गर्मियों का मौसम था (सन 1994 या 95). रात को करीब डेढ़ बजे फैक्ट्री के जनरल मैनेजर श्री पी. के. काकू का मेरे आवास पर फोन आया कि “टाप क्रशर पर एक आदमी कंपनी के डम्फर के टायर के नीचे दब गया है. वहां हंगामा हो रहा है. आप प्लीज मदद कीजिये. मॉब को समझाइये. लाश को वहां से पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल शिफ्ट करना होगा.”
उन्होंने ये बात सहज में कह दी, पर उनकी आवाज में घबराहट जरूर थी. वैसे तो उग्र भीड़ के बीच जाना खतरे से खाली नहीं होता है, पर ऐसे मामलों में मैं हमेशा दुस्साहसी रहा हूँ. मैं युनियन अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर से चल पड़ा. 15 मिनट में धटनास्थल पर पहुँच गया. वहां लोगों का जमावड़ा था. मृतक नजदीक में गरमपुरा का रहने वाला था इसलिए भी भीड़ होती जा रही थी. तरह तरह की बातें हो रही थी जैसे “लाश तभी उठेगी जब मुआवजा तय हो जाएगा,” “कंपनी को इसके बच्चे को नौकरी देनी पड़ेगी”. उस भीड़ में मेरे भी मित्र मौजूद थे. उन्होंने मुझे घेर लिया और घटना की पूरी जानकारी दी कि मृतक रूपलाल पारेता (नाम अब मुझे शायद सही याद ना भी हो) ड्राईवर था. एक प्राईवेट पार्टी के पत्थर ढोता था. डम्फर के नीचे सोया हुआ था. डम्फर का ड्राईवर श्री गुलाबचंद भी पारेता बिरादरी का था इसलिए ‘मारो-पीटो’ वाली बात नहीं थी. लेकिन कोई भी यह कहने को तैयार नहीं था कि ‘गलती रूपलाल की थी.’ मैंने वक्त की नजाकत देखते हुए कहा कि "लाश उठाने व मुआवजे में कोई सम्बन्ध नहीं है. मुआवजा कानूनन कंपनी को देना होगा. उसके लिए पोस्टमोरटम रिपोर्ट तो जरूरी है. हम परिवार की जितनी मदद हो सकेगी करेंगे. लोगों की समझ में बात आ गयी. रोते हुए परिवार के लोगों को घर भेजा गया और लाश को मुर्दाघर शिफ्ट किया गया. अगले दिन पुलिस भी बुला ली गयी और मैनेजमेंट द्वारा विधिवत सब कार्यवाही की गयी. पुलिस ने जो रिपोर्ट बनाई उसमें मुझे भी चश्मदीद लिखा गया.
उक्त घटना ने मुझे भी झकझोर कर रख दिया था क्योंकि 17-18 साल पहले यही रूपलाल ड्राईवर नशे में धुत्त होकर अपने ट्रक से मुझे मारने के लिए पीछे पड़ा था. मामला यों था कि सन 1974 में चार साल शाहाबाद में वनवास काटकर जब में वापस लाखेरी लौटा तो यूनियन की सत्ता में काबिज भाई इब्राहीम हनीफी व शिवनारायण गोचर की टीम ने मेरी उपस्थिति पर खुशी नहीं जताई थी. मुझे चुनाव न लड़ने देने के लिए प्रस्ताव पास कर लिया. (हमारी दोस्ती बाद में हुई) चुनाव में उनकी पूरी टीम हार गयी रामा जी अध्यक्ष और मैं जनरल सेक्रेटरी नियुक्त हो गया. अगले ही वर्ष हमने सीमेंट फैडरेशन का अधिवेशन लाखेरी में आयोजित भी कर लिया. मुख्य अथिति मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा जी थे. भंवरलाल शर्मा जी के अलावा अनेक गणमान्य नेता थे. पूरे देश से प्रतिनिधि आये थे. कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए अध्यक्ष एच. एन. त्रिवेदी व दूधिया जी ने बहुत खुशी जताई थी.
जब मैं कुछ बाहरी प्रतिनिधियों को रात की देहरादून एक्सप्रेस में बिठाने के लिए रेलवे स्टेशन ले जा रहा था तो एक ट्रक हमारी जीप को बार बार टक्कर मारने के लिए पीछा कर रहा था. हम बच निकले थे, पर मालूम हुआ कि मेरे खिलाफ एक बड़ी साजिश चल रही थी. इस साजिश में शराबियों की गैंग थी, जिसका सरगना कामगार संघ के पूर्व अध्यक्ष का निकट संबंधी था. उनको कामगार संघ में मेरा उदय तथा अधिवेशन की सफलता से चिढ़ हो रही थी. मालूम करने पर पता चला की रूपलाल उसका ही मुलाजिम था. पुलिस में रिपोर्ट की गयी. थानेदार जी होशियार निकले. ऍफ़.आई.आर. नहीं लिखी, पर रूपलाल को मेरे सामने बुलाकर डाटा-फटकारा और छोड़ दिया. बाद में ये मालूम हुआ कि थानेदार जी ने आरोपी पार्टी की मोटर साईकिल अपने कब्जे में ले ली थी. उसी में घूमा करते थे. इसके बाद उन लोगों ने कोई वारदात नहीं की. इधर मेरे अभिन्न साथियों ने, जिनमें स्व. सुवालाल व्यास, स्व.अब्दुल हबीब पठान व स्व. कांतिप्रसाद गौड़ थे, मेरी सुरक्षा चाक चौबंद कर रखी थी.
कुदरत के इस खेल को देखिये कि रूपलाल स्वयं टायर के नीचे आकर इस संसार से विदा हुआ और मुझे चश्मदीद बना गया.
उन्होंने ये बात सहज में कह दी, पर उनकी आवाज में घबराहट जरूर थी. वैसे तो उग्र भीड़ के बीच जाना खतरे से खाली नहीं होता है, पर ऐसे मामलों में मैं हमेशा दुस्साहसी रहा हूँ. मैं युनियन अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी समझ कर घर से चल पड़ा. 15 मिनट में धटनास्थल पर पहुँच गया. वहां लोगों का जमावड़ा था. मृतक नजदीक में गरमपुरा का रहने वाला था इसलिए भी भीड़ होती जा रही थी. तरह तरह की बातें हो रही थी जैसे “लाश तभी उठेगी जब मुआवजा तय हो जाएगा,” “कंपनी को इसके बच्चे को नौकरी देनी पड़ेगी”. उस भीड़ में मेरे भी मित्र मौजूद थे. उन्होंने मुझे घेर लिया और घटना की पूरी जानकारी दी कि मृतक रूपलाल पारेता (नाम अब मुझे शायद सही याद ना भी हो) ड्राईवर था. एक प्राईवेट पार्टी के पत्थर ढोता था. डम्फर के नीचे सोया हुआ था. डम्फर का ड्राईवर श्री गुलाबचंद भी पारेता बिरादरी का था इसलिए ‘मारो-पीटो’ वाली बात नहीं थी. लेकिन कोई भी यह कहने को तैयार नहीं था कि ‘गलती रूपलाल की थी.’ मैंने वक्त की नजाकत देखते हुए कहा कि "लाश उठाने व मुआवजे में कोई सम्बन्ध नहीं है. मुआवजा कानूनन कंपनी को देना होगा. उसके लिए पोस्टमोरटम रिपोर्ट तो जरूरी है. हम परिवार की जितनी मदद हो सकेगी करेंगे. लोगों की समझ में बात आ गयी. रोते हुए परिवार के लोगों को घर भेजा गया और लाश को मुर्दाघर शिफ्ट किया गया. अगले दिन पुलिस भी बुला ली गयी और मैनेजमेंट द्वारा विधिवत सब कार्यवाही की गयी. पुलिस ने जो रिपोर्ट बनाई उसमें मुझे भी चश्मदीद लिखा गया.
उक्त घटना ने मुझे भी झकझोर कर रख दिया था क्योंकि 17-18 साल पहले यही रूपलाल ड्राईवर नशे में धुत्त होकर अपने ट्रक से मुझे मारने के लिए पीछे पड़ा था. मामला यों था कि सन 1974 में चार साल शाहाबाद में वनवास काटकर जब में वापस लाखेरी लौटा तो यूनियन की सत्ता में काबिज भाई इब्राहीम हनीफी व शिवनारायण गोचर की टीम ने मेरी उपस्थिति पर खुशी नहीं जताई थी. मुझे चुनाव न लड़ने देने के लिए प्रस्ताव पास कर लिया. (हमारी दोस्ती बाद में हुई) चुनाव में उनकी पूरी टीम हार गयी रामा जी अध्यक्ष और मैं जनरल सेक्रेटरी नियुक्त हो गया. अगले ही वर्ष हमने सीमेंट फैडरेशन का अधिवेशन लाखेरी में आयोजित भी कर लिया. मुख्य अथिति मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा जी थे. भंवरलाल शर्मा जी के अलावा अनेक गणमान्य नेता थे. पूरे देश से प्रतिनिधि आये थे. कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए अध्यक्ष एच. एन. त्रिवेदी व दूधिया जी ने बहुत खुशी जताई थी.
जब मैं कुछ बाहरी प्रतिनिधियों को रात की देहरादून एक्सप्रेस में बिठाने के लिए रेलवे स्टेशन ले जा रहा था तो एक ट्रक हमारी जीप को बार बार टक्कर मारने के लिए पीछा कर रहा था. हम बच निकले थे, पर मालूम हुआ कि मेरे खिलाफ एक बड़ी साजिश चल रही थी. इस साजिश में शराबियों की गैंग थी, जिसका सरगना कामगार संघ के पूर्व अध्यक्ष का निकट संबंधी था. उनको कामगार संघ में मेरा उदय तथा अधिवेशन की सफलता से चिढ़ हो रही थी. मालूम करने पर पता चला की रूपलाल उसका ही मुलाजिम था. पुलिस में रिपोर्ट की गयी. थानेदार जी होशियार निकले. ऍफ़.आई.आर. नहीं लिखी, पर रूपलाल को मेरे सामने बुलाकर डाटा-फटकारा और छोड़ दिया. बाद में ये मालूम हुआ कि थानेदार जी ने आरोपी पार्टी की मोटर साईकिल अपने कब्जे में ले ली थी. उसी में घूमा करते थे. इसके बाद उन लोगों ने कोई वारदात नहीं की. इधर मेरे अभिन्न साथियों ने, जिनमें स्व. सुवालाल व्यास, स्व.अब्दुल हबीब पठान व स्व. कांतिप्रसाद गौड़ थे, मेरी सुरक्षा चाक चौबंद कर रखी थी.
कुदरत के इस खेल को देखिये कि रूपलाल स्वयं टायर के नीचे आकर इस संसार से विदा हुआ और मुझे चश्मदीद बना गया.
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