मैं लाख कोशीशें करू
या कहूं कि मेरी किसी राजनैतिक पार्टी से संबद्धता नहीं है, परन्तु मेरे मन-मस्तिष्क पर
जो विचारधारा धरातल बनाकर बैठी है, वह नित्य प्रतिक्रियास्वरूप बाहर आती रहती है, और हो सकता है कि आप इससे सहमत ना भी हों.
वर्तमान में केंद्र
में सत्तासीन पार्टी भाजपा के बारे में अब party
with difference वाले जुमले को सुन कर तकलीफ होने लगी है. बहुत वर्षों पहले जब श्री गोविन्दाचार्य जी भाजपा के नीति निर्धारक ‘थिंक टैंक’ के स्पष्टवादी व कट्टर व्यक्तित्व वाले सिद्धांतवादी व्यक्ति
थे और पार्टी नेतृत्व गाइड लाइंस के बाहर जाकर party
with difference के जुमले को बार बार चोटिल
कर रहे थे तो उस मौजू में एक पत्रकार ने उनसे सीधा प्रश्न किया था कि क्या
वे भाजपा को कांग्रेस पार्टी के विकल्प के रूप में तैयार कर रहे हैं. तब उन्होंने बड़े दु:खी मन से पार्टी के कर्णधारों की सोच पर प्रतिक्रया व्यक्त की
थी कि “ये लोग विकल्प नहीं, दूसरी कांग्रेस बनाने की प्रक्रिया में
हैं.” जो आज सच साबित हो रही है. यहाँ गौर तलब बात यह है की इन्ही
सैद्धांतिक मतभेदों के चलते गोविन्दाचार्य जी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा
दिया गया था. यद्यपि वे आज भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं.
हाल में उत्तराखंड की
रावत सरकार को गिराने का जोरदार ड्रामा हुआ उससे भाजपा के नीतिकारों को अवश्य
शर्मिन्दगी सता रही होगी, अगर नहीं सता रही होगी तो उनकी party with difference वाली आत्मा मर चुकी होगी. आज भाजपा के
नेताओं का ये वक्तव्य इस बात को तस्दीक करती है कि “अगर काग्रेस के बागी
विधायक भाजपा में आना चाहें तो उनका स्वागत होगा.” जब तक वे कांग्रेस में थे, चोर, बेईमान व चरित्रहीन थे, और उनके खिलाफ भाजपा वालों ने आन्दोलन तक किये
थे. और अब वे रातों रात आदर्श हो गए हैं.
मेरे बहुत से मित्रगण
भाजपा के सक्रिय व समर्पित सदस्य हैं, जो शायद ये नहीं सुनना चाहेंगे कि पिछले दो वर्षों में खाद्य पदार्थों, दवाईयों, तथा अन्य सभी जरूरी वस्तुओं के दाम लगभग
दुगुने हो गए हैं. इस सरकार की नीतियों ने अल्प बचतों पर ब्याज की दर कम करके ब्याज पर गुजारा करने वाले
मध्यम वर्ग की कमर तोड़ दी है. पिछली भ्रष्ट कांग्रेस सरकार को गालियाँ देते रहने
से आप अपनी नाकामियों को छिपा नहीं सकते हैं. बड़े पूजीपतियों के हितार्थ जो आर्थिक
योंजनाओं का ढिढोरा पीटा जा रहा है, वे आगे जाकर राष्ट्र की अर्थ व्यवस्थाओं पर
नकारात्मक परिणाम लायेंगी. रिजर्व बैंक पर अंकुश लगाने तथा न्याय पालिका के पर कतरने
की सोच बेहद खतरनाक साबित हो सकती है.
पार्टी अध्यक्ष, जो
मोदी जी के अभिन्न और राजदार भी रहे हैं, के अदालती केस में क्लीन चिट देने वाले सुप्रीम
कोर्ट के चीफजस्टिस श्री सदाशिवम को रिटायरमेंट के तुरंत बाद केरल का गवर्नर बनाना
एक ऐसा उदाहरण है जिसे ‘सुपर भ्रष्टाचार’
की संज्ञा दी गयी है.
मोदी जी द्वारा
चुनावों में जो जुमले परोसे गए थे, उनकी असलियत सामने आने से आम लोग निराश हैं. ये दीगर बात है कि मीडिया का एक बहुत बड़ा तबका
स्वार्थवश उनकी वाह वाही करता आ रहा है. यहाँ तक कि अंध भक्तों को उनकी अपानवायु
में भी केवड़े की खुशबू प्रतीत हो रही है.
धरातल पर पुलिस, पटवारी, तहसीलदार से लेकर सभी जनसंपर्क वाले विभागों
में कांग्रेस राज की तरह से ही काम हो रहा है, बिना लिए दिए कोई काम नहीं होते हैं.
सभी छोटे बड़े सरकारी प्रोजेक्ट्स जिनमें ठेकेदारी की व्यवस्था है, आकण्ठ भ्रष्टाचार यथावत
है. मालूम सबको है.
किसानों की आत्महत्याओं
का मुद्दा, जिसे चुनाव के समय मोदी जी ने विशेष रूप से ऊंचे स्वरों में उछाला था, कहीं नेपथ्य
में गुम हो गया है. आत्महत्याएं निरंतर जारी हैं.
विदेश नीति की चर्चा करें
तो सभी निकटवर्ती देश ३६ के आंकड़े में हैं. रूस जैसे चिर मित्र के मन में अब हमारे प्रति
संदेह हो गये हैं क्योंकि यहाँ पूरी अमरीकापरस्त नीतियों का पालन हो रहा है. विदेशों में
स्वयं प्रायोजित कार्यक्रमों में भारतवंशियों का खुश होना स्वाभाविक है, पर ये
विदेश नीति की सफलता का मापदंड नहीं हो सकता है.
जहाँ तक पूर्ववर्ती
सरकारों का विषय है, सत्ता के लिए जोड़तोड़ व
जातिगत/धार्मिक तुष्टीकरण की नीतियों से भाजपा बाहर नहीं निकल पाई है. जनता ने कांग्रेस पार्टी को केंद्र की सत्ता से बाहर का रास्ता इसीलिये दिखाया कि तालाब का पानी सड़ने
लगा था, जिसमें ऊब और डूब दोनों होने लगी थी
अंत में आप भी मनन करें
कि क्या वाकई party with
difference की भावना का अंत हो चुका है.
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bahut hi acchi rchana hai ...
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