मैं डॉ. परमानंद पांडे
एम.डी. एक फिज़ीशियन हूँ. तिकोनिया शहर के मुहाने पर मैंने दस साल पहले अपनी एक
क्लीनिक खोली थी, जो भगवत कृपा से तथा मेरे मातहत मेडिकल स्टाफ की मेहनत के कारण
शहर का एक नामी अस्पताल कहा जाने लगा है. मैंने क्लीनिक के बाहर उन तमाम बीमारियों
के नाम लिखे हैं, जिनके इलाज में मुझे महारत हासिल है. मैंने मुख्य एंट्रेंस पर एक जुमला
भी लिख कर लगवाया है, "हे ईश्वर, मेरी रोजी-रोटी यहाँ आने वाले रोगियों के दुःख-दर्द
से निकलती है; चूंकि मेरे कार्य में सेवाभाव भी है इसलिए आप मुझे क्षमा कर देना."
रिसेप्शनिस्ट के काउंटर
पर अपनी कन्सल्टेन्सी फीस "दो सौ रुपये" भी लिखवा रखा है, ताकि आगंतुक रोगियों को पेमेंट का अहसास रहे. मुझे ये कहते हुए
हर्ष हो रहा है की मैं अपने मिशन में पूरी तरह सफल हूँ. लोगों की दुआओं का असर यह
है की मेरा पारिवारिक जीवन सुखमय है. पर पिछले एक साल से मैं एक मानसिक परेशानी
झेल रहा हूँ कि मेरे क्लीनिक के ठीक सामने गुड्डू नाम के एक तांत्रिक ने अपनी बड़ी
सी दूकान खोल ली है. मेरी ही तर्ज पर उसने अधिक चमकदार अक्षरों में उन तमाम
बीमारियों तथा आपदाओं के ईलाज की गारंटी लिखी हुई हैं. उसने फेल विद्यार्थियों को
पास करने की, पति-पत्नी के बिगड़े रिश्ते सुधारने की, वशीकरण कराने जैसी अतिरिक्त
बातें भी लिखी हुई हैं. मेरी ही तर्ज पर अपनी फीस का बोर्ड "तीन
सौ रुपये" लिख कर टांग रखा है, जो हर आने जाने
वाले को आकर्षित करता है.
मेरे बचपन से ही कुछ
ऐसे संस्कार रहे हैं कि मैं तांत्रिक विद्या को ठग विद्या कहा करता हूँ.
अन्धविश्वासी तथा मूर्ख लोग तांत्रिकों के चक्कर में फंसते हैं. रुपया-पैसा व कई
बार अपनी आबरू भी खो बैठते हैं. अखबारों में कई बार ऐसे किस्से पढ़ने को मिलते रहते
हैं. अब मेरी परेशानी यह है कि मेरे कई मरीज जिनका डायग्नोसिस नहीं हो पाता है, या जिनका ईलाज लंबा होता है, उनमें से कुछ लोग
या उनके परिजन गुड्डू तांत्रिक के पास चले जाते हैं. होता ये भी है कि जब किसी मरीज
का तांत्रिक से मोहभंग हो जाता है, तब वह मेरे पास आकर अपनी दास्ताँ सुनाता है.
मैं गुड्डू तांत्रिक की कारगुजारियों पर कुढ़ता रहता हूँ, लेकिन सीधे सीधे उससे उलझना नहीं चाहता हूँ
क्योंकि कीचड़ में पत्थर मारने से छींटे अपने ऊपर ही आते हैं.
गुड्डू तांत्रिक
चालाक, चतुर और बहुत बातूनी भी है. अपनी लच्छेदार बातों से जाल में ऐसे उलझाता है
कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. मैंने एक दिन उसे सबक सिखाने का मन बनाया और उनकी दूकान पर पहुँच गया.
वह मुझे पहचान गया. बनावटी हंसी हंसते हुए बोला, “डॉक्टर साहब, मैं आपकी
क्या सेवा कर सकता हूँ?”
मैंने गंभीर होकर कहा, “मेरी जीभ कोई चीज का स्वाद नहीं पहचान रही है.”
तांत्रिक ने अपने
कारिंदे बल्लू को आवाज देकर कहा, “अरे, २२ नंबर के बक्से की दवाई लाओ.” बल्लू एक छोटी बोतल में कुछ तरल पदार्थ लेकर
आया, चार-पांच बूँद मेरे मुंह में डाले. मेरा मुंह जलने लगा तो मैंने तुरंत थूक
दिया और कहा की ये तो पेट्रोल है.”
तांत्रिक बोला, “देखा,
मेरे २२ नंबर का कमाल? आपको स्वाद पहचानने में आ गया.”
मैं अपनी होशियारी में
फेल होकर लौट आया. पंद्रह दिनों के बाद मैं एक और समस्या लेकर उसके पास गया. इस
बार मैंने उसको कहा, “मेरी याददाश्त बिलकुल ख़त्म हो गयी है.”
तो उसने हमेशा की तरह कुछ मन्त्र बुदबुदाए, मोरपंख घुमाए और बल्लू को आवाज दी, “२२
नंबर के बक्से की दवाई लाओ.” इस पर मैंने उसको कहा, “२२
नंबर बक्से की दवा तो पट्रोल थी, जो पिछली बार मेरे मुंह में डाली गयी थी?”
तांत्रिक बोला, "वाह, वाह,
क्या बात है? एक बार के मन्त्र से ही आपको पंद्रह दिन पुरानी बात याद आ गयी. जाइये, आपकी याददास्त ठीक हो गयी
है.”
मैं उसकी चालाकी से फिर
हार गया था. लेकिन मैं उसे किसी भी हालत में छोड़ना नहीं चाहता था. कुछ दिनों के बाद मैंने
एक बार फिर से उसके पास जाकर कहा कि “मेरी नजर बहुत कमजोर हो गयी है. मेरी हालत
ये हो रही है की मैं करेंसी नोटों को नहीं पहचान पा रहा हूँ.”
इस बार उसने बड़े तिकड़मी अंदाज में हाथ जोड़ते हुए कहा “डॉक्टर
साहब आपने दो बार मुझे मेरी फीस दे रखी है. आपने मुझे इस काबिल समझा और सम्मान दिया, मैं अबके आपको सम्मान देते हुए आपकी बीमारी का इलाज
करूंगा”. मन्त्र बुदबुदाते हुए वह बोला, “जैसे आप इलाज करते हो, मैं भी करता हूँ, भाई भाई से लेना जुर्म है. ये लीजिये एक हजार रुपये का नोट.”
लेकिन जो नोट उसने मेरी ओर बढ़ाया था, वह केवल एक सौ रुपयों का था. मेरे मुंह से
निकल पड़ा, "ये नोट तो सौ का है, हजार का नहीं,”
वह मक्कार हंसते हुए बोला, “मैं जानता था की अब आप नोट की पहचान करने में सक्षम हो गए हैं.”
यों दोस्तों, सही इरादा
होते हुए भी मैं अभी तक उस ठग तांत्रिक को सबक नहीं दे पाया हूँ. आप भी मानोगे जो गलत
है, सो गलत है. टोना टोटके, अंधविश्वासों की
जड़ें हमारे समाज में बहुत गहरी हैं, जिनका लाभ लेने में गुड्डू तांत्रिक जैसे लोग सफल
हो जाते हैं. परन्तु इसके खिलाफ लड़ाई तो जारी रखनी होगी. इस लड़ाई में तुमको मेरा साथ देना
होगा.
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ऐसे लोग बिना पिटे कब मानने वाले?
जवाब देंहटाएं:) मज़ेदार। इन्होने तो पूरे हिंदुस्तान को ठगा हुआ है।
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