शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

सबकी माँगू खैर


मेरे २००० से अधिक फेसबुक मित्रों में आदरणीय आर.के.सूरी जी अनन्य हैं, वे एसीसी के बड़े अधिकारी रहे हैं इसलिए मेरा एक ‘फॉर्मल बोंड’ उनके साथ है. वे अकसर अपनी वॉल पर ज्ञानवर्द्धक/ समसामयिक लेख प्रकाशित करते रहते हैं जिसे उत्सुकतापूर्वक पढ़ा जाता है; पर कभी ऐसा भी होता है कि ‘अच्छी किताब व अच्छे इंसान को पहचानने के लिए काफी समय तक पढ़ना पड़ता है.

सूरी साहब ने कुछ साल पहले इसी तरह फेसबुक पर उद्योगपति विजय माल्या की सुबुद्धिमता की बड़ी तारीफ़ की थी. एक दृष्टान्त देकर उन्होंने लिखा कि एक बार अमेरिका से यूरोप की यात्रा के समय माल्या ने अपनी कीमती कार महज  ५०० डॉलर में बैक को गिरवी रखी थी. वापसी पर बैक के अधिकारी ने जब उससे पूछा तो कहा कि कार की सुरक्षित पार्किंग के साथ ५०० डॉलर का व्याज इतना मामूली देना पडा अन्यथा बाहर कार की पार्किंग शुल्क बड़ी रकम के रूप में चुकानी पड़ती. माल्या की व्यावसायिक कुटिलता की राष्ट्र्धातक कहानियां बाद में निरंतर उजागर हुई हैं.

इसी तर्ज पर बलात्कार के आरोपी नामनिहाल सन्त आसूमल उर्फ़ आशाराम की एक वीडिओ क्लिपिंग में मैंने देखा कि स्व.अटल जी, अडवानी जी, नरेंद्र मोदी जी, राजनाथसिंह जी व दिग्विजयसिंह जी जैसे माननीय जन नत मस्तक होकर उनका आशीर्वाद ले रहे थे. आसूमल के पापों का घडा देर से भरा और अंधभक्तों की समझ में उसका असली रूप  बहुत बाद में आया है.

आजकल राजनीति के परिपेक्ष में कीमती धातुओं की मूर्तियाँ बनाने का काम जोरों पर चल रहा है, मायावती जी ने अपने जीतेजी अपनी और स्व. कांसीराम की मूर्तियाँ खडी कर दी , जो इन दिनों लावारिश सी नजर आने लगी हैं.

नेहरू जी व गांधी परिवार ने लम्बे समय तक राज किया इसलिए उनके असंख्य स्मारक देश में हैं लेकिन इसमें उनका अपना कोई दोष नहीं है क्योंकि उनके स्वर्गवास के बाद फालोवर्स ने ये काम किया है. लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद नये रहनुमाओं को ये चुभ रहे हैं. मोदी जी ने गुजरात में ‘सरदार सरोवर’ के स्थल पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक बड़ी मूर्ती की स्थापना हाल में की है जो दुनियाँ में सबसे ऊंची बताई गयी है. ‘सरदार सरोवर’ जवाहरलाल नेहरू ने पटेल साहब की स्मृति में बनवाया था. पर ये मूर्ती की स्थापना में कुछ इस तरह की भावना व्यक्त की जाती रही कि नेहरू के व्यक्तित्व तथा कृतित्व को कमतर आंका जाए. एक समय कांग्रेसी गृहमंत्री सरदार पटेल ने गांधी हत्याकांड के बाद आर.एस.एस.पर प्रतिबन्ध लगाया था, पटेल साहब जब १९४९ में स्वर्गवासी हुए तो आर.एस.एस. ने उनकी अंतिम यात्रा का बहिष्कार किया था, इसलिए ये कहा जा रहा है कि राजनैतिक हित साधना के लिय विशुद्ध रूप से ये प्रेम जागा है. इन बरसों में हमने देखा है कि नरेंद्र मोदी जी नेहरू को गरियाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते हैं.  बहरहाल अब ये विराट मूर्ती देश के लिए एक ऐतिहासिक सौगात है, इसके खर्चे-पर्चे व उद्देश्यों पर ना जाकर नकारात्मक ना सोचा जाए तो ही अच्छा है.

मुम्बई में शिव सेना स्व.बाल ठाकरे जी की तथा केंद्र सरकार हिन्द महासागर में शिवा जी की बड़ी मूर्ती लगाने का आह्वान कर चुके हैं.

कल के अखबारों में एक खबर छपी है की मेरठ के एक भक्त नरेंद्र मोदी जी की एक बड़ी मूर्ती लगाने की तैयारी कर रहा है. ये सिलसिला अवश्य अंतहीन है लेकिन विकासशील देश की सद्य प्राथमिकताएं  और भी बहुत हैं.

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बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

ये हो क्या रहा है?



एक सज्जन दवा की दूकान से कीड़े मारने की दवा खरीद कर लाये, घर आकर जब उस डिब्बे की खोला तो पाया कि उसमें असंख्य कीड़े कुलबुला रहे थे.

इस दृष्टान्त को आज हम साक्षात देख रहे हैं कि भारत सरकार की निगरानी तंत्र वाली सर्वोच्च संस्था सी.बी.आई. के उच्चाधिकारी आपस में खुलेआम भारी भरकम रिश्वत लेने के आरोप लगा रहे हैं; इनमें से कुछ पर सत्ताधारियों की नजदीकियां जग जाहिर हैं.

इसमें दो राय नहीं हैं कि देश का पूरा पुलिस तंत्र इस सापेक्ष में हमेशा बदनाम रहा है और सत्ता पर काबिज राजनेता इनका भरपूर उपयोग अपने हितों में करते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक बार सी.बी.आई. को सरकारी तोता तक कहा है.

यह भी सही है कि पूर्ववर्ती सरकार के दौरान जिस पत्थर को पलटो उसके नीचे भ्रष्टाचार के कीड़े नजर आने लगे थे, पिछले २०१४ के आम चुनावों में ये मुख्य मुद्दा बना था और लोगों ने भारी बहुमत से नई सरकार को जिम्मेदारी सौंपी थी. हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश व विदेश में कई मौकों पर कहा कि अब उनके राज में कोई घोटाला नहीं हो रहा है उन्होंने एक बड़ा जुमला भी फैंका था कि ‘ना खाऊँ, ना खाने दूगा’ पर हकीकत में ये महज चुनावी गालियाँ बनकर रह गयी. बड़े बड़े बैंक घोटाले उजागर हुए हैं, जिन पर ज्यादातर गुजराती तड़का लगा हुआ है.

नजदीकी लोगों को बेशुमार फायदा पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री जी का नाम राफेल जैसे विवादास्पद विमान सौदे में लिया जा रहा है, सरकार द्वारा इसकी असलियत नहीं बताये जाने से आम लोगों के मन में गंभीर संशय पैदा होना स्वाभाविक है.

जोर-शोर से कोई बात बोल देने से झूठ सच नहीं हो सकता है तथा एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते है, ये पुरानी कहावत है.

आज प्रिंट मीडिया व इलैक्ट्रोनिक मीडिया अकसर सत्य से परे विरुदावली गा रहे हैं ऐसे में कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये हो क्या रहा है?

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मंगलवार, 28 अगस्त 2018

आरक्षण - जिंदाबाद / मुर्दाबाद.



हिन्दू समाज में पौराणिक काल में जो वर्ण व्यवस्था तय की गयी थी वह २० वीं सदी तक आते आते विकृत होकर कोढ़ बन गयी थी. इसीलिये समाज को बांटने वाली इस परम्परा के विरुद्ध समाज सुधारकों, अग्रगण्य लोगों व कानूनविदों ने आवाज उठाई. देश आजाद हुआ और अपना संविधान बना तो उसमें सभी बर्गों के लोगों की समानता के लिए अनेक कानूनों की व्याख्या दी गयी. दलित व पिछड़ी जातियों के लोगों को ऊपर लाने के लिए कई तरह से सुविधाओं में आरक्षण दस बर्षों के लिए घोषित किये गए, जिनके अनुसार इन वर्गों के समस्त लोगों को पढाई में कम अंकों में उतीर्ण करने, स्कूल फीस में भारी छूट, अनेक वजीफे, तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण के अलावा सभी संवैधानिक व लोकतांत्रिक संस्थाओं के पदों में अनुपातिक आरक्षण दिया गया और इसके बहुत अच्छे सकारात्मक परिणाम आये भी. इन पिछड़े वर्गों प्रबुद्ध पढ़े लिखे लोग बराबरी या बराबरी से भी ऊपर निकलते रहे. पिछली सरकारों ने इस आरक्षण व्यवस्था को कई बाए फिर फिर बढाया भी. कुछ राज्य सरकारों ने दलित व अनुसूचित जन जातियों के अपने कर्मचारियों को प्रमोशन में भी प्राथमिकता का नियम बनाया. फलत: इस वर्ग में एक ‘क्रीमी लेयर’ अलग से बन गयी. ये भी सच है कि एक बहुत बड़ा तबका अज्ञानता की वजह से आज भी वहीं है जहां आजादी के समय था. जाग्रति जरूर आई लेकिन दुर्भाग्य ये रहा कि इन दलित जातियों व आदिवासियों के अपने अन्दर से ठेकेदार उभरकर सामने आये, नतीजन आरक्षण का भरपूर लाभ कुछ ही लोगों तक सीमित रहा है

इधर नामनिहाल गरीब सवर्णों में व अन्य धर्मावलम्बी गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले लोगों में स्वाभाविक रूप से असंतोष घर करता रहा है. दलितों के मुकाबले तमाम सुविधाओं में निरंतर उपेक्षा किये जाने के कारण हार्ट बर्निंग  व  आपसी टकराव होते रहे हैं. इसी के परिणाम स्वरुप  राजस्थान में ‘गुर्जर आन्दोलन’ , हरियाणा में ‘जाट आन्दोलन’, गुजरात में ‘पटेल आन्दोलन’ जैसे घमासान हुए हैं और आज भी उनकी आग ठंडी नहीं हुई है.

आरक्षण के बरदान स्वरुप दलित व पिछड़ी जातियों की जो पीढियां सम्रद्धि व पद पाकर ऊपर आ चुके हैं वे अब इसे जन्मजात हक़ समझकर छोड़ना नहीं चाहते हैं, सभी राज नैतिक दलों में इनकी लाबियाँ प्रबल हैं इसलिए चाहते हुए भी कोई दल रिस्क नहीं लेना चाहता है कि ये वोट बैक उनसे टूटे.

आज जब देश के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, अनेक राज्यपाल, अनेक मंत्रीगण व नौकरशाह आराक्षित वर्गों के ही  विराजमान हैं तो ये उम्मीद करना कि ये आरक्षण में कोई  परवर्तन लाने की दिशा में सोचेंगे या कार्य करेंगे एक दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं होगा.

ये भी सच है की इस तरह की आरक्षण व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है तथा आरक्षण के फलस्वरूप योग्य व्यक्तियों के पिछड़ने से एक बड़ी सामाजिक कुंठा पैदा हो रही है जो नए वर्ग संघर्ष का रूप ले सकता है. ऐसे में देश के सर्बोच्च न्यायालय ने इस जातिगत आरक्षण पर अपने फैसले में कुछ आवश्यक सुधार किये थे ; जैसे कि जाति सूचक आक्षेप पर बिना जांच पड़ताल के गैर जमानती  गिरफ्तारी ना की जाए, क्योंकि पिछला इतिहास बताता है ऐसे ७० से ८० प्रतिशत मामले झूठे निकले हैं.(हाल में नोयडा में एक दलित एस.डी.एम्. द्वारा बुजुर्ग कर्नल को अपमानित करने के लिए इसी प्रावधान का इस्तेमाल किया जिसकी कलई बाद में खुल गयी है.) प्रमोशनों में योग्यता/ बरिष्ठता को आधार माना जाए नाकि जातिगत योग्यता. इस पर हो-हल्ला व सडकों पर आन्दोलन होने लगे तो वर्तमान सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके सर्बोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करने की जो गलती की है उसका दुष्परिणाम लम्बे समय तक देश को भुगतना पडेगा.

अब सवर्णों में जबरदस्त उबाल है, जो लोग कल तक मोदी जी के अंधभक्त थे उनमें से कई ने अपने जहरीले उदगार व्यक्त किये हैं. एक पंडित जी ने फेसबुक पर यहाँ तक लिखा है कि “बीजेपी के लिए वोट का बटन दबाने में मुझे अब ऐसा लगेगा की मैं अपने बच्चों का टेंटू दबा रहा हूँ.” नाराज लोग ‘नोटा’ की सलाह भी दे रहे हैं, पर ये समस्या का कोई हल नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करने का कलंक मोदी सरकार पर रहेगा, निश्चय ही इसका नुकसान उनकी पार्टी को उठाना पडेगा.

सबसे अच्छा ये होता कि आरक्षण पूरी तरह आर्थिक विपिन्नता तथा व्यक्तियों की विकलांगता को आधार मान कर तय किया जाता. ये लक्षण भी अच्छा है कि प्रबुद्ध लोग इस विषय को गंभीरता से ले रहे हैं और बहस जारी है.

आज मेरे इस लेख के समापन से पूर्व एक खबर ये भी एक टी.वी. चेनल द्वारा प्रसारित की है कि गुजरात हाईकोर्ट ने सभी जातिगत आरक्षण समाप्त करने पर एक महत्पूर्ण निर्णय दिया है. इसकी पड़ताल अभी बाकी है.

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शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

आदरणीय अटल जी के नाम :



आप भी उस देश चले गए हैं जहां से ना कोई चिट्ठी ना कोंई सन्देश आते हैं. आपने अपनी एक रचना में लिखा है कि “मैं फिर से आऊँगा....” पर मैंने तो आपके मोक्ष की कामना की है ताकि आप जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाओ. वैसे अब ये धरती आप जैसे धर्मसहिष्णु व सर्वजन हिताय भावना के चाहने वालों के लायक रही भी नहीं है.

मैं अनुभव कर रहा हूँ की आपके अवसान के बाद लोग आपकी मौत को अपने पक्ष में भुनाने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं. तमाशों व हँसी ठठ्ठों के बीच आपकी राख को उन जगहों पर नदी-नालों में विसर्जित किया जा रहा है जहां डालने का कोई महत्व नहीं है. हमारे उत्तरांचल में अवशेष उन्ही जगहों पर विसर्जित किये जाते हैं जहां का जल गंगा नदी तक पहुचता है. अन्यथा सीधे गंगा में अर्पित किये जाते हैं.

कोटा के एक वकील स्वनामधन्य श्री दिनेश द्विवेदी जी (मेरे फेसबुक मित्र) ने चम्बल के श्मशान घाट में अस्थिविसर्जन पर सही अंगुली उठाई है. उन्होंने आपकी मृत्युपरांत फेसबुक पर एक लतीफा मुल्ला नसरुद्दीन ( a wise man) के बारे में डाला था , मुझे उसका गूढ़ अर्थ बार बार हाँट करता आ रहा है. उस लतीफे को मैं पुन: अपने शब्दों में लिख रहा हूँ लेकिन मैं निवेदन भी करना चाहता हूँ कि इसे सीधे सीधे अपने सम्बन्ध में बिलकुल ना लें. लतीफा इस प्रकार है:

एक थे फन्नेखां लम्बरदार, वे तब की सियासत के बड़े लम्बरदार थे, उनके गाँव के लोगों ने मिलकर उनको लंबरदारी से हटवा दिया था क्योंकि उसकी फकत लफ्फाजी से व उनकी औलादों/ कारिंदों के अत्याचारों से सब दुखी थे. एक दिन लम्बरदार जी खुदा को प्यारे हो गए तो दफनाने के लिए खानदानी कबरिस्तान में ले जाये गए. धार्मिक नियम के अनुसार उनको जमींदोज करने से पहले उनके बारे में कुछ अच्छे शब्द बोले जाने थे पर लोग थे कि सबके मुंह में दही जम गया. मौलवी साहब ने वक्त की नजाकत देखते हुए पड़ोसी गाँव से मुल्ला नसुरुद्दीन  को बुला भेजा, मुल्ला नसुरुद्दीन सारा माजरा समझ गए और कार्यक्रम को आगे बढाते हुए बोले “ लम्बरदार साहब अपनी औलादों के मुकाबले ‘बहुत अच्छे’ थे”. ऐसा कहते ही कब्र पर मिट्टी डालनी शुरू हो गयी. पता नहीं लम्बरदार जी को जन्नत नसीब हुयी या नहीं पर उनकी औलादें जश्न मनाने में व्यस्त ही गयी क्योंकि रोकाने-टोकने वाला कोई  ना रहा था.

ज़माना सब देख रहा है, समझ रहा है पर आपके जाने का गम / भय उन लोगों को ज्यादा सता रहा है जो मानते थे कि ‘एक सही आदमी गलत पार्टी में’ था. (आपके लोकसभा में दिए गए एक भाषण से साभार).

आपने ये भी लिखा है कि ‘मर्जी से जिऊँ और मन से मरूं’ लेकिन आपकी मृत्यु पर एक वारिस का कहना है कि “अटल जी ने जाने का गलत टाईम चुना, उनको अगले साल उत्तरायण तक भीष्म पितामह की तरह सर शय्या पर रहना चाहिए था तब उनकी अंतिम यात्रा और कलश यात्राएं ज्यादा भव्य होती.” उसने अफसोस जाहिर किया कि अपने देश की अधिसंख्य जनता की याददाश्त महज पंद्रह दिन होने से उनके चपाटों को सम्पैथी वोट लोकसभा के चुनावों में शयद ही मिल पायेगा.

अंत में, जो ये कहते हुए सुने गए थे “मैं आपको ‘बड़ा’ इसलिए दीख रहा हूँ कि अपने बुजुर्गों के कन्धों पर सवार हूँ,” वे आपके अवसान के बाद जमीन पर आ गए हैं. खुदा खैर करे.
मैं हूँ आपका एक प्रशंसक.


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रविवार, 12 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (७)



दवाईयाँ – हमारी ये दुनिया अनेक विविधताओं से बनी है, देश, काल व परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग जगहों पर मानव संस्कृतियों का विकास हुआ तदनुसार ही चिकित्सा पद्धतियों का जन्म भी होता रहा है. १९ वीं २० वीं सदी तक आते आते विज्ञान के प्रादुर्भाव का असर भी सभी पद्धतियों पर पडा है.

हमारे देश भारत में आयुर्वेद प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में विकसित हुआ जिसमें हर्बल यानि वानस्पतिक जडी-बूटियों व धातुओं की भस्मों को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है; इसी प्रकार यूनानी चिकित्सा पद्धति  की अपनी पुरानी पहचान है, चीन – जापान की इसी तरह की अपनी दवाएं होती हैं. कुछ सदी पहले जर्मनी में होम्योपैथिक पद्धति ने जन्म लिया जिस पर दुनिया के अनेक लोग विश्वास किया करते हैं. पर दुनिया भर में आज सबसे विश्वसनीय एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति मानी जाती है क्योंकि इसका विकास शुद्ध वैज्ञानिक शोधों पर आधारित है इसमें कैमिकल औषधियों द्वारा प्रतिरोधात्मक शक्तियों को इलाज के लिए प्रेरित किया जाता है तथा सर्जरी द्वारा इसमें क्रान्ति लाई गयी. एक्स रे व लेजर टेकनीक से अब असीमित संभावनाएं इस पद्धति में विकसित हो गयी हैं. ये शोध निरंतर जारी हैं.

यद्यपि मरे हुए को ज़िंदा करना यानि अमरता की परिकल्पना अभी वैज्ञानिक उपलब्धि से बहुत दूर है पर अब लोगों की समझ में आ गया है की टोनों- टोटकों या झाड फूक का ज़माना अब नहीं रहा है. हाँ अभी भी बहुत से अंधरे कोने बचे हैं जहां अभी तक प्रकाश की किरणें नहीं पहुच पाई हैं.

वैसे प्रकृति ने हमारे शरीरों में रोग प्रतिरोधात्मक शक्तियां स्वयं प्रदान की हुयी हैं, एक विचारक ने लिखा है कि ९५% बीमारियाँ हवा पानी औए इम्युनिटी से ठीक हो जाती हैं, शेष ५% को इलाज की जरूरत होती है उनमें भी केवल ३% ठीक हो पाते हैं बाकी असाध्य ही रहते हैं या यमराज की भेट चढ़ जाया करते हैं.

कैमिकल औषधियां तुरत-दान असर तो करती हैं पर इनके साईड इफेक्टस बहुत रहते हैं, इसलिए इनके उपयोग के लिए अनेक क़ानून बनाए गए हैं विशेषकर जो शेड्यूल्ड ड्रग्स हैं उनका उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए, योग्य चिकित्साधिकारी की सलाह पर ही लेनी चाहिए. एक जरूरी बात सभी पाठकों को कहना चाहूंगा कि अपने शरीर को कम से कम मेडीकेट किया जाए तो ही अच्छा है. मजबूरी में ही दवा खानी चाहिए.

एक समय था जब मेडीकल प्रोफेसन को सेवा का प्रोफेसन कहा जाता था, आज इसका बाजारीकरण हो गया है, पैसा बड़ा फैक्टर हो गया है चाहे मरीज की जान चली जाए. एक सर्वे के अनुसार ये भी बताया गया है कि लोग बीमारियों से कम, दवाओं के गलत प्रयोग से ज्यादा मर रहे हैं. इस सन्दर्भ में एक बुजुर्ग का बयान मजेदार है : पत्रकार ने उनसे उनके स्वस्थ लम्बे जीवन का राज पूछा “क्या आप डाक्टर के पास जाते हैं?” उन्होंने कहा “हाँ भाई, डाक्टर की तो हमेशा जरूरत रहती है इसलिए उसके पास जाना ही पड़ता है.” पत्रकार “फिर क्या करते हैं?” उत्तर “ फिर फार्मासिस्ट के पास जाता हूँ, उसको भी तो ज़िंदा रखना है.” पत्रकार फिर “बहुत सारी टैबलेट व कैप्स्यूल देता है जिनको लेकर घर आ जाता हूँ.” पत्रकार “आप सारी दवाएं खा लेते हो?” उत्तर “ नहीं भाई, मैं उन सभी गोली कैप्स्यूल्स को डस्टबिन में डाल देता हूँ क्योंकि मुझे भी तो ज़िंदा रहना है.”

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गुरुवार, 9 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (६)



खांसी – मुझे आज से लगभग ५५ साल पहले लाखेरी सीमेंट कारखाने में कार्यरत स्व. पंo रामकिशोर शर्मा द्वारा एक लम्बी रचना ‘राजा और रानी’ शीर्षक से लिखकर हमारी गृह पत्रिका ;लाखेरी सन्देश’ में छपने को दी थी, जो छपी भी थी. मेरे पास अब वह रचना तो मौजूद नहीं है पर उसकी एक पंक्ति मुझे याद है :
हांसी सब झगड़ों की रानी, खांसी सब रोगों की रानी.
अर्थात खांसी मामूली बीमारी नहीं होती है. वैसे खांसना व छींकना हमारे शरीर की डीफेंस सिस्टम के पर्याय होते हैं; पर यहाँ जिस खांसी की चर्चा की जा रही है उसका आशय ‘क्रोनिक खांसी’ से है. यों सर्दी-जुकाम के बाद, मौसम परिवर्तन के समय गले में एलर्जी होने पर खांसी की शिकायत आम होती है पर यदि खांसी लम्बे समय से परेशान कर रही हो तो चिंता की बात होती है.

हमारी श्वास नली (ब्रोंकल पाइप) में बलगम / कफ चिपकने से खांसी होने लगती है खतरनाक तब हो जाती है जब उसमें कोई बैक्टीरियल संक्रमण हो जाए और अन्दर फेफड़ों यक पंहुच जाए. इस हालत में उसे हल्के नहीं लेना चाहिए.

डस्ट में काम करने वाले लोगों के श्वसन में डस्ट सीधे फेफड़ों तक जा सकता है इसलिय अच्छे किस्म के मास्क पहनने चाहिए.

खांसी में बलगम की बहुतायत होने पर तथा साथ में बुखार की शिकायत होने पर (विशेषकर दोपहर बाद बुखार चढ़ता हो) तो खून की जांच व एक्स रे करवाकर मालूम किया जाना चाहिए कि कहीं टी.बी. प्लूरासी या ट्यूमर तो उसका कारण नहीं है? आजकल इन बीमारियों का ईलाज बिलकुल संभव हो गया है बशर्ते की सही डाईग्नोसिस हो गया हो और दवाओं की पूरी डोज ली जाए.

छोटे बच्चों में हूफिग कफ (कूकर खांसी) एक वायरस द्वारा फैलता है, आवश्यक परहेज तथा दवा से कंट्रोल में आ जाता है.

एक जरूरी बात मैं खांसी के रोगियों को कहना चाहता हूँ कि खांसते वक्त रूमाल अवश्य इस्तेमाल करें तथा अपने बलगम को जहां तहां ना थूकें . राख या मिटटी के डिब्बे में थूकें जिसे बाद मिट्टी में दबा दें.

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बुधवार, 8 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (५)



पेशाब में जलन – हमारे शरीर में अनेक रासायनिक संयोग हैं, प्रमुखतया इनको दो भागों में बांटा जा सकता है (१)  ऐसिडिक यानि अम्लीय (२) अल्क्लाईन यानी क्षारीय. जब भी हमारे खान-पान में इनका बैलेंस बिगड़ता है हम बीमार पड जाते हैं. पेशाब हमारे शरीर का तरल वेस्ट होता है जिसे गुर्दे (किडनी) खून में से छान कर बाहर का रास्ता बताते हैं. पेशाब में जलन के तीन मुख्य कारण होते हैं :

(१)         ऐसिडिक पेशाब में यूरिक ऐसिड क्रिस्टल्स , कैल्शियम आक्ज्लेट्स आदि बारीक कण ट्रेक पर चुभते हुए, छीलते हुए निकलते हैं तो जलन महसूस होती है; गरम मसाले, लाल मिर्च, पेन किलर् दवाएं, अल्कोहौलिक ड्रिंक्स सभी ऐसिडिक होने से कारक होते हैं. डिहाईड्रेसन यानि शरीर में पानी की कमी होने पर भी ऐसिडिटी बढ़ जाती है. इसलिए पर्याप्त पानी पीते रहना चाहिए. खीरा-ककडी, तरबूज जैसे फल सेवन करने चाहिए. अचार या इस तरह के खट्टे तेजाबी पदार्थों से परहेज करना चाहिए. मेडीकल स्टोर्स पर रेडीमेड अल्क्लाईंन योगिक वाली दवाइयाँ अलग अलग नामों से उपलब्ध रहती हैं जिनको पानी में मिलाकर पीने से तुरंत राहत मिलती है. नीम्बू पानी, खाने का सोडा, फ्रूट साल्ट का उपयोग भी आराम दे देता है.
(२)         गुर्दों में पथरी से घाव हो जाने पर, चोट लगने पर, या अन्य कारणों से संक्रमण हो जाता है,जो पूरे मूत्रमार्ग में फ़ैल जाता है; एलोपैथी में इसे नेफ्राईटिस / UTI  कहा जाता. पथरी की लाक्षणिक चिकित्सा (दवाओं से या सर्जरी द्वारा) करने के साथ ही एंटीबायोटिक्स द्वारा ईलाज किया जाता है. पर ये सब सक्षम चिकित्साधिकारी द्वारा ही संभव होता है. आजकल इस विषय के विशेषज्ञ urologist  लगभग सभी शहरों में उपलब्ध होते हैं उनकी सेवाओं का लाभ लिया जाना चाहिए.
(३)         असुरक्षित यौन संबंधों के कारण VD  यानि गन्होरिया-सिफलिस आदि खरनाक यौन रोग यूरिनरी ट्रेक तथा टिस्यूज को सक्रमित करते हैं जिसका कोई घरेलू ईलाज भी नहीं है. स्वच्छंद यौनाचारी/बैश्यागामी लोग इस भयंकर बीमारी की अपने घर-परिवार तक खुद ही पहुचाते हैं. इसका उपचार लंबा होता है, क्वालीफाईड डाक्टरों से ही  कराना चाहिए.

पेशाब में जलन के लिए उक्त तीनों कारकों के अलावा भी अन्य कारण हो सकते हैं, यदि दुर्भाग्य से ऐसी कोई शिकायत हो जाए तो छुपानी नहीं चाहिए और इलाज में कोताही नहीं बरतनी चाहिए. अब मेडीकल साइंस बहुत एडवांस हो चुका है कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं है.

नोट: मेरे ये हेल्थ टिप सीरीज केवल अपने पाठकों की जानकारी हेतु शुरू की गयी है, ये कोई चिकित्सकीय परामर्श नहीं है. आपकी प्रतिक्रया का स्वागत होगा.

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मंगलवार, 7 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (४)



बहुमूत्र – ये बहुधा बुढापे का रोग है पर किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है. इसका मुख्य कारण गुर्दों का अतिशय सक्रिय रहना है. मधुमेह (डाईविटीज) के रोगियों के पेशाब में शर्करा ज्यादे मात्रा में निस्तारित होती है जिससे पेशाब का वजन (ग्रेविटी) बढ़ जाता है जिसे मूत्राशय बर्दाश्त नहीं कर पाता है, थोड़ा सा भी जमा होने पर पेशाब की हाजत होने लगती है. पुरुषों में इसका एक विशेष कारण प्रोस्टेट ग्रंथि के एनलार्ज होना है पूरा पेशाब एक बार में बाहर नहीं आ पाता है इसलिए बार बार बाथरूम जाना पड़ता है. विशेष कर रात में कई बार उठना पड़ता है.

प्रोस्टेट की तकलीफ में योग्य चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए. दवाओं से या सर्जरी (आजकल लेजर टेक्नोलाजी से आपरेशन किये जाते हैं, जिसमें मरीज को कष्ट बहुत कम होता है) से इलाज संभव है. प्रोस्टेट में कभी कभी कैंसर का खतरा भी होता है इसके लिए आजकल पहले ही खून की  जांच  P.S.A. (प्रोस्टेट स्पेसल एंटीजन) किया जाता है. पहले  समय में कैंसर की जांच आप्रेसन के बाद बायोप्सी से होती थी जो पोजीटिव होने पर बाद में लाईलाज हो जाता था. अभी दवाओं पर जोरशोर से रिसर्च भी जारी है. घबराने जैसी कोई बात नहीं है पर दुर्भाग्य से ऐसी शिकायत हो गयी हो तो नीम हकीमी इलाज नहीं कराना चाहिए.

आयुर्वेद में बहुमूत्र के लिए कुछ विशिष्ट दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं, इस सम्बन्ध मैं हाल में इंटरनेट पर पढ़ रहा था तो ‘बहुमूत्र’ सर्च करने पर यु ट्यूब पर आचार्य बालकृष्ण जी की वार्ता आ रही थी जिसमें उन्होंने बहुमूत्र के लिए गोक्षुरादिगुग्गुल व गुड+काला तिल का प्रयोग गुणकारी औषधि के रूप में बताई है. इंटरनेट पर इस बारे में और भी बहुत सी जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं.

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सोमवार, 6 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (३)



व्यायाम – परमात्मा ने मनुष्य शरीर की मशीनरी को इस तरह से रचा है कि जीवित अवस्था में सारे पुर्जे आटोमेटिकली काम करते रहते हैं.जहाँ जरूरी हुआ वहाँ स्पेयर पार्ट भी दे रखे हैं और टूट फूट होने पर स्वत: पुन:र्निर्माण की व्यवस्था भी की गयी है. यदि आलस्यबस  शरीर को निष्क्रिय छोड़ दिया जाए तो अन्दर जंग लगाने लगता है और जाम हो जाता है और उम्र घट जाती है.

जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं उनके लिए व्यायाम करना आवश्यक है, व्यायाम यानि कसरत (शारीरिक + मानसिक व्यायाम को योगाभ्यास कहा जाता है) व्यायाम शरीर के अंदरुनी अवयवों, जोड़ों, व इन्द्रियों को सक्रिय रखने में मदद करता है. इसका उद्देश्य ये है कि जब तक जिओ स्वस्थ/सुखी रहो.

उम्रदराज लोगों के लिए सबसे सहज व्यायाम घूमना फिरना बताया गया है. एक सुन्दर सा दृष्टांत मैं अपने पाठकों को सुनाना चाहता हूँ कि एक ९५ वर्षीय स्वस्थ व्यक्ति से जब किसी ने पूछा की उनके उत्तम स्वास्थ्य का क्या राज है? तो उन्होंने बताया “मैं अपनी शादी के समय पत्नी से एक शर्त हार गया था, शर्त के अनुसार मुझे रोजाना ५ किलोमीटर पैदल चलना था ; सो पिछले ७० बर्षों से मैं उस शर्त पर बंधा हुआ हूँ. यही मेरे फिटनेस का राज है.” उनसे जब पूछा गया कि”आपकी ९० बर्षीय पत्नी भी स्मार्ट लगती है?” तो उन्होंने हंसते हुए कहा “ अरे, वह नित्य मेरे पीछे पीछे ये चेक करने के लिए चलती रहती है कि मैं ५ किलोमीटर चलने की शर्त निभाने में बेईमानी तो नहीं करता हूँ”.

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रविवार, 5 अगस्त 2018

हेल्थ टिप - (२)



स्किन इन्फेक्सन – बरसात के दिनों में गंदे पानी, कीचड या गोबर के संपर्क में पैरों के आ जाने से अनेक लोगों के पैरों की अँगुलियों के बीच दुखदाई खुजली हो जाया करती है, ये इस हद तक बढ़ सकती है कि वहाँ पर की चमड़ी गलने लगती है. जो लोग नंगे पैर रहते हैं अथवा गंदी चप्पलों का इस्तेमाल करते हैं उनको ये तकलीफ ज्यादा हुआ करती है. (सावधाने के लिए दूसरे लोगों की चप्पल गलती से भी नहीं पहननी चाहिए.)

मैं समझता हूँ कि हमारे देश में शहरी लोगों से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों को इस बीमारी का खतरा रहता है. थोड़ी सी जागरूकता व सावधानी बरतने पर इस से बचा जा सकता है. पैरों की अँगुलियों के बीच कोई भी तेल या वैसलीन लगाई जा सकती है, मेडीकल स्टोर्स पर एंटी फंगल पावडर या क्रीम उपलब्ध रहते हैं पैरों की ठीक से सफाई करके इनका उपयोग किया जाना चाहिए. हल्के डीटाल के घोल से अथवा फर्श साफ़ करने वाले फिनायल के पानी मिले घोल से धो लेने पर तुरंत लाभ मिल जाता है. बोरोप्लस, बैट्नोवेट्-सी, इच गार्ड  जैसे मरहम भी लाभकारी होते हैं.

अगर दुर्भाग्य से नाखूनों के अन्दर तक फंगल का असर हो जाए तो अवश्य किसी डरमाटोलाजिस्ट (चर्मरोग विशेषज्ञ) की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि ये आसानी से ठीक नहीं होता है.
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शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

हेल्थ टिप (१)



मुँह में बदबू - अगर आप को भी इस बीमारी की शिकायत है तो कृपया इसे ध्यान से पढ़िए. शरीर सुन्दर दीखता हो, श्रगारिक और आकर्षक हो लेकिन अगर आपके मुंह  से सड़ी बदबू आती हो तो सामने वाले को कैसा लगत़ा होगा कल्पना कीजिये.

जो लोग कुछ भी खाने के बाद मुंह की ठीक से सफाई नहीं करते है उनको ये भयानक बीमारी हो जाती है. अन्नकण सड़ने पर दांतों के इर्दगिर्द बैक्टीरिया को जन्म देते हैं जो कोमल मसूड़ों पर हमला करके नुक्सान पहुचाते रहते हैं. बचपन से ही बच्चों को इस बारे में सीख दी जानी चाहिए क्योंकि एक बार जब मसूड़े सडने-गलने लगते हैं तो दुबारा नार्मल स्थिति में मुश्किल से आ पाते हैं. दन्तक्षय के अलावा इसका सीधा प्रभाव पाचनक्रिया पर भी पड़ता है. पायरिया या इसी प्रकार के मसूड़ों के रोगियों को हार्ट संबंधी समस्या होने के खतरे भी बढ़ जाते हैं.

पहले जमाने में प्रबुद्ध लोग नींम, बबूल ,तिमूर या दातून से मुंह साफ़ किया करते थे, आजकल बाजार में सैकड़ों किस्म के टूथपेस्ट अथवा मंजन उपलब्ध रहते हैं, फिटकिरी युक्त लाल दन्त मंजन घर पर बनाए भी जा सकते हैं. कैमिकल से तैयार माउथवाश हर मेडीकल स्टोर पर मिल जाते हैं. अगर जागरूकता हो तो कोई भी व्यक्ति अपने मुंह की बदबू से निजात पा सकता है.

कुछ भी खाईये पर तुरंत मुंह साफ़ जरूर कीजिये. खाली ब्रश फिराईये तो भी आपको मदद मिलेगी. एक बार अगर बीमारी लग गई हो और आप कोशिश करके भी निजात नहीं पा रहे हों तो किसी फिजीशियन को बताने  में बिलकुल संकोच ना करे. इसे गंभीरता से लेना चाहिए.

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शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

सावधानी रखिये



अभी हाल में अखबार में एक समाचार छापा था कि गुरुग्राम (हरियाणा) में एक परिवार के दो छोटे बच्चे रात को दूध पीकर सोये थे जो सुबह मृत पाए गए. अनजान  कारण की खोज करने पर पाया गया कि फ्रिज में रखे हुए दूध के बर्तन में एक जहरीले सांप का मरा हुआ बच्चा था, ये सांप का बच्चा कहाँ से आया होगा?  इस बारे में तफसील से जांच करने के बाद ये मालूम हुआ कि उसी फ्रिज में हरी पत्तियों वाली सब्जी भी रखी गयी थी, जिसके साथ सांप का बच्चा भी आ गया होगा और रेंगते हुए दूध के बर्तन में जा गिरा होगा. ये असावधानी पीड़ित परिवार के लिए बड़ी त्रासदी बन कर रह गयी.

बरसात के दिनों में ऐसे बहुत से विषैले कीट हरी सब्जियों में छुपे रहते हैं, इसीलिये इन दिनों में हरी पत्ती वाली सब्जियों को खाना बर्जित कहा गया है. थोड़ी सी असावधानी बड़े दुःख का कारण बन सकता है. खाने-पीने की वस्तुओं में बाहरी प्रदूषण तो हानिकारक होए ही हैं पर जहरीले कीट व नालियों में छुपे हुए काक्रोच भी बीमारियों के कारक हुआ करते हैं. रसोई में अकसर घरेलू छिपकली घुस आती है, इन्ही दिनों वह ओने-कोनों में अंडे-बच्चे भी दिया करती है. कहते हैं कि छिपकली द्वारा काटे जाने पर जहर नहीं लगता है लेकिन इसकी त्वचा में जहरीला पदार्थ होता है. इस कारण भी अनेक दुर्धटनाएं हुआ करती हैं. अत: भोज्य पदार्थों को हमेशा ढककर रखना चाहिए.

अगर आप अपने जूते घर के बाहर बरामदे रखा करते हैं तो उनको पहनने से पहले सावधानीपूर्वक चेक कर लें कि उनके अन्दर जहरीली मकडी, बिच्छू, मिलीपैड, सांप या अन्य कोई खतरनाक कीड़ा ना छुपा हो.

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मंगलवार, 10 जुलाई 2018

यादों का झरोखा -२९ स्व. कांतिप्रसाद गौड़. (अध्यापक)



सन १९६१-६२ में लाखेरी एसीसी मिडिल स्कूल में करीब एक दर्जन जूनियर टीचर्स भरती किये गए थे, तब ये स्कूल हेडमास्टर स्व. गणेशबल भारद्वाज जी के नेतृत्व में अपने चरमोत्कर्ष पर था लगभग ३५ अध्यापक व ३२०० विद्यार्थी इससे सम्बद्ध थे. बूंदी जिले का ही नहीं पूरे राजस्थान प्रांत में ये एक उत्कृष्ट प्रतिष्ठान के रूप में जाना जाता था. इन एक दर्जन टीचर्स में शम्भूप्रसाद वर्मा, देवकिशन वर्मा, अत्तरसिंह, उदयसिंह जग्गी, शमशुद्दीन व कांतिप्रसाद गौड़ आदि थे.

स्व. कांतिप्रसाद के जीजा स्व, दयाकिशन शर्मा माइंस में सुपरवाइजर हुआ करते थे, दयाकिशन जी के बड़े भाई स्व. नंदकिशोर भारतीया भी तब क्वारी में क्लर्क के पद पर थे, बाद में विभागीय परिक्षा पास करके फोरमैन बने थे; रिटायरमेंट के समय वे कैमला माइंस में कार्यरत थे. ८० के दसक में दयाकिशन शर्मा रिजाइन करके ऊंचे पद+वेतन पर मिर्जापुर चले गए थे. अपने इन्ही रिश्तेदारों के स्रोत से कान्तिप्रसाद लाखेरी आये थे.

स्व. कांतिप्रसाद से मेरी नजदीकी तब हुयी जब वे सन १९७५ में यूनियन के चुनावों में अध्यापकों के प्रतिनिधि के रूप में चुन कर आये थे और उनको संगठन का ट्रेजरार बनाया गया था और उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी. वे बहुत दिलेर व स्पष्टवादी व्यक्ति थे, आपातकाल/ संकटकाल में उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया. बाद में जब कंपनी द्वारा स्कूल का पराभव किया जाने लगा तो उन्होंने भी VRS  ले लिया और अपने गाँव (जिला बुलंद शहर) चले गए. उनके तीन बेटे थे सबसे बड़े संतोष उर्फ़ धीरेन्द्र कौशिक (अब स्वर्गीय) कैमोर इन्जीनियरिंग इंस्टीच्यूट से टेकनीशियन कोर्स करके गागल फैक्ट्री में पोस्टिंग में आ चुका था. सर्विस में रहते हुए ही उसका विवाह भी कर दिया था, बारात सवाईमाधोपुर रेलवे कालोनी में गयी थी, मैं भी उसमें शामिल था.

समय अपनी गति से भागता रहता है और हम लोग गुजर गए लोगों को धीरे धीरे भूलते चले जाते हैं. सं १९९७ में धीरेन्द्र ने खुद प्रयास करके लाखेरी स्थानातरण करवा लिया वह अपनी पत्नी तथा दो बच्चों के साथ सामान सहित सीधे मेरे क्वाटर G-23 में आ धमाका था क्योकि मैनेजमेंट ने इसी शर्त पर उसका स्थानान्तरण स्वीकार किया था कि क्वाटर नहीं दिया जाएगा (नए कारखाने के निर्माण के लिए बाहर से आये बहुत लोग लाखेरी में थे).

मैं तब यूनियन प्रेसिडेंट था, एक तरफ उसके पिता से पुराने रिश्ते थे और दूसरी तरफ धीरेन्द्र की होशियारी कि ‘अंकल के ही घर रहेंगे, वही व्यवस्था करेंगे.’  तब प्लांट हेड श्री पी.के.काकू थे मैंने उनको अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने एक अबैनडेंट लेबर क्वाटर की रिपेयर करवाकर उसे अलाट कर दिया था.

सन २०१६ को जब मेरा लाखेरी जाना हुआ तो धीरेन्द्र मिला था वह तब कालोनी में किसी एल टाइप में रह रहा था ऐसा उसने बताया था. परसों जब लाखेरी से सूचना आई कि धीरेन्द्र कौशिक का रेलवे स्टेसन पर एकसीडेंट में निधन हो गया है  तो फेसबुक पर मित्रों को सूचित करने के लिए मुझे शोक में शब्द नहीं मिल रहे थे.

मृत्यु एक शाश्वत सत्य है पर अकाल मृत्यु पर अपार दुःख होता है लाखों के लाखेरियंस ग्रुप के सभी सवेदनशील लोगों ने उसके आकस्मिक निधन पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. उसके बच्चे अब सयाने हो गए हैं पर पिता की कमी तो हमेशा रहेगी ही. इस दुःख की घड़ी में उनको हिम्मत रहे ये भगवान् से प्रार्थना करता हूँ.

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गुरुवार, 5 जुलाई 2018

यादों का झरोखा - २८ श्री सुरेन्द्र कुमार शर्मा (सिन्दु मास्साब)



लाखेरी में मेरे शुरुआती दिनों में अर्थात सन १९६० में जिन बुजुर्ग लोगों का हाथ मुझे आशीर्वाद देने के लिए उठाता था उनमें स्व. आर.डी.शर्मा (पावर हाउस में शिफ्ट इंजीनियर) भी एक थे. वे तब जी टाईप क्वाटर नंबर ८ या ९ में रहते थे, पड़ोस में पंडित शिवनारायण तिवारी (कंपाउंडर) थे शायद इसी नाते मेरा भी उनसे परिचय हुआ था. शर्मा जी बहुत ही मीठा बोलते थे पर मुझे बाद में उनके बड़े सुपुत्र स्व. गौरी शंकर शर्मा (मेरा घनिष्ट होने पर) ने मुझे बताया था कि बाबू जी घर में हिटलरी अंदाज में रहा करते थे. वे तब उनके रिटायरमेंट के करीब थे. उनके चार पुत्र गौरी शंकर, सुरेंद्र कुमार, त्रिलोकीनाथ और राजकुमार थे और सभी से मेरा मिलना जुलना था. भाई गौरी से मेरी विशिष्ट मित्रता यो भी हुई कि वे भी शेरो-शायरी व तुकबंदी किया करते थे. उन्होंने  इलेक्ट्रिसिटी पर एक छोटी किताब भी अपने नाम से प्रकाशित की थी जिसकी एक प्रति मुझे भी भेंट की थी जोकि आज भी मेरे बुकसेल्फ़ में मौजूद है.

स्व. गौरी शंकर को उत्तर पूर्वी रेलवे के इलाहाबाद जोन में क्लर्क की नौकरी मिल गयी थी. दुर्भाग्यबस कुछ समय बाद वे स्नायु संबंधी एक रोग से ग्रस्त हो गए थे उसमें पूरा शरीर कम्पन में आता था, वे लिखने के काम में असमर्थ हो चले थे पर रेलवे के उनके सहकर्मियों ने उनको तब तक निभाया, जब तक उनके लडके सयाने नहीं हुए. मेरी जानकारी में है कि उनका एक सुपुत्र अभी भी रेलवे के इलाहाबाद रेंज में सीनियर टी.टी.ई के पद पर कार्यरत है.

श्री सुरेन्द्र मास्साब को लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल से निकले सभी स्टूडेंट्स ‘सिन्दु मास्साब’ के नाम से जानते हैं लम्बे समय तक फीजिकल ट्रेनिंग/ स्पोर्ट्स/ एन.सी.सी टीचर अथवा लेक्चरार के रूप में वे लाखेरी हायर सेकेंडरी में रहे. मैं सुनता था की वे अध्यापकों व छात्रों की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहा करते थे. मेरा उनसे कोई सीधा कार्य-व्यवहार नहीं था पर वे मुझे हमेशा ‘भाई साहब’ के रिश्ते से संबोधित किया करते थे. वे कुछ साल पहले रिटायर हो चुके हैं, लाखेरी रेलवे स्टेसन के सामने कोटा रोड पर उन्होंने बहुत पहले ही अपना आशियाना बना लिया था. अब वे अपने जीवन के तीसरे प्रहार में परिवार के मुखिया की भूमिका में होंगे. पर मुझे बताया गया है कि वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका अदा किया करते हैं. पिछले बर्षों में एक दुःखदाई घटना जरूर उनके परिवार में हुई कि उनका एक पुत्र असमय स्वर्गवासी हो गया. जीवन मृत्यु ऊपर वाला तय करता है, संसार का नियम है कि एक दिन सब को जाना होता है. हमारी संवेदना है.

अभी पिछले महीने गाजियाबाद से उनके छोटे भाई श्री त्रिलोकीनाथ का मैसेज अप्रत्याशित रूप से फोन पर मुझे मिला, उनकी कुशलक्षेम जानकार खुशी हुयी. त्रिलोकीनाथ यु.पी. में नरोरा परमाणु संस्थान में मुलाजिम थे अब रिटायर होकर अपने बच्चों के साथ सैटिल हो गए हैं, उन्होंने ह्वाट्स अप पर मुझे अपनी ताजी तश्वीर भेजी तो मुझे उनका वह किशोर रूप नजर आया जो कि एसीसी मिडिल स्कूल में पढ़ते समय था. त्रिलोकीनाथ से संपर्क करने में कोटा से उनके सहपाठी? श्री अनिल कुलश्रेष्ठ के सूत्र काम आये हैं.

फेसबुक पर बिछुड़े हुए लाखेरियंस को आपस में जोड़ने का माध्यम मुकुल वर्मा (हाल चांदा में कार्यरत) द्वारा बनाए ग्रुप ‘लाखों के लाखेरियन’ का बड़ा योगदान रहा है.

सिन्दु मास्साब को ‘जीवेत शरत: शतम’ की शुभकामनाओं के साथ इन यादों के झरोखे के इपिसोड बंद कर रहा हूँ; पर सभी मित्रों से अनुरोध करना चाहता हूँ की अपने अनुभव व कमेंट्स लिखने में कंजूसी ना करें. अपने निजी फोटो व सन्देश भी हम सबसे साझा किया करें.

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बुधवार, 6 जून 2018

यादों का झरोखा - २६ स्व.पंडित गजानंद 'सखा'



स्व. पंडित गजानंद ‘सखा’ (तिवारी) लाखेरी के इतिहास में एक अमर व्यक्ति हैं. वे ब्रह्मपुरी में निवास करते थे और एसीसी कालोनी के लगभग सभी हिन्दू घरों में उनकी आवक थी. वे सत्यनारायण भगवान् की पूजा+कथा एक विशिष्ठ शैली (राधेश्यामी तर्ज) में  हारमोनियम+ढोलक+मंजीरों की संगीतमय मनमोहक अंदाज में किया करते थे.

जैसा कि सत्यनारायण की कथा के सन्दर्भ में कहा गया है कि एकादशी, पूर्णिमा, अमावास या कोई मनभावन दिन ब्रत रख कर पूजन किया जा सकता है. विशेष रूप से बेटा-बेटी के व्याह के बाद इनकी पूजा पारंपरिक अनुष्ठान की तरह की जाती है. कथा वाचक तो और भी थे पर सखा जी की बात अलग ही थी. उनकी रसीली बुलंद आवाज आज भी श्रोताओं के दिलों में बसी हुयी है.

सखा जी को स्वर्गवासी हुए दो साल से अधिक समय हो चुका है. मैं सन २०१४ में आख़िरी बार उनसे मिलने उनके घर पर अपने साथी श्री रामस्वरूप गोचर के साथ गया था तब ये सोचा भी नहीं था कि मुलाक़ात आख़री होगी. मैं उनकी वाणी में रिकार्डेड सत्यनारायण भगवान् की कथा का टेप लेने के ख़ास उद्देश्य से गया था जो उनके बताये अनुसार नगरपालिका भवन के सामने एक दूकान पर मात्र ३५ रूपये कीमत पर मिल भी गया. इस अमूल्य टेप को मैं अपने घर पर आज भी गाहे-बगाहे सुनकर आनंदित होता हूँ.

सखा जी से मेरी मित्रता सन १९६० में ही हो गयी थी तब वे बाटम रेलवे फाटक के पास एक पक्के खोमचे में पान की छोटी सी दूकान चलाया करते थे. यहीं से उनकी पंडिताई भी चलती थी. बाद के बर्षों में कंपनी ने इसे अपना रिजर्व एरिया बता कर खाली करवा लिया था. अब यहाँ फल-फ्रूट, सब्जी का बाजार सजता है.

सखा जी एक साफ़-सुथरी संस्कारी व्यक्ति थे मैंने उनसे ये कभी नहीं पूछा कि राधेश्यामी तर्ज पर कथा+पूजा करना कब और कहाँ सीखा था? मुझे किसी ने अपुष्ट तौर पर बताया था कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों में उनको जेल जाना पडा था, जहां उनको कोई गुरु मिला, जिसने उनको ये विद्या दी थी. ये कितना सच है मैं कह नहीं सकता हूँ.

राधेश्यामी तर्ज के बारे में भी मैं अपने पाठकों को बताना चाहता हूँ कि बरेली, उत्तर प्रदेश में एक महान संगीतकार + नाटककार पंडित राधेश्याम शर्मा (१८९०-१९६३) हुए हैं जिन्होंने अल्फ्रेड कंपनी से जुड़कर वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि दर्जनों संगीतमय नाटक/रचनाएँ लिखी और उनके सफल मंचन भी हुए. पर राधेश्याम जी को ज्यादे प्रसिद्धि मिली उनके द्वारा पद्यबद्ध संगीत वाले ‘रामायण’ से. आज भी समस्त उत्तर भारत में में जो रामलीलाएं खेली जाती हैं उनमें राधेश्यामी तर्ज पर दोहे व चौपाइयां गाई जाती हैं.     

सखा जी के कोई पुत्र नहीं था, तीन विवाहित बेटियाँ थी/हैं. बाद के बर्षों में उन्होंने अपना एकाकीपन ईश्वर को समर्पित  करके ब्रह्मपुरी के आगे लाकडेश्वर महादेव नाम से एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बना कर पूरा किया.

उनके भजन के श्वर : “लेते जाओ रे हरी का नाम थोड़ा थोड़ा; दौड़ा जाए समय का घोड़ा......” आज भी वातावरण में गूँज रहे हैं.

हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

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शनिवार, 2 जून 2018

न्यूनता का अहसास (एक बोध कथा)


अश्वमेध यज्ञ करने के पशचात भी राजा धमाल को लगता था कि उसके चक्रवर्ती होने में अभी भी कुछ कमी रह गयी. उसके राज्य की सीमा में एक दुरूह शिखर था, जिस पर अपने नाम का शिलापट्ट सुशोभित करने का विचार मन में आया तो अपने दरबारी नवरत्नों को लेकर पैदल ही शिखर पर चढने लगा. बहुत संकीर्ण पथरीले मार्ग से कष्टपूर्वक जब वह चोटी पर पहुचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वहा उपलब्ध समस्त शिलाखंडों पर पहले से ही अनेक विभूतियों के नाम खुदे पड़े थे. जिस मुकाम पर वह आज पहुचा था वहाँ हजारों हजारों साल पहले से ही उन महामानवों के कीर्ति में शिलाखंड विराजमान थे.

उसका अभिमानी मन तड़प उठा, उसने कारिंदों को आदेश दिया कि “सबसे बड़े शिलापट्ट को मिटाकर तथा नए ढंग से तराश कर अपना नाम लिख दिया जाय.”

नवरत्नों में से एक भविष्यदर्शी – बुद्धिमान मंत्री ने रोकते हुए कहा “आप जो करने जा रहे हैं वह एक घातक परम्परा होगी क्योंकि भविष्य में भी कोई चक्रवर्ती राजा अवश्य पैदा होगा जो आपके नाम के शिलापट्ट को तराश कर अपना नाम लिखवाकर खुश होगा. इसलिए आप अनुचित परम्परा मत डालिए.”

राजा धमाल को तुरंत अपनी न्यूनता का अहसास हो गया.

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शनिवार, 19 मई 2018

यादों का झरोखा २४ स्व. डी.आर.वर्मा अकाउंटस क्लर्क



मैनेजमेंट को कोयला तथा अन्य रॉमैटीरियल अनलोड करने व सीमेंट डिस्पैच करने के लिए रेलवे स्टाफ से बहुत मतलब पड़ता है, क्योंकि नियमों के अंतर्गत डेमरेज का प्रावधान बहुत भारी पड़ता है. मालबाबूओं से लेकर स्टेसन पर तैनात स्टाफ को सुविधा शुल्क देकर खुश रखना होता है.

स्व.हरिभाई देसाई रेलवे से डीलिंग अथवा छीजत की क्लेमिंग में माहिर थे वे बर्षों से ये काम करते आ रहे थे. उनके रिटायरमेंट के बाद जो वैक्यूम हुआ उसे भरने के लिए शिवालिया (गुजरात) प्लांट के मार्फ़त एक रेलवे मैंन  को ही VRS दिलवाकर नई नियुक्ति दी गयी, वह थे स्व. दीप्तिप्रसाद वर्मा जो रेलवे के नियम कायदों से वाकिफ थे और डेमरेज से बचने के तरीकों के जानकार थे.

मेरा उनसे शरुआती परिचय अपनी लैबोरेटरी में एक डाईबिटिक के रूप में हुआ था. वे हरिद्वार के गायत्री मिशन से जुड़े हुए थे सन १९८२ या ८३ में लाखेरी में ही गायत्री परिवार का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें उपस्थित लोगों से कहा गया कि ‘अपनी कोई बुरी आदत छोड़ने का संकल्प करें.’ मैं तब कभी कभी धूम्रपान किया करता था, मंच के आह्वान पर मैंने तब उस बुरी आदत को छोड़ने का संकल्प किया और आज तक उस पर कायम हूँ. प्रोत्साहित करने के लिए मैं वर्मा जी का आभार मानता हूँ.

सन १९९० में जब मुझे G-23 क्वाटर अलाट हुआ तो पड़ोसी के रूप में वर्मा जी का परिवार मिला. लगभग आठ साल तक हम अगल बगल रहे, जब तक कि वे रिटायर नहीं  हुए.

वर्मा जी सामाजिक व्यक्ति थे बाटम कालोनी में जो शिव मंदिर बना उसमें उनका भी अथक प्रयास शामिल है.

वे हमारे होलिकोत्सव में में भी रूचि लेते थे, मुझे याद है कि एक बार हमने उनको सम्मेलन की अध्यक्षता से भी नवाजा था. एक समय वे कमेटी के सक्रिय सदस्य रहे पर एक छोटी सी बात पर उन्होंने उसे छोड़ दिया था. हुआ यों कि हम लोग जिनमें प्रमुख शिवदत्त शर्मा जी, वी.एन.शर्मा जी, केशवदत्त अनंत जी, फेरुसिंह रूहेला जी, वर्मा जी और एक मैं, होली के कार्यक्रम को जायकेदार बनाने के लिए महीने भर पहले से मीटिंग किया करते थे, मीटिंग बारी बारी से सबके घर पर होती थी जहां खिलाई-पिलाई के अलावा हँसी-ठठ्ठा व गण्यमान्य लोगों के लिए उपाधियों का चयन होता था. हम लोग खुद पर भी हँसने का मसाला तैयार करते थे. जब वर्मा जी के क्वाटर पर मीटिंग हुई तो श्रीमती वर्मा ने कद्दू के पकोड़े सर्व किये. पकोड़े स्वादिष्ट थे तो उस साल वर्मा जी को ‘कद्दू का पकोड़ा’ की उपाधि से नवाजा गया. बहुत हल्की फुल्की मजाक थी; पर इस पर श्रीमती वर्मा की नाराजी के चलते वर्मा जी अगले बर्षों के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए.

इससे पूर्व उनके परिवार के साथ एक दुखद हादसा घटित हुआ कि स्कूल बस छोटे बच्चों को लेकर कहीं बाहर गयी थी जो पलट गयी और तीन या चार बच्चे नीचे दब गए थे उनमें वर्मा जी का भी मझला बेटा था. जिसकी  शोकपूर्ण दर्द परिवार के साथ रहा, स्वाभाविक है. कहते हैं कि पुत्रशोक सबसे बड़ा शोक होता है.

वर्मा जी की बेटी दुर्गेश वनस्थली विद्यापीठ में पढ़ कर अध्यापिका हो गयी थी अभी शायद अपने परिवार के साथ कोटा में सैटिल्ड है. बड़ा बेटा प्रिय हरीश MCA करके बहुत अच्छे पॅकेज में कार्यरत हो गया था, छोटा प्रिय लालू उर्फ़ प्रवीण भी IT में ग्रेजुएसन करके अच्छे नौकरी में है, दोनों भाई आजकल हैदराबाद में कार्यरत हैं. अपने परिवारों के साथ  संपन्न हैं, गत बर्ष फेसबुक पर दोनों भाई मेरे संपर्क में आये तो कुशल क्षेम पूछी थी. श्रीमती वर्मा अपने बच्चों के साथ ही हैं.

वर्मा जी ने रिटायरमेंट के बाद कोटा में महावीर नगर एक्सटेंसन में एक बना बनाया घर खरीद लिया था, रिटायरमेंट के बाद मैं भी करीब डेढ़ साल कोटा में अपने बेटे पार्थ के साथ रहा था, तब लाखेरी के सभी मित्रों, सुहृदों से मिलता रहता था, मैं वर्मा जी के घर भी गया, वहीं पास में ब्रजमोहन घमंडी जी और महेंद्र शर्मा का भी घर था, २००१ की एक मनहूश सुबह महेंद्र शर्मा जी का फोन आया कि “वर्मा जी का हार्ट अटैक से देहावसान हो गया है”. इस प्रकार उनके पार्थिव शरीर को कंधा देकर भी मैंने अपनी श्रधांजलि दी.

वर्मा जी के ससुर (नाम मै भूल रहा हूँ) सरनेम शायद  कश्यप था आगरा के रहने वाले थे, रेलवे में टी.टी. थे, रिटायरमेंट के पश्चात अकसर लाखेरी आया करते थे, बहुत संवेदनशील व्यक्ति थे, वर्मा जी के अंतिम संस्कार में भी वे उपस्थित थे. उन्होंने इस परिवार को दुःख की घड़ी में बहुत सम्हाला था.

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गुरुवार, 17 मई 2018

यादों का झरोखा - २३ स्व. पंडित रामकिशोर शर्मा (पैकिंग हाऊस)



पंडित रामकिशोर शर्मा पैकिंग हाऊस में फिटर हुआ करते थे, माथे पर तिलक-रोली-चन्दन व रामनामी अंगोछा उनकी पहचान होती थी, डिपार्टमेंट में शुभ मुहूर्त की पूजा, दीपावली पर लक्ष्मी पूजा या विश्वकर्मा की पूजा उनके ही  हाथों कराई जाती थी. वे गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे अपनी ड्यूटी निष्ठा पूर्वक किया करते थे इसलिए उनके अधिकारियों के प्रिय भी थे.

मेरा उनसे ज्यादा संवाद नहीं था पर प्रारम्भ में कोआपरेटिव सोसाइटी  व बाद के बर्षों में युनियन के कार्यकलापों में बहुधा सामना हो जाया करता था. सन १९७० से पहले हम एक त्रैमासिक पत्रिका ‘लाखेरी सन्देश’ निकाला करते थे उसमें स्थानीय रचनाकारों की कृतियाँ, समाचार व मनोरंजक जानकारियाँ हुआ करती थी. पंडित रामकिशोर जी ने एक लम्बी तुकबंदी वाली कविता ‘राजा और रानी’ शीर्षक से लिखी, मुझे दी थी जो किसी अंक में छपी भी थी वह रचना अब मुझे याद तो नहीं रही पर उसकी एक पंक्ति अक्सर मेरे जुबान पर रहती है:
‘खांसी सब रोगों की रानी, हांसी सब झगड़ों की रानी.’
ये बात अब इतने बर्षों के बाद याद यों आई है कि उनकी एक पौत्री सौभाग्यवती सीमा जोशी ने मैसेंजर पर मुझसे संपर्क किया और पूछा “ मेरे दादा रामकिशोर शर्मा और मेरे नाना उच्छवलाल शर्मा जी के बारे में भी आपकी स्मृति में कोई यादगार बात है?” लाखेरी की मेज नदी में तब से अब तक लाखों नहीं करोड़ों टन पानी बह चुका है और मैं भी अपने हंसी-खुशी, झंझावातों के चलते अब अस्सीवे बर्ष में प्रवेश कर चुका हूँ, ऐसे में उन दोनों मूर्तियों का अपनी आँखें बंद करके साक्षात्कार करने लगा तो पैकिंग प्लांट में ही कार्यरत स्व. उच्छ्वलाल शर्मा की मुस्कुराती हुयी चित्रावली सामने आ गयी, उनकी विशिष्ठ पहचान थी कि उनके होंठों पर ल्यूकोडर्मा के निसान थे, मैंने सीमा को बताया कि बाकी उनके जीवन चरित्र के बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है सिवाय इसके कि वे लाखेरी ब्रह्मपुरी के निवासी थे. पंडित रामकिशोर शर्मा भी पहले पुरानी बसावट में रहते थे, बाद में उन्होंने गांधीपुरा में तेजा जी मंदिर के सामने अपना आशियाना बनाया था. तीन साल पहले सर्दियों में अपने कोटा प्रवास के दौरान में अपने पुत्र डा. पार्थ के साथ सिर्फ मिलने जुलने के लिए जब दिनादिनी लाखेरी गया था तो फैक्ट्री व बाजार होते हुए लाखेरी के रास्ते में गांधीपुरा प्रिय देवेन्द्र झा के घर पंहुचा  तो सयोग से वहां पूजा पाठ चल रही थी और पुरोहित थे झा के पहले पड़ोसी पंडित रामकिशोर जी. उन्होंने मुझसे एक दिन रुकने का आग्रह किया पर मुझे उसी दिन वापस आना था, तब ये मालूम नहीं था कि उनसे वह आख़िरी मुलाक़ात थी. कुछ महीनो/ बर्ष के अंतराल में उनका देहावसान हो गया था जिसकी सूचना किसी मित्र ने फेसबुक के माध्यान से मुझे दी और मैंने इसी स्तम्भ में उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी.

रामकिशोर जी के एक पुत्र श्री कृष्णकुमार शर्मा लाखेरी की नगरपालिका में कार्यरत थे जो अब रिटायर हो चुके हैं, सीमा जोशी इनकी ही सुपुत्री है. दूसरे पुत्र श्री जी.के.शर्मा मेरे फेसबुक मित्रों की सूची में हैं, वे राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय में OSD-help line tech. & communication  के पद पर कार्यरत हैं.

श्रीमती (अब स्वर्गीय) रामकिशोर शर्मा कई बार अस्वस्थता की वजह से हमारे अस्पताल में आती थी, यों मेरा सभी माता-बहनों से परिचय भी हो जाता था. इस नश्वर संसार की रीत यही है कि सभी पेड़ों पर एक एक करके सभी पुराने पत्ते गिरते रहते हैं और नए पत्ते आते रहते हैं. सही कहा गया है कि ‘ये जिन्दगी के मेले कभी ख़तम ना होंगे....’

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रविवार, 13 मई 2018

यादों का झरोखा - २२ स्व. एन.एम्.जोबनपुत्रा



रोजगार की तलाश में आदमी कहाँ से कहाँ पहुच जाते हैं, स्व. नीतिचंद्र मणिलाल जोबनपुत्रा गुजरात के रहने वाले ग्वालियर की जे.बी.मंघाराम बिस्कुट फैक्ट्री में मुलाजिम थे और किसी नजदीकी सूत्र के माध्यम से १९५४ में अपनी पत्नी व बालक दिलीप को साथ लेकर लाखेरी एसीसी में बतौर क्लर्क नियुक्त हो गए थे. लगभग २२ बर्ष तक काम करने के बाद सिंदरी कारखाने के लिए उनको प्रमोशन देकर असिस्टेंट स्टोर कीपर का आफर दिया गया; मैं तब यानि १९७६ में कामगार संघ का जनरल सेक्रेटरी था वे बहुत पशोपेश में थे अंत में सिन्दरी जाने का निश्चय उन्होंने कर ही लिया.

उन दिनों क्लेरिकल स्टाफ के लिए जो नामिक्लेचार लागू था उनमें चौथे ग्रेड के बाद कोई ओपनिंग उनके लिए नहीं थी आगे चलकर सन १९७९ में नए अर्बिट्रेसन अवार्ड तैयार करते समय  नामेंक्लेचर में भी बदलाव के लिए श्री जी.एल.गोविल और फेडरेसन के जनरल सेक्रेटरी स्व. मोईनुद्दीन (डालमियाँपुरम के लीडर) की कमेटी बनी थी संयोग से फाईनल के दिन मैं और भाई इब्राहीम हनीफी वहां पहुच गए थे और हमने अपने हाथों से तैयारसुदा कागजों में सुधार करवाया था जिसके अनुसार क्लेरिकल स्टाफ के लिए सातवीं ग्रेड तक ओपनिग दी गयी.

लाखेरी अकाउन्ट्स आफिस में पुराने धुरंधर लोगों की जमात थी जिनमें केशवदत्त अनंत, हरिभाई देसाई, सुवालाल व्यास, लखनलाल वर्मा, पाठक बंधु नंदकिशोर और मदनगोपाल, लाला भगवतीप्रसाद कुलश्रेष्ठ, शरदकुमार तिवारी व जोबनपुत्रा थे. स्व.जे.पी गुप्ता अकाउंटेंट थे. स्व.   
शिवप्रशाद शर्मा तब CTK थे, वी.एन शर्मा और अमीन पठान टाईमकीपर हुआ करते थे. बहुतों के नाम में अब शायद भूल भी रहा हूँ. जोबनपुत्रा ‘cost cabin ’ में बैठते थे उसे गोपनीय टेबुल माना जाता था.   

इकहरे बदन के जोबनपुत्रा हमेशा खुशमिजाज नजर आते थे यारबाज भी थे स्व.पी.बी.दीक्षित (तब कैमिस्ट), जोबनपुत्रा, अमृतराय. रक्षपाल शर्मा, मथुराप्रशाद बर्नर, शरदकुमार तिवारी आदि की एक हमप्याला मित्र मंडली भी चर्चित थी. जी टाईप के सामने श्रीपत चौक पर जो बड़ा पीपल का पेड़ है उसके सामने वाले एल टाईप क्वाटर में उनका आशियाना हुआ करता था.

लाखेरी से सिंदरी जाते समय उनके दो बेटे व तीन बेटियों का परिवार विस्तार हो चुका था.बड़ा बेटा दिलीप व अतुल दोनों ने कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से ट्रेनिग करके क्रमश: द्वारका व पोरबंदर कारखानों में नियुक्ति पाई ये उन कारखानों के बिकने/ बंद होने तक वहाँ रोजगार में भी रहे, बेटियाँ तीनों विवाहित हैं, सबसे छोटी ममता जिसने एलन गोंसाल्विस (पुत्र स्व. फ्रांसिस गोंसाल्विस फोरमैन MVD  लाखेरी ) से प्रेम विवाह किया और वे दोनों ही फेस बुक पर हमारी मित्रों की लिस्ट में हैं. एलन भी कैमोर ट्रेंड है, एसीसी के कई कारखानों में काम करते हुए गुजरात से खाडी देश में कहीं काम करके वापस अहमदाबाद में सैटिल हैं, इनके बच्चे शिक्षा पाकर अच्छे जॉब में लगे हुए हैं. ऐसा ममता से संवाद करने पर मालूम हुआ है.

नीतिचंद्र जोबनपुत्रा लाखेरी से जाने के तीन साल बाद ही स्वर्ग सिधार गए थे लाखेरी में तब ये दुखद समाचार आया था कि शराब ही उनकी आकस्मिक मौत का कारण बनी थी. सुन्दर देहयष्टि वाली श्रीमती जोबनपुत्रा ने बच्चों को पति की अनुपस्थिति में बड़ी मेहनत से पाला पोसा है. अब तो दिलीप भी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. सन २०१२ में श्रीमती जोबनपुत्रा का भी स्वर्गवास हो गया, इन लोगों को लाखेरी छोड़े हुए ४२ वर्ष हो गए हैं पर लगता है कि कल की सी बात है. समय जरूर अपने निसान पीछे छोड़ जाता है.

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शुक्रवार, 11 मई 2018

यादों का झरोखा २१ स्व. लाला जमादार.



मुसलमानों में वर्ण व्यवस्था नहीं होती है लेकिन अपने गोत्र अथवा पेशे के अनुसार पहचान बनाए रखने के लिए नाम के साथ उपनाम का चलन हिन्दू समाज का प्रभाव अथवा कन्वर्सन रहा है. लाला जमादार भिश्ती थे; भिश्ती को बहिश्ती का अपभ्रंश कहा जाता है. बहिश्त का अर्थ फारसी में जन्नत होता है पर अब इस समुदाय के लोग अब्बासी कहलाना पसंद करते हैं.

लाखेरी में गरमपुरा तथा बाटम के सिंगल रूम क्वाटरों में अलग से पानी के नल नहीं हुआ करते थे लोग सार्वजनिक नलों से पानी भरते थे अथवा भिश्ती चमड़े के मशक भर कर लाते थे और टंकियों में डाल जाते थे. सर्विस शौचालयों व नालियों को धुलवाने का काम भी भिश्तियों के जिम्मे होता था. बाटम में सैनिटेसन डिपार्टमेंट के ग्वाले/ गूजर केन भर कर लाते थे.

सेनीटेसन बिभाग में इन्स्पेक्टर के अलावा ६० से अधिक कामगार कार्यरत थे, काम की देखरेख के लिए दो जमादार यानि मेट भी थे, लाला जमादार बड़ा कर्मठ और जिम्मेदार व्यक्ति थे. मैंने लाला के अब्बू जलेब को गरमपुरा डिस्पेंसरी में काम करते हुए भी देखा था वे दुबले पतले थे आदिवासियों की तरह रहते थे. तब कामगारों को ड्रेस नहीं मिलती थी. लाला के अलावा उनका दूसरा बेटा कल्लू व तीसरा असनाद कारखाने में मजदूर थे. लाला जमादार का बड़ा बेटा अब्दुल खलील इलेक्ट्रीशियन कैमोर ट्रेंड थे जो बाद में एसीसी छोड़कर अन्यत्र खाडी देश चला गये. छोटे नजर मोहम्मद को उन्होंने एवजी में काम पर लगवा दिया था मझला हमीद सरकारी स्कूल में लाइब्रेरियन के बतौर कार्यरत था/है.

कंपनी ने गैरउत्पादक विभागों में कर्मचारियों की संख्या धीरे धीरे कम करने की प्रक्रिया प्रथम वेज बोर्ड लागू करने के साथ ही कर दी थी, नब्बे के दसक जब पूरे कारखाने की कायापलट हुयी तो सेनीटेसन विभाग पूरी तरह ठेकेदारी माध्यम से चलाया जाने लगा.  सेनीटरी इंस्पेक्टर स्व. लखनलाल वर्मा के बाद श्री बी.एन.शर्मा के असिस्टेंट के बतौर लाला जमादार ने अपनी पूर्णकालिक ड्यूटी अंजाम दी, जो अब इतिहास बन गया है.

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यादों का झरोखा २० -स्व. मक्खनलाल शर्मा (डीजल फोरमैन)



एसीसी के शुरुआती बर्षों में आगरा से अनेक कारीगर लाखेरी रोजगार की तलाश में आये थे अथवा बुलाये गए थे. तब आज की तरह कोई आई.टी.आई. या इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट आसपास नहीं थे ज्यादातर कर्मचारी अनुभव के आधार पर सीखे हुए थे. मक्खनलाल जी के पिता लक्ष्मीनारायण शर्मा कब और कैसे आगरा से अपना टेलरिंग का धंधा छोड़ कर लाखेरी आये मुझे उसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. मैंने तो उनको गान्धीपुरा रोड पर (कंपनी के बंगला नंबर ६ के ठीक पीछे) उनके अपने मकान में तब देखा था जब वे उम्र के चौथे पडाव में पहुँच चुके थे. वे एक छोटा सा वर्कशाप खोलकर पुराने टायरों की वल्कनाइजिंग व पंचर ठीक करने का काम खुद किया करते थे. लक्ष्मीनारायण जी के दो बेटे मिठ्ठनलाल व मक्खनलाल कंपनी में मुलाजिम हो गए थे. मिठ्ठनलाल उस जमाने में पालीटेक्निक किये हुए इंजीनियर थे, जिनकी लंग्स-  इन्फेक्सन के कारण अकाल मृत्यु हो गयी थी; उन्ही के बड़े बेटे राजेन्द्रकुमार शर्मा को एसीसी स्कूल में अध्यापक की नौकरी दी गयी, राजेन्द्र जी के एक छोटे भाई कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से ट्रेंड तथा छोटे जीतेंद्र व एक अन्य (नाम मैं विस्मृत कर रहा हूँ) कोटा में कहीं कार्यरत थे.

मक्खनलाल शर्मा डीजल मैकेनिज्म के माहिर व्यक्ति थे, मैंने उनको माइन्स में कार्यरत पाया था और वहीं से करीब ३५ बर्षों के सेवाकाल के बाद उनका रिटायरमें भी हुआ था. सन १९९५ में उनका स्वर्गवास हो गया था. मक्खनलाल शर्मा एक जीवट वाले फोरमैन थे माइन्स की बड़ी बड़ी अर्थमूवर्स मशीनों, डम्फरों, लोडर-टिप्पर मशीनों की पूरी तरह देखभाल उनके जिम्मे था.

वे बहुत उद्यमी थे उन्होंने ही लाखेरी में सर्वप्रथम एक फोटोस्टेट मशीन लगाकर नई तरह की सुविधा लोगों को उपलब्ध कराई थी अन्यथा ये सुविधा उन दिनों में केवल कारखाने के आफिस में हुआ करती थी. मुझे ठीक से याद नहीं है कि उन्होंने शायद PCO भी उन्होंने खोला था?

स्वभाव से जॉली, हमेशा व्यस्त रहने वाले मक्खनलाल जी का अपना भरापूरा परिवार था तीन बेटे और चार बेटियाँ
, सब को यथाशक्ति शिक्षा दी. फलत: बडा बेटा सुरेन्द्र शर्मा मुम्बई में किसी इंडस्ट्री में सीनियर पद पर, मझला वीरेन्द्र अहमदाबाद में तथा छोटा धीरेन्द्र आजकल डेनमार्क में कार्यरत हैं. बेटी सुधा (अब स्वर्गीय), कुसुम. बेबी और रानी है ऐसी मेरी जानकारी में है. इनमें से कुछ सदस्य फेसबुक पर मुझसे जुड़े हुए भी है.

डाक्टर देवदत्त शर्मा/ जयप्रकाश शर्मा के पिता स्व. हरिनारायण शर्मा (ब्लैकस्मिथ) और कोआपरेटिव सोसाइटी में कार्यरत सेल्समैन स्व. रमाकांत शर्मा रिश्ते में मक्खनलाल जी के सगे साढू होते थे.

TRT क्वार्टर्स में रहते हुए वे मेरे नजदीकी रहे थे, उनके परिवार से बहुत अपनापन मेरे परिवार को मिलता रहा था. वे सुनहरे दिन व स्नेहिल लोग अब बहुत पीछे छूट गए हैं.

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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

मेरा जन्मदिन

मेरे स्कूल सर्टीफिकेट में मेरी जन्म तिथि १ मई १९४० अंकित है, मेरे पिताश्री ने ना जाने कुछ अच्छा ही सोच कर एक साल कम करके १९३९ के बजाय १९४० लिखाया होगा, पर इस एक साल के अंतराल की वजह से मेरे जीवन की दिशा बदल गयी क्योंकि इण्टरमीडिएट पास करते ही मुझे तब ‘ग्राम सेवक’ के पद के लिए कॉल आ गया था, किन्तु उम्र पूरे अठारह नहीं होने से मुझे नौकरी का वह चैनल नहीं मिल सका था.

यह संयोग ही है कि हमारे देश में १ मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और मुझे आगे चलकर सीमेंट इंडस्ट्री में काम करते हुए सीमेंट कामगारों के ट्रेड यूनियन लीडर के रूप में मान्यता मिली तथा लगातार २५ वर्षों से अधिक समय तक अखिल भारतीय सीमेंट एंड अलाइड वर्कर्स फैडरेशन का पदाधिकारी रहा. उस दौरान मुझे प्रारम्भ में एटक के बड़े नेता स्व. श्रीनिवास गुड़ी (कर्नाटक),  इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. जी. रामानुजम, व फेडरेशन के अध्यक्ष स्व. एच.एन. त्रिवेदी, सी. एल.दूधिया, व भाई इब्राहीम हनीफी का सानिध्य प्राप्त हुआ था.

मेरे अध्यापक पिता अपने पांच भाइयों के बड़े परिवार में कनिष्ट थे. मुझे बताया गया था कि मेरे माता-पिता ने अपने विवाह के अनेक वर्षों के बाद अनेक मान्यताओं के बाद मुझे प्राप्त किया था इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उस बड़े परिवार का अप्रतिम लाड़-दुलार मुझे मिला. दादाजी को अवश्य मैंने नहीं देखा पर दादी की छत्रछाया मेरे १७ साल की उम्र होने तक हम पर रही.  यह एक सही कहावत है कि "यह वह दिन होता है जब माँ अपने बच्चे के रोने पर खुश होती है." यही सबके साथ होता होगा, पर मैं बहुत खुशनसीब रहा हूँ कि १९८० तक पिता का और १९९७ तक माताश्री का वरदछत्र मुझ पर व मेरे परिवार पर रहा. 

मेरी तीन छोटी बहिनें खष्टी, राधिका, सरस्वती, व सबसे छोटा भाई बसंत, सभी का स्नेह-आदर मुझे आज भी बचपन की तरह ही मिल रहा है, जबकि में अपनी उम्र के अस्सीवें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा हूँ.

हमारी तीनों संतानें चि. पार्थ, गिरिबाला और प्रद्युम्न अपने अपने परिवारों के साथ सुव्यवस्थित और खुश हैं; तथा सम्मानपूर्वक जीने की मेरी जीवन पद्धति के सहयोगी हैं.

मेरी अर्धांगिनी श्रीमती कुंती पाण्डेय उम्र में मुझ से लगभग ५ साल छोटी है, पर अक्ल में हमेशा मुझसे आगे रहती हैं, और अभी भी कदम से कदम मिलाकर चल रही है.

मैं पिछले कुछ समय से तमाम राजनैतिक उहापोह व चिंतन से दूर रहकर अपनी स्मृतियों को शब्द देने का काम कर रहा हूँ. लाखेरी, जहां मैंने ३५ वर्षों से अधिक समय तक निवास किया, अथवा लाखेरी के बाहर के असंख्य मित्र मेरी दिनचर्या में मानसिक परिदृश्य बनाकर मौजूद रहते हैं. मुझे मालूम है कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मेरे सभी मित्रों की शुभकामनाएं मेरे साथ हैं और मैं भी सभी के सुख और सौभाग्य की निरंतर कामना करता हूँ.
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रविवार, 22 अप्रैल 2018

यादों का झरोखा - १८ - स्व. कुंजबिहारी मिश्रा

स्व. कुंजबिहारी मिश्रा दीक्षित परिवार के भानजे थे. केशवलाल दीक्षित जी और बृजबिहारी दीक्षित के चचेरे भाई मदनलाल दीक्षित उनके सगे मामा होते थे. बहन शारदा (पत्नी शरदकुमार तिवारी) उनसे पहले लाखेरी आ चुकी थी. इसी स्रोत से मिश्रा जी का लाखेरी पदार्पण हुआ था, ऐसा उनकी बेटी पुष्पा मिश्रा ने मुझे बताया है. वे १९५० के दशक में एक क्लर्क के बतौर एसीसी में भर्ती हुए थे, और सन ८२/८३ में चीफ स्टोरकीपर बन कर रिटायर हुए. सन ६८ में कुछ सालों के लिए उनको गुजरात की शिवालिया फैक्ट्री में स्थानांतरित किया गया था. वह एक दौर था जब ए.सी.सी. मैनेजमेंट द्वारा तत्कालीन नेता स्व. लखनलाल जी की खिलाफत करने वाले चुनिन्दा लोगों को लाखेरी से तड़ीपार कर दिया जाता था. उस लिस्ट में नंबर एक थे, ओवरसीअर मि. नायर, दूसरे नंबर पर कुंजबिहारी मिश्रा और तीसरे पर मैं स्वयं.

कुंजबिहारी जी एक विलक्षण व्यक्ति थे. उन्होंने १९६३ में स्वयंभू नेता लखनलाल जी को  कामगार संघ का अध्यक्ष पद और गरमपुरा पंचायत के सरपंच के पद से बेदखल कर दिया था, लेकिन अपनी अक्खड़ व स्पष्टवादी स्वभाव के चलते कामगार संघ के अगले ही चुनाव में वे हार गए. सरपंच पद उन्होंने खुद ही छोड़ दिया था.

कुंजी बाबू अपनी नौकरी के कार्यों में बहुत प्रवीण थे. उनका सामाजिक दायरा भी बहुत बड़ा था पर दूसरों का छिद्रान्वेषण करके सार्वजनिक रूप से ‘चूँकि, चुनांचे, पर’ के साथ मजा लिया करते थे इसलिए बहुत से मित्र उनसे बचते भी नजर आते थे. उनके एक सगे समधी स्व. केशव दत्त ‘अनंत’ (श्री रविकांत शर्मा के पिता) तो बरसों उनसे अबोले रहे.

मिश्रा जी की पांच बेटियों में से पुष्पा मिश्रा गत दो वर्ष पूर्व कंपनी के कैशियर पद से रिटायर हो चुकी हैं. अन्य बेटियों में लता रविकांत शर्मा अध्यापिका, ममता भूटानी पुलिस इंस्पेक्टर, रंजना तथा निरुपमा ने अपने अपने अपने संसार खुद बसाए हैं. और सब प्रकार से सुखी हैं. सुपुत्र सुधीर मिश्रा कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से कोर्स करके आये और वर्तमान में लाखेरी MVD में शायद फोरमैन हैं. उन्होंने अपनी वंशबेल आगे बढ़ाई भी है.

श्रीमती कुंजबिहारी मिश्रा एक समर्पित गृहिणी रही हैं, जिन्होंने बच्चों की परवरिश के साथ साथ शतायु सास की खूब सेवा की, जो कि लकवाग्रस्त होने के कारण बरसों  तक खाट पर जी रही थी.

कुंजबिहारी जी राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय रहे थे. एक समय स्थानीय भाजपा के अध्यक्ष भी बनाए गए थे. रिटायरमेंट के बाद वे कोटा में निवास बना कर रहे, और अंतिम समय में बच्चों के पास लाखेरी आ गए थे. जहां कुछ वर्ष पूर्व उनका देहावसान हो गया है.

लाखेरी में कुछ समय तक प्लांट हेड रहे श्री मनोज मिश्रा उनके सगे भतीजे थे.

चूकि मैं उनके समय में लाखेरी की यूनियन व अन्य संस्थाओं से जुड़ा हुआ था, इसलिए उनका सानिध्य मुझे भी मिला था. लाखेरी के इतिहास में उनका नाम अमिट है.
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रविवार, 8 अप्रैल 2018

यादों का झरोखा - १४ लाखेरी रामायण

कुछ भूली बिसरी यादें जब कभी जीवंत हो जाती हैं तो गुदगुदा जाती हैं. उन दिनों जो छोटे बालक हुआ करते थे, वे अब बहुत सयाने हो गए हैं, और जब से फेसबुक-मैसेंजर का चलन आम हुआ है, मुझसे मित्रता करके पुराने दिनों की मस्ती पर कलम चलाने को कहते हैं.

कल एक मित्र सच्चिदानंद शर्मा ने जब मैसेंजर पर मुझे कॉल किया तो मुझे इस विशिष्ठ नामवाले को याद करने में देर नहीं लगी कि ये स्व. राम प्रसाद शर्मा जी (अध्यापक ए.सी.सी. स्कूल) के सुपुत्र हैं. इनको मैंने इनके शैशव दिनों में अपने पिता की साईकिल की बेबी सीट पर भी देखा था. बाद में ९० के दशक में कारखाने में क्लर्क बनते भी देखा था. ये भी याद है कि इन्होने कंपनी की नौकरी छोड़ कर अन्यत्र अध्यापन का कार्य करना शुरू कर दिया था. हाँ तो, सच्चिदानंद शर्मा जी ने बताया कि वे आजकल 'लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल' के प्रिंसिपल हैं. उन्होंने मेरे पुत्र डॉ. पार्थ के बारे में भी जानकारी चाही ,और कहा कि वे उनके साथ इसी स्कूल में पढ़े थे. उनकी वार्ता सुन कर अतीव खुशी हुई. मैंने दिल से बधाई दी. मुझे उनके पिता का मोटा चश्मा व ब्रह्मपुरी स्थित घर, सब कुछ कल्पना में सामने दिखा, और एक विशिष्ठ घटना भी सिनेमा रील की तरह घूम गई, जो इस प्रकार है. 

सन १९७६ का होलिकोत्सव – हास्य सम्मलेन था. १९७० से ७४ के बीच जब मैं शाहाबाद (कर्नाटक) में रहा तो मेरी अनुपस्थिति में आदरणीय फेरुसिंह रूहेला (बाद में हेडमास्टर बने) ने होली समिति के सेक्रेटरी के रूप में कार्यक्रमों को संचालित किया और मेरे द्वारा निर्धारित पिछली लीक पर इसे मनोरंजक बनाए रखा.  

हास्य सम्मलेन में प्रहसन, गीत-संगीत, नृत्य, चुटकुले, उपाधि वितरण सब स्थानीय हास्य से ओतप्रोत होते थे. नौजवान कलाकार अनिल तिवारी, अब्दुल मालिक, चन्द्र शेखर तिवारी (टीटू), भगवान दलेर, सुखदेव शर्मा, श्री बल्लभ तिवारी, किशन महेश्वरी, अजित जोशी, अब्दुल रशीद पठान, आदि अनेक लोगों का योगदान रहता था और मैं कार्यक्रम सूत्रधार रहता था.

सन १९७६ के हास्य सम्मलेन के लिए मैंने एक ‘लाखेरी रामायण’ लिखी, जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया. इस रचना में ‘राम’ शब्द वाले तमाम नामों को हास्य रूपक में गूंथा गया था. वह रचना अब मेरे पास नहीं है, पर उसके कुछ मजेदार अंश मेरी स्मृति में हैं. मैं अपने पाठकों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ:

मैं लिखने जा रहा हूँ एक ‘लाखेरी रामायण,’जिसके लिए मुझे तलाश है एक अदद राम की!
मैंने यूनियन प्रेसीडेंट रामाजी से जब पूछा
तो वे बोले “मूँ तो अनपढ़ छूं, चौपाईयां कस्यां बोलूंगो.”इतने में मिल गए बड़ी बड़ी मूछों वाले मौलाराम
उनको प्रस्ताव यों नहीं भाया कि वे अपनी पत्नी का – अपहरण नहीं करवा सकते थे.
टेकडी पर मास्टर राम प्रसाद मिले तो बोले
मैं बन जाऊंगा राम,
पर हेडमास्टर भारद्वाज अडंगा डालेंगे--आपस में खटपट के चलते,जब हेडमास्टर जी से किया जिक्र तो
भिड़ते ही बोले, “अरे मत बनाना इसको राम,
जिन छोरों को इसने पढ़ाया है –हुए हैं वे सब फेल,
तुम्हारी रामायण भी हो जायेगी डीरेल”....

यों तत्कालीन राम नाम वाले सभी राम किसन, राम नारायण, राम जीवन आदि नामों को रचना में घसीटा गया था. बहुत दिनों तक इस रामायण के दोहे चर्चा में रहे थे.

आज जब प्रिय सच्चिदानंद का फोन आया तो मैंने  स्वनामधन्य स्व. राम प्रसाद शर्मा जी के ‘जाए’+ 'पढ़ाये’ प्रधानाचार्य को मैंने हार्दिक बधाई दी. ऐसा लगा कि मेरी लाखेरी रामायण फेल नहीं, बहुत अच्छे अंकों से पास हुई है.
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