राष्ट्रभक्ति के
नाम पर काली कमाई करने वाले बेहिसाब लोग हैं, पर कुछ ऐसे भी दृष्टांत जानकारी में
आते हैं, जहाँ आभावों में पलने वाले कई लोगों का देशप्रेम का ज़ज्बा अमीर लोगों की सोच
से बहुत ऊपर होता है. ऐसे ही एक वृत्तांत में एक झोपड़पट्टी में पलने वाला 10 वर्षीय बालक व्यस्त शहर की एक लाल बत्ती पर अपने पुराने से वाइपर पर पोचे का
गीला कपड़ा बाँध कर खड़ी कारों के शीशों को बिना पूछे ही साफ़ करने लगता है. कुछ
दयावान लोग उसे छुट्टे सिक्के दे भी जाते हैं. एक बड़े सेठ जी को अपनी लक्ज़री कार
के शीशे पर उसका ये पोचा लगाना हमेशा नागवार गुजरता है. बालक ‘जो दे उसका भी भला,
जो ना दे उसका भी भला' के सिद्धांत पर अपना काम करता जाता है.
आज स्वतन्त्रता
दिवस है, और जब सेठ जी की गाड़ी लाल बत्ती पर रुकी तो वही बालक आज पोचे के बजाय एक
छोटा सा तिरंगा लगाने को दौड़ा आया. सेठ जी ने शीशा गिराते हुए बड़े बेमन से उससे
पूछा, “इसके कितने पैसा लेगा?”
बालक ने भोलेपन से
उत्तर दिया, “साहब, मैं इसको बेचता नहीं हूँ.”
ऐसा कह कर वह अगली गाड़ी पर झंडा लगाने को चल देता है.
सेठ जी अपने मन की
सारी कडुवाहट थूक के साथ निगल गए और श्रद्धाभाव से उस बालक के बारे में सोचते रह
गए.
***
bahut sundar...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, 'महाकाल' की विलुप्तता के ७२ वर्ष - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-08-2017) को "चौमासे का रूप" (चर्चा अंक 2702) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नाम वही, काम वही लेकिन हमारा पता बदल गया है। आदरणीय ब्लॉगर आपने अपने ब्लॉग पर iBlogger का सूची प्रदर्शक लगाया हुआ है कृपया उसे यहां दिए गये लिंक पर जाकर नया कोड लगा लें ताकि आप हमारे साथ जुड़ें रहे।
जवाब देंहटाएंइस लिंक पर जाएं :::::
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