गुरुवार, 20 सितंबर 2012

पूज्य पिता की पुण्यतिथि

हे तात, 'प्रेम' आपका नाम था और प्रेम ही आपका धर्म. आपको गए हुए अब ३२ वर्ष हो गए हैं. आज ही के दिन हमारे ऊपर से आपका साया उठा था. समय कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, मालूम ही नहीं पड़ता. अगर आज आप जीवित होते तो १०४ वर्ष के होते. इस अवसर पर मैं आपके सुन्दर मुखमंडल को याद कर रहा हूँ और अपने आसपास ही महसूस कर रहा हूँ.

मैं, मेरा परिवार, मेरे भाई व बहिनें सभी अपने परिवारों के साथ सुखी और संम्पन्न हैं. यह सब आपके अध्यवसाय तथा आशीर्वादों का ही सुपरिणाम हैं. आपने पिता के रूप में तथा अध्यापक के रूप में जो संस्कार और शिक्षा दी वह हमारे जीवन के प्रेरणा श्रोत हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि हम एक सरल, कुशल और ज्ञानवान व्यक्ति की संतान हैं. आपके द्वारा पढ़ाये गए अनेक विद्यार्थी आज भी इस धरती पर ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं.

यह सच है कि कोई भी मनुष्य यहाँ हमेशा रहने के लिए नहीं आता है, पर मेरा आपसे जो आत्मिक अनुबंध है, वह मुझे दिन में कई बार आपसे साक्षात्कार करवाता रहता है. मुझे अपने शैशव के वे क्षण-दिन याद हैं जब मैं आपके कन्धों पर सवारी किया करता था, आपके साथ अठखेलियाँ किया करता था. एक बार जब मैं तेज धूप के कारण अचानक बेहोश हो गया था तो मैंने आपको अपनी अर्धमूर्छितावस्था में रुदन करते हुए सुना था. वह स्नेहासिक्त विलाप मैं भूला नहीं हूँ.

आप अक्सर मेरे सपनों में आते हो. आप मरे नहीं हो, मेरी लेखनी में जीवित हो. आत्मा कभी मरती भी नहीं है. आज इस पुण्यतिथि पर आपको अनेक बार श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ.

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4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  2. नमन.. भाव पूर्ण श्रधांजलि.

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  3. पिता एक अमूर्त स्वार्थ हीन छाते का नाम है .पिता का जाना बिना बरसाती के रह जाना है .पिता जी कहते थे -कम खाना और गम खाना .परदेश में रहते हो किसी से झगड़ा न करना कोई दो बात कह दे सुन लेना .सुन ने वाला छोटा नहीं हो जाता है .
    विद्या बांटने से बढती है .हेल्थ इज वेल्थ .आज भी ये सारी सीख याद हैं .पिता एक भाव है जो हमसे संयुक्त रहता है ,हम में बना रहता है .
    पुन्य स्मरण .आभार इस नेक पोस्ट के लिए .नेक पिता के नाम .उस नेक पिता के नाम वीरुभाई के ,कैंटन के शतश :प्र

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