स्व. कुंजबिहारी
मिश्रा दीक्षित परिवार के भानजे थे. केशवलाल दीक्षित जी और बृजबिहारी दीक्षित के
चचेरे भाई मदनलाल दीक्षित उनके सगे मामा होते थे. बहन शारदा (पत्नी शरदकुमार
तिवारी) उनसे पहले लाखेरी आ चुकी थी. इसी स्रोत से मिश्रा जी का लाखेरी पदार्पण
हुआ था, ऐसा उनकी बेटी पुष्पा मिश्रा ने मुझे बताया है. वे १९५० के दशक में एक
क्लर्क के बतौर एसीसी में भर्ती हुए थे, और सन ८२/८३ में चीफ स्टोरकीपर बन कर
रिटायर हुए. सन ६८ में कुछ सालों के लिए उनको गुजरात की शिवालिया फैक्ट्री में
स्थानांतरित किया गया था. वह एक दौर था जब ए.सी.सी. मैनेजमेंट द्वारा तत्कालीन नेता
स्व. लखनलाल जी की खिलाफत करने वाले चुनिन्दा लोगों को लाखेरी से तड़ीपार कर दिया जाता था. उस लिस्ट में नंबर एक थे, ओवरसीअर मि. नायर, दूसरे नंबर पर कुंजबिहारी मिश्रा और तीसरे पर मैं स्वयं.
कुंजबिहारी जी एक
विलक्षण व्यक्ति थे. उन्होंने १९६३ में स्वयंभू नेता लखनलाल जी को कामगार संघ का अध्यक्ष पद और गरमपुरा पंचायत के
सरपंच के पद से बेदखल कर दिया था, लेकिन अपनी अक्खड़ व स्पष्टवादी स्वभाव के चलते
कामगार संघ के अगले ही चुनाव में वे हार गए. सरपंच पद उन्होंने खुद ही छोड़ दिया था.
कुंजी बाबू अपनी
नौकरी के कार्यों में बहुत प्रवीण थे. उनका सामाजिक दायरा भी बहुत बड़ा था पर
दूसरों का छिद्रान्वेषण करके सार्वजनिक रूप से ‘चूँकि, चुनांचे, पर’ के साथ मजा लिया
करते थे इसलिए बहुत से मित्र उनसे बचते भी नजर आते थे. उनके एक सगे समधी स्व. केशव
दत्त ‘अनंत’ (श्री रविकांत शर्मा के पिता) तो बरसों उनसे अबोले रहे.
मिश्रा जी की पांच बेटियों में से पुष्पा मिश्रा गत दो वर्ष पूर्व कंपनी के कैशियर पद से रिटायर हो
चुकी हैं. अन्य बेटियों में लता रविकांत शर्मा अध्यापिका, ममता भूटानी पुलिस
इंस्पेक्टर, रंजना तथा निरुपमा ने
अपने अपने अपने संसार खुद बसाए हैं. और सब प्रकार से सुखी हैं. सुपुत्र सुधीर मिश्रा कैमोर इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट से कोर्स
करके आये और वर्तमान में लाखेरी MVD
में शायद फोरमैन
हैं. उन्होंने अपनी वंशबेल आगे बढ़ाई भी है.
श्रीमती कुंजबिहारी
मिश्रा एक समर्पित गृहिणी रही हैं, जिन्होंने बच्चों की परवरिश के साथ साथ शतायु
सास की खूब सेवा की, जो कि लकवाग्रस्त होने के कारण बरसों तक खाट पर जी रही थी.
कुंजबिहारी जी
राष्ट्रीय राजनीति में भी सक्रिय रहे थे. एक समय स्थानीय भाजपा के अध्यक्ष भी बनाए
गए थे. रिटायरमेंट के बाद वे कोटा में निवास बना कर रहे, और अंतिम समय में बच्चों
के पास लाखेरी आ गए थे. जहां कुछ वर्ष पूर्व उनका देहावसान हो गया है.
लाखेरी में कुछ समय
तक प्लांट हेड रहे श्री मनोज मिश्रा उनके सगे भतीजे थे.
चूकि मैं उनके समय
में लाखेरी की यूनियन व अन्य संस्थाओं से जुड़ा हुआ था, इसलिए उनका सानिध्य मुझे भी
मिला था. लाखेरी के इतिहास में उनका नाम अमिट है.
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-04-2017) को "दुष्कर्मियों के लिए फांसी का प्रावधान हो ही गया" (चर्चा अंक-2950) (चर्चा अंक-2947) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'