बुधवार, 6 नवंबर 2019

ना काहू से दोस्ती ....




पुलिस और वकील एक ही परिवार के दो सदस्य से होते हैं, दोनों के लक्ष समाज को क़ानून सम्मत नियंत्रित करने के होते हैं, पर दिल्ली में जो हुआ या हो रहा है उसकी जितनी निंदा की जाए कम होगी. मैं अपने नजदीकी लोगों के उन परिवारों को जानता हूँ जिसमें एक भाई पुलिस में तथा दूसरा एडवोकेट के बतौर कार्यरत हैं. पुलिस में प्राय: छोटे पदों पर कम पढ़े लिखे लोग नियुक्त रहते हैं जबकि सभी  वकील कानूनदां ग्रेज्युएट होते हैं .

सच तो ये है कि आज भी पुलिस की मानसिकता व कार्यप्रणाली ब्रिटिस कालीन चल रही है, इसके सुधार की कई बार बड़ी बड़ी बातें सरकारें करती रही है लेकिन  धरातल पर आज भी पुलिसवाला अपने को हाकिम समझता है और उसी लहजे में बात व्यवहार किया करता है.

वकीलों की बात करें तो कुछ गुणवन्तों को छोड़कर अधिकतर ने इस आदरणीय पद की गरिमा का अवमूल्यन कर रखा है. सच को झूठ तथा झूठ को सच साबित करना ही बड़ी कला रह गयी है. क़ानून की सही व्याख्या करने के बजाय क़ानून में पोल ढूढना वकालत कहलाने लगी है.

मेरे जैसे साधारण नागरिक को ये जानकार बहुत दुःख हुआ कि हाईकोर्ट परिसर में वकीलों की गुस्साई भीड़ ने सरकारी गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया. मैं वकीलों के संगठनों  के मुखियाओं से कहना चाहूंगा कि ये नादानियां बिलकुल बंद करवाई जानी चाहिए.

पुलिस में हो या वकालत में दोनों को संयम के पाठ पढाये जाने चाहिए, जिन लोगों ने माहौल बिगड़ने में जोर लगाया है उनको जरूर दण्डित किया जाना चाहिए.

हो क्या रहा है कि पुलिस महकमे (सी.बी.आई./ गुप्तचर विभाग से लेकर पुलिस चौकी तक ) का राजनीतिकरण हो गया है. नतीजन हर फैसले में अन्याय की बू आने लगी है.
वकीलों में भी जो लोग सत्ता के करीबी हैं वे खुद को न्यायाधिकरण से ऊपर समझने लगे हैं.

प्रबुद्ध लोग कुछ कहने में डरने लगे हैं क्योकि सत्ता से असहमति का अर्थ राष्ट्र्द्रोह कहा जाने लगा है. कर्णधारों को इस पूरी समस्या पर गंभीरता से विचार करना होगा.
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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

सिंदरी से - ५ धन- धान्यवाद - धनबाद


एक समय था जब खदानों के बारे में पढाई सिर्फ धनबाद में ही हुआ करती थी, एसीसी की खदानों में कार्यरत इंजीनियर्स सभी धनबाद रिटर्न हुआ करते थे.

धनबाद शहर झारखण्ड का रांची के बाद सबसे बड़ा शहर है. इस शहर की बनावट भी आम भारतीय कस्बों की तरह ही विक्सित हुई है. सन १९५६ से पहले ये इलाका बंगाल  प्रांत के मनभूम का हिस्सा था, इसे बाद में जिला की पहचान दी गयी औए ये बिहार का हिस्सा बन गया.

इतिहास में दर्ज है कि इसे सन १९१८ में ‘धान बाईद’ से संशोधित करके धनबाद नाम दिया गया था. कोयलांचल के इस उपजाऊ धरती पर एक विशिष्ट धान (चावल) ‘बाईद’ पैदा होता था/ है.

यहाँ के सभी प्राइवेट कोल माईन्स का राष्ट्रीयकरण स्व.प्रधान मंत्री इंदिरा गाधी के समय में हुआ था. कोल इंडिया का मुख्यालय धनबाद में ही है. इतिहास में दर्ज है कि सन १७६४ में अंग्रेजों ने बक्सर के युद्ध में मुग़ल शासक को पराजित करके एक संधि कर ली जिसे (‘इलाहाबाद संधि’ के नाम से जाना जाता है) इस इलाके को अपने अधीन कर लिया था.

अंग्रेजों के कब्जे के बाद आदिवासी लोग बेदखल किये जाने लगे तथा उनकी महिलाओं पर अत्याचार होने लगे थे तो एक क्रांतिकारी नौजवान ‘बिरसा मुंडा’ ने हथियार उठाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. अपने इस महानायक को आदिवासी लोगों ने भगवान् का दर्जा दिया हुआ है. बाद में प्रशासन ने अनेक स्कूल-कालेज, पार्क व संस्थानों को बिरसा मुंडा नाम से जोड़कर अमर किया हुआ है. बिरसा मुंडा इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी तथा रांची स्थित बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी इसके बड़े उदाहरण हैं.

हावड़ा के मुख्य रेल मार्ग से जुड़ा हुआ धनबाद, सिंदरी से महज २८ किलोमीटर दूर है. समृद्ध बाजार व मॉल देखकर लगता नहीं है कि ये खनिज अ वन संपदा वाला इलाका कभी ‘बीमारू राज्य’ का हिस्सा रहा होगा.
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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

सिन्दरी से - ४



पुरानी यादों को ताजा करने के लिए संस्मरण लिखे जाते हैं, कड़वी, मीठी या अंतर्मन को गुदगुदानेवाली यादें अक्सर स्वांत:सुखाय होती हैं तथा अन्य पात्रों को चुभ भी सकती हैं . मेरे एक मित्र एडवोकेट रविशंकर पाण्डेय जी ने लिखा है कि “इसीलिये अब संस्मरणों के बजाय उपन्यास लिखे जाते हैं.”

यहाँ सिन्दरी नगर में मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और कुछ विवरण अपने ब्लॉग / फेसबुक पर लिख डाले तो सिंदरी से सम्बंधित रहे अनेक मित्रों के सन्देश मुझे मिल रहे हैं. ये बहुत स्वाभाविक है कि हम जिन जगहों पर रहते हों या जिन लोगों के सानिध्य में रहे हों उनसे लगाव हो ही जाता है.

कोयम्बटूर से श्री रामकृष्णन सुंदराअय्यर लिखते हैं कि वे सिंदरी प्लांट में १९६७ से ७३ तक चीफ बर्नर के बतौर  कार्यरत रहे थे, तब एम्.एल.नरूला जी (retired as M.D.) यहाँ पर असिस्टेंट इंजीनियर हुआ करते थे. रामकृष्णन जी ने अपने समय की प्रोडकसन संबंधी उपलब्धियों का भी जिक्र किया है.

श्री आशीष शुक्ला लिखते हैं कि उनके बचपन के कुछ साल यहां पर बीते थे, यहाँ का विवरण पढ़कर उनको बहुत अच्छा लगा है. उनके पिताश्री यहाँ पर कैमिस्ट रहे थे.

श्रीमती अल्पना जोशी सुपुत्री स्व. मदन प्रकाश भारद्वाज (स्व. वेद प्रकाश भारद्वाज जी के अनुज) की बचपन की अनेक स्मृतिया ताजी हो आई हैं.मदन प्रकाश जी लाखेरी से प्रमोट होकर यहाँ लम्बे समय तक चीफ बर्नर/ मास्टर बर्नर रहे थे.

श्रीमती ममता जोबंपुत्रा गोंसाल्वेज को भी सिन्दरी में बिताये अपने बचपन के दिन याद आये हैं, उनके पिता स्व. जोबंपुत्रा जी लाखेरी से प्रमोट होकर यहाँ अकाउन्ट्स आफीसर बने थे और यही उनका देहावसान हुआ था.

सिन्दरी है ही बड़ी सुन्दर जगह, मैं पिछले दस दिनों में यहाँ की भव्यता / दुर्गा पूजा समारोहों/ दर्शनीय स्थलों को देख रहा हूँ आवासीय कालोनी में लगता है कि मैं लाखेरी/ शाहाबाद में ही विचरण कर रहा हूँ.

इस नई जगह में मेरे रिश्तेदारों के अलावा मुझे कोई  जानने वाला-पहचानने वाला नहीं होना चाहिए, पर दुर्गापूजा के पांडाल में यहाँ के कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी मुझे  घूरते नजर आये, उनको लग रहा था की उन्होंने मुझे कहीं देखा जरूर है. इनसे मुम्बई में सीमेंट वर्कर्स फैडरेसन की मीटिंग्स में अवश्य मुलाक़ात हुई रही होगी. सच है कि आपका बीता हुआ कल आपका आजीवन पीछा करता रहता है. बहरहाल मैं खुशनसीब हूँ कि उम्र के इस पडाव पर मैं ट्रेड यूनियन एक्टिविटीज के प्रति उदासीन हो गया हूँ तथा देश की दलीय राजनीति में भी सन्यासी बन गया हूँ. हाँ लिखना मेरा शुगल जारी है.
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बुधवार, 9 अक्तूबर 2019

सिन्दरी (झारखण्ड) से -३



धनबाद जिले का ये क्षेत्र प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध है इसलिए चूना-पत्थर,कोयला, लौह अयस्क व अन्य खनिजों के उत्पादों के लिए अनेक बड़े उद्योगों की स्थापना देश की आजादी के बाद यहाँ हुई है, तदनुसार ही प्रशिक्षित तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता हुई तो बिरसा मुंडा प्राद्योगिक संस्थान व अन्य इंजीनियरिंग कालेजों की स्थापना हुई. यह बात विशेष है कि इन्ही उद्योगों की वजह से सिन्दरी एक मैट्रोपोलीटीयन सिटी बन गयी. जिसमें कला, साहित्य और संगीत का भी स्वाभाविक विकास हुआ है; पर यहाँ आज भी आदिवासी ‘मुंदरी’ भाषा के मनमोहक गीत व भजन सुने जा सकते हैं.

FCIL खाद का कारखाना – यों तो एक ब्रिटिस कैमिकल कम्पनी ने १९४४ में ही यहाँ अमोनियम सल्फेट + जिप्सम से उर्वरक बनाना शुरू कर दिया था पर उर्वरक को रफतार तब मिली जब देश आजाद हुआ १९५१ में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू ने खाद कारखाने का उदघाटन करते हुए कहा था कि “ आधुनिक भारत के मंदिर का उदघाटन कर रहा हूँ.” बाद में १९५९ व १९६१ में देश के अन्य उर्वरक उद्योगों का विलय करके इसे एक निगम बना दिया गया जिसे FCIL  नाम दिया गया. अमोनियम सल्फेट , यूरिया व अमोनियम नाइट्रेट यहाँ के मुख्य उत्पाद थे. २० हजार से अधिक लोगों को रोजगार उपलब्द्ध था पर धीरे धीरे उत्पाद की लागत बढ़ने, नवीनीकरण न होने से तथा मिस मैनेजमेंट के चलते (सरकारी उद्यमों की बीमारी रही है) ये कारखाना लगातार घाटे में चलने लगा था और घिसटते हुए सन २००२ में बंद हो गया ; थी उसी तरह जैसे लाखेरी के पड़ोस में सवाईमाधोपुर का डालमिया सीमेंट उद्योग बंद हुआ था. इस पर भी बहुत राजनीति हुई पर उद्योग से जुड़े लोगों ने बड़ी त्रासदी झेली है.

इन कारखाने को पुनर्जीवित करने सं २००७ से ही सार्थक प्रयास हुए पर अब छोटे स्तर पर जीवित करने को २०१९ जनवरी में बेसिक कार्य शुरू हुआ है. इस नए प्रोजेक्ट में इनपुट के लिए हल्दिया से गैस पाईप लाइन डालकर गैस का इस्तेमाल किया जाना है.

इस बीच पुराने कारखाने के बदहाल खंडहरों व मशीनों को तथा आवासीय कालोनी से अवैध कब्जों को हटाने की प्रक्रिया चल रही है. लोग १६ साल बाद फिर से खुशियों के इन्तजार में है.
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सिन्दरी (झारखण्ड ) से



एसीसी सीमेंट प्लांट सिन्दरी की स्थापना सन १९५४ की है, १९९५ के बाद इसे केवल ग्राइंडिंग प्लांट में तब्दील कर दिया गया, अपने दुसरे प्लांट से मंगवाए गए क्लिंकर में आयरन स्लैग व जिप्सम मिलाकर पैक किया जाता है. टाटा स्टील कंपनी से स्लैग की अच्छी उप्लब्धता है. इसकी प्रतिदिन उत्पादन क्षमता ९००० टन बताई गयी है.

प्लांट हेड के कार्यालय में एक बोर्ड पर अब तक के सभी २७ प्लांट हेड्स के नाम हैं. इनमें से दस से अधिक महानुभावों को मैं भी व्यक्तिगत रूप में जानता हूँ क्योंकि ये लोग लाखेरी प्लांट में भी महत्वपूर्ण पदों पर थे.

स्व. पी.वी.धर्माधिकारी १९६० में मेरे इण्टरव्यू लेनेवालों के पैनल में थे, तब वे चीफ कैमिस्ट के पद पर थे दस साल बाद वे शाहाबाद कारखाने में भी मिले, मृदुभाषी, हँसमुख, और हितैषी धर्माधिकारी जी का नाम प्लांट हेड की लिस्ट में देखकर उनका सानिध्य याद आ गया.

मि. एम्.डी.साने सन साठ में प्लांट इंजीनियर थे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साने एसीसी स्कूल में टीचर हुआ करती थी. सर्व श्री एस. आर अय्यर , बी.के. गंगवार ,बी.डब्व्लू. कुवेलकर सभी अपने समय में लाखेरी के चीफ इंजीनियर रहे थे. स्व. पी.बी. दीक्षित १९८५-८६ में प्लांट हेड रहे , पर वे उससे पहले यहां काफी से तक चीफ कैमिस्ट भी रहे थे.  यों बोर्ड पर उन अपनों को देखकर आनादानुभूति हुई है. वर्तमान में श्री सुरेश चन्द्र दुबे यहाँ डाइरेक्टर प्लांट हैं.

स्पोर्ट्स क्लब में घूमते हुए मैंने एक सज्जन से ‘सिन्दरी’ शब्द की व्यत्युत्पत्ति के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बड़ी मजेदार बात बताई कि “यहाँ की मिट्टी लाल (सिंदूरी) है, सिंदूरी का अपभ्रंश सिंदरी है, इसमें कितना तथ्य है मैं कह नहीं सकता हूँ. इन्ही दिनों यहाँ के एक हिन्दी अखबार में समाचार छापा है कि एक बड़े नेता जी ने सिन्दरी को ‘सुन्दरी’ कहा तो श्रोताओं ने खूब आनंद लिया. इसी तरह प्रदेश के झारखंड नाम पर भी लोगों की व्याख्या सुन कर अच्छा लगा की झार या झाड़ का अर्थ पेड़ होता है और ये पूरा राज्य लगभग झाड़ाच्छादित है.

सिंदरी के एसीसी कालोनी में भी इतने घने पेड़ हैं कि ‘वर्षावन’ का अहसास होने लगता है.
क्रमश:
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