वाडी सीमेंट प्लांट
कर्नाटक राज्य के धुर उत्तर में स्थित है. यह इलाका कभी तेलंगाना, यानि हैदराबाद
निजाम के साम्राज्य का हिस्सा था. परिसीमन के बाद इसे कर्नाटक में ले लिया गया
था. यहाँ के निवासियों की बोलचाल की भाषा कन्नड़ तथा उर्दू है. हैदराबादी, यानि ‘दखिनी’
उर्दू-मिश्रित खड़ीबोली, सुनने में बहुत प्यारी लगती है. इस इलाके में मुस्लिम आबादी
का प्रतिशत अधिक बताया जाता है.
१९६६/६७ में लाखेरी
से हमारे जनरल मैनेजर स्व. एस. के. मूर्ति को इस कारखाने का प्रॉजेक्ट मैनेजर बनाकर
भेजा गया था स्व. मूर्ति ने लाखेरी कॉलोनी के क्वार्टर्स में बाउण्ड्रीज बनवाई, कोऑपरेटिव
सोसाईटी के पीछे झाड़ियों को साफ़ करवाकर एक छोटा सा पार्क भी बनवाया. हमने उनकी
याद में इस पार्क का नाम बाद में ‘मूर्तिपार्क’
रख लिया था, जिसमें हर साल होलिकोत्सव के कार्यक्रम हुआ करते थे. वाडी में मूर्ति
साहब के वानकी प्रेम व नगर संयोजन की
खूबसूरत झलक आज भी चारों तरफ विद्यमान है. सन १९७२/७३ में जब मैं शाहाबाद से स्व.
कामरेड श्रीनिवास गुडी के साथ एक ट्रेड यूनियन एक्टीविस्ट के रूप में यहाँ पहली बार
आया तब कंपनी एरिया/ फैक्ट्री गेट के आसपास उजाड़ बियावान सा लगता था, पर आज यहाँ
हराभरा नखलिस्तान दूर तक फैला हुआ है.
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स्व. श्रीनिवास गुडी |
फैक्ट्री गेट के आगे
मेन रोड के पास पर स्व. श्रीनिवास गुडी की उर्ध्वांग मूर्ति सुनहरे रंग में स्थापित
की गयी है, जो यहाँ के निवासियों/ कामगारों और एसीसी मैनेजमेंट की विनम्र
श्रद्धांजलि के रूप में नजर आती है.
कारखाने के प्रबंधन
कार्यालय के अन्दर एक शिलापट्ट लगा है, जिसमें लिखा गया है कि दूसरे फेज का उद्घाटन श्री नारायणदत्त तिवारी, तत्कालीन वित्तमंत्री भारत सरकार, के हाथों सन १९८४ में
किया गया था. मुझे अब बताया गया कि पुराने प्लांट की उत्पादन क्षमता ३५०० टन
प्रतिदिन व नए प्लांट की क्षमता १२५०० टन प्रतिदिन है. रॉ मैटीरियल की यहाँ
उपलब्धता व क्वॉलिटी की कोई समस्या नहीं रही है. ये पूरा इलाका लाईम स्टोन का
खजाना है. हाँ, इन वर्षों में वर्षा नहीं होने से पानी की प्राप्ति एक चिंता का
विषय बना हुआ है. कगीना नदी का पूरी तरह दोहन हो रहा है, जिससे व्यवस्था बनी हुयी है.
बगल में पुरानी बस्ती में सप्ताह में केवल दो बार जल निगन द्वारा समयबद्ध जल वितरण
किया जा रहा है. वाडी रेलवे जंक्शन के आसपास बहुत घनी आबादी है जिसकी गलियां व
नालियां गन्दगी से अटी पड़ी हैं. मैंने एक राहगीर से जब इस विषय की बात की तो वह व्यंग्यात्मक तरीके से बोला, “यहाँ के लोग गन्दगी के आदी हैं, अगर सफाई
हो जायेगी तो ये लोग बीमार हो जायेंगे.”
फैक्ट्री की कालोनी
आर्मी केंटनमेंट की तरह साफ़ सुथरी, रंगों से पुती हुयी हैं. बहुत बड़ा इलाका जंगल
बना कर संरक्षित किया हुआ है. कॉलोनी में जिमखाना-क्लब, डी. ए. वी. स्कूल, अस्पताल,
गेस्ट हाउस, बैंक, कृषि नर्सरी/ फ़ार्म सभी कुछ है. कॉलोनी के एक हिस्से में पुराने क्वार्टर्स बंजर अवस्था में खाली पड़े हुए हैं, जिनमें झाड़ियाँ उग आई हैं,
खिड़की-दरवाजे टूट चुके हैं. शायद कर्मचारियों की संख्या कम होते जाना इसका कारण
हो. प्लांट हेड डॉ. समर बहादुर सिंह जो साउथ की अन्य
कारखानों के क्लस्टर हेड भी हैं, कुछ वर्ष पहले लाखेरी में भी प्लांट हेड रह चुके
हैं अत: उनसे मेरा परिचय पहले से रहा है, नए प्लांट के प्रोडक्शन हेड श्री सुमित चड्डा
मेरे पुत्र प्रद्युम्न के साथ यानबू सीमेंट प्लांट में पोस्टेड थे. पुराने प्लांट
के प्रोडक्शन हेड श्री सुरेश दुबे मेरे भानजे हैं. माईन्स मैनेजर श्री कुंजबिहारी
वर्मा हैं, जो लाखेरी में एक समय मेरे पड़ोसी रहे श्री देवलाल जी (स्व. नंदलाल बैरवा, एम. एल. ए., के भाई) के पुत्र है. इन सब लोगों के बारे में जानकार/मिलकर इस उद्योग से अपने प्रगाढ़
रिश्तों को पुन: ताजा कर लिया है.
४०-४२ साल पुराने कामगारों
या परिचितों में से अभी तक यहाँ कोई नहीं मिला है अत: मुझे कोई नहीं पहचानता है. अजनबी होकर घूमना भी तो एक नियामत ही है.
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