रविवार, 23 सितंबर 2012

अनाम के नाम

मेरे भाग तो उसी दिन फूट गए थे जिस दिन इस गरीब परिवार में मेरा रिश्ता हुआ था. बाबू जी बहुत जल्दी में थे क्योंकि तब वे चलने-फिरने में असमर्थ हो चुके थे. उम्र भी तब उनकी ७८ वर्ष हो चुकी थी. वे खुद को डाल पर पका हुआ आम कहने लगे थे. दरअसल मैं उनकी सात संतानों में अन्तिम थी, जिसका जन्म उनकी ढलती उम्र में हुआ था.

बाबू जी ने अपने जीवन काल में खूब धन कमाया, जायदाद जोड़ी, अनेक उद्योग किये और पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी समय पर पूरी करते रहे. मैं छोटी होने के कारण भी उनकी लाड़ली बिटिया थी इसलिए उन्होंने मेरे हाथ पीले करने के लिए सब तरफ योग्य लडकों की खोज खबर ली. उस समय हरिनन्दन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. बाबू जी ने देखा कि गरीब का बेटा है और भविष्य में संभल जाएगा. खूब दान-दहेज देकर मुझे २० वर्ष की उम्र में ही अपने महल से विदा करके छोटे से दो कमरों वाले ससुराल के घर में भेज दिया गया. चूँकि मैंने बड़ी बहनों का वैभव भी देखा था इसलिए मेरी तमाम महत्वाकांक्षायें धरी रह गयी. मेरी कमजोरी यह भी थी कि मैं स्कूल की पढ़ाई में कमजोर थी और बड़ी मुश्किल से हाईस्कूल पास कर पाई थी.

मेरे पति हरिनन्दन बहुत चुलबुले और खुशदिल थे. उनके सानिंध्य में मैं सभी अभावों को भूल गयी थी. इस बीच हरिनंदन को परीक्षा पास करते ही सिडकुल में मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी मिल गयी और वे भविष्य के अनेक सपने देखने लगे तथा मुझे भी दिखाते रहे. अपनी सिडकुल की ड्यूटी के बाद वे दो तीन जगहों में ठेके में काम भी करते थे. बहुत सा रुपया कमाने लगे थे. घर का जीर्णोद्धार करके नया रूप दिया गया. मैं जल्दी ही माँ भी बन गयी. मेरा बेटा चिंटू बिलकुल अपने बाप की शक्ल पर गया है. स्त्री के जीवन में बच्चे का आना अलग ही प्रकार का स्वर्गीय सुख होता है, मैं उसमें सरोबार रही. मेरे बूढ़े सास-ससुर मुझसे बहुत प्यार करते हैं. शुरू से ही मुझे ‘बड़े घर की बेटी’ बताकर मेरी अनावश्यक जरूरतों का भी ध्यान रखते रहे हैं.

हमारी शादी को पाँच साल होने को थे और मैं दुबारा माँ बनने वाली थी. मैं इस बात से बहुत चिंतिंत रहती थी कि चिंटू के पापा उन दिनों बहुत कमजोर और दुबले हो गए थे. उनको मैंने कई बार डॉक्टर के पास जाकर अपनी जांच करवाने को कहा, पर वे लापरवाही करते रहे. अपनी कमाई और ठेकों के काम में भाग-दौड़ करते रहे. रात की ड्यूटी करने के बाद एक घंटा भी आराम नहीं करते थे, सीधे अपने वर्कशॉप चले जाते थे. उन्होंने अपना रोजनामचा बहुत अनियमित कर रखा था, परिणाम यह हुआ कि एक दिन ड्यूटी पर ही बेहोश हो गए. उनको तुरन्त एम्बुलेंस में बड़े अस्पताल भेजा गया, पर उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद हार्ट फेल होना कारण बताया.

हम सब शोक विह्वल रहे, लोग सांत्वना देते रहे लेकिन एक बार जो चला गया, वो फिर कभी वापस नहीं आता है. मैं अपने सास-ससुर के बारे में ज्यादा सोचने लगी थी, दोनों ही पुत्रशोक में मानो प्राणहीन से हो गये थे. इस मुकाम पर मेरे बड़े भाईयों ने हम सब को संभाला, हिम्मत देने के लिए तुरन्त मेरे खाते में दो लाख रूपये डाल दिये तथा ५ बीघा जमीन मेरे नाम कर दी; यद्यपि मुझे इन सब की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि मेरे पति के बीमा, प्रोविडेंट फंड और ठेकों से मिली रकम लगभग पच्चीस लाख से ज्यादा हो गयी थी. साथ ही कारखाने की तरफ से एक्सग्रेशिया व सरकारी फैमिली पेंशन मिलने वाली थी.

इन तमाम दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थतियों में मेरे दूसरे बेटे मिन्टू ने भी जन्म लिया. अब वह पाँच वर्ष का होने को आया है. हरिनंदन के अनेक सपने थे. वे कहते थे कि शादी की सालगिरह और बच्चों के जन्मदिन धूमधाम से मनाएंगे. जिस साल वे गुजरे उसी साल दीपावली पर उनका इरादा एक बढ़िया कार खरीदने का भी था. इसके लिए उन्होंने घर का गेट भी बड़ा करवाया था. पर कहते हैं, "Man proposes, God disposes". होनी को कौन टाल सकता है. मुझे उनके कारखाने से नौकरी का प्रस्ताव भी आया था, पर मैं इसके लिए तैयार नहीं थी क्योंकि मैं तो इस बारे में कुछ जानती नहीं थी, जो पढ़ा था वह भी मैं भूल चुकी हूँ. मुझे मेरे भाई ने सलाह दी कि मैं कम्प्यूटर चलाना सीखूं और मैंने इसके लिए एक साइबर कैफे में जाना भी शुरू कर दिया था, लेकिन अंग्रेज़ी समझ नहीं आने के कारण मैं कुछ भी नहीं सीख पाई.

मेरे ससुर ने अपना सारा गम भुला कर मेरा और मेरे बच्चों का पूरा ध्यान रखा है. उन्होंने बच्चों को बाप की कमी नहीं अखरने दी है. अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने का उनका हौसला इसलिए भी है कि वे इन बच्चों में हरिनंदन का प्रतिरूप देखते हैं.

ऐसे में तुम, मेरे जीवन के धुंधले परदे पर उभर कर आये हो. मुझे तुम्हारे आने का और मेरे प्रति सम्वेदनशील होने का अहसास बहुत अच्छा लगता है. तुम शायद तरस भी खाते होंगे, पर मैं तो अब एक सूखे हुए गुलाब के फूल की तरह हूँ जिसके लिए किसी मधुमक्खी को आकर्षित नहीं होना चाहिए. ऐसा नहीं कि मुझे भूख नहीं लगती है तथा मानवीय कमजोरियां नहीं सताती हैं, पर अब मेरी सीमाएं हैं, मैं अदृश्य डोरों में बंधी पड़ी हूँ. मैं अपनी शादी के पलंग पर चित्त लेटी हुई हूँ. ऊपर छत की भीतरी परत पर पीओपी के छल्ले बने हुए हैं. मैं इनको गौर से निहार रही हूँ. मुझे ये छल्ले घूमते हुए लग रहे हैं,  जो चक्र बन रहा है उसमें बहुत बड़ा गह्वर है, जिसके बीच में बहुत अन्धेरा है. मैं इस गह्वर के अन्दर फिरकनी की तरह घूम रही हूँ. मुझ पर से जो लम्बी डोर निकल रही है उस पर चिंटू-मिन्टू और मेरे सास-ससुर भी लिपटे हुए हैं. मेरे निरंतर घूमने से ये लोग भी घूम रहे हैं.

मैं अर्धमूर्छित सी हूँ. इस अन्तहीन अंधी गुफा में बड़े खिंचाव के साथ आगे खींचती चली जा रही हूँ. अत: तुमसे कहना है कि तुम मुझसे कोई लगाव मत रखो अन्यथा तुम भी इसी अंधी गुफा में समा जाओगे.

***

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सत्य कथा सा सामाजिक प्रसंग .आज ये बहुत आम हो रहा है .महत्वकांक्षा सेहत से कीमत वसूल रही है .जीवन की धारा आकस्मिक तौर पे बदलने लगी है आये दिन इसके साथ मेरे साथ तेरे साथ .इसलिए मेरे भाई चल आराम से चल .थोड़ा कहा ज्यादा चल .बहुत बढ़िया प्रस्तुति पाठक को सोख लेती है पूरी तरह .

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  2. समय एक झोंका देकर चला जाता है, हारने वाले को निगल जाता है, जीतने वालों को प्रलोभन देता है।

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  3. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

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  4. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  5. इस अन्तहीन अंधी गुफा में बड़े खिंचाव के साथ आगे खींचती चली जा रही हूँ. अत: तुमसे कहना है कि तुम मुझसे कोई लगाव मत रखो अन्यथा तुम भी इसी अंधी गुफा में समा जाओगे....

    yeah...it happens...

    .

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  6. सच है
    एक तरफ
    मैं अकेली
    दूसरी और
    बहुत सी डोर
    इतने खिंचाव में
    भी अव्यवस्थित
    नहीं होना
    सपने छोड़
    देना यूँ ही
    आसपास अपने
    तितलियों की
    तरह उड़ने
    के लिये
    सब के बस
    में तो नहीं !


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  7. परिस्थितियों के अधीन नारी मन की विवशता का अच्छा चित्रण किया है आपने

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  8. एक नारी के जीवन और उसकी मनोदशा को बखूबी उकेरा है।

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  9. पूरी कहानी सामान्य हालातों के तहत चलती है पर अंत .....अचानक मन से निकलता है ..ओह..
    परिस्थिति और परिवेश के बीच मन की अवस्था का सुन्दर चित्रण.

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  10. shayed pahli baar apke blog par aayi hun aur apko padha...apki lekhni se prabhavit hue bina nahi rah paya ye mastishk aur jhat se khud ko blog follower bana liya.

    bahut prabhav chhodti kahani.

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  11. नारी मन की विवशता का बहुत मर्मस्पर्शी चित्रण...

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  12. नारी मनोविज्ञान का बहुत मार्मिक चित्रण.
    सब का ध्यान रख कर सारे कर्तव्य पूरे कर देगी ,अंत में एकाकी जीवन बिताना शेष रहेगा जिसे नियति मान कर स्वीकार कर लेगी पर ,मन का ऊहापोह पीछा नहीं छोड़ेगा .

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  13. हालात भले ही सामान्य से हैं पर एक नारी मन की पीड़ा ,उसका अकेलापन और उस की बेबसी की कहानी .....लघुकथा के रूप में बहुत अच्छी बन पड़ी है .....

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