मेरे २००० से अधिक
फेसबुक मित्रों में आदरणीय आर.के.सूरी जी अनन्य हैं, वे एसीसी के बड़े अधिकारी रहे
हैं इसलिए मेरा एक ‘फॉर्मल बोंड’ उनके साथ है. वे अकसर अपनी वॉल पर ज्ञानवर्द्धक/
समसामयिक लेख प्रकाशित करते रहते हैं जिसे उत्सुकतापूर्वक पढ़ा जाता है; पर कभी ऐसा
भी होता है कि ‘अच्छी किताब व अच्छे इंसान को पहचानने के लिए काफी समय तक पढ़ना
पड़ता है.
सूरी साहब ने कुछ
साल पहले इसी तरह फेसबुक पर उद्योगपति विजय माल्या की सुबुद्धिमता की बड़ी तारीफ़ की
थी. एक दृष्टान्त देकर उन्होंने लिखा कि एक बार अमेरिका से यूरोप की यात्रा के समय
माल्या ने अपनी कीमती कार महज ५०० डॉलर
में बैक को गिरवी रखी थी. वापसी पर बैक के अधिकारी ने जब उससे पूछा तो कहा कि कार
की सुरक्षित पार्किंग के साथ ५०० डॉलर का व्याज इतना मामूली देना पडा अन्यथा बाहर कार
की पार्किंग शुल्क बड़ी रकम के रूप में चुकानी पड़ती. माल्या की व्यावसायिक कुटिलता की
राष्ट्र्धातक कहानियां बाद में निरंतर उजागर हुई हैं.
इसी तर्ज पर
बलात्कार के आरोपी नामनिहाल सन्त आसूमल उर्फ़ आशाराम की एक वीडिओ क्लिपिंग में
मैंने देखा कि स्व.अटल जी, अडवानी जी, नरेंद्र मोदी जी, राजनाथसिंह जी व
दिग्विजयसिंह जी जैसे माननीय जन नत मस्तक होकर उनका आशीर्वाद ले रहे थे. आसूमल के
पापों का घडा देर से भरा और अंधभक्तों की समझ में उसका असली रूप बहुत बाद में आया है.
आजकल राजनीति के
परिपेक्ष में कीमती धातुओं की मूर्तियाँ बनाने का काम जोरों पर चल रहा है, मायावती
जी ने अपने जीतेजी अपनी और स्व. कांसीराम की मूर्तियाँ खडी कर दी , जो इन दिनों
लावारिश सी नजर आने लगी हैं.
नेहरू जी व गांधी
परिवार ने लम्बे समय तक राज किया इसलिए उनके असंख्य स्मारक देश में हैं लेकिन
इसमें उनका अपना कोई दोष नहीं है क्योंकि उनके स्वर्गवास के बाद फालोवर्स ने ये
काम किया है. लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद नये रहनुमाओं को ये चुभ रहे हैं. मोदी जी
ने गुजरात में ‘सरदार सरोवर’ के स्थल पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक बड़ी मूर्ती की
स्थापना हाल में की है जो दुनियाँ में सबसे ऊंची बताई गयी है. ‘सरदार सरोवर’
जवाहरलाल नेहरू ने पटेल साहब की स्मृति में बनवाया था. पर ये मूर्ती की स्थापना
में कुछ इस तरह की भावना व्यक्त की जाती रही कि नेहरू के व्यक्तित्व तथा कृतित्व
को कमतर आंका जाए. एक समय कांग्रेसी गृहमंत्री सरदार पटेल ने गांधी हत्याकांड के
बाद आर.एस.एस.पर प्रतिबन्ध लगाया था, पटेल साहब जब १९४९ में स्वर्गवासी हुए तो
आर.एस.एस. ने उनकी अंतिम यात्रा का बहिष्कार किया था, इसलिए ये कहा जा रहा है कि
राजनैतिक हित साधना के लिय विशुद्ध रूप से ये प्रेम जागा है. इन बरसों में हमने
देखा है कि नरेंद्र मोदी जी नेहरू को गरियाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते हैं. बहरहाल अब ये विराट मूर्ती देश के लिए एक
ऐतिहासिक सौगात है, इसके खर्चे-पर्चे व उद्देश्यों पर ना जाकर नकारात्मक ना सोचा
जाए तो ही अच्छा है.
मुम्बई में शिव
सेना स्व.बाल ठाकरे जी की तथा केंद्र सरकार हिन्द महासागर में शिवा जी की बड़ी
मूर्ती लगाने का आह्वान कर चुके हैं.
कल के अखबारों में
एक खबर छपी है की मेरठ के एक भक्त नरेंद्र मोदी जी की एक बड़ी मूर्ती लगाने की
तैयारी कर रहा है. ये सिलसिला अवश्य अंतहीन है लेकिन विकासशील देश की सद्य प्राथमिकताएं और भी बहुत हैं.
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