हमारा घुघुतिया
त्यौहार.
हमारे कुमायू क्षेत्र
(उत्तराखंड) में मकर संक्रांति पर ‘घुघुतिया’ नाम का एक अनूठा
पारंपरिक त्यौहार मनाया जाता है
सूर्य अपने सौर मंडल
के गृह-उपग्रहों के साथ अनंत आकाश में स्वयं भी अबाध गति से चक्कर काटता है, सारा सौर
मंडल सूर्य की ऊर्जा, प्रकाश व चुम्बकीय शक्तियों पर निर्भर है. इसलिए अनादि काल
से सूर्य को भगवान् कहा जाता है. अनेक अवसरों पर अनेक प्रकार से इसकी पूजा-अर्चना
की जाती है. मकर संक्रांति जिसे ज्योतिष गणना तथा खगोलीय परिवर्तन के आधार पर धनु
राशि से मकर राशि में संक्रमण होना माना गया है तो इसे संक्रांति कहा जाता है.स्नान कर्म, दान-पुन्य
व सूर्य पूजन का विधान है. पश्चिमी प्रदेश में पतंगबाजी भी अब इस अवसर का शुगल हो
गया है. गंगा स्नान, कल्पवास आदि अनेक तरह की तपस्या का प्रावधान सनातन धर्म में
किया गया है.
कुमायू क्षेत्र में
प्रसिद्ध तीर्थ बागेश्वर का उतरायणी मेला और घुघुतिया त्यौहार की विशेषता यहाँ के
निवासियों के लिए जूनून की तरह होता है. लोककथा के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में
यहाँ चन्द्र राजवंश का राज हुआ करता था .राजा कल्याण चन्द्र को बागनाथ भगवान् से
मनौतियों के बाद पुत्र निर्भय चन्द्र प्राप्त हुआ था, माँ ने उस बच्चे को ‘घुघुति’
निकनेम अर्थात फाख्ता रख दिया था (घुघुति निर्दोष, चिकना सा प्यारा पक्षी होता
है.) राजकुमार घुघुति कि मोतियों की माला प्रिय थी जिसमें घुंघुरू भी घुंथे हुए थे.माँ बच्चे की
जिद पर अकसर ठिठोली करके डराती थी कि “तेरी माला काले कौवे को दे दूंगी”
और ठिठोली में कौवे को बुला कर कुछ खाने को भी दे दिया करती थी. कहते हैं कि इस
प्रकार कौवे से उसकी दोस्ती सी हो गयी थी.राजा का मंत्री दुष्ट था उसने एकदिन
बच्चे को उठावा लिया और बध करने के इरादे से जंगल में ले गए. उसका इरादा राज्य में
खुद कब्जा करने का था पर बच्चे के सौभाग्य से काले कौवे ने बच्चे को पहचान लिया और
काँव काँव करके सभी कौवों को इकट्ठा कर लिया मंत्री के लोग डर कर बच्चे को वहीं
छोड़कर भाग लिए.बच्चे ने घबराकर अपनी माला पेड़ की साख पर लटका दी जिसे लेकर काला
कौवा राजमहल पहुँच गया और आभाष करा दिया कि बच्चा मुशीबत में है. कौवा काँव काँव
करते हुए राजा के सैनिकों को जंगल की तरफ राह बताता हुआ उड़ चला. बच्चा सैनिकों को
सकुशल मिल गया. इस खुशी में राज महल में आटे में गुड मिलाकर छोटे छोटे चाबीनुमा गुन्थियाँ
बनाकर घी में तलकर कौवों को बुला बुलाकर खिलाया गया ये मकर संक्रांति का दिन था.
समस्त प्रजा हर्षोल्लासित हो गयी सबने अपने बच्चों के गले में गुन्थियों की मालाएं
पहनाई.इन गुन्थियों को ‘घुघूत’ नाम दिया गया. इन
मीठे घुघुतों को बच्चे खाते भी रहते हैं कई दिनों तक खराब भी नहीं होते हैं.
मकर संक्रांति शाम को
पकवान बनते हैं और सुबह सवेरे घर के छज्जों पर से बच्चे काले कौवों को घुघुते व
पकवान खाने के लिए चिल्ला चिला कर आवाज देते हैं, और कौवे आते भी हैं. सरयू नदी के
पूर्वी भाग के गांवों में ठीक मकर संक्रांति यानि माघ एक गते को और पश्चिमी तरफ के
गावों में अगली सुबह बच्चे बहुत उत्साह से” काली कौवे आजा”
बोलते हुए आज भी हर वर्ष कौवों को बुलाया करते हैं सभी गावों में ये उल्लास अनुपम
होता है.
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'घुघुतिया' त्यौहार के बारे में सुन्दर जानकारी प्रस्तुति हेतु आभार! घुघुतिया की हार्दिक शुभकामनायें!
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