मित्रो!
दिल पर हाथ रख कर बोलिए, क्या आज देश में धार्मिक असहिष्णुता फ़ैली हुई नहीं है? सत्तानशीं लोग कहते हैं कि ये
काग्रेसियों की साजिश मात्र है, बदनाम करने की मुहिम है, पर यह पूरा सच नहीं है.
मैं हल्द्वानी शहर से
सटे हुए एक आधुनिक गाँव में निवास कर रहा हूँ, जहाँ 99.9% आबादी हिन्दू है. अधिकाँश बुजुर्ग
सरकारी या गैरसरकारी सेवाओं से रिटायर्ड हैं, जहां कहीं भी उठते बैठते या साथ घूमते
हैं तो देश की सियासत पर चर्चा होने लगती है. समाचार चैनल्स की ख़बरों पर तप्सरा होने
लगता है. केंद्र की पिछली सरकार में हुए घोटालों को भाजपा ने अपने लोकसभा चुनावों में
खूब भुनाया अत: अधिकांश लोग परिवर्तन चाहते थे, और आज भी ‘मोदी’,
‘मोदी’ की आवाजों से खुश नजर आते हैं. परन्तु मैं अनुभव
कर रहा हूँ कि लोग दूसरे धर्मों, विशेषकर मुस्लिम धर्म के प्रति गैर जरूरी रूप से असहिष्णु
हो रहे हैं. उनको ये हिन्दुस्तानी मानने को तैयार नहीं है. मैं समझता हूँ की ये ध्रुवीकरण
बरास्ता असहिष्णुता ही है.
प्रधानमंत्री जी ने आज
जिन शब्दों में संविधान दिवस पर लोकसभा में भाषण दिया वे बहुत ‘पावन’ नज़र आ रहे थे, पर खाली बोल देने से क्या होता है? सच्चे मन से उन पर अमल भी होना चाहिए. उनके अनुयायियों को मनमाना बोलने की छूट है, और नसीहत की बात तब होती है, जब सारा जहर फ़ैल चुका
होता है. कई मामलों में प्रधानमंत्री जी की लम्बी चुप्पी संदेह के घेरे में रही है.
और आलोचाना का कारण भी बनी है. छिद्रान्वेषी जन कहते हैं कि राजनीति में कई मुखौटे
होते हैं.
आज राज्य सभा में विरोध
पक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद जी का भाषण मैंने आद्योपांत सुना, उसमें उन्होंने सही कहा
कि संविधान बनाने की भूमिका में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को नकारने जैसी
प्रक्रिया सदन और सदन के बाहर हो रही है. इससे बड़ी असहिष्णुता क्या हो सकती है. जिन्होंने
आजादी के आगे-पीछे नेहरू जी के त्याग और देशभक्ति का इतिहास नहीं पढ़ा सुना है, वे उनकी
कुछ व्यक्तिगत कमजोरियों को मुद्दा बनाकर उछाल रहे हैं, ये शर्मनाक असहिष्णुता ही है.
हो ये रहा है की जहां
कहीं असहमति या विरोध के स्वर उठते हैं, सत्ता पक्ष द्वारा तीखी प्रक्रिया देकर दुत्कारने
के अनेक प्रमाण सामने आ जाते हैं. इसी को असहिष्णुता
कहा जा रहा है, जो सत्य है.
जब कुछ मान्य कलाकार,
साहित्यकार, व बुद्धिजीवी देश के वातावरण में
असहिष्णुता की गंध महसूस करके अपना विरोध प्रकट कर रहे हैं, तो उनका मजाक बनाने या उनको
गालियां देने के बजाय इस समस्या को गंभीरता से लिया जाना चाहिए.
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