गुरुवार, 30 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ६

टेक्सास राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा मैक्सिको से मिलती है. एक समय ऐसा भी था की यूरोपीय देश, स्पेन, का इस बड़े भू-भाग पर उपनिवेशी कब्जा था. टेक्सास का इतिहास बताता है कि गणतंत्र बनने या उससे पहले इस राज्य की राजधानी कम से कम आठ बार बदलती रही थी. ऑस्टिन को स्थाई राजधानी का स्वरुप १८३९ में प्राप्त हुआ. तब इसका नाम रिपब्लिक आफ टेक्सास था. राजनेता स्टीफन फुलर ऑस्टिन (१७९३-१८३६) के नाम पर इसका नया नामकरण किया गया. ऑस्टिन यहाँ के ‘फादर आफ द स्टेट' भी माने जाते हैं. उनकी नागरिकता के विषय में लिखा गया है कि वे अमरीकन+स्पेनिश+मेक्सीकन+टैक्सीयन थे. उनके नाम से आज भी यहाँ अनेक स्कूल, सड़क, और संस्थान मौजूद हैं.

विधान सभा भवन जिसे यहाँ ‘Capitol’ कहा जाता है, ग्रेनाईट से बनी एक विशाल बिल्डिंग है. भारत में हमारे राष्ट्रपति भवन की तरह ही उसका बड़ा गुम्बज है. ये परिसर २२ एकड़ में फैला हुआ है. सुन्दर लैंडस्केप, पेड़, व लॉन बहुत सजावटी हैं. मुख्य बड़ा द्वार पीतल से बना हुआ है, तथा फर्श रंगीन चित्रकारी वाले मार्बल से बना हुआ है. बीच के हॉल में गुम्बज के नीचे चारों  मंजिलों पर कोरीडोर बने हैं, जिन पर चहुँ ओर यहाँ भूतपूर्व माननीयों की सुन्दर मुंहबोलती तस्वीरें टंगी हुई हैं. अंडरग्राउंड में कैफेटेरिया व गिफ्ट शॉप हैं. परिसर में १७ मोन्युमेंट्स भी हैं, जिनमें एक शहीद स्मारक भी है. यहाँ सुरक्षा चाकचौबंद है, पर पर्यटकों को कोई टिकट नहीं लेना पड़ता है.

शहर लाजवाब है, घूमते हुए एक जगह हमें ‘गांधी बाजार’ भी मिला। अन्य सभी बड़े अमरीकी शहरों की तरह, यहाँ पर इन्डियन स्टोर में भारत से मंगवाये गए सभी उपभोक्ता सामान उपलब्ध थे. भोजन के लिए इन्डियन रेस्टोरेंट इंटरनेट पर ढूंढने पर मिल पाया. यहाँ भी हमें बिना जी.पी.एस. के कहीं किसी ठिकाने पर पहुंचना मुश्किल लगा.

मैं अपने दामाद श्री भुवन जोशी व बेटी गिरिबाला का बहुत धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मुझे और मेरी अर्धांगिनी को गाइड करते हुए अपने वाहन में ये सब दर्शनीय स्थल दिखाए. अन्यथा इस प्रकार घूमना हमारे वश में नहीं था.
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बुधवार, 29 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ५

मेरिका (USA) का इतिहास बताता है कि उत्तरीय अमेरिका में यूरोपीय लोगों के आने से पूर्व आदिम आदिवासी लोग  (जिन्हे रेड इन्डियन नाम दिया गया) यहाँ रहते थे. ये आधुनिक सभ्यता की दौड़ में बहुत पीछे थे. यूरोपीय लोगों से उन्होंने प्रतिरोधात्मक लड़ाई भी लड़ी, पर वे हार गए, मारे गए अथवा यूरोपीय लोगों के साथ आये बीमारियों के वायरसों से मर गए. अत: बहुत कम संख्या में बच पाए.

इस धरती का यूनान, मिश्र, रोम, आर्यावर्त या चीन की तरह कोई ऐतिहासिक/पौराणिक इतिहास नहीं है, ना ही यहाँ कोई किला या राजमहल है. यूरोपीय देश भी अपने अपने कब्जे के लिए लड़ते रहे, और बाद में समझौते होते रहे. संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय राष्ट्र के रूप में सन १७७६ में स्थापना हुई, जिसमें ५० राज्य हैं. यहाँ अधिकाँश लोग प्रवासी यानि बाहर से आकर बसे हुए लोगों के वंशज हैं. इन्होंने पिछले ४००-५०० वर्षों में इसे दुनिया का श्रेष्ठ राष्ट्र बनाया है, जो अपने आप में एक बड़ी कहानी है. अमरीकियों की विशेषता यह भी रही है की जहां भी प्रकृति के अजूबे मिले, उसे संवार कर दर्शनीय बना डाला है. यहाँ सब कुछ नव निर्मित है. 

मैंने यहाँ प्रवास के दौरान क्षेत्रफल में सबसे बड़े राज्य टेक्सस की राजधानी ऑस्टिन और उसके आस पास के पर्यटन स्थल देखे. सैन अंटोनियो शहर के निकट जंगल में एक प्राकृतिक गुफा देखी जिसे ‘Natural Bridge Cavern' नाम से जाना जाता है.  जंगल में खुरदुरे पथरीले मैदान के नीचे जमीन के अन्दर चूना प्रस्तरों की बड़ी दरार है, जो लगभग ४०० फुट नीचे तक गयी है. उपरी जमीन पर पत्थरों से आर-पार पुल सा बना हुआ है. इस गुफा की खोज सन १८६० में हुई बताई गयी है. गुफा में आवागमन के लिए गहराई तक एक तीन फुट चौड़ा रास्ता रेलिंग के सहारे टेढ़े मेढ़े ले जाकर बनाया गया है, जो दूसरे छोर पर खुलता है. चूने का पानी गुफा की छत से लगातार टपकता रहता है. जिसके जमने से श्वेत रंग के असंख्य स्तम्भ, कलात्मक आकृतियां और लिंग बने हुए हैं. यह प्रॉसेस लाखों बरस से जारी रहा होगा. विद्युत् प्रकाश की उपस्थिति में इनकी मनोहारी दृश्यावली अवर्णनीय है. एक घंटे तक गुफा में गुजरते हुए गाइड बहुत मनोरंजक ढंग से पर्यटकों को उसके बारे में बताता जाता है. पर्यटकों की सुविधा के लिए गुफा के बाहर रेस्टोरेंट व पिकनिक स्पॉट तथा मनोरंजन के लिए ‘रोप-वे’ के खेल की व्यवस्था है. गुफा की देखने का टिकट जरूर २3 डालर प्रति व्यक्ति है.

(२) सैन अंटोनियो शहर (पूर्व में यहाँ स्पेन का राज्य था जो मैक्सिको की सीमा में था; यह शहर स्पेन के ही प्रसिद्ध सेंट एंटोनियो के नाम से है) बहुत खूबसूरती से बसाया गया है, जिसके बीचोंबीच एक नदी बहती है, जिसे ३० फुट के चौड़े बंधन में बांधकर नहर का रूप दे रखा है. इसके दोनों तरफ पदयात्रियों के लिए सपाट १०-१२ फुट चौड़े रास्ते हैं. दोनों तरफ ऊंची ऊंची इमारतें हैं, जिसमें बहुमंजिले होटल हैं, और इसे यहाँ का केंद्र (डाउनटाउन) कहा जाता है.

शाम होते ही चौपाटी की तरह ये ‘रिवर वॉक’ गुलजार हो उठाता है. विद्युत की जगमगाती लड़ियों से सजे हुए पेड़ तथा पुष्प वाटिकाएं देखकर मन रोमांचित होना स्वाभाविक होता है. नदी में नावें चलती हैं. नदी पर आर पार जाने के लिए अनेक पुलियायें बनी हुयी हैं. चौड़े स्थानों में मनोरंजन के लिए आर्केस्ट्रा तथा ऑडियो-वीडियो के अनूठे कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं. इसे कई लोग यहाँ का वेनिस भी बताया करते हैं.

सब मिलाकर यहाँ के लोगों का सौन्दर्य बोध का ये एक अद्भुत नमूना है.

अगले अंक में राजधानी ऑस्टिन के विधान सभा भवन के बारे में पढ़ियेगा.
क्रमश:
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सोमवार, 27 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ४

अमेरिका में ‘बरसाना- राधा माधव मंदिर’
भारत में विख्यात संत स्व. कृपालु जी महाराज (१९२२-२०१३ ) को सनातन धर्म उपदेशक, राधा-गोविन्द उपासक और वेदान्ती विद्वान् के रूप में पहचाना जाता है. उनको चैतन्य महाप्रभु का अवतार भी कहा जाता है. विलक्षण मेधास्मृति के धनी कृपालु महाराज को काशी विद्वत परिषद् द्वारा महज ३४ वर्ष की उम्र में ‘जगद्गुरु’ की उपाधि से सन १९५७ में विभूषित किया गया था. वे वेद-वेदान्त व भक्तियोग के प्रकाण्ड विद्वान् व प्रवचनकर्ता थे. उन्होंने अपनी आराध्या देवी राधा की असीम भक्ति में आसक्त होकर मथुरा के निकट बरसाना में एक सौ करोड़ रुपयों की लागत से एक भव्य मंदिर बनवाया जो की राधा-कृष्ण की उपासना व आस्था का अनोखा केंद्र है. मंदिर की वास्तुकला द्वारा भी आराध्य के दिव्य प्रेम को साकार किया गया है.

उन्होंने ‘जगद्गुरु कृपालु परिषद्' नाम से वैश्विक संगठन की स्थापना की; उनके करोड़ों फॉलोअर्स हैं. इस समय विश्व में पांच मुख्य आश्रम हैं. जिनका सचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है. ट्रस्ट द्वारा अस्पताल व गुरुकुल भी सचालित किये जाते हैं. विदेश में मुख्य आध्यात्मिक केंद्र ‘द हार्वड प्लूरिश प्रोजेक्ट’ अमेरिका में है. टेक्सास की राजधानी ऑस्टिन से लगभग २४ किलोमीटर दूर पश्चिम की पहाड़ियों के बीच ‘राधा-माधव धाम’ स्थापित है.

यह ‘बरसाना धाम’ कई एकड़ जमीन पर बसाया गया है. यह एक दर्शनीय दिव्य परिसर है, जिसमें राधा कृष्ण का एक विशाल मंदिर है जिसकी देखरेख एक ट्रस्ट द्वारा की जाती है. परिसर में रासलीलाओं के भित्त चित्र व जीवंत मूर्तियों से सजाया गया है. कालिंदी (यमुना), प्रेम सरोवर (कुण्ड) और महारास का मंडप सभी सजीव परिकल्पनाएँ भक्तों/ पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करती हैं. मंदिर परिसर में ही सुन्दर आवासीय व दिव्य भोजनालय की व्यवस्था है. मंदिर में व उसके परिसर में कृपालु महाराज की अनेक मुद्राओं में बड़ी बड़ी फोटो लगी हैं, और उनके बारे में वीडियो चलायमान रहते हैं. सुबह शाम पूजा-पाठ और भजन कीर्तन होते हैं कर्मचारियों में अधिकाँश अमरीकी हैं, कुछ भारतीय चेहरे भी हैं, जो हरे रामा हरे कृष्णा की तर्ज पर नाचते गाते हैं. मंदिर परिसर में एक दर्जन से ज्यादा भारतीय मोर और मोरनियां घूमते मिलते हैं जो बरसाना की शोभा बढ़ाते हैं. कुल मिलाकर इस साफ़ सुथरे पवित्र स्थल पर विचरण करने वालों को आत्मिक शान्ति मिलती है.

परिसर में हिन्दू विधि-विधान से विवाह, उपनयन, षष्टि पूजा आदि धार्मिक अनुष्ठानों /समारोहों के लिए उचित  शुल्क देकर आयोजन करने की व्यवस्था भी की जाती है.

सनातन धर्म के बारे में लिखा गया है कि ये एक जीवन पद्धति है जो अपने अन्दर अनेक उपासना पद्धतियों, पंथ, मत, सम्प्रदाय व दर्शन को समेटे हुए है. इसमें सभी प्राकृतिक देवी देवताओं को अलग अलग नामों से पूजा अवश्य जाता है, पर वास्तव में ये एकेश्वरवादी धर्म है. इसके साक्षात अनुभव यहाँ आकर होता है.

अगले पायदान में आप पढेंगे ‘नेचुरल ब्रिज’ नामक गुफा तथा सैन ऐंटोनियो के सुन्दर ‘रिवर वॉक’ का वर्णन.
क्रमश:
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रविवार, 26 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - ३

उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित टेक्सास राज्य है, और डैलस उसके मैदानी भाग में बसा हुआ एक बड़ा शहर है, जिसका केंद्र (डाउनटाउन) भी खूबसूरत गगनचुम्बी चमकीली इमारतों से भरा हुआ है. सडकों व बहुमार्गी जगहों पर ऊंचे-नीचे फ्लाईओवर्स के अनेक जाल हैं. शहर की बस्तियों में तथा सडकों के किनारों पर पेड़ों की कतारें हैं, पर यहाँ के पेड़ नाटे कद के लगते हैं. यहाँ पर अनेक विशाल सरोवर हैं, और जैसा की यहाँ का शुगल है, उन्हें चारों और से संवार कर दर्शनीय बनाया गया है. विद्युत् प्रकाश की भी अदभुत सजावट है, विशेषकर अब जब ईस्टर के बाद क्रिसमस की सजावट शुरू हो चुकी है. सर्वत्र सुन्दरता बिखरी हुई लगती है. चारों तरफ देखकर यूरोप की यह उक्ति याद आती है कि "Rome was not built in a day."

डलास के चारों और बसी बड़ी बड़ी बस्तियों को suburb कहा जाता है. ये अनेक cities में विभाजित हैं. हम अपने सुहृदों की जिस बस्ती में आये हैं, उसका नाम है Flower Mound, और कालोनी का नाम है Grand Park Estate. इस कालोनी में 90 घर हैं, और मुझे बताया गया है कि लगभग 55 घर भारतीय मूल के लोगों के हैं. जैसा कि परदेस में आम तौर पर होता है एक मुल्क के लोग किसी ना किसी बंधन (formal /informal bond) से आपस में जुड़े रहते हैं. यहाँ आने पर 11 नवम्बर को हम भारतीय समाज के एसोसिएशन द्वारा Marcus High School, Flower Mound के विशाल आडीटोरियम में आयोजित दीपावली मिलन कार्यक्रम में शामिल हुए, जिसमें अनुपम साज-सज्जा के साथ भारतीय नृत्य+संगीत में सरोबर पाकर अतीव आनंदित हुए. इसी कार्यक्रम में भाग लेने वालों के लिए भारतीय व्यंजन भी उपलब्ध थे. इस प्रकार के ‘मिनी हिन्दुस्तान पॉकेट्स’ बरबस अपने घर-गाँव की याद दिलाते हैं. ऐसा लगता है की ये भारतीय मूल के बच्चे जो यहीं पर पल-बढ़ रहे हैं,  अपनी जड़ों से कट जायेंगे, परन्तु आज के विश्वीकरण के युग में, ये बच्चे विश्वनागरिक बन जायेंगे. उन्हें यहाँ अपनी क्षमता के अनुसार पूर्ण विकास के और अपने सपने साकार करने के सभी अवसर मिलेंगे। आशा करता हूँ कि ये बच्चे, देश, काल, और परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढाल कर मानवीय व तकनीकी विकास में अपना योगदान देंगे. 

मेरे देशाटन के अगले पायदान पर आप पढेंगे टेक्सास की राजधानी ऑस्टिन के निकट स्व. कृपालु जी महाराज द्वारा बसाया गया एक और बरसाना.
क्रमश:
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बुधवार, 22 नवंबर 2017

I Speak to the Nation (U.S.)

I Speak to the Nation (U.S.)   

(Hindi version)
महान राष्ट्र अमेरिका के बाशिंदों !
सर्व प्रथम मैं आपको अपने दिल की गहराईयों से धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे अपने ‘प्रेसीडेंट’ के रूप में इस प्रेसिडेंटिअल पोडियम से भाषण देने का सुअवसर प्रदान किया है.

इस देश के गौरवपूर्ण इतिहास व उपलब्धियों पर केवल आपको ही नहीं, बल्कि विश्व के अन्य भागों के प्रबुद्ध शक्तिपुन्जों को भी अभिभूत किया है. यद्यपि, मैं एशिया के एक अन्य महान देश भारत में जन्मा और वहां की सनातन संस्कृति में पला-बढ़ा हूँ, मैं इस देश की सम्पन्नता व आदर्शों से अतिरेक प्रभावित हुआ हूँ. यह विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे बड़ी सैनिक शक्ति और अनेकानेक धार्मिक आस्थाओं का पोषक बन गया है. कला, साहित्य, और व्यक्तिगत अनुशासन के उच्च प्रतिमानों का स्तर इसी तरह निरंतर आगे बढ़ाते रहना चाहिए.

मैं, महामानव राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध, महावीर आदि द्वारा स्थापित सामाजिक मर्यादाओं तथा क्राइस्ट द्वारा प्रेम, करुणा व समभाव की प्रेरणा को एवं अन्य धर्मों के आविर्भावक प्रोफेट्स के उपदेशों को एकाकार करके वर्तमान युग की वैज्ञानिक क्रान्ति को मानवता के लिए सम्पूर्ण छत्र बना देना चाहता हूँ, जिसके नीचे कोई कलह, द्वेष, अथवा हिंसाभाव ना हो ताकि समस्त चराचर अपरिमित आनंद का भोग करें.

विश्व में आज तमाम रोग और शोक के लिए जिम्मेदार जो हिंसक-पाशविक दुष्ट शक्तियां पनप रहीं हैं, उनका स्वाभाविक अंत करना मेरा लक्ष्य है. ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का स्तोत्र मेरा मन्त्र है, और मैं इस बड़े कुटुंब का अध्यक्ष होकर सबका हितैषी बना रहूँ, यही मेरी कामना है.

आज की विषम अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आपको लगता होगा कि यह सब मेरी कल्पना मात्र है, पर सच यह है कि मैंने अमेरिका की धरती पर अपने रक्तबीज (जींस) बो दिए हैं, जो कालान्तर में निश्चित रूप से मेरे सपने को साकार करेंगे.

अंत में मैं मैडम तुसाद को धन्यवाद देता हूँ, जिसने अपने ‘वैक्स म्यूजियम’ में अमेरिका के सभी पूर्व व वर्तमान राष्ट्रपतियों के प्रतिरूपों को एक साथ व अन्य सभी क्षेत्रों की महान विभूतियों को भी मेरे सन्मुख कतार में खडा किया है. इनमें कला, साहित्य, विधिविधान, राजनैतिक महामनीषियों के अलावा पोप जॉन पॉल II, मार्टिन लूथर किंग, महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, बेंजामिन फ्रेक्लिन, मार्क ट्वेन, वाल्ट ह्विट्मैन आदि महानुभावों के प्रतिरूप भी मेरे श्रोताओं में उपस्थित हैं.

मैं स्वयं बहुत गर्वित और भावुक हो रहा हूँ. मेरा दिल यह सब देखकर भर आ रहा है कि मैं ‘प्रेसीडेंट आफ यूनाईटेड स्टेट्स’ के गरिमामय स्टेज से संबोधन कर रहा हूँ.

सभी श्रोताओं व पाठकों को शुभ कामनाएं. फिर मिलेंगे, मिलते रहेंगे.

Thank you very much! God bless America and the rest of the humanity as well!
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मंगलवार, 21 नवंबर 2017

अटलांटिक के उस पार - 2

31 अक्टूबर 2017 को जब मैं पत्नी व पुत्र प्रद्युम्न के साथ जब अमेरिका की धरती पर पदार्पित हुआ तो वे सारे अहसास फिर से ज़िंदा हुए जो मुझे 2011 में यहाँ आने पर हुए थे, और मैंने दिनांक 28 जुलाई 2011 को अपने ब्लॉग ‘जाले’ में संस्मरण के रूप में प्रकाशित किये थे.

साफ़-सुथरा, पूर्ण विक्सित, व सुन्दर सजाये गए परिदृश्य, हर बस्ती को चौड़ी-चौड़ी सडकों व बगल में पैदल यात्रियों के लिए पथ, हर मोड़ पर पुष्पित रंग-बिरंगे पौधे सब मनमोहक लगते हैं. पर इस बार बड़े पेड़ ‘फॉल’ (पतझड़) की वजह से सर्वत्र लाल अथवा पत्रविहीन मिले, बाकी सब कुछ वैसा ही लगा जैसा पहले था. इस कालखंड में मैं अलबत्ता कुछ बूढ़ा हो चला हूँ; सर पर बालों की सिर्फ सीमा रेखा बची है, और भोंहों पर भी चांदी चमकने लगी है.

इस बार आने का प्रमुख मकसद जॉर्जिया राज्य के अटलांटा शहर में प्रिय हिना के विवाहोत्सव में सम्मिलित होना था. इस विवाहोत्सव में भारतीय व अमरीकी मित्रों का उत्साह व उल्लास देखकर हम लोग आनंदित होते रहे. मेरे दामाद श्री भुवन जोशी व बेटी गिरिबाला का ये एक बढ़िया ढंग से नियोजित कार्यक्रम था. हिना ने भी इस अवसर को गरिमामय बनाने के लिए स्वयं एक मैरिज प्लानर की मदद ली थी. इसमें उसके मेडीकल स्टाफ, सहपाठी मित्रों ने चार चाँद लगा दिए. सारे आयोजन अनुपम थे. पंडित मजमूदार (गुजराती मूल के - पेशे से सर्जन) ने अपनी विद्वता व वाक् पटुता से दो संस्कृतियों का वैदिक मंत्रोचार के साथ कन्यादान - अग्नि को साक्षी रख कर सात फेरे करवाए. इस प्रकार एक अनुपम विवाह हुआ जिसे सबने देखा और सराहा. उल्लेखनीय बात यह थी की वर, चिरंजीव निकोलस (एक कंपनी में वाईस प्रेसिडेंट), व सभी वरपक्ष के लोग भारतीय परिधानों  में थे. तीन दिनों तक चले विवाहोत्सव को देखकर सभी लोगों ने हिना की पसंद और भाग्य की सराहना की. चूंकि भुवन जी नोकिया सीमेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं, और पूर्व में कई वर्षों तक अटलांटा में नियुक्त रहे हैं, नोकिया परिवार के सभी भारतीय मूल के मित्रों ( विशेष रूप से महिला मंडल ) ने सभी आयोजनों को सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसा बना दिया.

मेरी श्रीमती, पुत्र प्रद्युम्न, व पौत्र सिद्धांत ( बोस्टन में अध्यनरत), भुवन जी के बड़े भाई डॉ. नित्यानंद जी, उनकी अर्धांगिनी सुधा, पुत्र नितिन का परिवार, तथा कनाडा से गिरिबाला की मौसेरी बहन कमला शर्मा+ उसके पुत्र एवं पुत्रवधू की उपस्थिति ने इस विवाहोत्सव को चिर अविस्मरणीय बना दिया है. गिरिबाला की एक सहेली न्यू जर्सी  से इस समारोह में शामिल होने आई थीं; वह गिरिबाला की खुद की शादी की साक्षी भी थी. हमारे इस पूरे समारोह पर पुरोहित जी कहना था की उन्होंने यहाँ अनेक शादियाँ करवाई हैं, पर इस शादी को ‘ना भूतो ना भविष्यति’ की संज्ञा दी.

आठ दिनों तक अटलांटा के एक घर में रहकर वर-वधु को विधिवत बिदाई देकर हम लोग भुवन जी व गिरिबाला के साथ उनके घर, डलास (टेक्सस राज्य) में आ गए हैं, जो अटलांटा से लगभग 1350 किलोमीटर दूर है.
क्रमश:
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