मंगलवार, 26 सितंबर 2017

बैठे ठाले - 18

आप कहेंगे कि "नाम में क्या रखा है? कुछ भी बोल दो," पर जब से उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी जी ने ‘शौचालय’ का नया नामकरण ‘इज्जत घर’ किया है, तब से हमारे इज्जत नगर, बरेली, के मित्र लोग नाखुश नजर आ रहे हैं. उधर ‘गुसलखाने’ को क्या नया नाम दिया जाए, इस बारे में सभी उर्दूदां परेशान हैं और बहस-मुसाहिबा कर रहे हैं. पाश्चात्य देशों में अंग्रेजीदां ने पहले से होशियारी से 'बाथरूम-लैट्रिन' के लिए ‘वॉशरूम’ व 'रेस्टरूम' जैसे शब्द तलाश करके अपनी नफासत उजागर की हुयी है.

जब महाराष्ट्रवादियों ने बंबई को मुम्बई का, तमिलों ने मद्रास को चेन्नई का, कर्नाटकवासियों ने बंगलौर को बंगलुरु का नाम बदल कर रख दिया था, तो ये नए नाम बहुत दिनों तक गले में अटकते रहे थे. इधर हरियाणा में खट्टर सरकार ने प्यारा सा पुराना नाम ‘गुडगाँव’ को ‘गुरुग्राम’ बनाकर अपना संघी ठप्पा लगाया तब भी अजीब सा लगा. इससे पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपाहिजों की वाहवाही लूटते हुए उनको ‘दिव्यांग’ कहा तो प्रचार माध्यमों ने भी प्रकृति के अत्याचार पर एक नई सोच को जन्म दिया. मैंने हाल में एक लूले-लंगड़े विकलांग भिखारी से इस नए नाम के प्रभाव के बारे में उसकी प्रतिक्रया जाननी चाही तो उसने बेलाग होकर कहा, “बाबू जी ये तो आप लोगों की मानसिक विलासता है, हम तो जैसे पहले थे, वैसे ही आज भी भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं.”

‘मुंडे-मुंडे मतिर भिन्ना’ एक पुरानी कहावत है. देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्तियों के सोच-विचार अलग अलग हो सकते हैं, विशेषकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनैतिक मामलों में सबकी राय अलग अलग होती है, तथा उनकी ढपली अलग अलग अंदाज में बजती रहती है. लेकिन आज देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता व प्रतिबद्धता के लिए इस सरकार के मिशन की तारीफ़ की जानी चाहिए.

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शनिवार, 16 सितंबर 2017

पेट्रोल - डीजल में लूट-खसोट

पेट्रोल – डीजल की लागत मूल्यों और इनके रीटेल में बिक रही कीमतों का अंतर सरकारी मुनाफाखोरी के कारण इतना बड़ा हो गया है कि अब चमचा चैनल्स भी वास्तविक आंकड़े बताने लग गए हैं.

मेरे इसी स्तम्भ में लिखे गए लेखों में पहले भी कई बार इस विषय पर ध्यान आकर्षित किया गया है. आज भी, जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें निचले स्तर पर चल रही हैं, सरकारी और गैरसरकारी तेल कंपनियां धड़ल्ले से मुनाफ़ा कमाकर उपभोक्ताओं का शोषण कर रही हैं. अफसोस इस बात का है कि सरकार के उच्च पदों पर आसीन अफसर व मंत्री बेशर्मी से अपना मुंह छुपाये हुए हैं. आज एक केन्द्रीय मंत्री अलफांसो महाशय ने तो हद कर दी यह कह कर कि “पेट्रोल उपभोक्ता भूखे नहीं मर रहे हैं.”

इस गैर जिम्मेदाराना व संवेदनहीन वक्तव्य की जितनी नंदा की जाए कम है.

पेट्रोल-डीजल के भाव बाजार के तमाम उपभोक्ता सामानों के भाव, ट्रासपोर्ट की लागत, और कृषि उपज पर सीधे सीधे प्रभाव डालते हैं. हमारे पड़ोसी देशों से तुलना की जाए तो पाकिस्तान जैसे पिछड़े देश में पेट्रोल का बाजार मूल्य केवल 21 रुपये चल रहा है जबकि हमारे यहाँ पेट्रोल का भाव लगभग 34 रूपये + 36 रूपये सरकारी टेक्स मिलकर 70 रूपये हो रहा है.

एक आंकड़ा बता रहा है कि सरकार का विदेशी मुद्राकोष सर्वोच्च चल रहा है, जो साबित करता है कि ऐसी कोई मजबूरी भी नहीं है कि तेल को जी.एस. टी. के बाहर रख कर इस तरह से खुली लूट की जाय.

आज के सत्तानशीं नेता एक समय तेल पर केवल 2 रुपया की बढ़ोत्तरी होने पर सड़क पर उतर कर आन्दोलन किया करते थे, पर आज बेशर्मी के साथ चुप हैं, और सच्चाई से मुंह छुपा रहे हैं.
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