अंतर्राष्ट्रीय बाजार
में कच्चे तेल (क्रूड ऑइल) की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से घट कर 50 डॉलर से भी नीचे
आ गयी है. इसका कारण तेल उत्पादक देशों की प्रतिस्पर्धा या कोई अन्य व्यवसायिक रहा
हो सकता है; नतीजन रूस जैसा देश दिवालिया होने के कगार पर आ गया है. हमारे देश का तेल
उत्पादन आयातित कच्चे तेल के अनुपात में बहुत थोड़ा है इसलिए आयात का बिल पुरानी कीमतों
के मुकाबले आधे से भी कम रह गया है. अधिकतर तेल कम्पनियां सरकारी हैं, जिन्होंने अपना
अगला पिछला घाटा पूरा करने के लिए भरपूर मुनाफाखोरी शुरू कर रखी है. लगे हाथों राज्यों
ने भी बहती गंगा में हाथ साफ़ किये हैं कि तेल पर वैट दुगुना-तिगुना कर लिया है. यानी
सरकारी कालाबाजारी हो रही है.
पिछले वर्षों में जब पेट्रो
पदार्थों की कीमतें सरकारी नियंत्रण में थी, तो एलपीजी गैस तक में सब्सिडी शुरू की गयी
थी. ये सब्सिडी इसलिए भी थी कि ईंधन के लिए अनाप-सनाप तरीके से जंगल साफ़ किये जाने पर रोक लगे. अब जब शहरों में
लगभग 100% व ग्रामीण इलाकों में 50% से अधिक लोग कुकिंग गैस का इस्तेमाल करने लगे थे
तो सरकार के लिए ये घाटे का सौदा बन गया. अत: पिछली मनमोहनी सरकार ने इसका व्यापार
भाव बाजार के हवाले करते हुए सब्सिडी कम करने के उपाय लागू कर दिए. पिछले साल तक
जब भी पेट्रोल डीजल या कुकिंग गैस पर एक रुपया, दो रूपये आये दिन बाजार का हवाला देकर
बार बार बढ़ाये जाते थे तो मीडिया बढ़त को ‘आग लग गयी’
जैसे जुमलों से हर बार उछाला करती थी. लेकिन अब जब कीमतें अंतर्राष्ट्रीय कीमत के अनुपात
में घटने चाहिए, तो मीडिया खामोश है. पहले मामूली बढ़त में भी यात्री किरायों में तुरंत
उछाल आता था, पर अब दाम कम होने की स्थिति में कोई हलचल नहीं हो रही है. पेट्रोल-डीजल
की कीमतों में प्रति लीटर जो आठ-दस रुपयों की कमी हुई है, वह उपभोक्ताओं के आंसू पोंछने जैसा है.
समस्या यह है कि देश में
कोई मजबूत विपक्ष नहीं रहा, जो कि इस तरह के गंभीर मामलों में उपभोक्ताओं को यथोचित
लाभ दिलाने के लिए आवाज उठाये. सत्तापक्ष मोदी जी के विजय रथ पर आत्ममुग्ध है. उनको
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव गिरने में भी मोदी फैक्टर नजर आ रहा है.
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सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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उल्लास और उमंग के पर्व
लोहड़ी और मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'