लाखेरी में मेरे
शुरुआती दिनों में अर्थात सन १९६० में जिन बुजुर्ग लोगों का हाथ मुझे आशीर्वाद
देने के लिए उठाता था उनमें स्व. आर.डी.शर्मा (पावर हाउस में शिफ्ट इंजीनियर) भी
एक थे. वे तब जी टाईप क्वाटर नंबर ८ या ९ में रहते थे, पड़ोस में पंडित शिवनारायण
तिवारी (कंपाउंडर) थे शायद इसी नाते मेरा भी उनसे परिचय हुआ था. शर्मा जी बहुत ही
मीठा बोलते थे पर मुझे बाद में उनके बड़े सुपुत्र स्व. गौरी शंकर शर्मा (मेरा
घनिष्ट होने पर) ने मुझे बताया था कि बाबू जी घर में हिटलरी अंदाज में रहा करते
थे. वे तब उनके रिटायरमेंट के करीब थे. उनके चार पुत्र गौरी शंकर, सुरेंद्र कुमार, त्रिलोकीनाथ और राजकुमार थे और सभी से मेरा मिलना जुलना था. भाई गौरी से मेरी विशिष्ट
मित्रता यो भी हुई कि वे भी शेरो-शायरी व तुकबंदी किया करते थे. उन्होंने इलेक्ट्रिसिटी पर एक छोटी किताब भी अपने नाम से प्रकाशित की थी जिसकी एक प्रति
मुझे भी भेंट की थी जोकि आज भी मेरे बुकसेल्फ़ में मौजूद है.
स्व. गौरी शंकर को
उत्तर पूर्वी रेलवे के इलाहाबाद जोन में क्लर्क की नौकरी मिल गयी थी. दुर्भाग्यबस
कुछ समय बाद वे स्नायु संबंधी एक रोग से ग्रस्त हो गए थे उसमें पूरा शरीर कम्पन
में आता था, वे लिखने के काम में असमर्थ हो चले थे पर रेलवे के उनके सहकर्मियों ने
उनको तब तक निभाया, जब तक उनके लडके सयाने
नहीं हुए. मेरी जानकारी में है कि उनका एक सुपुत्र अभी भी रेलवे के इलाहाबाद रेंज
में सीनियर टी.टी.ई के पद पर कार्यरत है.
श्री सुरेन्द्र
मास्साब को लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल से निकले सभी स्टूडेंट्स ‘सिन्दु मास्साब’
के नाम से जानते हैं लम्बे समय तक फीजिकल ट्रेनिंग/ स्पोर्ट्स/ एन.सी.सी टीचर अथवा लेक्चरार
के रूप में वे लाखेरी हायर सेकेंडरी में रहे. मैं सुनता था की वे अध्यापकों व
छात्रों की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहा करते थे. मेरा उनसे कोई सीधा
कार्य-व्यवहार नहीं था पर वे मुझे हमेशा ‘भाई साहब’ के रिश्ते से संबोधित किया
करते थे. वे कुछ साल पहले रिटायर हो चुके हैं, लाखेरी रेलवे स्टेसन के सामने कोटा
रोड पर उन्होंने बहुत पहले ही अपना आशियाना बना लिया था. अब वे अपने जीवन के तीसरे
प्रहार में परिवार के मुखिया की भूमिका में होंगे. पर मुझे बताया गया है कि वे सामाजिक
कार्यों में सक्रिय भूमिका अदा किया करते हैं. पिछले बर्षों में एक दुःखदाई घटना जरूर उनके परिवार में हुई कि उनका एक पुत्र असमय स्वर्गवासी हो गया. जीवन मृत्यु ऊपर
वाला तय करता है, संसार का नियम है कि एक दिन सब को जाना होता है. हमारी संवेदना
है.
अभी पिछले महीने
गाजियाबाद से उनके छोटे भाई श्री त्रिलोकीनाथ का मैसेज अप्रत्याशित रूप से फोन पर
मुझे मिला, उनकी कुशलक्षेम जानकार खुशी हुयी. त्रिलोकीनाथ यु.पी. में नरोरा परमाणु
संस्थान में मुलाजिम थे अब रिटायर होकर अपने बच्चों के साथ सैटिल हो गए हैं,
उन्होंने ह्वाट्स अप पर मुझे अपनी ताजी तश्वीर भेजी तो मुझे उनका वह किशोर रूप नजर
आया जो कि एसीसी मिडिल स्कूल में पढ़ते समय था. त्रिलोकीनाथ से संपर्क करने में
कोटा से उनके सहपाठी? श्री अनिल कुलश्रेष्ठ के सूत्र काम आये हैं.
फेसबुक पर बिछुड़े
हुए लाखेरियंस को आपस में जोड़ने का माध्यम मुकुल वर्मा (हाल चांदा में कार्यरत)
द्वारा बनाए ग्रुप ‘लाखों के लाखेरियन’ का बड़ा योगदान रहा है.
सिन्दु मास्साब को ‘जीवेत
शरत: शतम’ की शुभकामनाओं के साथ इन यादों के झरोखे के इपिसोड बंद कर रहा हूँ; पर
सभी मित्रों से अनुरोध करना चाहता हूँ की अपने अनुभव व कमेंट्स लिखने में कंजूसी
ना करें. अपने निजी फोटो व सन्देश भी हम सबसे साझा किया करें.
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पुरानी यादे ताजा हो गई बहुत बहुत आभार । अंकल इसी तरह यादो के झरोखे से पुराने संसमरण का आनंद की गंगा बहाते रहे ।
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