एसीसी सीमेंट
प्लांट सिन्दरी की स्थापना सन १९५४ की है, १९९५ के बाद इसे केवल ग्राइंडिंग प्लांट
में तब्दील कर दिया गया, अपने दुसरे प्लांट से मंगवाए गए क्लिंकर में आयरन स्लैग व
जिप्सम मिलाकर पैक किया जाता है. टाटा स्टील कंपनी से स्लैग की अच्छी उप्लब्धता
है. इसकी प्रतिदिन उत्पादन क्षमता ९००० टन बताई गयी है.
प्लांट हेड के
कार्यालय में एक बोर्ड पर अब तक के सभी २७ प्लांट हेड्स के नाम हैं. इनमें से दस
से अधिक महानुभावों को मैं भी व्यक्तिगत रूप में जानता हूँ क्योंकि ये लोग लाखेरी
प्लांट में भी महत्वपूर्ण पदों पर थे.
स्व.
पी.वी.धर्माधिकारी १९६० में मेरे इण्टरव्यू लेनेवालों के पैनल में थे, तब वे चीफ
कैमिस्ट के पद पर थे दस साल बाद वे शाहाबाद कारखाने में भी मिले, मृदुभाषी,
हँसमुख, और हितैषी धर्माधिकारी जी का नाम प्लांट हेड की लिस्ट में देखकर उनका
सानिध्य याद आ गया.
मि. एम्.डी.साने सन
साठ में प्लांट इंजीनियर थे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती साने एसीसी स्कूल में टीचर हुआ
करती थी. सर्व श्री एस. आर अय्यर , बी.के. गंगवार ,बी.डब्व्लू. कुवेलकर सभी अपने
समय में लाखेरी के चीफ इंजीनियर रहे थे. स्व. पी.बी. दीक्षित १९८५-८६ में प्लांट
हेड रहे , पर वे उससे पहले यहां काफी से तक चीफ कैमिस्ट भी रहे थे. यों बोर्ड पर उन अपनों को देखकर आनादानुभूति
हुई है. वर्तमान में श्री सुरेश चन्द्र दुबे यहाँ डाइरेक्टर प्लांट हैं.
स्पोर्ट्स क्लब में
घूमते हुए मैंने एक सज्जन से ‘सिन्दरी’ शब्द की व्यत्युत्पत्ति के बारे में जानना
चाहा तो उन्होंने बड़ी मजेदार बात बताई कि “यहाँ की मिट्टी लाल (सिंदूरी) है,
सिंदूरी का अपभ्रंश सिंदरी है, इसमें कितना तथ्य है मैं कह नहीं सकता हूँ. इन्ही
दिनों यहाँ के एक हिन्दी अखबार में समाचार छापा है कि एक बड़े नेता जी ने सिन्दरी
को ‘सुन्दरी’ कहा तो श्रोताओं ने खूब आनंद लिया. इसी तरह प्रदेश के झारखंड नाम पर
भी लोगों की व्याख्या सुन कर अच्छा लगा की झार या झाड़ का अर्थ पेड़ होता है और ये
पूरा राज्य लगभग झाड़ाच्छादित है.
सिंदरी के एसीसी
कालोनी में भी इतने घने पेड़ हैं कि ‘वर्षावन’ का अहसास होने लगता है.
क्रमश:
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