बुधवार, 13 मई 2015

चुहुल - 73

(1)
पठान अपने बॉस से  सर, 20 दिनों की छुट्टी चाहिए. मेरी कज़न की शादी है.
बॉस  कज़न की शादी में तुमको 20 दिनों की छुट्टी की क्या जरूरत है?
पठान वो बात ये है कि कज़न की शादी मेरे साथ हो रही है.

(2)
एक नेता जी अपने मोबाईल फोन पर बात करते हुए घर के गेट पर खड़े हुए थे. एक प्यासे राहगीर ने हिमाकत करते हुए उनसे कहा, साहब, एक गिलास पानी मिलेगा?
नेता जी ने नकारते हुए इशारा किया और कहा, अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है.
प्यासा राहगीर फिर से बोल उठा, साहब बड़ी प्यास लगी है.
नेता जी बोले, कहा ना तुमसे, अभी यहाँ पर कोई आदमी नहीं है.
राहगीर बोला, थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाइए, साहब.

(3)
एक पठान अपनी शादी की दावत देने जा रहा था. उसके दोस्त ने पूछ लिया, पठान भाई, तुम्हारी शादी किससे हुई है.
पठान ने तपाक से उत्तर दिया, “एक औरत से.
दोस्त बोला, अरे बेवक़ूफ़, शादी तो औरत से ही होती है. किसी की शादी मर्द से थोड़ी होती है.
पठान बोला, होती है, जानेमन. मेरी बहन की शादी एक मर्द से हुई है. 
                
(4)
कई महीनों से मायके में रह रही अपनी पत्नी को लेने के लिए जब एक आदमी ससुराल गया तो उसके ससुर जी ने आवभगत करते हुए शिष्टाचार के तहत पूछ लिया, और कुशल बात सुनाइये?
दामाद मायूसी भरे स्वर में बोला, कोई खुश खबरी की कुशल बात कैसे होती? साल भर से तो आपकी बेटी मायके में है."

(5)
चम्पूराम ने अपनी गर्लफ्रेंड से कहा, “वो देखो, सामने नीली साड़ी वाली लड़की मुझे देख कर मुस्कुरा रही है.
इस पर गर्लफ्रेंड बोली, ये लड़की तो सिफ मुस्कुरा भर रही है. मैंने जब पहली बार तुमको देखा था तो मैं तीन दिनों तक हंसी थी.
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गुरुवार, 7 मई 2015

सर्वव्यापी ईश्वर

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे ना कोई,
जो  सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे  को  होई. 

संत कबीर के नीति के दोहों में बहुत गंभीर नीतिगत दार्शनिक उपदेश दिए गए हैं. यहाँ सुमिरन का तात्पर्य ईश्वर को याद करना है. वास्तव में ईश्वर एक आस्था का नाम है, जिस पर भरोसा करने से सांसारिक कष्ट कम व्यापते हैं और सद्मार्ग अपने आप मिलता जाता है. उस अदृश्य  शक्ति की अनुभूति ही परमानंद की प्राप्ति है. वह अनंत है तथा सर्वव्यापी है.

हम मनुष्यों की सामजिक मान्यताएं/व्यवस्थाएं आदि काल से धार्मिक रूप लेती गयी हैं. प्राय: सभी धर्मों के संत, समाज सुधारक, विचारक या मार्गदर्शक जगत कल्याण के उपदेश देते रहे हैं, और परमात्मा की किसी न किसी रूप में उपस्थिति बताते रहे हैं.

एक यहूदी संत अपने सुख के दिनों में जब एक बार समुद्र के किनारे रेत पर चल रहे थे तो उन्होंने पाया कि उनके पीछे जो पदचिन्ह बन रहे हैं वे दो लोगों के थे. संत को अहसास हो गया की दूसरा पदचिन्ह अदृश्य परमात्मा के थे, जो उनके साथ साथ चल रहे थे. संत दार्शनिक भाव से स्वगत बोला, हे ईश्वर! तब तुम मेरे साथ साथ क्यों नहीं आये थे, जब मैं अतिशय रूप से परेशान था? तब मैंने देखा था कि मेरे पदचिन्ह अकेले ही बनते थे.” तभी एक आकाशवाणी हुई कि मैं तो हमेशा ही तुम्हारे साथ रहा हूँ, जब तुम गर्दिश में थे तो मैं तुम्हें सुरक्षा देने के लिए गोद में उठाये रहता था, जो अकेले पदचिन्ह तब तुमने देखे थे वे सिर्फ मेरे ही थे.
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