सोमवार, 23 जुलाई 2012

क्रोध

काम, क्रोध, मद, और लोभ, ये चार विकार शास्त्रों में तथा आप्त बचनों मे बताए गए हैं. इनमें से क्रोध एक ऐसा तत्व है, जिसके बस में होकर हम अपना आपा खो बैठते हैं. भगवदगीता के अध्याय २ के ६३वें श्लोक में तो यहाँ तक कहा है :
क्रोधाद्ध्भावति सम्मोह:सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः.
स्मृतिभ्रंशाद  बुद्धिनाशो,  बुद्धिनाशात्प्रणश्यति.
अर्थात क्रोध करने से मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, और मति भ्रमित हो जाती है, फलस्वरूप ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है तथा इस कारण से व्यक्ति अपनी स्थिति से गिर जाता है.

श्रृष्टिकर्ता ने वैसे तो सभी प्राणियों को क्रोध से नवाजा है. छोटी चींटी व सरीसृपों से लेकर पालतू/जंगली जानवर अपने अपने स्वार्थों के लिए क्रोधपूर्ण व्यवहार करते हैं, पर यहाँ बात मनुष्यों की हो रही है, जो क्रोध के प्रभाव में कई बार दुस्साहसिक वर्ताव कर बैठता है. सामाजिक व नैतिक क़ानून-नियमों के तहत भर्तस्ना व सजा भी पाता है क्योंकि क्रोध होने पर अंजाम का ध्यान नहीं रहता है. अदालतों मे पड़े हुए तमाम फौजदारी मामले किसी न किसी रूप मे क्रोध के ही सम्बंधित होते हैं.

यों साधारणतया रूठना या गुस्सा करना मानव स्वभाव होता है, इसमें जो तत्व क्रोध का है यदि वह अपनी सीमाएं तोड़ने लगे तभी दुष्परिणाम होते है.

वैसे तो मनुष्यप्रबल सभी कमजोरियां मुझमें भी हैं, पर मैं कोशिश करता रहा हूँ कि मेरा ये दुर्गुण दबा रहे और जग जाहिर होने की कगार तक न उभरे. जीवन के दूसरे पहर मे मेरा स्वभाव उग्र ही रहा. एक बार एक बहुत छोटी बात पर मैं अपना आपा खो बैठा था. आज बहुत वर्षों के बाद भी उस घटना को याद करता हूँ तो प्रायश्चित करने का मन होता है. घटना इस प्रकार थी:-

लाखेरी (राजस्थान) की जिस कॉलोनी में मैं रहता था वहाँ कंम्पनी के क्वार्टर्स में सही ढंग की चहारदिवारी बनी हुयी नहीं थी. बड़ी चोरियां तो कभी कभी हुआ करती थी, लेकिन उन दिनों छोटी उठाईगिरी अचानक शुरू हो गयी थी. घर के बाहर कोई भी धातु के बर्तन या सामान रह जाये तो वह गायब हो जाता था. सेक्युरिटी वाले भी बहुत परेशान थे क्योंकि बड़ी निगरानी के बावजूद रोजाना किसी ना किसी का सामान गायब होने लगा था. जब तक दूसरों का सामान जा रहा था मुझे ज्यादा पीड़ा नहीं हो रही थी, पर एक दिन जब मेरे प्रांगण से टैंक का लोहे का ढक्कन और एक जी.आई. शीट का टुकड़ा कोई ले गया तो अंदाज लगाया गया कि ये काम किसी कबाड़ बीनने वाले का हो सकता था.

सेक्यूरिटी स्टाफ के साथ गांधीपुरा के बड़े कबाड़ व्यापारियों से पूछताछ की गयी तो राज खुल गया कि १२-१३ साल का एक लड़का, जिसका नाम धर्मवीर था वह मेरे पहचान वाले सामान बेच कर गया था. धर्मवीर की तलाश की गयी, मिल गया, बुला लिया गया. वह एक कैजुअल मजदूर का बेटा निकला. वह बड़ा ढीठ था, शातिराना बातें करने लगा, किसने देखा? कौन गवाह है? जैसे प्रश्न हमसे करने लगा.

मैं अपना आपा खो बैठा. भीड़ के सामने ही चार-पाँच थप्पड़ जोर से मार दिये. उसका होंठ कट गया खून निकल आया. सेक्युरिटी वालों ने उसको मुझ से बचाया. बाद में जब मैं शांत हुआ तो मुझे बहुत दु:ख व अफ़सोस हुआ क्योंकि मूल्यहीन बस्तुओं के पीछे मैंने उस बच्चे को बेरहमी से पीट डाला था. क़ानून अपने हाथ मे ले लिया था. मैंने क्षमा मांगने हेतु धरमवीर के बाप को बुलाया तो पाया कि वह तो खुद लड़के के कारनामों पर बहुत शर्मिन्दा था. बोला, साहब, आपने उसकी पिटाई करके अच्छा सबक दिया है. हम तो उसे समझाते समझाते थक गए हैं.... ये इतना बिगड़ गया है कि रात को घर नहीं आता है, नशेड़ियों की सोहबत मे रहने लगा है.

इस पिटाई का परिणाम ये हुआ कि कॉलोनी में चोरियां बन्द हो गयी, लेकिन मुझे धर्मवीर का मासूम सा चेहरा, उसपर खून की लकीर बहुत दिनों तक सालता रहा. अगर आज (जबकि वह भरपूर जवान हो गया होगा) वह मुझे मिलता तो मैं उससे 'सौरी' कहना चाहूँगा, पर मुझे सन्तोष हुआ कि इस घटना के बाद धर्मवीर ने अपनी अपराध की राह पूरी तरह छोड़ दी थी.

बैंजामिन फ्रैंकलिन ने लिखा है कि क्रोध कभी भी बेवजह नहीं होता है, यह किसी सार्थक वजह से होता है.
                                                 ***

6 टिप्‍पणियां:

  1. किशोर वय में थप्पड़ की मार अच्छे अच्छों की बुरी लत सुधार देती है। जब से इसमें सभ्यता आ घुसी है तब से किशोर बिगड़ने लगे हैं। हाँ, सजा देने वाले को क्रोध में सजा नहीं देनी चाहिए। खूब सोच समझकर, स्थिर दिमाग से, सुधारने की नीयत से सजा देनी चाहिए। आपका क्रोध खतरनाक था।

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  2. क्रोध सार्थक हो तो प्रभाव सकारात्मक रहता है..

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  3. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २४/७/१२ मंगल वार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं

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  4. सुंदर !!
    मार का डर ही तो
    रास्ता दिखाता है
    मार पचा जाये अगर
    फिर रास्ते में
    कहां आ पाता है!!

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  5. क्रोध के लिये अगर सार्थक कारण है तो वह क्रोध अनुचित नहीं है..

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  6. सार्थक, सहृदयतापूर्ण आलेख.. बधाई..

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