इतिहास की कसौटी पर यह दृष्टांत कितना सत्य है, मैं कह नहीं सकता हूँ, पर मेरी छठी इन्द्रिय कहती है कि ये बात गलत नहीं हो सकती. मुझे ठीक से याद नहीं कि बचपन में कब और कहाँ मुझे इसका संज्ञान हुआ था.
पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार में एक कूचे (गली) का नाम ‘कूचा पातीराम’ है. ये पातीराम कौन थे? ये अमरता उनको कैसे प्राप्त हुई, इस बाबत कहा जाता है कि पातीराम एक वणिक व्यापारी थे. उनको बड़ी बड़ी ठोकरदार मूँछें रखने का शौक था. बात मुगलकालीन है, शायद दिल्ली के तख़्त पर तब बादशाह औरंगजेब थे.
एक दिन एक शाही दरोगा घोड़े पर सवार होकर उधर से गुजरा तो उसने देखा कि एक हिन्दू बनिया व्यापारी मूछों पर ताव देकर बैठा था. राजशाही के रौब में उसने पातीराम को मूँछ नीचे करने को कहा, पर पातीराम ने मूँछों को अपनी व्यक्तिगत सम्मान की बात कह कर उसका आदेश मानने से इनकार कर दिया.
दरोगा दूसरे दिन शाही फरमान लेकर पँहुच गया कि पातीराम को अपनी खड़ी मूँछों के लिए जजिया कर (टैक्स) की ही तरह मूँछ टैक्स देना होगा. वह निरंकुशता का ज़माना था. पातीराम ने शान के साथ टैक्स देना शुरू कर दिया. कई सालों तक वह ‘मूँछ टैक्स’ देता रहा. एक दिन उसने ये टैक्स देना बन्द कर दिया और अपनी मूँछें नीचे की ओर मोड़ दी.
भारतीय पुरुषप्रधान समाज में स्त्रियों को तब आज की तरह स्वतन्त्रता व बराबरी का दर्जा प्राप्त नहीं था. आज तो नारियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ी जा रही हैं. उनको वे सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, जो किसी पुरुष को प्राप्त हैं. जहाँ कहीं अशिक्षा, अज्ञान का अभी भी अन्धेरा है, वे अपवाद हैं. कहीं कहीं तो लड़कियाँ बुद्धिकौशल, तकनीकी सोच व प्रशासनिक योग्यता में पुरुषों से बहुत आगे निकल चुकी हैं. ये शुभ लक्षण कई पाश्चात्य देशों में काफी पहले दस्तक दे चुका था. मुगलकाल में बेटी पैदा होने पर लोग खुशियाँ नहीं मनाते थे. वे बेटियों को अपनी कमजोरी तथा दायित्व के रूप में देखा करते थे.
पातीराम ने टैक्स वसूलने वाले को बताया कि उसके घर में बेटी पैदा हो गयी है इसलिए अब वह अपनी मूँछ नीची करके ही रहेगा. यह बात जब बादशाह सलामत तक पहुँची तो उन्होंने कहा, “पातीराम की बिटिया की पूरी परवरिश शाही खजाने से होगी. पातीराम से कहो कि अपनी मूँछ ऊपर ही रखे. हम उसके ज़ज्बे और मूँछों की इज्जत करते हैं.”
इस प्रकार पातीराम को शाही इज्जत बख्शी गयी. मूँछ टैक्स वसूलना बन्द हो गया और जिस कूचे में उनकी दूकान थी, उसका नाम स्थाई रूप से ‘कूचा पातीराम’ पड़ गया.
पुरानी दिल्ली के सीताराम बाजार में एक कूचे (गली) का नाम ‘कूचा पातीराम’ है. ये पातीराम कौन थे? ये अमरता उनको कैसे प्राप्त हुई, इस बाबत कहा जाता है कि पातीराम एक वणिक व्यापारी थे. उनको बड़ी बड़ी ठोकरदार मूँछें रखने का शौक था. बात मुगलकालीन है, शायद दिल्ली के तख़्त पर तब बादशाह औरंगजेब थे.
एक दिन एक शाही दरोगा घोड़े पर सवार होकर उधर से गुजरा तो उसने देखा कि एक हिन्दू बनिया व्यापारी मूछों पर ताव देकर बैठा था. राजशाही के रौब में उसने पातीराम को मूँछ नीचे करने को कहा, पर पातीराम ने मूँछों को अपनी व्यक्तिगत सम्मान की बात कह कर उसका आदेश मानने से इनकार कर दिया.
दरोगा दूसरे दिन शाही फरमान लेकर पँहुच गया कि पातीराम को अपनी खड़ी मूँछों के लिए जजिया कर (टैक्स) की ही तरह मूँछ टैक्स देना होगा. वह निरंकुशता का ज़माना था. पातीराम ने शान के साथ टैक्स देना शुरू कर दिया. कई सालों तक वह ‘मूँछ टैक्स’ देता रहा. एक दिन उसने ये टैक्स देना बन्द कर दिया और अपनी मूँछें नीचे की ओर मोड़ दी.
भारतीय पुरुषप्रधान समाज में स्त्रियों को तब आज की तरह स्वतन्त्रता व बराबरी का दर्जा प्राप्त नहीं था. आज तो नारियाँ हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ी जा रही हैं. उनको वे सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं, जो किसी पुरुष को प्राप्त हैं. जहाँ कहीं अशिक्षा, अज्ञान का अभी भी अन्धेरा है, वे अपवाद हैं. कहीं कहीं तो लड़कियाँ बुद्धिकौशल, तकनीकी सोच व प्रशासनिक योग्यता में पुरुषों से बहुत आगे निकल चुकी हैं. ये शुभ लक्षण कई पाश्चात्य देशों में काफी पहले दस्तक दे चुका था. मुगलकाल में बेटी पैदा होने पर लोग खुशियाँ नहीं मनाते थे. वे बेटियों को अपनी कमजोरी तथा दायित्व के रूप में देखा करते थे.
पातीराम ने टैक्स वसूलने वाले को बताया कि उसके घर में बेटी पैदा हो गयी है इसलिए अब वह अपनी मूँछ नीची करके ही रहेगा. यह बात जब बादशाह सलामत तक पहुँची तो उन्होंने कहा, “पातीराम की बिटिया की पूरी परवरिश शाही खजाने से होगी. पातीराम से कहो कि अपनी मूँछ ऊपर ही रखे. हम उसके ज़ज्बे और मूँछों की इज्जत करते हैं.”
इस प्रकार पातीराम को शाही इज्जत बख्शी गयी. मूँछ टैक्स वसूलना बन्द हो गया और जिस कूचे में उनकी दूकान थी, उसका नाम स्थाई रूप से ‘कूचा पातीराम’ पड़ गया.
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