बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

विदूषक [किशोर कोना]

बच्चो, आज से साठ-सत्तर साल पहले, जब मैं भी तुम्हारी उम्र का था तो मैंने एक मजेदार दन्तकथा सुनी थी या पढ़ी थी, जिसे मैं आज तुम्हें सुनाना चाहता हूँ.

जैसा कि तुमको मालूम है पिछली शताब्दी से पहले विज्ञान की ऐसी उपलब्द्धियाँ नहीं थी जैसी की आज हमें प्राप्त हैं. तब न रेडियो, न टेलीविज़न, न सिनेमा और न ही टेलीफोन-मोबाईल थे. मनोरंजन के लिए लोग नाटक, प्रहसन, संगीत, नृत्य या मसखरों-बहुरूपियों-विदूषकों का सहारा लिया करते थे. तब राजा-रानी भी हुआ करते थे, जो अपने दरबारी नवरत्नों में बुद्धिमान मंत्रियों, आशु कवियों व विदूषकों को अवश्य पाला करते थे. ऐसे ही एक नामी राजा का दरबारी विदूषक जब आर्थिक तंगी में था तो उसको एक उपाय सूझा, उसने अपनी पत्नी को रानी जी के पास भेजा. पत्नी रोनी सूरत बनाकर रानी जी से बोली, मेरा पति मर गया है. अंतिम संस्कार के लिए धन नहीं है. यह सुन कर रानी जी ने अफसोस जताया और एक हजार सिक्के उसे दे दिए. जब पत्नी घर आई तो विदूषक खुद राजा के पास जाकर रोते हुए बोला, हुजूर, मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया है. उसके अंतिम संस्कार के लिए मेरे पास धन नहीं है. राजा ने उसकी पत्नी की मृत्यु पर शोक जताया और उसे अंतिम संस्कार के लिए एक हजार सिक्के दे दिए.

शाम को जब राजा व रानी की मुलाक़ात हुई तो रानी ने दु:ख जताते हुए राजा को बताया कि "आपका विदूषक मर गया है”.  राजा ने तुरंत कहा, विदूषक नहीं, उसकी पत्नी मरी है. इस बाबत दोनों में बहस हो गयी. तय हुआ कि अगले दिन सच्चाई जानने दोनों ही जने विदूषक के घर जाकर अपनी बात की पुष्टि करेंगे.

विदूषक और उसकी पत्नी ने राजा व रानी को दूर से ही आते हुए देख लिया तो तुरत-फुरत दोनों सफेद चादरें लपेट कर मुर्दासन में घर के बाहर लेट गए. राजा-रानी को आया देख कर आसपास के लोग भी जमा हो गए. राजा व रानी ने देखा मरे तो दोनों ही हैं, पर पहले किसकी मौत हुई, इस बाबत बहस होने लगी. समस्या का हल निकलता न देखकर राजा ने घोषणा की, जो ये बताएगा कि पहले किसकी मौत हुई है, उसे एक हजार सिक्के ईनाम में दिए जायेंगे.

लोग कुछ समझ पाते उससे पहले विदूषक चादर हटाकर खड़ा हो गया और बोला, हुजूर, पहले मैं मरा था." राजा-रानी भी उसकी इस मसखरी पर मुस्कुराए बिना नहीं रह सके.
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सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

तारबाबू

हमारे पूरे अंचल में तारबाबू के नाम से प्रसिद्ध हीरावल्लभ भट्ट अब अपनी उम्र के 95 बसंत देख चुके हैं. बुढ़ापा सबसे बड़ी बीमारी है, और उसमें भी अकेलापन बड़ी त्रासदी है. कभी कभी तो तारबाबू उन तमाम लोगों को गालियाँ देने लगते हैं, जो अब भी उनकी  और लम्बी उम्र की दुआ करते हैं. क्यों ना हो, जब आँखों की रौशनी बहुत घट जाये, कान जवाब देने लग जाएँ और आदमी चलने-फिरने में लाचारी महसूस करने लग जाए तो जीवन दुखदायी हो जाता है. पर क्या करें, ऊपर वाला कभी भी किसी के लिए उसकी मौत की तारीख का खुलासा नहीं करता है और माँगने से मौत भी नहीं देता है.

उनकी पैदाईश पिछली सदी के तीसरे दशक के प्रारम्भ में हुई थी. इलाहाबाद जाकर एंट्रेंस पास करने के बाद वे डाक विभाग में क्लर्क/तारबाबू बन गए थे. भगवत कृपा थी, घर में पिता के समय से ही धन-धान्य व अमन सुख था. विवाह हुआ पत्नी लाछिमा देवी एक समर्पित सदगृहणी मिली. देर से ही सही घर में वैभव और विराट दो जुड़वा पुत्रों का जन्म हुआ. कालांतर में दोनों लायक बेटों ने लखनऊ जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की. बाद में एक बेटा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ लन्दन जाकर बस गया. दूसरा बहुत समय तक तो स्वदेश में ही था, परन्तु अवसर पाकर अपनी पत्नी सहित आस्ट्रेलिया चला गया. बच्चे विदेश जाकर खूब कमायें, गाहे बगाहे माँ-बाप के हालचाल लेते रहें, तथा आर्थिक रूप से मदद करते रहें, तो सबको लगता है कि माता-पिता बहुत भाग्यवान हैं.

सत्तर के दशक में सरकारी नियमों के अनुसार 58 वर्ष की उम्र में वे रिटायर हो गए थे. तब वे पोस्ट एंड टेलीग्राफ में पूरे डिविजन के बड़े अधिकारी बन चुके थे. जब वे फकत तारबाबू हुआ करते थे, तब आज की तरह टेलेकम्यूनिकेशन सिस्टम एस.टी.डी., मोबाईल फोन या तीव्र संवाद प्रेषक इलैक्ट्रॉनिक साधन भारत में नहीं आये थे. टेलीग्राफ का टक टक डिस'  आवाज से संवाद सम्प्रेषण सुलभ साधन था. तारबाबू ने अपने कार्यकाल में ना जाने कितने तार भेजे या प्राप्त किये उनका लेखा-जोखा अलग से रखा जाता तो आज जरूर वह गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज होता. अब जब टेलीग्राफिंग बंद हो गयी है तो भट्ट जी को लगता है की उनके सतयुग का अंत हो गया है.

तारबाबू बहुत संवेदनशील व सहिष्णु व्यक्ति रहे हैं. जब भी दूर दराज गांवों के लोगों/ महिलाओं के नाम कोई तार आता था तो वे उन की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए उस सन्देश का हिन्दी अनुवाद भी साथ में लिख कर दे दिया करते थे क्योंकि ग्रामीण लोगों को तार पढ़वाने में बहुत दिक्कत होती थी. कभी कभी तो अर्थ का अनर्थ भी हो जाता था. पड़ोसी देशों से लड़ाई/युद्ध के दिनों में जब सिपाहियों के शहीद होने या गुम होने की खबर उनके पास आती थी तो वे खुद भी बहुत बेचैन हो जाया करते थे.

तारबाबू ने अपने जीवन में अनेक अनुभवों को आत्मसात करते हुए रिटायरमेंट के बाद नैनीताल जिले के रमणीक स्थान भीमताल में अपना एक सुन्दर सा घर बनवाया. पति-पत्नी दोनों प्राणी सुखपूर्वक रह रहे थे. बेटे अपने बीवी-बच्चों सहित साल-दो साल में अवश्य आकर उनका उत्साह कम नहीं होने देते थे. रिटायरमेंट पर जो विभागीय फोन उनके आवास पर लगा था वह कई सालों तक सम्पर्क स्रोत बना रहा तब मोबाईल क्रान्ति नहीं हुई थी. दुर्भाग्य ये हुआ की रिटायरमेंट के दस साल बाद सुलक्षिनी अर्धांगिनी का थोड़ी ही अस्वस्थता के बाद देहांत हो गया. बच्चे रिश्तेदार सब मातमपुर्सी के लिए आये और चले गए. तारबाबू उसके बाद नि:सहाय अकेले रह गए. बेटों ने उनसे बहुत आग्रह किया कि अब वे उनके ही साथ रहने के लिए चलें, पर उनका मन नहीं माना. जिन अरमानों के साथ अपना आशियाना बनाया था और जिसमें लछिमा देवी की छाया बसी हुयी थी उसे छोड़ना उनको बिलकुल नहीं भाया. अत: निपट अकेले रह गए. हाँ, घर का कामकाज व देखभाल के लिए बागेश्वर के दानपुर क्षेत्र का एक सेवक दरबानसिंह उनको मिल गया और तब से वही उनका पीर, बावर्ची, भिश्ती, खर सब कुछ है. दरबानसिंह अपने मालिक तारबाबू को अच्छी तरह से समझने लगा है. उनकी हर जरूरत का ध्यान रखता आया है. पर लछिमा देवी की बात कुछ और ही थी, पति या पत्नी के आपस में बिछुड़ने के बाद उनकी जो कमी महसूस की जाती है उसे कोई भी वफादार सेवक पूरा नहीं कर सकता है.

छ: साल पहले जब वैभव भारत आया था तो तारबाबू ने उसको बताया कि बी.एस.एन.ल के लैंडलाइन फोन अकसर डेड हो जा रहे हैं इनकी बहुत बार शिकायत करनी पड़ रही है, तो वैभव ने पिता के लिए एक स्मार्ट फोन खरीद दिया और लैंड लाइन को हटवा दिया. उसने उनको फोन के तमाम फंक्शन समझा दिए लेकिन तारबाबू की अंगुलियां इस बेतार के टच स्क्रीन के ऐप्स पर नहीं चल पा रही थी. उनको अब बेटों से खुद फोन करके बात करने में परेशानी होने लगी थी. नजरों में कमी तो थी ही, सुनने में भी दिक्कत होने लगी थी. फोन आने पर कानों में माईक्रोफोन के तार लगा कर सुना करते थे. इस तरह काम चला रहे थे.

पिछले 20-25 दिनों से उनके फोन में कोई घंटी नहीं बजी. तारबाबू परेशान रहने लगे. दरबान तो बेचारा इस बारे में कुछ समझता नहीं है इसलिए मालिक की कोई मदद नहीं कर पा रहा था. आशंकाएं ये थी कि या तो फोन खराब हो गया है या बच्चे लापरवाह हो गए हैं. वे अब ये भी सोचने लगे कि मुझसे तो ये सर्व साधारण लोग अच्छे हैं, जिनके बच्चे परिवार पास पास रहते हैं, दुखी-सुखी, लड़ना-झगड़ना भी तो जीवन का आनंद ही है. कभी इस हद तक विचार करते हैं कि मैंने पिछले जन्म में जरूर कोई ऐसा पाप किया होगा जिसका फल मुझे इस विछोह की त्रासदी के रूप में मिल रही है. इस प्रकार अनेक मनोविकारों से ग्रस्त तारबाबू का संदेह पक्का होता जा रहा था कि बच्चे जरूर फोन मिला रहे होंगे, और मेरे फोन में ही खराबी आ गयी है. रात-दिन फोन में ही ध्यान रखने लगे जब प्रतीक्षा लम्बी हो गयी तो एक दिन दरबान को साथ लेकर बाजार में मोबाईल रिपेयरिंग शॉप तलाश करके मैकेनिक से फोन दुरुस्त करने को कहा. इस वक्त उनको अपने उन पुराने दिनों की याद ताजा हो आई जब लोग अपने प्रियजनों से तार द्वारा संपर्क साधने के लिए पोस्ट आफिस में  चिंतातुर हालत में उनके पास आया करते थे.

मैकेनिक ने मोबाईल फोन को जांचा-परखा और बोला, बाबू जी, इस फोन में कोई  खराबी नहीं है. ये सुन कर तारबाबू बहुत भावुक हो गए उनकी धंसी हुयी आँखों की कोटरे आसुंओं से भर आई. अवश्य ही बच्चों ने उनको कोई फोन नहीं किया होगा. सब लापरवाह हो गए हैं.

तारबाबू ने मैकेनिक को अपने परदेसी बेटों के फोन नंबर दिए. एक एक कर दोनों को फोन मिलाये, वे “हैलो-हैलो" करते रहे, पर तारबाबू के गले से कोई शब्द नहीं निकल पाया, गला बुरी तरह रुंधा हुआ था, आँखें नम थी.
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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

चुहुल - ७१

(१)
एक बन्दर ने वैलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देकर शेरनी को प्रपोज़ किया तो शेरनी ने आँखें तरेर कर कहा, अबे, तूने अपनी शक्ल आईने में देखी है?
बन्दर बोला शक्ल पर मत जा. तू मेरा कॉन्फिडेंस देख.

(२)
शादी के पांच साल बाद पति वैलेंटाइन डे पर पत्नी के लिए सफेद गुलाब लाया.
पत्नी ने कहा, ये सफ़ेद गुलाब? वैलेंटाइन डे पर तो लाल गुलाब दिए जाते हैं.
पति बोला, अब जिन्दगी में प्यार से ज्यादा शान्ति की जरूरत महसूस हो रही है.

(३)
एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए आये छात्र ने वहाँ के चौकीदार से पूछा, कैसा है ये कॉलेज?
चौकीदार ने तुरन्त जवाब दिया, बहुत बढ़िया कॉलेज है. मैंने भी इंजीनियरिंग की डिग्री यहीं से ली है.

(४)
बंटी (जूस वाले से)- "जल्दी से एक गिलास जूस दे दे. लड़ाई होने वाली है."
जूस का गिलास खाली करने के बाद फिर से बोला, जल्दी से एक गिलास और दे. लड़ाई होने वाली है.
जूस वाले ने घबराते हुए, जूस बनाते बनाते पूछा, कब होने वाली है लड़ाई?
बंटी बोला, अभी, जब तू मुझ से पैसा मांगेगा.

(५)
मुजरेवाली ने अपना नाचना-गाना समाप्त करने के बाद देखा कि संता चुपचाप बैठा हुआ है. उसकी तरफ मुखातिब होकर वह अदब से बोली, हुजूर, हमने आपको खुश किया, अब आप भी हमको खुश कीजिये.
ये सुन कर संता भावुक हो गया और बोला, बहन, अब तू आराम से बैठ, मैं नाचता हूँ.
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शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

बापू को सदमा

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सिद्धांतों पर अपनी अटूट श्रद्धा रखने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी हाल में भारत की विशिष्ट यात्रा के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत बहुत सुन्दर व बहुधर्मी देश है, लेकिन गत वर्षों में यहाँ के लोगों में धार्मिक असहिष्णुता बहुत बढ़ गयी है. अगर महात्मा गांधी आज मौजूद होते तो हालात देखकर सदमे में आ जाते.

उनकी इस सटीक व सत्य टिप्पणी / आकलन पर हमारे बहुत से धर्म विचारकों/ठेकेदारों/राजनैतिक खिलाड़ियों को बदहजमी हो रही है. जो कल तक मोदी व ओबामा को सगे भाई बता रहे थे, अब कह रहे हैं कि ओबामा अपने हदों से बाहर जाकर धोखेबाजी कर रहे हैं. सच बात तो यही है कि ये ही नीच राजनीति है, जो यथार्थ को पचा नहीं पा रही है.

ह्वाईट हाऊस की तरफ से बाद में ये राजनीतिक स्पष्टीकरण भी आया है ओबामा जी का बयान केवल देश की सत्ता में काबिज भारतीय जनता पार्टी के परिपेक्ष्य में नहीं कही गयी थी, पर धार्मिक उग्रवाद-उन्माद अनेक तरह से उभर कर उठा है, जिससे देश में सद्भाव व सामाजिक विश्वास में भारी गिरावट आ गयी है. दंगे-फसाद, धर्मांतरण की प्रक्रिया, लव जिहाद और उकसाने वाले आपत्तिजनक बयान हम सब देख सुन रहे हैं; लेकिन हम तो पाखंडी हैं, इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं? हमारे एक नामधारी नेता ने यहाँ तक कह दिया है की ओबामा दुनिया का कोई धरम का ठेकेदार नहीं है जो हमारे देश के बारे में ऐसी बात कह रहा है. हम बहुत धार्मिक सहिष्णु हैं.

अरे भाई, ओबामा जी, शायद आपको आपके जिगरी दोस्त ने ये नहीं बताया कि हमारे यहाँ गोडसे मंदिर बनने वाला है. मोहनदास करमचंद गांधी को निकृष्ट व्यक्ति बताने वाले अनेक सन्देश सोशल मीडिआ पर नित्य प्रकाशित हो रहे हैं. आपने ये बात सौ फीसदी सही कही है कि महात्मा गांधी यदि आज मौजूद होते हो सदमे में होते. अफसोस तो इस बात का भी है की गांधी का तमगा लेकर चलने वाले कर्णधार इस पर चुप्पी साधे हुए हैं.
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