सोमवार, 22 जून 2015

प्रार्थना का असर

एक कथावाचक प्रवचन कर रहे थे कि तुम ईश्वर पर आस्था या विश्वास करो या मत करो, इससे उसकी व्यवस्था में कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह तो इतना दयालु है कि गाली देने वाले के लिए भी भोजन पानी का बंदोबस्त करता है. जो लोग सच्चे मन से उसको याद करते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूरा करता है.

इसी सम्बन्ध में मेरी एक शुभाकांक्षी डॉ. शरद खरे सिन्हा ने वॉट्सअप पर एक मार्मिक कहानी मुझे फॉरवर्ड की है, जो परमात्मा की असीम कृपा को दर्शाती है, मैं चाहता हूँ कि मेरे पाठकगण भी इसे पढ़ कर देवकृपा की अनुभूति करें. दृष्टान्त इस प्रकार है:

एक यूरोपीय देश में डॉ. अहमद बच्चों को होने वाले एक विशिष्ट प्रकार के कैंसर रोग के इकलौते विशेषज्ञ हैं. उनकी महारत की चर्चा देश की सीमाओं के अन्दर व बाहर तक होती है. एक बार उनको अपने ही देश के दूरस्थ नगर में कैंसर के सम्बन्ध में आयोजित डॉक्टरों की मीटिंग में पहुचना था. वे अपने चार्टेड विमान से चल पड़े, लेकिन एक घंटा ऊपर उड़ने के बाद उनके प्लेन के इंजन में खराबी आने के कारण इमरजेंसी लैंडिंग करनी पडी. जहां से वे खुद एक कार लेकर चल पड़े. काफी आगे जाने पर एकाएक मौसम खराब हो गया. आंधी, अंधड़ व बरसात में उनको इतना परेशान होना पड़ा कि वे अपना सही मार्ग भी भूल गए और एक अनजान राह पर किसी गाँव में शरण लेने को मजबूर हो गए. एक मकान का दरवाजा खटखटाने पर एक सुन्दर किन्तु उदास गृहिणी ने उनको आश्रय दिया. उनका रस्मी स्वागत करने के बाद वह लगातार अपने आराध्य ईश्वर से प्रार्थना करने में व्यस्त हो गयी. बाद में जब डॉ. अहमद ने उससे पूछा कि तुम किसलिए ईश्वर से प्रार्थना कर रही हो? तो महिला ने बताया कि उसका छोटा बच्चा एक विशिष्ट प्रकार के कैंसर रोग से पीड़ित है. उसकी सलामती के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ. उस औरत ने अपनी मजबूरी बयान करते हुए बताया कि इस बीमारी के ईलाज के लिए देश में सिर्फ एक विशेषज्ञ डॉक्टर है डा.अहमद, जो यहाँ से बहुत दूर शहर में रहते हैं, उनकी फीस इतनी ज्यादा है कि हम दे नहीं सकते हैं.

गृहिणी की बाते सुन कर डॉक्टर खुद द्रवित होकर सुबकने लगे, फिर बोले, मैं ही डॉ. अहमद हूँ. फिर बच्चे का ईलाज करने का भरोसा देकर कृतार्थ किया.

इस प्रकार इस कथा में हवाई जहाज का इंजन खराब होना, सड़क मार्ग में बाधा आ जाना, डॉ. अहमद का राह भटकना, और ठीक उसी घर में पहुँच जाना जहां बीमार बच्चा था, मात्र संयोग नहीं हो सकता है. ये बच्चे की माँ की प्रार्थनाओं का असर था.
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गुरुवार, 18 जून 2015

मैं, मेरे जाले, और मकड़ी

मैं नियमित रूप से अपने घर पितृ-छाया को महीने में एक बार मकड़ी के जालों से मुक्त किया करता हूँ. वैसे जब से अन्दर, बाहर, सब जगह बर्जर का सफ़ेद वैदर कोट कराया मकड़ियों के लिए अपना घर बनाने की गुंजाईश कम हो गयी है. फिर भी गाहे बगाहे छोटी छोटी मकड़ियां लाईट के आसपास, रोशनदानों के कोनों में, बाथरूम के एक्सॉस्ट फैन के किनारों पर अपना जाला बनाकर मच्छरों या कीटों का इन्तजार करते देखा जा सकता है. कहने को मकड़ियां मनुष्यों की, खासकर किसानों की, दोस्त भी कही जाती है क्योंकि ये फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को चट करती रहती हैं.

घरेलू मकड़ियों को अवांछित समझा जाता है. फिल्मों में भुतहा घरों में मकड़ों  के जालों का अम्बार लगा दिखाया जाता है. पश्चिमी देशों में हेलोवीन के अवसर पर लोग घर के अन्दर-बाहर नकली जाले लगाकर भुतहा वातावरण बनाया करते हैं. मैं इन घरेलू मकड़ियों से बहुत ज्यादा भयभीत कभी नहीं रहा. इस बार गर्मियों की छुट्टियों में जब बच्चे आये तो मेरी पौत्री संजना ने भयभीत होकर बताया कि बाथरूम में पॉट के पीछे  तथा एक्सॉस्ट के पास मकड़ियां अपने जाले समेत मौजूद हैं. संजना उसके छुटपन से ही कुत्ते, बिल्ली, कॉकरोच, मकड़ी, व कीटों से बहुत डरती आई है. मैं मक्खीमार हथियार लेकर गया और इन बहुत छोटी सी मकड़ियों के एक-एक इंच दायरे वाले जालों को नेस्तनाबूद कर आया. बात कोई उल्लेखनीय नहीं थी, लेकिन जब प्रद्युम्न का परिवार कमरे को खाली करके गाजियाबाद को लौट गया तो कमरे को ठीक करने के चक्कर में ड्रेसिंग टेबल पर रखी हुयी एक गत्ते की छोटी सी दवा की डिबिया को उठाया तो उसके अन्दर से काले सर वाली एक छोटी मकड़ी ने तुरंत मेरे अंगूठे पर ऐसा डंक मारा कि मैं तिलमिला उठा. मैंने डिबिया सहित मकड़ी को फर्श पर गिरा दिया अपने अंगूठे को मुंह में डालकर चूसना शुरू किया ताकि जहर खींच कर थूका जा सके. मेरे पास जले में लगाने की एक मरहम ट्यूब पड़ी थी, जो काम में ली. ततैया के डंक की तरह का अनुभव था. मैं ४-५ घंटे तक इससे परेशान रहा.

मकड़ी/माकड़े से मेरा ‘अनबोंडेड’ रिश्ता रहा है. मैंने अपनी प्रारम्भिक रचनाओं (कविताओं) को मकड़ियों की जालों तरह बुना सोच कर जाले नामक अपनी पुस्तिका को बड़ी उमंग के साथ संन १९६७ में छपवाया था, और मित्रों में बांटा भी. बाद में ये रचनाएँ बुकसेल्फ़ में धूल खाती रही. संन  २०११ में अपनी बेटी की आग्रह पर मैं इन रचनाओं को अपने साथ अमेरिका ले गया. गिरिबाला के कहने पर ही एक ब्लाग बनाकर इसे इंटरनेट में डालने के शुरुआत की गयी. मुझे तब इंटरनेट संबंधी कोई जानकारी भी नहीं थी. अत: सब काम गिरिबाला खुद ही कर रही थी. उसी ने जाले का लोगो बना कर प्रकाशित कर दिया. उसके बाद मैं हिन्दी टाईपिंग करते हुए आगे पीछे की नईपुरानी स्वरचित कथा-कहानियों, संस्मरणों, चुटकुलों तथा सामयिक विषयों पर लेख इसमें सहेजता गया. जो मेरे फेसबुक पर स्वत: शेयर होकर मित्रों को पढ़ने को मिलते रहे हैं.

अब जब मुझे जहरीली मकड़ी ने काटा तो मैंने इस विषय पर गहराई से सोचा कि अच्छा हुआ कि मेरे बच्चों को नहीं काटा, और वे सुरक्षित चले गए. मैंने अलमारियों, ड्रेसिंग टेबल, पलंगों के नीचे, स्थाई दृश्यों वाले फ्रेमों के पीछे, सभी जगहों पर ढूंढ ढूंढ कर मकड़ी की जमात को ख़तम करने के लिए हिट और झाडू का इस्तेमाल किया. पर मैंने कहीं पढ़ा था कि मक्खी, मच्छर, मूसक, और मकड़ी, ये चारों मकार मनुष्य का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे.

रोमांच की दुनिया में स्पाइडरमैन और फ्रांसीसी योद्धा नेपोलियन की कहानी में सात बार प्रयास करने के बाद जीतने की प्रेरणा देने वाली मकड़ी का विवरण किताबों में और बच्चों की कहानियों में मजेदार शब्दों में दुनिया की अनेक भाषाओं में वर्णित है. इस बारे में अध्ययन करने के बाद मकड़ियों के बारे में अनेक तथ्य सामने आये हैं. मकड़ी बहुत चतुर बुद्धिमान प्राणियों में से एक है. इसकी कई आँखें होती हैं, जो एक ही समय में कई दिशाओं में देख सकती है. अपने शिकार को पकड़ने के लिए जाल बिछाती हैं, और खुद छुप कर बैठी रहती है. शिकार के फसते ही उसे जहरीला डंक मार कर निर्जीव करके खाती है. कई बार तो मकड़ी अपने पार्टनर को ही खा जाती है. मकड़ी के दर्जनों बच्चे होते हैं. छोटे बच्चे अपनी माँ की पीठ पर सुरक्षित महसूस करते हैं. डिस्कवरी चैनल वाले ने इस बारे में बड़ी खूबसूरत तस्वीरें-वीडिओ दिखाते रहते हैं. छोटी से छोटी मकड़ी तिल के बराबर होती है, पर बड़ी जात की मकड़ी का वजन २५० ग्राम तक पाया गया है. ये बड़ी मकड़ियां चिड़ियों व अन्य जंगली प्राणियों को अपना शिकार बनाती हैं. रेगिस्तानी मकड़ी ज्यादा जहरीली बताई जाती है. एक अनुमान के अनुसार दुनिया में मकड़ियों की संख्या मनुष्यों की संख्या से अधिक है. और भी अनेक रहस्यमय तथ्य इसके बारे में अवश्य होंगे. मुझे डंक मारने वाली मकड़ी के विषय में मेरा अंदाजा है कि हो सकता है कि उसकी टाँगे मेरी पकड़ में आने से उसे हमला करना पड़ा हो. बहरहाल ये जंतु दोस्ती के काबिल कतई नहीं है.
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गुरुवार, 11 जून 2015

मेरा साथ दो

मैं डॉ. परमानंद पांडे एम.डी. एक फिज़ीशियन हूँ. तिकोनिया शहर के मुहाने पर मैंने दस साल पहले अपनी एक क्लीनिक खोली थी, जो भगवत कृपा से तथा मेरे मातहत मेडिकल स्टाफ की मेहनत के कारण शहर का एक नामी अस्पताल कहा जाने लगा है. मैंने क्लीनिक के बाहर उन तमाम बीमारियों के नाम लिखे हैं, जिनके इलाज में मुझे महारत हासिल है. मैंने मुख्य एंट्रेंस पर एक जुमला भी लिख कर लगवाया है, "हे ईश्वर,  मेरी रोजी-रोटी यहाँ आने वाले रोगियों के दुःख-दर्द से निकलती है; चूंकि मेरे कार्य में सेवाभाव भी है इसलिए आप मुझे क्षमा कर देना."

रिसेप्शनिस्ट के काउंटर पर अपनी कन्सल्टेन्सी फीस "दो सौ रुपये" भी लिखवा रखा है, ताकि आगंतुक रोगियों को पेमेंट का अहसास रहे. मुझे ये कहते हुए हर्ष हो रहा है की मैं अपने मिशन में पूरी तरह सफल हूँ. लोगों की दुआओं का असर यह है की मेरा पारिवारिक जीवन सुखमय है. पर पिछले एक साल से मैं एक मानसिक परेशानी झेल रहा हूँ कि मेरे क्लीनिक के ठीक सामने गुड्डू नाम के एक तांत्रिक ने अपनी बड़ी सी दूकान खोल ली है. मेरी ही तर्ज पर उसने अधिक चमकदार अक्षरों में उन तमाम बीमारियों तथा आपदाओं के ईलाज की गारंटी लिखी हुई हैं. उसने फेल विद्यार्थियों को पास करने की, पति-पत्नी के बिगड़े रिश्ते सुधारने की, वशीकरण कराने जैसी अतिरिक्त बातें भी लिखी हुई हैं. मेरी ही तर्ज पर अपनी फीस का बोर्ड "तीन सौ रुपये" लिख कर टांग रखा है, जो हर आने जाने वाले को आकर्षित करता है.

मेरे बचपन से ही कुछ ऐसे संस्कार रहे हैं कि मैं तांत्रिक विद्या को ठग विद्या कहा करता हूँ. अन्धविश्वासी तथा मूर्ख लोग तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं. रुपया-पैसा व कई बार अपनी आबरू भी खो बैठते हैं. अखबारों में कई बार ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते रहते हैं. अब मेरी परेशानी यह है कि मेरे कई मरीज जिनका डायग्नोसिस नहीं हो पाता है, या जिनका ईलाज लंबा होता है, उनमें से कुछ लोग या उनके परिजन गुड्डू तांत्रिक के पास चले जाते हैं. होता ये भी है कि जब किसी मरीज का तांत्रिक से मोहभंग हो जाता है, तब वह मेरे पास आकर अपनी दास्ताँ सुनाता है. मैं गुड्डू तांत्रिक की कारगुजारियों पर कुढ़ता रहता हूँ, लेकिन सीधे सीधे उससे उलझना नहीं चाहता हूँ क्योंकि कीचड़ में पत्थर मारने से छींटे अपने ऊपर ही आते हैं.

गुड्डू तांत्रिक चालाक, चतुर और बहुत बातूनी भी है. अपनी लच्छेदार बातों से जाल में ऐसे उलझाता है कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. मैंने एक दिन उसे सबक सिखाने का मन बनाया और उनकी दूकान पर पहुँच गया. वह मुझे पहचान गया. बनावटी हंसी हंसते हुए बोला, “डॉक्टर साहब, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?

मैंने गंभीर होकर कहा, मेरी जीभ कोई चीज का स्वाद नहीं पहचान रही है.

तांत्रिक ने अपने कारिंदे बल्लू को आवाज देकर कहा, अरे, २२ नंबर के बक्से की दवाई लाओ.  बल्लू एक छोटी बोतल में कुछ तरल पदार्थ लेकर आया, चार-पांच बूँद मेरे मुंह में डाले. मेरा मुंह जलने लगा तो मैंने तुरंत थूक दिया और कहा की ये तो पेट्रोल है.

तांत्रिक बोला, देखा, मेरे २२ नंबर का कमाल? आपको स्वाद पहचानने में आ गया.

मैं अपनी होशियारी में फेल होकर लौट आया. पंद्रह दिनों के बाद मैं एक और समस्या लेकर उसके पास गया. इस बार मैंने उसको कहा, मेरी याददाश्त बिलकुल ख़त्म हो गयी है. तो उसने हमेशा की तरह कुछ मन्त्र बुदबुदाए, मोरपंख घुमाए और बल्लू को आवाज दी, २२ नंबर के बक्से की दवाई लाओ.  इस पर मैंने उसको कहा, २२ नंबर बक्से की दवा तो पट्रोल थी, जो पिछली बार मेरे मुंह में डाली गयी थी?

तांत्रिक बोला, "वाह, वाह, क्या बात है? एक बार के मन्त्र से ही आपको पंद्रह दिन पुरानी  बात याद आ गयी. जाइये, आपकी याददास्त ठीक हो गयी है.

मैं उसकी चालाकी से फिर हार गया था. लेकिन मैं उसे किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहता था. कुछ दिनों के बाद मैंने एक बार फिर से उसके पास जाकर कहा कि मेरी नजर बहुत कमजोर हो गयी है. मेरी हालत ये हो रही है की मैं करेंसी नोटों को नहीं पहचान पा रहा हूँ. इस बार उसने बड़े तिकड़मी अंदाज में हाथ जोड़ते हुए कहा “डॉक्टर साहब आपने दो बार मुझे मेरी फीस दे रखी है. आपने मुझे इस काबिल समझा और सम्मान दिया, मैं अबके आपको सम्मान देते हुए आपकी बीमारी का इलाज करूंगा. मन्त्र बुदबुदाते हुए वह बोला, जैसे आप इलाज करते हो, मैं भी करता हूँ, भाई भाई से लेना जुर्म है. ये लीजिये एक हजार रुपये का नोट. लेकिन जो नोट उसने मेरी ओर बढ़ाया था, वह केवल एक सौ रुपयों का था. मेरे मुंह से निकल पड़ा, "ये नोट तो सौ का है, हजार का नहीं,

वह मक्कार हंसते हुए बोला, मैं जानता था की अब आप नोट की पहचान करने में सक्षम हो गए हैं.

यों दोस्तों, सही इरादा होते हुए भी मैं अभी तक उस ठग तांत्रिक को सबक नहीं दे पाया हूँ. आप भी मानोगे जो गलत है, सो गलत है.  टोना टोटके, अंधविश्वासों की जड़ें हमारे समाज में बहुत गहरी हैं, जिनका लाभ लेने में गुड्डू तांत्रिक जैसे लोग सफल हो जाते हैं. परन्तु इसके खिलाफ लड़ाई तो जारी रखनी होगी. इस लड़ाई में तुमको मेरा साथ देना होगा.
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