शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

सिन्दरी से - ४



पुरानी यादों को ताजा करने के लिए संस्मरण लिखे जाते हैं, कड़वी, मीठी या अंतर्मन को गुदगुदानेवाली यादें अक्सर स्वांत:सुखाय होती हैं तथा अन्य पात्रों को चुभ भी सकती हैं . मेरे एक मित्र एडवोकेट रविशंकर पाण्डेय जी ने लिखा है कि “इसीलिये अब संस्मरणों के बजाय उपन्यास लिखे जाते हैं.”

यहाँ सिन्दरी नगर में मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और कुछ विवरण अपने ब्लॉग / फेसबुक पर लिख डाले तो सिंदरी से सम्बंधित रहे अनेक मित्रों के सन्देश मुझे मिल रहे हैं. ये बहुत स्वाभाविक है कि हम जिन जगहों पर रहते हों या जिन लोगों के सानिध्य में रहे हों उनसे लगाव हो ही जाता है.

कोयम्बटूर से श्री रामकृष्णन सुंदराअय्यर लिखते हैं कि वे सिंदरी प्लांट में १९६७ से ७३ तक चीफ बर्नर के बतौर  कार्यरत रहे थे, तब एम्.एल.नरूला जी (retired as M.D.) यहाँ पर असिस्टेंट इंजीनियर हुआ करते थे. रामकृष्णन जी ने अपने समय की प्रोडकसन संबंधी उपलब्धियों का भी जिक्र किया है.

श्री आशीष शुक्ला लिखते हैं कि उनके बचपन के कुछ साल यहां पर बीते थे, यहाँ का विवरण पढ़कर उनको बहुत अच्छा लगा है. उनके पिताश्री यहाँ पर कैमिस्ट रहे थे.

श्रीमती अल्पना जोशी सुपुत्री स्व. मदन प्रकाश भारद्वाज (स्व. वेद प्रकाश भारद्वाज जी के अनुज) की बचपन की अनेक स्मृतिया ताजी हो आई हैं.मदन प्रकाश जी लाखेरी से प्रमोट होकर यहाँ लम्बे समय तक चीफ बर्नर/ मास्टर बर्नर रहे थे.

श्रीमती ममता जोबंपुत्रा गोंसाल्वेज को भी सिन्दरी में बिताये अपने बचपन के दिन याद आये हैं, उनके पिता स्व. जोबंपुत्रा जी लाखेरी से प्रमोट होकर यहाँ अकाउन्ट्स आफीसर बने थे और यही उनका देहावसान हुआ था.

सिन्दरी है ही बड़ी सुन्दर जगह, मैं पिछले दस दिनों में यहाँ की भव्यता / दुर्गा पूजा समारोहों/ दर्शनीय स्थलों को देख रहा हूँ आवासीय कालोनी में लगता है कि मैं लाखेरी/ शाहाबाद में ही विचरण कर रहा हूँ.

इस नई जगह में मेरे रिश्तेदारों के अलावा मुझे कोई  जानने वाला-पहचानने वाला नहीं होना चाहिए, पर दुर्गापूजा के पांडाल में यहाँ के कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारी मुझे  घूरते नजर आये, उनको लग रहा था की उन्होंने मुझे कहीं देखा जरूर है. इनसे मुम्बई में सीमेंट वर्कर्स फैडरेसन की मीटिंग्स में अवश्य मुलाक़ात हुई रही होगी. सच है कि आपका बीता हुआ कल आपका आजीवन पीछा करता रहता है. बहरहाल मैं खुशनसीब हूँ कि उम्र के इस पडाव पर मैं ट्रेड यूनियन एक्टिविटीज के प्रति उदासीन हो गया हूँ तथा देश की दलीय राजनीति में भी सन्यासी बन गया हूँ. हाँ लिखना मेरा शुगल जारी है.
                ***

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें