मंगलवार, 5 जनवरी 2016

बौद्ध तीर्थ: कलबुर्गी

कर्नाटक का कलबुर्गी शहर, जिसका पुराना नाम गुलबर्गा है, में प्रसिद्ध शरण विश्वेश्वर का प्राचीन मंदिर है, तथा इसी मंदिर के नजदीक एक बड़े गुम्बज वाली भव्य मस्जिद भी है. अब शहर के बाहर ६ किलीमीटर दूरी पर सिद्धार्थ बौद्ध विहार की स्थापना से इस प्राचीन नगर को बौद्ध तीर्थ के रूप में पहचाना जाने लगा है.

यह बौद्ध विहार ७० एकड़ से भी ज्यादा जमीन पर बहुत सुन्दरता के साथ ऐतिहासिक सारनाथ शैली के स्तूपों तथा अशोक महान की लाटो व चक्रों को सुशोभित करते हुए ६० फुट ऊंचे बनाए गए टीले पर स्थापित किया गया है, जो इस देश में अपनी तरह का एक ही है.

प्रथम दृष्टया बाहर से देखने पर ये विशाल गुम्बज अदभुत व आकर्षक है. मुख्य गेट के अन्दर बाईं और ऊँचाई पर भगवा रंग में रंगी बड़ी मानव आकृतियाँ हैं, जिनको गौर से देखने पर मालूम हुआ कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर अपने अनुनायियों सहित भगवान् बुद्ध की ओर चले जा रहे हैं. डॉ. अम्बेडकर के हाथ में बड़ी सी लाठी ठीक उसी तरह थमाई गयी है, जिस तरह दिल्ली में महात्मा गांधी जी की दांडी यात्रा की मूर्ती में प्रदर्शित किया गया है. स्तूप की पूरी परिक्रमा में पत्थर बिछाए गए हैं. मंदिर में गुम्बज के अन्दर भगवान बुद्ध की स्वर्णिम मूर्ति शान्ति, अहिंसा और समानता का सन्देश देती हुयी विराजमान है. नीचे की मंजिल पर गुरु पद्मसंभव उपदेशात्मक मुद्रा में स्थापित हैं, जिनके सामने पूरे हॉल में बैठने के लिए आसन रखे हुए हैं. यहाँ आकर मुझे हरे कृष्ण मंदिरों के वातावरण वाली गहन शान्ति का अनुभव हुआ. यहाँ की दिव्यता से ही श्रद्धावान भक्त आह्लादित होकर बाहर आता है. बुद्धम् शरणम् गच्छामि का वास्तविक आभास यहीं होता है.

वैसे तो सिद्धार्थ गौतम बुद्ध विहार ट्रस्ट गुलबर्गा की स्थापना सन १९९४ में हो गयी थी लेकिन इस भव्य निर्माण को मूर्तरूप २००९ में श्री मल्लिकार्जुन खरगे  ने दिया. वे इस वक्त इस इलाके के सांसद व लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं. पूर्व में विधायक और केन्द्रीय मंत्री भी रहे थे. स्थानीय लोग उनको दूसरा अम्बेडकर भी माना करते हैं क्योंकि वे हमेशा दलित समाज के प्रति समर्पित व सुधारक रहे हैं. वे इस ट्रस्ट के चेयरमैन हैं.

इस बुद्ध विहार का लोकार्पण सन २००९ में तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल द्वारा किया गया था. चारों ओर खुली जगह को आज भी पेड़ पौधों व दूर्वा से संवारा जा रहा है. भक्तों व तपस्वियों के लिए पीछे की तरफ आवासीय परिसर सुन्दर ढंग से बनाया गया है. बौद्ध साहित्य का पुस्तकालय भी है. चूंकि देश के इस इलाके में सैकड़ों वर्षों से बुद्ध के अनुनायियों का वास रहा है इसलिए यहाँ की शिक्षण संस्थाओं में भी उनका प्रभाव रहा है. जिनमें संस्कृत भाषा भी पढ़ाई जाती है.

इस क्षेत्र का सौभाग्य रहा है कि अब से ५० साल पहले यहाँ के प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक+मुख्यमंत्री स्व. वीरेन्द्र पाटिल थे, जिन्होंने यहाँ मेडिकल कॉलेज, एग्रीकल्चर कॉलेज व इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना करवा दी थी. इनके अलावा स्व. इनामदार स्मारक, अनेक विधाओं के कालेज/शिक्षापीठ यहाँ पर मौजूद हैं.
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