बुधवार, 28 जनवरी 2015

चुहुल - ७०

(१)
एक नौजवान भिखारी एक घर के दरवाजे पर आकर कुछ भोजन की मांग करने लगा. अन्दर से एक किशोरी आई और बोली, जाओ, टमाटर खाओ.
भिखारी फिर बोला, भूख लगी है. रोटी दे दो.
किशोरी ने फिर उत्तर दिया, बोला ना, टमाटर खाओ "
इस पर भिखारी बोला, लाओ, टमाटर ही दे दो, खा लूंगा.
इतने में किशोरी की माँ निकलकर आई और भिखारी से बोली, ये लड़की तुतलाती है, कह रही है कि कमाकर खाओ.

(२)
एक भोला आदमी अपने छोटे बच्चे को नर्सरी क्लास में दाखिले के लिए स्कूल ले गया, जहां उसका टेस्ट लिया गया. घर लौटकर उसने पाया कि उसकी बूढ़ी माँ अचानक बीमार हो गयी है. वह माँ को तुरंत अस्पताल ले गया. डॉक्टर ने उसकी माँ को देखकर कहा, मैं लिखकर दे रहा हूँ, इनके टेस्ट कराने होंगे.
बच्चे के टेस्टों का ध्यान करते हुए वह डॉक्टर से बोला, “डॉक्टर साहब मेरी माँ तो अनपढ़ है, टेस्ट नहीं दे पायेगी.

(३)
एक भद्र महिला अपनी कार चलाते हुए जब रेड लाईट के कारण रुकी तो एक भिखारी कटोरा ले कर आ गया. महिला ने उसकी शक्ल गौर से देखी और अपना सर खुजलाते हुए कुछ याद करने लगी, फिर उस भिखारी से बोली, “लगता है, तुमको कहीं देखा है.…
भिखारी भी कुछ सोच कर उल्लासित होकर बोला, मैं आपका फेसबुक फ्रेंड, प्रिंस!"

(४)
एक झगड़ालू प्रवृत्ति की महिला अपने बीमार पति को डॉक्टर के पास ले गयी. डॉक्टर ने मरीज की जांच-पड़ताल के बाद उस महिला को अलग से बुलाकर समझाया, इनके स्वस्थ होने के लिए आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. जैसे, पौष्टिक भोजन दें, कोई टेंशन वाली बात ना करें, डांट फटकार बिलकुल ना करें, जहां तक हो सके सास-बहू वाले षडयंत्रकारी टी.वी. सीरियल ना देखें.
महिला ने पूछा, ये कितने दिन तक करना होगा?
डॉक्टर बोला, पूरे एक साल तक.
जब महिला अपने पति के साथ घर लौट रही थी तो पति ने उससे पूछ लिया, “डॉक्टर ने क्या बताया?
महिला ने गंभीरता से कहा, वह कह रहा था कि आपके बचने की कोई उम्मीद नहीं है.

(५)
यों ही हालचाल जानने के लिए एक गृहिणी ने अपने मार्केटिंग ऑफिसर पति को उसके ऑफिस में फोन किया और पूछा, लंच में क्या खाया?
ये सुनकर पति झल्लाकर बोला, तुम्हें खाने के अलावा कुछ और भी याद आता है? जब देखो खाने की ही बात पूछती हो?
ये सुनकर पत्नी ने दूसरा प्रश्न पूछा, तो ये बताओ कि मौद्रिक बाजार में मुद्रास्फीति पर रिजर्व बैंक का जो नया फरमान आया है उसके चलते विदेशी भुगतान में आ रही रुकावटों पर सरकार को क्या करना चाहिए?
पति थोड़ी देर मौन रहकर धीरे से बोला, अरे, दाल, रोटी, दही, और सलाद खाया, अभी अभी चाय भी मंगवाई है.
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गुरुवार, 15 जनवरी 2015

कुमाऊं आँचल का त्यौहार 'घुघुतिया'

हमारा घुघुतिया त्यौहार.
हमारे कुमायू क्षेत्र (उत्तराखंड) में मकर संक्रांति पर घुघुतिया नाम का एक अनूठा पारंपरिक त्यौहार मनाया जाता है

सूर्य अपने सौर मंडल के गृह-उपग्रहों के साथ अनंत आकाश में स्वयं भी अबाध गति से चक्कर काटता है, सारा सौर मंडल सूर्य की ऊर्जा, प्रकाश व चुम्बकीय शक्तियों पर निर्भर है. इसलिए अनादि काल से सूर्य को भगवान् कहा जाता है. अनेक अवसरों पर अनेक प्रकार से इसकी पूजा-अर्चना की जाती है. मकर संक्रांति जिसे ज्योतिष गणना तथा खगोलीय परिवर्तन के आधार पर धनु राशि से मकर राशि में संक्रमण होना माना गया  है तो इसे संक्रांति कहा जाता है.स्नान कर्म, दान-पुन्य व सूर्य पूजन का विधान है. पश्चिमी प्रदेश में पतंगबाजी भी अब इस अवसर का शुगल हो गया है. गंगा स्नान, कल्पवास आदि अनेक तरह की तपस्या का प्रावधान सनातन धर्म में किया गया है.

कुमायू क्षेत्र में प्रसिद्ध तीर्थ बागेश्वर का उतरायणी मेला और घुघुतिया त्यौहार की विशेषता यहाँ के निवासियों के लिए जूनून की तरह होता है. लोककथा के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में यहाँ चन्द्र राजवंश का राज हुआ करता था .राजा कल्याण चन्द्र को बागनाथ भगवान् से मनौतियों के बाद पुत्र निर्भय चन्द्र प्राप्त हुआ था, माँ ने उस बच्चे को घुघुति निकनेम अर्थात फाख्ता रख दिया था (घुघुति निर्दोष, चिकना सा प्यारा पक्षी होता है.) राजकुमार घुघुति कि मोतियों की माला प्रिय थी  जिसमें घुंघुरू भी घुंथे हुए थे.माँ बच्चे की जिद पर अकसर ठिठोली करके डराती थी कि तेरी माला काले कौवे को दे दूंगी और ठिठोली में कौवे को बुला कर कुछ खाने को भी दे दिया करती थी. कहते हैं कि इस प्रकार कौवे से उसकी दोस्ती सी हो गयी थी.राजा का मंत्री दुष्ट था उसने एकदिन बच्चे को उठावा लिया और बध करने के इरादे से जंगल में ले गए. उसका इरादा राज्य में खुद कब्जा करने का था पर बच्चे के सौभाग्य से काले कौवे ने बच्चे को पहचान लिया और काँव काँव करके सभी कौवों को इकट्ठा कर लिया मंत्री के लोग डर कर बच्चे को वहीं छोड़कर भाग लिए.बच्चे ने घबराकर अपनी माला पेड़ की साख पर लटका दी जिसे लेकर काला कौवा राजमहल पहुँच गया और आभाष करा दिया कि बच्चा मुशीबत में है. कौवा काँव काँव करते हुए राजा के सैनिकों को जंगल की तरफ राह बताता हुआ उड़ चला. बच्चा सैनिकों को सकुशल मिल गया. इस खुशी में राज महल में आटे में गुड मिलाकर छोटे छोटे चाबीनुमा गुन्थियाँ बनाकर घी में तलकर कौवों को बुला बुलाकर खिलाया गया ये मकर संक्रांति का दिन था. समस्त प्रजा हर्षोल्लासित हो गयी सबने अपने बच्चों के गले में गुन्थियों की मालाएं पहनाई.इन गुन्थियों को घुघूत नाम दिया गया. इन मीठे घुघुतों को बच्चे खाते भी रहते हैं कई दिनों तक खराब भी नहीं होते हैं.

मकर संक्रांति शाम को पकवान बनते हैं और सुबह सवेरे घर के छज्जों पर से बच्चे काले कौवों को घुघुते व पकवान खाने के लिए चिल्ला चिला कर आवाज देते हैं, और कौवे आते भी हैं. सरयू नदी के पूर्वी भाग के गांवों में ठीक मकर संक्रांति यानि माघ एक गते को और पश्चिमी तरफ के गावों में अगली सुबह बच्चे बहुत उत्साह से काली कौवे आजा बोलते हुए आज भी हर वर्ष कौवों को बुलाया करते हैं सभी गावों में ये उल्लास अनुपम होता है.

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सोमवार, 12 जनवरी 2015

तेल की धार देखिये

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड ऑइल) की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से घट कर 50 डॉलर से भी नीचे आ गयी है. इसका कारण तेल उत्पादक देशों की प्रतिस्पर्धा या कोई अन्य व्यवसायिक रहा हो सकता है; नतीजन रूस जैसा देश दिवालिया होने के कगार पर आ गया है. हमारे देश का तेल उत्पादन आयातित कच्चे तेल के अनुपात में बहुत थोड़ा है इसलिए आयात का बिल पुरानी कीमतों के मुकाबले आधे से भी कम रह गया है. अधिकतर तेल कम्पनियां सरकारी हैं, जिन्होंने अपना अगला पिछला घाटा पूरा करने के लिए भरपूर मुनाफाखोरी शुरू कर रखी है. लगे हाथों राज्यों ने भी बहती गंगा में हाथ साफ़ किये हैं कि तेल पर वैट दुगुना-तिगुना कर लिया है. यानी सरकारी कालाबाजारी हो रही है.

पिछले वर्षों में जब पेट्रो पदार्थों की कीमतें सरकारी नियंत्रण में थी, तो एलपीजी गैस तक में सब्सिडी शुरू की गयी थी. ये सब्सिडी इसलिए भी थी कि ईंधन के लिए अनाप-सनाप तरीके से जंगल साफ़ किये जाने पर रोक लगे. अब जब शहरों में लगभग 100% व ग्रामीण इलाकों में 50% से अधिक लोग कुकिंग गैस का इस्तेमाल करने लगे थे तो सरकार के लिए ये घाटे का सौदा बन गया. अत: पिछली मनमोहनी सरकार ने इसका व्यापार भाव बाजार के हवाले करते हुए सब्सिडी कम करने के उपाय लागू कर दिए. पिछले साल तक जब भी पेट्रोल डीजल या कुकिंग गैस पर एक रुपया, दो रूपये आये दिन बाजार का हवाला देकर बार बार बढ़ाये जाते थे तो मीडिया बढ़त को आग लग गयी जैसे जुमलों से हर बार उछाला करती थी. लेकिन अब जब कीमतें अंतर्राष्ट्रीय कीमत के अनुपात में घटने चाहिए, तो मीडिया खामोश है. पहले मामूली बढ़त में भी यात्री किरायों में तुरंत उछाल आता था, पर अब दाम कम होने की स्थिति में कोई हलचल नहीं हो रही है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में प्रति लीटर जो आठ-दस रुपयों की कमी हुई है, वह उपभोक्ताओं के आंसू पोंछने जैसा है.

समस्या यह है कि देश में कोई मजबूत विपक्ष नहीं रहा, जो कि इस तरह के गंभीर मामलों में उपभोक्ताओं को यथोचित लाभ दिलाने के लिए आवाज उठाये. सत्तापक्ष मोदी जी के विजय रथ पर आत्ममुग्ध है. उनको अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव गिरने में भी मोदी फैक्टर नजर आ रहा है.
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