आप कहेंगे कि "नाम
में क्या रखा है? कुछ भी बोल दो," पर जब से उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री
योगी जी ने ‘शौचालय’ का नया नामकरण ‘इज्जत घर’ किया है, तब से हमारे इज्जत नगर, बरेली, के मित्र लोग नाखुश नजर आ रहे हैं. उधर ‘गुसलखाने’ को क्या नया नाम दिया
जाए, इस बारे में सभी उर्दूदां परेशान हैं और बहस-मुसाहिबा कर रहे हैं. पाश्चात्य
देशों में अंग्रेजीदां ने पहले से होशियारी से 'बाथरूम-लैट्रिन' के लिए ‘वॉशरूम’ व 'रेस्टरूम' जैसे शब्द
तलाश करके अपनी नफासत उजागर की हुयी है.
जब महाराष्ट्रवादियों
ने बंबई को मुम्बई का, तमिलों ने मद्रास को चेन्नई का, कर्नाटकवासियों ने बंगलौर को बंगलुरु का नाम
बदल कर रख दिया था, तो ये नए नाम बहुत दिनों तक गले में अटकते रहे थे. इधर हरियाणा
में खट्टर सरकार ने प्यारा सा पुराना नाम ‘गुडगाँव’ को ‘गुरुग्राम’ बनाकर अपना संघी
ठप्पा लगाया तब भी अजीब सा लगा. इससे पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपाहिजों
की वाहवाही लूटते हुए उनको ‘दिव्यांग’ कहा तो प्रचार माध्यमों ने भी प्रकृति के
अत्याचार पर एक नई सोच को जन्म दिया. मैंने हाल में एक लूले-लंगड़े विकलांग भिखारी
से इस नए नाम के प्रभाव के बारे में उसकी प्रतिक्रया जाननी चाही तो उसने बेलाग
होकर कहा, “बाबू जी ये तो आप लोगों की मानसिक विलासता है, हम तो जैसे पहले थे, वैसे
ही आज भी भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं.”
‘मुंडे-मुंडे मतिर
भिन्ना’ एक पुरानी कहावत है. देश, काल और परिस्थिति के अनुसार व्यक्तियों के सोच-विचार
अलग अलग हो सकते हैं, विशेषकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनैतिक मामलों में सबकी
राय अलग अलग होती है, तथा उनकी ढपली अलग अलग अंदाज में बजती रहती है. लेकिन आज
देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता व प्रतिबद्धता के लिए इस सरकार के मिशन की
तारीफ़ की जानी चाहिए.
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शौचालय शब्द का ही अर्थोपकर्ष कर देते। जड़ धारणायें नाम के साथ जुड़ी रहती हैं, बदलना कठिन होता है।
जवाब देंहटाएं*अर्थोत्कर्ष
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