सोमवार, 30 अप्रैल 2018

मेरा जन्मदिन

मेरे स्कूल सर्टीफिकेट में मेरी जन्म तिथि १ मई १९४० अंकित है, मेरे पिताश्री ने ना जाने कुछ अच्छा ही सोच कर एक साल कम करके १९३९ के बजाय १९४० लिखाया होगा, पर इस एक साल के अंतराल की वजह से मेरे जीवन की दिशा बदल गयी क्योंकि इण्टरमीडिएट पास करते ही मुझे तब ‘ग्राम सेवक’ के पद के लिए कॉल आ गया था, किन्तु उम्र पूरे अठारह नहीं होने से मुझे नौकरी का वह चैनल नहीं मिल सका था.

यह संयोग ही है कि हमारे देश में १ मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और मुझे आगे चलकर सीमेंट इंडस्ट्री में काम करते हुए सीमेंट कामगारों के ट्रेड यूनियन लीडर के रूप में मान्यता मिली तथा लगातार २५ वर्षों से अधिक समय तक अखिल भारतीय सीमेंट एंड अलाइड वर्कर्स फैडरेशन का पदाधिकारी रहा. उस दौरान मुझे प्रारम्भ में एटक के बड़े नेता स्व. श्रीनिवास गुड़ी (कर्नाटक),  इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व. जी. रामानुजम, व फेडरेशन के अध्यक्ष स्व. एच.एन. त्रिवेदी, सी. एल.दूधिया, व भाई इब्राहीम हनीफी का सानिध्य प्राप्त हुआ था.

मेरे अध्यापक पिता अपने पांच भाइयों के बड़े परिवार में कनिष्ट थे. मुझे बताया गया था कि मेरे माता-पिता ने अपने विवाह के अनेक वर्षों के बाद अनेक मान्यताओं के बाद मुझे प्राप्त किया था इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उस बड़े परिवार का अप्रतिम लाड़-दुलार मुझे मिला. दादाजी को अवश्य मैंने नहीं देखा पर दादी की छत्रछाया मेरे १७ साल की उम्र होने तक हम पर रही.  यह एक सही कहावत है कि "यह वह दिन होता है जब माँ अपने बच्चे के रोने पर खुश होती है." यही सबके साथ होता होगा, पर मैं बहुत खुशनसीब रहा हूँ कि १९८० तक पिता का और १९९७ तक माताश्री का वरदछत्र मुझ पर व मेरे परिवार पर रहा. 

मेरी तीन छोटी बहिनें खष्टी, राधिका, सरस्वती, व सबसे छोटा भाई बसंत, सभी का स्नेह-आदर मुझे आज भी बचपन की तरह ही मिल रहा है, जबकि में अपनी उम्र के अस्सीवें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा हूँ.

हमारी तीनों संतानें चि. पार्थ, गिरिबाला और प्रद्युम्न अपने अपने परिवारों के साथ सुव्यवस्थित और खुश हैं; तथा सम्मानपूर्वक जीने की मेरी जीवन पद्धति के सहयोगी हैं.

मेरी अर्धांगिनी श्रीमती कुंती पाण्डेय उम्र में मुझ से लगभग ५ साल छोटी है, पर अक्ल में हमेशा मुझसे आगे रहती हैं, और अभी भी कदम से कदम मिलाकर चल रही है.

मैं पिछले कुछ समय से तमाम राजनैतिक उहापोह व चिंतन से दूर रहकर अपनी स्मृतियों को शब्द देने का काम कर रहा हूँ. लाखेरी, जहां मैंने ३५ वर्षों से अधिक समय तक निवास किया, अथवा लाखेरी के बाहर के असंख्य मित्र मेरी दिनचर्या में मानसिक परिदृश्य बनाकर मौजूद रहते हैं. मुझे मालूम है कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मेरे सभी मित्रों की शुभकामनाएं मेरे साथ हैं और मैं भी सभी के सुख और सौभाग्य की निरंतर कामना करता हूँ.
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रविवार, 22 अप्रैल 2018

यादों का झरोखा - १८ - स्व. कुंजबिहारी मिश्रा

स्व. कुंजबिहारी मिश्रा दीक्षित परिवार के भानजे थे. केशवलाल दीक्षित जी और बृजबिहारी दीक्षित के चचेरे भाई मदनलाल दीक्षित उनके सगे मामा होते थे. बहन शारदा (पत्नी शरदकुमार तिवारी) उनसे पहले लाखेरी आ चुकी थी. इसी स्रोत से मिश्रा जी का लाखेरी पदार्पण हुआ था, ऐसा उनकी बेटी पुष्पा मिश्रा ने मुझे बताया है. वे १९५० के दशक में एक क्लर्क के बतौर एसीसी में भर्ती हुए थे, और सन ८२/८३ में चीफ स्टोरकीपर बन कर रिटायर हुए. सन ६८ में कुछ सालों के लिए उनको गुजरात की शिवालिया फैक्ट्री में स्थानांतरित किया गया था. वह एक दौर था जब ए.सी.सी. मैनेजमेंट द्वारा तत्कालीन नेता स्व. लखनलाल जी की खिलाफत करने वाले चुनिन्दा लोगों को लाखेरी से तड़ीपार कर दिया जाता था. उस लिस्ट में नंबर एक थे, ओवरसीअर मि. नायर, दूसरे नंबर पर कुंजबिहारी मिश्रा और तीसरे पर मैं स्वयं.

कुंजबिहारी जी एक विलक्षण व्यक्ति थे. उन्होंने १९६३ में स्वयंभू नेता लखनलाल जी को  कामगार संघ का अध्यक्ष पद और गरमपुरा पंचायत के सरपंच के पद से बेदखल कर दिया था, लेकिन अपनी अक्खड़ व स्पष्टवादी स्वभाव के चलते कामगार संघ के अगले ही चुनाव में वे हार गए. सरपंच पद उन्होंने खुद ही छोड़ दिया था.

कुंजी बाबू अपनी नौकरी के कार्यों में बहुत प्रवीण थे. उनका सामाजिक दायरा भी बहुत बड़ा था पर दूसरों का छिद्रान्वेषण करके सार्वजनिक रूप से ‘चूँकि, चुनांचे, पर’ के साथ मजा लिया करते थे इसलिए बहुत से मित्र उनसे बचते भी नजर आते थे. उनके एक सगे समधी स्व. केशव दत्त ‘अनंत’ (श्री रविकांत शर्मा के पिता) तो बरसों उनसे अबोले रहे.

मिश्रा जी की पांच बेटियों में से पुष्पा मिश्रा गत दो वर्ष पूर्व कंपनी के कैशियर पद से रिटायर हो चुकी हैं. अन्य बेटियों में लता रविकांत शर्मा अध्यापिका, ममता भूटानी पुलिस इंस्पेक्टर, रंजना तथा निरुपमा ने अपने अपने अपने संसार खुद बसाए हैं. और सब प्रकार से सुखी हैं. सुपुत्र सुधीर मिश्रा कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से कोर्स करके आये और वर्तमान में लाखेरी MVD में शायद फोरमैन हैं. उन्होंने अपनी वंशबेल आगे बढ़ाई भी है.

श्रीमती कुंजबिहारी मिश्रा एक समर्पित गृहिणी रही हैं, जिन्होंने बच्चों की परवरिश के साथ साथ शतायु सास की खूब सेवा की, जो कि लकवाग्रस्त होने के कारण बरसों  तक खाट पर जी रही थी.

कुंजबिहारी जी राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय रहे थे. एक समय स्थानीय भाजपा के अध्यक्ष भी बनाए गए थे. रिटायरमेंट के बाद वे कोटा में निवास बना कर रहे, और अंतिम समय में बच्चों के पास लाखेरी आ गए थे. जहां कुछ वर्ष पूर्व उनका देहावसान हो गया है.

लाखेरी में कुछ समय तक प्लांट हेड रहे श्री मनोज मिश्रा उनके सगे भतीजे थे.

चूकि मैं उनके समय में लाखेरी की यूनियन व अन्य संस्थाओं से जुड़ा हुआ था, इसलिए उनका सानिध्य मुझे भी मिला था. लाखेरी के इतिहास में उनका नाम अमिट है.
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रविवार, 8 अप्रैल 2018

यादों का झरोखा - १४ लाखेरी रामायण

कुछ भूली बिसरी यादें जब कभी जीवंत हो जाती हैं तो गुदगुदा जाती हैं. उन दिनों जो छोटे बालक हुआ करते थे, वे अब बहुत सयाने हो गए हैं, और जब से फेसबुक-मैसेंजर का चलन आम हुआ है, मुझसे मित्रता करके पुराने दिनों की मस्ती पर कलम चलाने को कहते हैं.

कल एक मित्र सच्चिदानंद शर्मा ने जब मैसेंजर पर मुझे कॉल किया तो मुझे इस विशिष्ठ नामवाले को याद करने में देर नहीं लगी कि ये स्व. राम प्रसाद शर्मा जी (अध्यापक ए.सी.सी. स्कूल) के सुपुत्र हैं. इनको मैंने इनके शैशव दिनों में अपने पिता की साईकिल की बेबी सीट पर भी देखा था. बाद में ९० के दशक में कारखाने में क्लर्क बनते भी देखा था. ये भी याद है कि इन्होने कंपनी की नौकरी छोड़ कर अन्यत्र अध्यापन का कार्य करना शुरू कर दिया था. हाँ तो, सच्चिदानंद शर्मा जी ने बताया कि वे आजकल 'लाखेरी हायर सेकेंडरी स्कूल' के प्रिंसिपल हैं. उन्होंने मेरे पुत्र डॉ. पार्थ के बारे में भी जानकारी चाही ,और कहा कि वे उनके साथ इसी स्कूल में पढ़े थे. उनकी वार्ता सुन कर अतीव खुशी हुई. मैंने दिल से बधाई दी. मुझे उनके पिता का मोटा चश्मा व ब्रह्मपुरी स्थित घर, सब कुछ कल्पना में सामने दिखा, और एक विशिष्ठ घटना भी सिनेमा रील की तरह घूम गई, जो इस प्रकार है. 

सन १९७६ का होलिकोत्सव – हास्य सम्मलेन था. १९७० से ७४ के बीच जब मैं शाहाबाद (कर्नाटक) में रहा तो मेरी अनुपस्थिति में आदरणीय फेरुसिंह रूहेला (बाद में हेडमास्टर बने) ने होली समिति के सेक्रेटरी के रूप में कार्यक्रमों को संचालित किया और मेरे द्वारा निर्धारित पिछली लीक पर इसे मनोरंजक बनाए रखा.  

हास्य सम्मलेन में प्रहसन, गीत-संगीत, नृत्य, चुटकुले, उपाधि वितरण सब स्थानीय हास्य से ओतप्रोत होते थे. नौजवान कलाकार अनिल तिवारी, अब्दुल मालिक, चन्द्र शेखर तिवारी (टीटू), भगवान दलेर, सुखदेव शर्मा, श्री बल्लभ तिवारी, किशन महेश्वरी, अजित जोशी, अब्दुल रशीद पठान, आदि अनेक लोगों का योगदान रहता था और मैं कार्यक्रम सूत्रधार रहता था.

सन १९७६ के हास्य सम्मलेन के लिए मैंने एक ‘लाखेरी रामायण’ लिखी, जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया. इस रचना में ‘राम’ शब्द वाले तमाम नामों को हास्य रूपक में गूंथा गया था. वह रचना अब मेरे पास नहीं है, पर उसके कुछ मजेदार अंश मेरी स्मृति में हैं. मैं अपने पाठकों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ:

मैं लिखने जा रहा हूँ एक ‘लाखेरी रामायण,’जिसके लिए मुझे तलाश है एक अदद राम की!
मैंने यूनियन प्रेसीडेंट रामाजी से जब पूछा
तो वे बोले “मूँ तो अनपढ़ छूं, चौपाईयां कस्यां बोलूंगो.”इतने में मिल गए बड़ी बड़ी मूछों वाले मौलाराम
उनको प्रस्ताव यों नहीं भाया कि वे अपनी पत्नी का – अपहरण नहीं करवा सकते थे.
टेकडी पर मास्टर राम प्रसाद मिले तो बोले
मैं बन जाऊंगा राम,
पर हेडमास्टर भारद्वाज अडंगा डालेंगे--आपस में खटपट के चलते,जब हेडमास्टर जी से किया जिक्र तो
भिड़ते ही बोले, “अरे मत बनाना इसको राम,
जिन छोरों को इसने पढ़ाया है –हुए हैं वे सब फेल,
तुम्हारी रामायण भी हो जायेगी डीरेल”....

यों तत्कालीन राम नाम वाले सभी राम किसन, राम नारायण, राम जीवन आदि नामों को रचना में घसीटा गया था. बहुत दिनों तक इस रामायण के दोहे चर्चा में रहे थे.

आज जब प्रिय सच्चिदानंद का फोन आया तो मैंने  स्वनामधन्य स्व. राम प्रसाद शर्मा जी के ‘जाए’+ 'पढ़ाये’ प्रधानाचार्य को मैंने हार्दिक बधाई दी. ऐसा लगा कि मेरी लाखेरी रामायण फेल नहीं, बहुत अच्छे अंकों से पास हुई है.
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