हिन्दी के प्रसिद्ध
कवि स्वनामधन्य स्व. काका हाथरसी ने अपनी एक सुन्दर और यथार्थ विरोधाभाषी नामावली
कविता के रूप में लिखी है, पर मेरे इस लेख का हीरो ठग्गूराम ठीक इसके उलट ‘मनसा
वाचा कर्मणा’ अपने नाम को सार्थक करता है.
यह सही है कि कोई सीधासाधा
या बुद्धू व्यक्ति ठगी नहीं कर सकता है. ठग बहुत चालाक व
तुरतबुद्धि वाला प्राणी ही हो सकता है. दुनिया भर में अनेक बड़े बड़े कॉनमेन (ठग) लोगों
के किस्से लिखे-पढ़े या सुने जाते हैं. हमारे देश में ‘नटवरलाल’ शब्द अब ठगी का
पर्याय माना जाने लगा है. ठग शब्द अब आक्सफोर्ड डिक्शनरी में भी स्थान पा चुका है. परंतु अंग्रेजी में thug की परिभाषा कुछ अलग ही है. Thug का मतलब होता है, गुंडा, बदमाश, चोर, या मुजरिम. हम यहाँ पर हिंदी वाले ठग की चर्चा करेंगे.
ठगों की वाणी व
बोलने का लहजा इतना प्यारा और मनमोहक होता है कि वह सामने वाले के अंत:करण को छू
कर अपने वश में कर लेते हैं. ठगे गए व्यक्ति को ठगी का अहसास बहुत देर से होता है, और उसकी टीस लम्बे
समय तक सालती रहती है. ठगों के झंडे व्यापार, साहित्य, या राजनीति में तो गढ़े ही हैं, इनके कारनामे नाटकों और फिल्मों में भी उजागर किये जाते हैं.
हाँ, तो मैं जिस
ठग्गूराम के बारे में बता रहा था वह हमारे जिला नैनीताल के एक गाँव ज्योलीकोट का
रहनेवाला था. गरीब के घर पैदा हुआ था, पर बचपन से ही इस कला में प्रवीण हो गया था.
स्थानीय लोग उसके बारे में बड़े चटखारे लेकर चर्चा किया करते थे. एक घटना कुछ वर्ष पुरानी है. हल्द्वानी नगर निगम से जुड़े काठगोदाम बस्ती में एक मधुशाला
(शराब की दूकान) पर एक अनजान सूटेड-बूटेड व्यक्ति ने इस कदर शराब पी कि लड़खड़ाकर
वहीं सड़क पर लुढ़क गया. जैसा कि इस प्रकार के दृश्य में अकसर होता है, तमाशाईयों ने
खूब मजा लिया. शराबी के हाथ में नोटों की गड्डी और बगल में एक ब्रीफकेस सबको दिख रहा था. शराब तो शराब ही होती है, और जब कोई व्यक्ति ‘नीट’ पिएगा या अपने हाजमे से ज्यादा
पी जाएगा तो बेहोश होकर सड़क या नाली में लुढ़केगा ही.
ठग्गूराम भी संयोगवाश शराब की तलब में उधर आ पहुंचा, और उसे देखते ही सारा माजरा समझ गया. खड़े लोगों को
धकेलते हुए विलापी स्वर में जोर से बोला, “चचा ! ये क्या हाल बना रखा है, इस तरह
बेशर्मों की तरह पड़े हो, उधर चाची का रो रो कर बुरा हाल हो रहा है, बच्चे परेशान हैं.”
ठगगूराम का नाटक
सभी को असली लगा और लोगों ने सहयोग करके एक रिक्शा लाकर उसमें उस शराबी को लिटा दिया, जिसे लेकर ठग्गूराम
चलता बना. अगले दिन सबको मालूम हुआ कि शराबी का भतीजा बन कर आने वाला कोई ठग था, जो एकांत में ले जाकर उसकी जेब साफ़ करके
सामान सहित रफूचक्कर हो गया. शराबी को बड़ा सबक मिल गया, पर सांप के निकल जाने
के बाद सड़क पीटने से कुछ नहीं होता है.
ठगी कुछ लोगों का
स्वभाव हो जाता है, पर ये बहुत बुरी बात है. अगर कोई ठग पकड़ में आ जाता है तो उसको
कड़ी सजा मिलती है.
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को
जवाब देंहटाएं"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'