सभी धर्मों या
विश्वासों में अपने पितरों को पूजने व याद करने के तरीकों का निरूपण किया गया है. हमारे सनातन धर्म में भाद्रपद मास के पूरे कृष्ण पक्ष को पितरों को समर्पित किया गया
है. मातृपक्ष व पित्रपक्ष दोनों ही के तीन तीन पीढ़ियों को पिंडदान व तर्पण करके
उनके मोक्ष की कामना की जाती है. हमारे धार्मिक साहित्य में वैदिक काल से ही
श्राद्ध के विषय में अनेक विधि-विधान व कथानकों का उल्लेख मिलता है. यह भी सत्य है
की श्राद्धों में पोषित पुरोहित वर्ग द्वारा कर्मकांडों में अनेक पाखण्ड जोड़े जाते
रहे हैं, परन्तु इससे श्राद्ध का महत्व कम नहीं होता है.
मेरे माता-पिता का
श्राद्धकर्म मेरे अनुज श्री बसंत बल्लभ द्वारा हर वर्ष नियमित रूप से विधिपूर्वक
किया जाता है. मैं भी सपत्नी उसमें शामिल रहता हूँ. आज हम जो कुछ भी हैं, माता-पिता
के पुण्यप्रताप व उनके आशीर्वादों के फलस्वरूप ही हैं. आज के ही दिन यानि 19 सितम्बर को हमारे पिताश्री की पुण्यतिथि भी है. यद्यपि उनसे बिछुड़े 36 वर्ष बीत
चुके हैं, कुछ ऐसा आत्मिक अनुबंध है कि मैं उनकी पुण्य आत्मा को आज सशरीर अपने
आसपास अनुभव कर रहा हूँ. उनके आशीर्वचन का छत्र सभी स्वजनों पर बना रहे ऐसी कामना
है.
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2016) को "एक खत-मोदी जी के नाम" (चर्चा अंक-2472) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'