ादायक था, पर मैंने अपनी खुद्दारी के चलते
शाहाबाद चले जाना ही उचित समझा था. कष्ट विशेष इस बात का था कि बच्चे लाखेरी में
हिन्दी माध्यम से पढ़ रहे थे, और शाहाबाद के स्कूल में माध्यम कन्नड़ था. अत: पीछे की
कक्षाओं में बिठा कर अंग्रेजी माध्यम में कान्वेंट स्कूल में भरती कराया जो आगे
जाकर फलदायी अवश्य हुआ.
शाहाबाद में सुखद
अनुभव यह भी रहा कि वहां लाखेरी मूल के करीब बीस लोग पहले से मौजूद थे, जो सीमेंट
वर्क्स में या हैवी इंजीनियरिंग वर्क्स में कार्यरत थे. अधिकाश नौजवान कैमोर
इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट के माध्यम से नौकरी पर आये थे. प्रमुखत: जो मुझे अच्छी
तरह याद हैं, उनमें सर्वश्री कृष्णचन्द्र दुबे (सुपुत्र हरदेव प्रसाद दुबे), हरिसिंह
गोस्वामी (सुपुत्र प्रेमनाथ), चाँद अली (सुपुत्र सुभान अली), बाबूलाल पीपल, गोविन्द
विलास पारेता, बाबूलाल राठौर, कालूलाल वर्मा (महावर), फुन्दीलाल वॉचमैन के दूसरे
पुत्र घमंडी, पीरमोहम्मद कुरैशी ब्लैकस्मिथ
के दामाद मकसूद अली आदि थे. तीन वॉचमैन कुमायूं रेजीमेंट से रिटायर्ड यहाँ थे, जो
मेरे वहां जाने से अतिशत स्नेहासिक्त रहे.
लाखेरी वालों की एक
दाल-बाटी-चूरमा वाली पिकनिक कगीना नदी के वॉटर डैम पर हुयी, जिसमें थोड़े दिनों के
लिए लाखेरी से आये हुए न्यूक्लियस गैंग के लोग भी शामिल हुए थे. बहरहाल मेरे
इर्दगिर्द ये नया समीकरण बन गया था. मैंने सबसे संपर्क बनाए रखने के लिए एक अपंजीकृत
सोसाईटी बनवा दी, नाम रखा ‘लाखेरी बंधु
सहकार,’ जिसकी हर महीने एक बैठक होती थी. प्रत्येक सदस्य प्रतिमाह दस रूपये अपने खाते
में जमा भी करता था. तब दस रूपये की बहुत कीमत भी थी. जरूरतमंद को मामूली ब्याज पर
यह रकम उधार पर दे जाती थी. श्री गोविंद विलास जी को इसका मैनेजर/कैशियर नियुक्त किया गया. ब्याज से जो रकम जमा हुयी उससे सदस्यों को स्टील के छोटे बर्तन गिफ्ट किये
गए. जिन पर ‘लाखेरी बंधु सहकार’ खुदा होता था. यह संस्था 1974 मई तक बदस्तूर चलती रही. मेरे वापस लाखेरी आने के बाद विघटित हो गयी क्योकि कुछ मित्र लोग कोटा
इंस्ट्रूमेंटेसन लि. में नौकरी पा गए थे, और कुछ को लाखेरी स्थानांतरण मिल गया था. उन
दिनों की स्मृतियाँ आज भी जेहन में ताजी हैं.
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