मेरे स्कूल
सर्टीफिकेट में मेरी जन्म तिथि १ मई १९४० अंकित है, मेरे पिताश्री ने ना जाने कुछ
अच्छा ही सोच कर एक साल कम करके १९३९ के बजाय १९४० लिखाया होगा, पर इस एक साल के अंतराल की वजह से मेरे जीवन की
दिशा बदल गयी क्योंकि इण्टरमीडिएट पास करते ही मुझे तब ‘ग्राम सेवक’ के पद के
लिए कॉल आ गया था, किन्तु उम्र पूरे अठारह नहीं होने से मुझे नौकरी का वह चैनल नहीं
मिल सका था.
यह संयोग ही है कि
हमारे देश में १ मई ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है और मुझे आगे चलकर
सीमेंट इंडस्ट्री में काम करते हुए सीमेंट कामगारों के ट्रेड यूनियन लीडर के रूप
में मान्यता मिली तथा लगातार २५ वर्षों से अधिक समय तक अखिल भारतीय सीमेंट एंड
अलाइड वर्कर्स फैडरेशन का पदाधिकारी रहा. उस दौरान मुझे प्रारम्भ में एटक के बड़े नेता स्व. श्रीनिवास गुड़ी (कर्नाटक), इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्व.
जी. रामानुजम, व फेडरेशन के अध्यक्ष स्व. एच.एन. त्रिवेदी, सी. एल.दूधिया, व भाई
इब्राहीम हनीफी का सानिध्य प्राप्त हुआ था.
मेरे अध्यापक पिता
अपने पांच भाइयों के बड़े परिवार में कनिष्ट थे. मुझे बताया गया था कि मेरे माता-पिता
ने अपने विवाह के अनेक वर्षों के बाद अनेक मान्यताओं के बाद मुझे प्राप्त किया था
इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि उस बड़े परिवार का अप्रतिम लाड़-दुलार मुझे मिला.
दादाजी को अवश्य मैंने नहीं देखा पर दादी की छत्रछाया मेरे १७ साल की उम्र होने तक
हम पर रही. यह एक सही कहावत है कि "यह वह दिन होता है जब माँ अपने बच्चे के रोने पर खुश होती है." यही सबके साथ होता होगा, पर मैं बहुत खुशनसीब रहा हूँ कि १९८० तक पिता का और १९९७
तक माताश्री का वरदछत्र मुझ पर व मेरे परिवार पर रहा.
मेरी तीन छोटी
बहिनें खष्टी, राधिका, सरस्वती, व सबसे छोटा भाई बसंत, सभी का स्नेह-आदर मुझे आज भी
बचपन की तरह ही मिल रहा है, जबकि में अपनी उम्र के अस्सीवें वर्ष में प्रवेश
करने जा रहा हूँ.
हमारी तीनों
संतानें चि. पार्थ, गिरिबाला और प्रद्युम्न अपने अपने परिवारों के साथ सुव्यवस्थित
और खुश हैं; तथा सम्मानपूर्वक जीने की मेरी जीवन पद्धति के सहयोगी हैं.
मेरी अर्धांगिनी
श्रीमती कुंती पाण्डेय उम्र में मुझ से लगभग ५ साल छोटी है, पर अक्ल में हमेशा
मुझसे आगे रहती हैं, और अभी भी कदम से कदम मिलाकर चल रही है.
मैं पिछले कुछ समय
से तमाम राजनैतिक उहापोह व चिंतन से दूर रहकर अपनी स्मृतियों को शब्द देने का काम
कर रहा हूँ. लाखेरी, जहां मैंने ३५ वर्षों से अधिक समय तक निवास किया, अथवा लाखेरी
के बाहर के असंख्य मित्र मेरी दिनचर्या में मानसिक परिदृश्य बनाकर मौजूद रहते हैं. मुझे मालूम है कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मेरे सभी मित्रों की शुभकामनाएं
मेरे साथ हैं और मैं भी सभी के सुख और सौभाग्य की निरंतर कामना करता हूँ.
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