कश्मीर समस्या के
लिए मोदी सरकार की नीति शुरू से ही अँधेरे में तीर मारने जैसी रही है. इन्होंने वहां की सत्ता
में हिस्सेदारी लेने के लिए मुफ्ती की पार्टी, पीडीपी, से जुगाड़ करके एक अपवित्र गठबंधन
किया, जबकि चुनाव के समय स्वयं मोदी जी ने ‘बाप-बेटी की सरकार’ के विरुद्ध
खुले मंच से हिकारतपूर्ण हुंकार भरे थे. यह भाजपा की अदूरदर्शिता थी, जिसका खामियाजा अब पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है, और आगे आने वाले समय में भी भुगतना पड़ सकता है.
अपनी मुस्लिम
विरोधी छवि को धोने के लिए तमाम टोटके मोदी जी ने किये हैं. उनका ‘नवाज़-प्रेम’
इसका एक खुला दस्तावेज है, जबकि पाकिस्तान एक मार खाये हुए जहरीला सांप की तरह है,
जो कभी भी भारत का सगा नहीं हो सकता है. उसकी बुनियाद ही भारत के प्रति घृणा और
दुश्मनी पर आधारित है. इंदिरा जी के समय के शिमला समझौते से लेकर अटल जी के समय तक
जितनी बार भी द्विपक्षीय ‘मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग' साइन हुए, हर बार पाकिस्तान
की तरफ से धोखेबाजी हुई है. सच तो यह है कि वहाँ सेना या नामनिहाल लोकतांत्रिक राजनैतिक
पार्टी, सबकी रोटी कश्मीर नाम के गरम तवे पर ही सिकती है.
हाल ही में इस्लामाबाद
में 74 मुस्लिम राष्ट्रों ने एक स्वर में कश्मीर का राग पाकिस्तान के साथ मिलकर अलापा है. जबकि दुनिया यह मान चुकी है कि आतंकवाद की जड़ें
पाकिस्तान में ही हैं और फंडिंग से लेकर ट्रेनिंग तक वहां की सरकार/ सेना/ खुफिया
एजेंसीज करती रही हैं. यह हमारी विदेश नीति की कमजोरी दर्शाता है.
मुफ्ती एंड कंपनी
की पूरी हमदर्दी अलगाववादियों के साथ रही है इसलिए आज जिस अंधे मोड़ पर कश्मीर की समस्या पहुँच गयी है, वहाँ से
भाजपा के लिए भी सुरक्षित लौटना संभव नहीं लगता है.
हमारे सुरक्षा
कर्मियों पर पत्थरबाजी/ ग्रेनेड हमले निरंतर जारी हैं, कई इलाकों में पिछले 45 दिनों से कर्फ्यू जारी है, जनजीवन अस्त व्यस्त है; सरकार की इससे बड़ी विफलता और क्या
हो सकती है?
हाँ, अपनी पीठ खुद थपथपाते रहिये.
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हाँ, अपनी पीठ खुद थपथपाते रहिये.
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