शनिवार, 25 जुलाई 2020

न्याय / अन्याय




पुरानी कहावत है कि आप न्याय करते हैं तो वह अन्याय सा नहीं दीखना चाहिए. कहने को तो हम दुनिया के सबसे बड़े प्रजातंत्र में जी रहे हैं लेकिन हो क्या रहा है कि जिसके हाथ में लाठी आ जाती है वही भैंस को हांके जा रहा है.

अँधेरे कोनों से आवाज उठाती रहती है कि सी बी आई और  न्यायपालिका को पूर्ण स्वायत्तता मिलनी चाहिए, ताकि निष्पक्ष कार्यवाही/ न्याय हो सके. एक बार सुप्रीम कोर्ट को ही सी बी आई के बारे में कहना पडा था कि ‘ये किसका तोता है ?’ प्रबुद्ध लोग जजों के जमीर की बात करते हैं, जज लोग भी तो हमारे ही समाज की पैदावार हैं जिनकी नियुक्ति, प्रमोशन और भविष्य की संभावनाएं जिस तंत्र के अधीन होती हैं उसको नाराज करना घाटे का सौदा हो सकता है. भूतकाल में भी हमने देखा है कि ऐडजस्टमेंट के लाभ बहुत से माननीयों ने खुले आम स्वीकार किये हैं.

इतिहास जरूर निंदा करेगा पर वह जब लिखा जाएगा तब तक सारा परिदृश्य बदल चुका होगा. कहा जा रहा है कि प्यार और राजनीति में सब जायज होता है, चाहे आप bellow the belt मार कर रहे हों. पर ये नहीं भूलना चाहिए कि इन घटनाओं के निष्कर्ष लम्बे समय तक पीछा करते रहेंगे.
                   ***

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

कोरोना का साइड इफेक्ट




आजादी के पश्चात देश में औद्योगिक प्रसार के जोर पकड़ने पर मजदूरों के शोषण व उनके प्रति अन्याय को रोकने के लिए विधायिका ने चिंता जताई तथा मालिकों की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम के अलावा अनेक अध्यादेशों, वेतन आयोगों व द्विपक्षीय समझौतों के तहत सुरक्षा देने के पक्के इंतजाम किये गए. इसमें अंतर्राष्ट्रीय मानकों का बी ध्यान रखा गया; इसे मेहनतकश लोगों के सच्चे हितैषियों के अनवरत संघर्षों की उपलब्धि भी कहा जा सकता है. मुख्यत: काम के घंटों, न्यूनतम वेतन, मानवीय सुविधाओं तथा सामाजिक सुरक्षा के बारे में एक लक्ष्मण रेखा खींच दी गयी और इसकी निगरानी के लिए श्रम विभाग का पूरा तंत्र स्थापित किया गया जिसमें इंस्पेक्टर से लेकर न्यायालयों तक का एक जाल बना दिया गया.

अब जब दक्षिणपंथी / पूंजीपतियों के पोषक सरकारें सत्ता में आई हैं तो हम देख रहे हैं कि बड़ी बड़ी सरकारी उद्योगों/ कंपनियों का निजीकरण का दौर जारी है . नए ठेकेदारों को खुलाहस्त देने के लिए श्रम कानूनों को सस्पेंड करने की साजिश हुई है; बहाना कोरोना से उत्पन्न परिस्थिति बताई जा रही है. ये दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है जो अंधेरगर्दी को जन्म देनेवाला है.

अफ़सोस इस बात का है कि देश में श्रमिक आन्दोलन विभाजित तथा निष्क्रिय अवस्था में है, सत्ता से जुड़े हुए मजदूर नेता अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के कारण या तो चुप हैं या दबी जुबान से बेमन से बोल रहे हैं. अघोषित आपदकाल में विपक्षी नेता भी बिलों में घुसे पड़े हैं.

कुल मीजान ये है कि जो होने जा रहा है उसके दूरगामी दुष्परिणाम होंगे.
                  ***

शनिवार, 11 जुलाई 2020

यादों का झरोखा - डाक्टर बी.एम्. घुले


यादों का झरोखा : (३१)

डाक्टर बी.एम.घुले

HE IS MORE THAN A DOCTOR”  डा. घुले के बारे में ये शब्द थे एसीसी के पूर्व मैनेजिंग डाईरेक्टर स्व. एम्.एम्.राजोरिया जी के.

एसीसी में मेरे ३९ वर्षों के कार्यकाल में मुझे लगभग ३५ डाक्टरों के सानिध्य में कार्य करने का सौभाग्य मिला, जिनमें सबसे लम्बे समय तक हेड आफ डिपार्टमेंट के रूप में डा. भूषण घुले रहे थे. सन १९९९ में लाखेरी में मेरे रिटायरमेंट के समय वे ही मैनेजर हेल्थ सर्विसेज थे.

मैंने उनको बहुत करीब से देखा है, वे सभी रोगियों को बहुत गंभीरता से लिया करते थे और पूरी मेहनत से ईलाज के प्रति समर्पित रहते थे. उन्होंने हमेशा नई दवाओं तथा मेडीकल इक्विपमेंट्स के बारे में खुद को अपडेट करके रखा था. व्यवहारकुशल डा. घुले बीमारों ही नहीं अपने विभाग में  काम करने वाले स्टाफ को भी परिवार की तरह ही ट्रीट किया करते थे.

कर्मचारी यूनियन के प्रेसीडेंट के रूप में मेरी वहाँ पर दोहरी जिम्मेदारी हुआ करती थी, मुझे याद नहीं है कि कभी किसी विषय पर उनसे बहस/ विवाद या शिकायत रही हो. मैनेजर हेल्थ सर्विसेज बनने के बाद इंचार्ज डाक्टर पर फैक्ट्री मेनेजमेंट द्वारा बहुत से दबाव होते देखे थे, विशेषकर कारखाने के नवीनीकरण के समय जब सब तरफ से खर्चों की कटौती व स्टाफ को कम करने के प्लान चल रहे रहे थे. तब बहुत शालीनता से उन्होंने अपना रोल निभाया था.

भिलाई में उनका पैत्रिक घर है, वे जामुल से ट्रांसफर होकर सन १९९० के आसपास लाखेरी आये थे, मुझे जहा तक याद है वे सन २०१२ में रिटायर हुए थे. अब लाखेरी के ही होकर रह गए हैं. यहीं ट्रांसपोर्ट नगर में उन्होंने अपनी निजी क्लीनिक खोलकर रिटायरमेंट लाईफ को व्यस्तता में बदला हुआ है. लाखेरी निवासियों के लिए ये अतिरिक्त सुविधा किसी वरदान से कम नहीं है.

पिछली बार मैं सन २०१७ जनवरी में लाखेरी विजिट के समय उनसे उनकी क्लीनिक पर जाकर मिला था . लाखेरी के लोगों का उनके प्रति सम्मान व विश्वास देख कर बहुत खुशी हुई. दुर्भाग्य से उनको एक पारिवारिक शोक झेलना पडा है कि उनका इकलौता पुत्र स्व. सिद्धार्थ मुम्बई में डेंगू का शिकार हो गया था. वह आई आई टी. करके मुम्बई में कार्यरत था . डाक्टर साहब ने रूंधे गले से बताया कि उनके मुम्बई पहुचने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार चुका था, ईलाज का मौक़ा ही नहीं मिला. मृत्यु एक शाश्वत सत्य है पर अकाल म्रत्यु की वेदना अतीव होती है. हम सब डाक्टर साहब के दुःख में शामिल हैं. पता नहीं परमेश्वर इस तरह अच्छे लोगों की परीक्षा लेकर क्यों दुखी करता है.

डाक्टर साहब की बिटिया सौभाग्यवती सुरभि सुपेकर भी  हमारे ग्रुप लाखों के लाखेरियन्स की मेंबर है, फेसबुक पर सक्रियता देखकर खुशी होती है.

डा. घुले व उनकी श्रीमती साधना घुले लाखेरी कालोनी के सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों में अविस्मरणीय रोल अदा करते रहे थे, आज भी करते रहते होंगे. मुझे व्यक्तिगत रूप से डा. घुले ने मेरे रिटायरमेंट के बाद भी अनेक बार अनुग्रहीत किया है, मैं फोन करके ही उनसे यथोचित सलाह व जानकारी पूछ कर लाभान्वित होता रहा हूँ. दिल से आभारी हूँ.
             ***