शनिवार, 26 सितंबर 2015

एक कड़वी याद

गर्मियों का मौसम था (सन 1994 या 95). रात को करीब डेढ़ बजे फैक्ट्री के जनरल मैनेजर श्री पी. के. काकू का मेरे आवास पर फोन आया कि “टाप क्रशर पर एक आदमी कंपनी के डम्फर के टायर के नीचे दब गया है. वहां हंगामा हो रहा है. आप प्लीज मदद कीजिये. मॉब को समझाइये. लाश को वहां से पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल शिफ्ट करना होगा.”

उन्होंने ये बात सहज में कह दी, पर उनकी आवाज में घबराहट जरूर थी. वैसे तो उग्र भीड़ के बीच जाना खतरे से खाली नहीं होता है, पर ऐसे मामलों में मैं हमेशा दुस्साहसी रहा हूँ. मैं युनियन अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर से चल पड़ा. 15 मिनट में धटनास्थल पर पहुँच गया. वहां लोगों का जमावड़ा था. मृतक नजदीक में गरमपुरा का रहने वाला था इसलिए भी भीड़ होती जा रही थी. तरह तरह की बातें हो रही थी जैसे “लाश तभी उठेगी जब मुआवजा तय हो जाएगा,” “कंपनी को इसके बच्चे को नौकरी देनी पड़ेगी”. उस भीड़ में मेरे भी मित्र मौजूद थे. उन्होंने मुझे घेर लिया और घटना की पूरी जानकारी दी कि मृतक रूपलाल पारेता (नाम अब मुझे शायद सही याद ना भी हो) ड्राईवर था. एक प्राईवेट पार्टी के पत्थर ढोता था. डम्फर के नीचे सोया हुआ था. डम्फर का ड्राईवर श्री गुलाबचंद भी पारेता बिरादरी का था इसलिए ‘मारो-पीटो’ वाली बात नहीं थी. लेकिन कोई भी यह कहने को तैयार नहीं था कि ‘गलती रूपलाल की थी.’ मैंने वक्त की नजाकत देखते हुए कहा कि "लाश उठाने व मुआवजे में कोई सम्बन्ध नहीं है. मुआवजा कानूनन कंपनी को देना होगा. उसके लिए पोस्टमोरटम रिपोर्ट तो जरूरी है. हम परिवार की जितनी मदद हो सकेगी करेंगे. लोगों की समझ में बात आ गयी. रोते हुए परिवार के लोगों को घर भेजा गया और लाश को मुर्दाघर शिफ्ट किया गया. अगले दिन पुलिस भी बुला ली गयी और मैनेजमेंट द्वारा विधिवत सब कार्यवाही की गयी. पुलिस ने जो रिपोर्ट बनाई उसमें मुझे भी चश्मदीद लिखा गया.

उक्त घटना ने मुझे भी झकझोर कर रख दिया था क्योंकि 17-18 साल पहले यही रूपलाल ड्राईवर नशे में धुत्त होकर अपने ट्रक से मुझे मारने के लिए पीछे पड़ा था. मामला यों था कि सन 1974 में चार साल शाहाबाद में वनवास काटकर जब में वापस लाखेरी लौटा तो यूनियन की सत्ता में काबिज भाई इब्राहीम हनीफी व शिवनारायण गोचर की टीम ने मेरी उपस्थिति पर खुशी नहीं जताई थी. मुझे चुनाव न लड़ने देने के लिए प्रस्ताव पास कर लिया. (हमारी दोस्ती बाद में हुई) चुनाव में उनकी पूरी टीम हार गयी रामा जी अध्यक्ष और मैं जनरल सेक्रेटरी नियुक्त हो गया. अगले ही वर्ष हमने सीमेंट फैडरेशन का अधिवेशन लाखेरी में आयोजित भी कर लिया. मुख्य अथिति मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा जी थे. भंवरलाल शर्मा जी के अलावा अनेक गणमान्य नेता थे. पूरे देश से प्रतिनिधि आये थे. कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए अध्यक्ष एच. एन. त्रिवेदी व दूधिया जी ने बहुत खुशी जताई थी.

जब मैं कुछ बाहरी प्रतिनिधियों को रात की देहरादून एक्सप्रेस में बिठाने के लिए रेलवे स्टेशन ले जा रहा था तो एक ट्रक हमारी जीप को बार बार टक्कर मारने के लिए पीछा कर रहा था. हम बच निकले थे, पर मालूम हुआ कि मेरे खिलाफ एक बड़ी साजिश चल रही थी. इस साजिश में शराबियों की गैंग थी, जिसका सरगना कामगार संघ के पूर्व अध्यक्ष का निकट संबंधी था. उनको कामगार संघ में मेरा उदय तथा अधिवेशन की सफलता से चिढ़ हो रही थी. मालूम करने पर पता चला की रूपलाल उसका ही मुलाजिम था. पुलिस में रिपोर्ट की गयी. थानेदार जी होशियार निकले. ऍफ़.आई.आर. नहीं लिखी, पर रूपलाल को मेरे सामने बुलाकर डाटा-फटकारा और छोड़ दिया. बाद में ये मालूम हुआ कि थानेदार जी ने आरोपी पार्टी की मोटर साईकिल अपने कब्जे में ले ली थी. उसी में घूमा करते थे. इसके बाद उन लोगों ने कोई वारदात नहीं की. इधर मेरे अभिन्न साथियों ने, जिनमें स्व. सुवालाल व्यास, स्व.अब्दुल हबीब पठान व स्व. कांतिप्रसाद गौड़ थे, मेरी सुरक्षा चाक चौबंद कर रखी थी.

कुदरत के इस खेल को देखिये कि रूपलाल स्वयं टायर के नीचे आकर इस संसार से विदा हुआ और मुझे चश्मदीद बना गया.
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रविवार, 6 सितंबर 2015

चुहुल - ७५

(१)
एक नौजवान शराब के नशे में झूमता हुआ बार के बाहर बैंच पर लेटा हुआ था. एक बुढ़िया ने उसे देखा तो बोली, बेटा शराब मत पिया कर. ये तेरी सेहत के लिए बहुत बुरी चीज है.
शराबी अरे अम्मा, अपना गम गलत करने के लिए पीता हूँ.
बुढ़िया तू अच्छे घर का मालूम होता है. तुझे ऐसा क्या गम है, जिसे भुलाना चाहता है?
शराबी अम्मा तुमको भी कोई गम है क्या?
बुढ़िया अरे बेटा हर किसी को कोई ना कोई गम तो होता ही है.
शराबी तो एक पैग लगाकर देख, खुद मालूम हो जाएगा कि शराब कितनी अच्छी चीज है. लाऊँ तेरे लिए भी?
बुढ़िया ले आ फिर मैं भी देखती हूँ, पर लाना स्टील के गिलास में. लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे?
शराबी लड़खड़ाते हुए काउंटर पर गया, और वेंडर से बोला, दो गिलासों में अलग अलग पैग देना. एक स्टील के गिलास में देना.
वेंडर बोला, वो शराबी बुढ़िया आज फिर आ गयी क्या?"

(२)
मुम्बई धारावी की झोपड़पट्टी में रहने वाले एक युवक की शादी की बातचीत वहीं रहने वाली एक लड़की से चल रही थी. एक दिन लड़का टाई लगा कर, स्मार्ट बन कर लड़की से मिलने उसके घर गया. अंग्रेजी का रौब मारते हुए लड़की से बोला, हेलो, इंग्लिश चलेगी क्या?
लड़की शर्माते हुए मुस्कुराई और बोली, प्याज नमकीन के साथ तो देशी भी चलेगी.

(३)
ताऊ मृत्युशय्या पर था. कोई मिलने वाला आया नजदीक जाकर धीरे से ताऊ के कान पर बोला, ताऊ, इब तू राम का नाम ले लिया कर.
ताऊ ने सुन लिया और बोला, इब तो उससे जल्दी ही मुलाक़ात होण वाली है. नाम लेके के करणा है.

(४)
एक बुढ़िया रोज एक नौजवान को एक-दो साबुत बादाम दिया करती थी. एक दिन उसने पूछ लिया, अम्मा कहाँ से लाती हो मेरे लिए ये बादाम?
अम्मा बोली, अरे बेटा ये मेरी चाकलेट में निकलते हैं. चूसती हूँ, पर चबाये नहीं जाते हैं. दात नहीं हैं ना.

(५)
कैलाश अपने पड़ोसी से बोला, भाई साहब कल आपके घर से भाभी जी की नाराजी की आवाजें जोर जोर से आ रही थी. सब खैरियत है ना?
पड़ोसी बोला, क्या बताऊँ? तुम्हारी भाभी को फेसबुक का चस्का लगा है. कल मोबाईल फोन से उसने अपनी फोटो डाली, पर गलती से OXL  में डल गयी. किसी मनचले ने उस पर कमेन्ट कर दिया कि 'इस कबाड़े को कौन ले जाएगा?' मैं उसे पढ़ कर हंस दिया तो वह हो गयी शुरू.
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