बुधवार, 10 सितंबर 2014

सुखई बैद

बच्चों, तुमने फारसी कहानियों में ऊँट के गले में तरबूज फंसने के किस्से जरूर पढ़े होंगे. मैं यहाँ जो कहानी तुमको सुनाने जा रहा हूँ, वह शुद्ध देसी है. ये कोई पौराणिक कथा या गल्प कतई नहीं है, लेकिन अर्वाचीन घटना भी नहीं है. यों मान के चलो कि आज से दो-ढाई हजार साल पहले घटित घटना है.

उस जमाने में कोई मेडीकल कॉलेज या इंस्टीट्यूट तो होते नहीं थे, गुरुकुल में ऋषियों/मुनियों/सन्यासियों या सदगुरुओं से मौखिक ज्ञान मिलता था. यों भी होता था कि किसी पुराने अनुभवी वैद्य जी की शागिर्दी करके सीखते रहो.

सुखई बैद एक ऐसा ही नौसिखिया नीम हकीम था. एक बार जब वह किसी रेगिस्तानी इलाके के गाँव से गुजर रहा था, उसने एक मजेदार दृश्य देखा कि एक पालतू ऊँट एक साबुत तरबूज निगलने की कोशिश कर रहा था, और तरबूज के गले में अटकने से परेशान होकर धरती पर गिर पड़ा. ऊँट चराने वाला उसका मालिक एक किशोर लड़का था, जिसने बिना कोई देर किये ऊँट के गर्दन पर एक मूंगरी (कपड़े धोने में काम आने वाला छोटा बैटनुमा लकड़ी का हथियार) से ठोककर गले में फंसे हुए तरबूज को फोड़ दिया. इस तरह ऊँट श्वास अवरोध के कारण मरने से बच गया और खड़ा होकर चल पड़ा.

सुखई बैद ने फूली हुई गर्दन की ऐसा ठोक-पीट इलाज पहली बार देखा. जब वह अपने गाँव पहुंचा तो उसने खबर फैला दी की वह इस बार गलगंड’ (घेंघा) रोग का जादुई इलाज सीख कर आया है.

दरअसल, गलगंड तो आयोडीन नामक तत्व की कमी से होने वाली एक शारीरिक विकृति है, जिसमें गर्दन स्थित थाईराइड की ग्रंथि फूल कर मोटी हो जाती है. आज भी जिन इलाकों के पेयजल में आयोडीन की प्राकृतिक रूप से कमी पाई जाती है, वहाँ के निवासियों में ये रोग बहुतायत में पाया जाता है. इसलिए सरकार द्वारा निर्देश हैं की आयोडीन की कमी पूरी करने के लिए आयोडाइज़्ड नमक ही बेचा-खाया जाए.

सुखई बैद के पास गलगंड का जादुई इलाज कराने के लिए पहला मरीज भारीभरकम गोपू पहलवान आया. गाँव के बच्चे, बूढ़े और जवान सब बड़ी उत्सुकता से सुखई का जादुई करिश्मा देखने के लिए इकट्ठा हो गए. सुखई बैद ने बड़े इत्मीतान से गोपू पहलवान को जमीन पर लिटाया और उसके गर्दन के नीचे तकिया रख कर ऊपर से मूंगरी दे मारी। नतीजन गोपू तड़पता हुआ वहीं ढेर हो गया. देखने वाले समझ गए की सुखई ने मूर्खतापूर्ण तरीके से गोपू को मार डाला है. तुरंत पंचायत बुलाई गयी, और पंचों ने फरमान जारी किया कि इस अपराध की पहली सजा सुखई को गोपू की लाश को अपनी पीठ पर लाद कर पांच मील दूर शमशान घाट तक अकेले पहुंचाना पड़ेगा और दूसरी बड़ी सजा ये होगी की सुखई को बारहपत्थर बाहर(गाँव बदर) होना पडेगा.

पंचायत का हुक्म था, सुखई को बड़े कष्ट के साथ गोपू की ढाई मन की लाश को उतनी दूर तक ढोना पडा, और फिर गाँव छोड़ कर दूर किसी अनजाने गाँव में अजनबी की तरह रहना पड़ा.

कुछ वर्षों के बाद सुखई के उस नए गाँव में पुराने गाँव से एक लड़की ब्याह कर आई जिसने सुखई बैद को पहचान लिया और गाँव में बात फैला दी कि सुखई बैद गलगंड का जादुई इलाज जानता है.  जब गाँव के जिम्मेदार लोगों ने सुखई से से संपर्क किया तो उसका पहला प्रश्न था, यहाँ शमशान घाट कितनी दूर है? 

सुखई का प्रश्न सुन कर गाँव वाले शंकित हो गए और उसकी पूरी पड़ताल करके वहाँ की पंचायत ने उसकी नीम हकीमी बंद करवा दी. शायद तभी से "नीम हकीम खतरा-ए-जान" का मुहावरा भी चल पड़ा. अंग्रेजी में इसे कहते हैं "A little knowledge is a dangerous thing".
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