शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

किशोरों के नाम

प्यारे बच्चों,
कहते हैं कि मुग़ल काल के उर्दू-फारसी के महान शायर मिर्जा ग़ालिब बड़े मनमौजी किस्म के आदमी थे. एक बार उनको एक बार किसी शाही दावत का निमंत्रण मिला तो वे, यों ही, अपने साधारण लिबास में पहुँच गए, लेकिन द्वारपाल ने उनको ठीक से पहचाना नहीं तथा उनके पुराने, मैले से कपड़ों पर टिप्पणी करते हुए अन्दर घुसने की इजाजत नहीं दी. घर आकर मिर्जा ने अपनी सबसे अच्छी पोशाक पहनी और बड़े ठाठ से फिर पहुँच गए. इस बार उनके चमकते-दमकते लिबास को देखकर किसी भी दरबान ने उनको नहीं रोका. दावत के दस्तरखान पर जब खाना शुरू हुआ तो मिर्जा ग़ालिब ने शाही पकवानों को अपने कपड़ों पर चुपड़ना शुरू कर दिया. यह देखकर बादशाह सलामत तथा अन्य दरबारी आश्चर्य करने लगे. पूछने पर मिर्जा ने बताया कि ऐसा लगता है कि मुझसे ज्यादा इन कपड़ों की इज्जत है. इसलिए इनको पहले खाना खिला रहा हूँ. जब बात सबकी समझ में आई तो उनकी विद्वता की सराहना करते हुए माफी मांग ली गयी.

गांधीवादी ट्रेड यूनियन लीडर स्वर्गीय जी. रामानुजम ने अपनी पुस्तक द थर्ड पार्टी में मजदूर नेताओं को नसीहत देते हुए एक जगह लिखा है कि "प्रबंधको से बातचीत या बार्गेनिंग करते समय संयत भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए. पहनावा साफ़ सुथरा व सभ्य जनों का सा होना चाहिए". उन्होंने इस बाबत उदाहरण के तौर पर बताया है कि अगर कोई लड़का मैले कुचैले कपड़े पहन कर रूपये के छुट्टे लेने पान की दूकान पर जाता है तो पनवाड़ी छुट्टा होते हुए भी कह देता है छुट्टा नहीं हैं और अगर वह साफ़ सुथरा अच्छे कपड़े पहने होता है तो पनवाड़ी बगल वाली दूकान से मांग कर भी लेकर देता है.

इस बारे में स्वामी विवेकानंद जी का अमरीकी लड़कों से हुआ वर्तालाप भी समझने और स्वीकारने योग्य है कि जब उन लड़कों ने स्वामी जी को लम्बे चौड़े गेरुवे लबादे में देखा तो वे खिल्ली उड़ाने लगे पर स्वामी जी महान दार्शनिक व विद्वान थे. उन्होंने उत्तर दिया कि “In your country a tailor makes a man perfect, but in my country character makes a man perfect.” स्वामी जी की पोशाक भारतीय परिवेश में बहुत पवित्र और ग्राह्य थी. उन्होंने चरित्र की पवित्रता को बहुत सुंदर तरीके से समझा दिया. सब लोग उनके कायल हो गए. वहां की धर्म संसद में भी उन्होंने हमारे सनातन धर्म की जो व्याख्या की वह ऐतिहासिक दस्तावेज है. 

कुल सारांश यह है कि साफ सुथरी व अच्छी वेशभूषा के साथ साथ साथ चरित्रवान भी होना चाहिए. ये चरित्र क्या होता है? इसके अच्छे-बुरे होने के बारे में अपने अगले ब्लॉग में लिखूंगा.
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (25-10-2014) को "तुम ठीक तो हो ना....भइया दूज की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1772) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    प्रकाशोत्सव के महान त्यौहार दीपावली से जुड़े
    पंच पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शास्त्री जी सादर नमस्कार.आपको दीपावली खुशियाँ और सुख समृद्धि से नवाजे, आपका चर्चा मंच का मिशन आपको सरस्वती संसार में अमरता प्रदान करे ऐसी कामना है.मैं तो बरसाती किस्म का लेखक हूँ, आप मेरी रचनाओं को मंच पर स्थान देते रहते हैं, आपका आभारी हूँ.

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