रविवार, 27 दिसंबर 2015

चुहुल - ७६

(१)
एक शराबी सड़क पर झूमते हुए जा रहा था. उसके पीछे थोड़ी दूरी पर दो लड़कियां भी चली आ रही थी, जिनको उसकी हालत देखकर मजाक सूझा. एक बोली, तुझे ये ही पति मिलता तो अच्छा होता.
दूसरी बोली, चल हट, तू ही इससे शादी रचा ले.
शराबी उन दोनों की वार्ता सुन कर रुक गया. बोला, तुम लोग जल्दी से फैसला कर लो, वरना मैं यहाँ से चला जाऊंगा.
(२)
मरीज  डॉक्टर साहब, कोई ऐसी दवा दीजिये जिससे मुझे कब्ज हो जाए.
डॉक्टर लोग तो कब्जियत दूर करने की दवा चाहते हैं, पर तुम उल्टा बोल रहे हो.
मरीज  बात यों है डाक साब कि २०० रूपये किलो की दाल खाई है, जिसे में जल्दी निकालना नहीं चाहता हूँ.

(३)
सब्जी में नमक नहीं था. पति ने पूछा, नमक क्यों नहीं डाला? 
पत्नी बोली, सब्जी थोड़ी जल गयी थी. आप जानते हैं मेरी आदत जले में नमक डालने की कभी नहीं रही है.

(४)
बदमिजाज पत्नी ने कहा, मैं तुम्हारे बर्थडे पर एक गिफ्ट देना चाहती हूँ बोलो क्या लोगे?
पति बोला, तुम मेरी थोड़ी बहुत इज्जत कर लिया करो, ढंग से बोल लिया करो, मैं इसे ही अपना गिफ्ट समझ लूंगा.
पत्नी तेवर बदल कर बोली, मैं तो अलग से गिफ्ट देकर रहूँगी. मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी है.

(५)
कॉलेज के लड़कों का एक ग्रुप तीर्थ यात्रा पर गया. गाईड ने समझाया, सुबह जल्दी निकलना होगा, आप लोग नहा-धो कर तैयार हो जाना. राह में कुण्डों में स्त्रियाँ स्नान करती होंगी. उधर ध्यान न देकर हरिओम कहते हुए आगे निकल जाना.
अगली सुबह जब वे चले तो एक लड़के ने राह में शरारतन जोर से हरिओम बोला तो बाकी सब पूछने लगे किधर है?

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

गपशप

ए.सी.सी. को 2006 में स्विस कंपनी होलसिम ने अधिग्रहित कर लिया था. उससे पहले अम्बुजा सीमेंट कंपनी को भी खरीद लिया था और अब फ्रैंच कंपनी लाफार्ज ने होलसिम को खरीद लिया है. अब ये लाफार्ज होलसिम हो गयी है. इन बड़ी विदेशी कंपनियों का भारत में व्यापार करने का उद्देश्य मात्र मुनाफ़ा कमाना होता है. वैसे भी पाश्चात्य देशों के कल्चर में लोग आज के लिए जीते हैं. अत: कल परसों यानि भविष्य को केवल व्यापारिक नजरिये से सोचते हैं. जबकि हम लोग सोचा करते हैं, ये मेरी अपनी/ पुश्तैनी कंपनी है, इससे मेरी पहचान है, या ये हमारी कंपनी माता है.

समय हमेशा परिवर्तनशील होता है. इतिहास में कई बार अनपेक्षित घटनाएं घटती रहती हैं. मैंने हाल में अपने लाखेरी (बूंदी,राजस्थान) सीमेंट कारखाने के पिछले लगभग १०० वर्षों का देखा-सुना इतिहास फेसबुक पर LAKHON K LAKHERIAN ग्रुप में शब्दबद्ध किया है. बहुत सी बातें मेरे लेखन में छूट भी गयी होंगी, पर पूरे प्रकरण में एक ईमानदार भावनात्मक अपनापन है इसलिए पाठकों व सम्बंधित मित्रों ने इसकी बहुत सराहना की है. मेरे एक मित्र ने लिखा है कि पिछले पन्ने व इसके परिशिष्ट पढ़कर ऐसा लगा जैसे नानी-दादी ने दंतकथाएं सुनाई हैं.

अब जब मैं आज की स्थिति का विश्लेषण कर रहा हूँ तो पा रहा हूँ कि कंपनी की ऊपर की व्यवस्था में भारतीयता वाला संस्कार जिसे चैरिटेबल थिंकिंग नाम दिया जा सकता है, लगभग गायब सा होता जा रहा है. कंपनी के विदेशी मालिकों को अब शायद सीमेंट हाउस की भी दरकार नहीं होगी. अम्बुजा का कॉर्पोरेट ऑफिस जो मुम्बई में अंधेरी में है, उनका मुख्यालय हो जाएगा. भूपेंद्रा की जमीन जायदाद तीन सौ करोड़ में किसी बिल्डर को बेची जा चुकी है. दिल्ली में ओखला वाली जमीन जायदाद भी बेच कर टके कर लिए हैं. मुम्बई-थाणे स्थित रिसर्च इंस्टीच्यूट व सम्बंधित कार्यालय का भविष्य/आवश्यकता अधर में है. वहां ए.सी.सी. द्वारा बसी-बसाई कॉलोनी डिमोलिश करके बहुमंजिला इमारतें बनाये जाने की चर्चाएँ जोरों पर है. और भी बहुत सी बातें हैं, जिन पर फैसले नए मालिक अपने प्रॉफिट वाले चश्मे से लेने वाले हैं. आगे आगे देखिये होता है क्या!  पर निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये दुनिया ऐसे ही चलती आई है, चलती रहेगी.
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सोमवार, 14 दिसंबर 2015

सलाम शाहाबाद - २

हमारे देश में कई कस्बों व शहरों का नाम शाहाबाद है. मैं जिस शाहाबाद के बारे में लिखने जा रहा हूँ वह कर्नाटक राज्य के उत्तरी जिले गुलबर्गा में स्थित है. ये पत्थरों का शहर है, जिसमें अंदरुनी सड़कों का पटांन पत्थरों का है. पुराने सभी मकान पत्थरों से बने हैं. पहले इन सभी की छतें भी पतले पत्थरों की स्लेटों से ही ढकी रहती थी. अब नए भवन जरूर सीमेंट-आर.सी.सी. के बने नजर आते हैं. मैं पूरे ४१ साल बाद यहाँ आया हूँ. हमारा एसीसी सीमेंट प्लांट २५ साल पहले किसी अन्य पार्टी को बेच दिया गया था फिर इसके कई मालिक बदलते रहे हैं. वर्तमान में इस पर जे.पी. सीमेंट का बोर्ड लगा हुआ है.

मेरे साथ मेरी पत्नी भी थी. उसकी तीव्र इच्छा थी कि कॉलोनी के उस घर को देखा जाए जिसमें सन १९७० से १९७४ तक चार साल हमने अपने सुनहरे दिन बिताये थे. लेकिन यहाँ की हालत देखकर बड़ा सदमा सा लगा. ये सुन्दर कॉलोनी देखरेख के अभाव में पूरी तरह उजड़ गयी है. बहुत से क्वार्टर्स ध्वस्त हो गए हैं. सर्वत्र कटीली झाड़ियाँ उग आई हैं. हमारे उस क्वार्टर के पास जो कैथोलिक चर्च की बिल्डिंग है, वह उदास खड़ी है. उसका बड़ा सा घंटा जरूर आज भी बजने का इन्तजार कर रहा है. अब जब क्रिसमस के मात्र दस दिन शेष हैं, यहाँ कोई चहल पहल नहीं है. कॉलोनी के बिजली पानी के कनेक्शन बरसों पहले कट चुके हैं. सर्वत्र उदासी है.

नए मालिकों ने अपनी आवश्यकता के अनुसार फैक्ट्री की नई चहारदीवारी बना ली है. उसके बाहर कुछ पुराने पीपल, नीम या जामुन के पेड़ जरूर हमें पहचान रहे होंगे, पर नि:शब्द थे. बीच में राम मंदिर है. अब शायद ही वहां आरती होती होगी. मडडी की तरफ जो मस्जिद है, उसमें जरूर ताजा रंग-रोगन दीख रहा था. जो इक्के दुक्के लोग मिले, वे सभी अपरिचित थे. मैंने अपने उस क्वार्टर के सामने फोटो ली. चर्च का फोटो यादगार के लिए खींची ताकि हमारे बच्चे भी अपने बचपन के दिनों को इस बहाने याद कर सकें. यद्यपि इस नज़ारे को देख कर मन भर आया क्योंकि एक जीवंत बस्ती का पराभव हो चुका है.

एक दिन पहले, मैं घूमते हुए वाडी सीमेंट फैक्ट्री की कॉलोनी के गेट पर स्थित कर्मचारी यूनियन (एटक) के कार्यालय में गया, जहाँ स्व. श्रीनिवास गुडी जी की आदमकद फोटो लगी थी. मुझे लगा कि वे एकटक मुझे देख रहे हैं और कुछ कहना चाहते हैं. वे एक समर्पित किसान नेता तथा मजदूर हितैषी गांधीवादी कम्युनिस्ट नेता थे. मैं दो साल तक शाहाबाद में उनका जनरल सेक्रेटरी रहा था. वे मेरे लाखेरी लौटने के बाद एक बार लाखेरी भी पधारे थे. वे एक महान आत्मा थे. कार्यालय में बैठे एक बुजुर्ग ने बताया कि पूर्व नेता आईजय्या भी स्वर्ग सिधार चुके हैं, जिनकी मूर्ति वाडी के लोगों ने कालोनी के बाहर स्थापित कर रखी है.

शाहाबाद में मेरे साथ यूनियन में जोईंट सेक्रेटरी रहे श्री गुरुनाथ बाद में विधायक और स्टेट लेबर मिनिस्टर रहे, उनका फोन नंबर पाकर मैंने उनसे संपर्क साधा, वे आजकल विधान परिषद् के चुनाव में गुलबर्गा/बीदर में व्यस्त हैं इसलिए अभी तक मुलाक़ात नहीं हो पाई है.

इस पूरे क्षेत्र में कई महीनों से वर्षा नहीं हुई है. सर्वत्र सूखा है. खेतों में कपास व ज्वार की फसल खराब हो रही है. लोग कहते हैं कि अकाल की स्थिति बनती जा रही है. यहाँ कगीना नदी (भीमा नदी की ट्रिब्युटरी) अब सूखने लगी है. जगह जगह पानी रोक कर खींचा जा रहा है. वाडी फैक्ट्री का प्रबंधन पानी की कमी से चिंतित है, ऐसा मैंने सुना है.

हैदराबाद से वाडी तक नेशनल हाईवे बहुत शानदार है, पर वाडी और शाहाबाद के बीच हाईवे बहुत खराब स्थिति में है, बदहाल है, हर गाड़ी के पीछे कच्ची सड़क का सा धूल का बवंडर दिखाई देता है. सड़क के दोनों तरफ पट्टी-पत्थर निकालने की अनेक खदानें हैं, जिनमें आज भी मैनुअली कार्य होता है. इस पूरे इलाके में थोड़ी थोड़ी दूरी पर अनेक सीमेंट के बड़े कारखाने उद्योगपतियों ने लगा लिए हैं, पर इस क्षेत्र का सबसे पुराना शाहाबाद का कारखाना अपनी बर्बादी को रोता हुआ नजर आता है.
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