बुधवार, 21 नवंबर 2012

नाड़ी-वैद्य

जब भी कोई बीमार व्यक्ति डॉक्टर, वैद्य या हकीम के पास जाता है तो प्रथम दृष्टया जो परीक्षा वह करते हैं, उनमें हाथ की नाड़ी या नब्ज देखना एक आम रिवाज सा है. ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति वाले डॉक्टर तो इसे पल्स (हृदय की धड़कन की गति) जांच करना बताते हैं, इसके आगे कुछ भी नहीं. स्वस्थ व्यक्ति की पल्स रेट प्रति मिनट ७२ होती है, बीमार लोगों में रोग के अनुसार कम या ज्यादा पाई जाती है. यह बीमारी के बारे में अनुमान लगाने के लिए एक लक्षण समझा जाता है.

बाहरी तौर पर रोगी को हो रही परेशानियों का इतिहास पूछकर और आवश्यक हुआ तो थर्मामीटर, स्टैथेस्कोप से जाँच करके या रक्तादि पदार्थों/विकारों की प्रयोगशाला में जाँच की जाती है. रोग के निदान के और भी अनेक वैज्ञानिक तरीके व उपकरण आज डॉक्टरों के पास उपलब्द्ध होते हैं.

कहते हैं कि पहले समय में वैद्य जी (आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति वाले चिकित्सक) बीमार की नब्ज देख कर ही रोग की जानकारी ले लेते थे. आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में तीन तरह के दोष होते हैं वात, पित्त व कफ. सारी चिकित्सा पद्धति इसी सिद्धांत पर आधारित है. यह एक गहन विषय है.

आयुर्वेद के तीन प्राचीन महान ग्रन्थ, जिन्हें वृहदत्रयी कहा जाता है (१) चरक संहिता, (२) सुश्रुत संहिता, (३) वाग्भट्ट; इनमें नाड़ी विज्ञान (नब्ज परीक्षण) के बारे में कोई चर्चा नहीं है, लेकिन शारंगधर आदि अनेक मान्य पुस्तकों इस विषय की विवेचना मिलती है. आधुनिक आयुर्वेदिक चिकित्सकों को यह विषय भी पढ़ाया जाता है.

बहुत से लोगों की मान्यता है कि यह एक फालतू मिथक है कि नाड़ी की गति देखने भर से रोग का निदान होता है. अधिकांश चिकित्सक केवल रोगी व्यक्ति के सन्तोष के लिए उसका हाथ पकड़ते हैं और  नब्ज टटोलने का नाटक भर करते हैं. लेकिन अनेक वैद्य दावा करते हैं कि यह एक विज्ञान है. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिनका दृढ़ विश्वास है कि नाड़ी का जानकार वैद्य रोगी से बीमारी के बारे में पूछताछ नहीं करता है और नब्ज की गति से ही सब मालूम कर लेता है. इसी सन्दर्भ में एक वैद्य जी ने एक बहुत मजेदार किस्सा कह सुनाया: 

"एक सनकी जागीरदार साहब ने एक नाड़ी वैद्य की जाँच करने के लिए उसे अपने महल में बुलाया और कहा कि “रोगिणी पर्दानशीं है इस वजह से सामने नहीं आ सकती है,” इस पर नाड़ी वैद्य ने कहा कि “मरीज के हाथ में एक पतली रस्सी बाँध दीजिए, उसका सिरा मुझे पकड़ा दीजिए.” जागीरदार ने अपनी घोड़ी की अगली टांग में रस्सी बाँध कर बगल वाले कमरे में वैद्य जी को पकड़ा दी. वैद्य जी देर तक रस्सी पकड़ने के बाद बोले, “रोगिणी को दाना, पानी, और चारा दीजिए, भूखी लगती है.”

यह दृष्टान्त अतिशयोक्तिपूर्ण लग सकता है, पर इसका भावार्थ यह है कि कुछ नाड़ी वैद्य इतने सिद्धहस्त होते हैं कि रस्सी के सहारे भी जाँच लेते हैं. चिकित्सा विज्ञान में अब सब तरह से सूक्ष्म विधाएं विकसित हो गई हैं और शरीर के परीक्षण में पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर शत्-प्रतिशत सही परिणाम उपलब्द्ध होते है, इसलिए अब केवल अनुमानों के आधार पर चिकित्सा करना/कराना बुद्धिमतापूर्ण नहीं है.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कथा-

    सुन्दर सन्देश ।

    नाड़ी नारी एक से, कुशल वैद्य जो आय ।

    करे परिक्षण ध्यान से, तन-मन हाल बताय ।

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  2. नाड़ी देखकर रोग समझ आ जाता है, साक्षात देखा है..

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  3. विद्या थी ज़रूर नाड़ी विज्ञान उसी का विस्तार है स्नायुविक विज्ञान नाड़ी सम्बन्धी (रीढ़ ) रोग ,न्यूरोलोजी .

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  4. रात को भी टिपण्णी की थी नाड़ीविज्ञान का ही आधुनिक संस्करण है न्यूरोलोजी बोले तो स्नायुविकविज्ञान ,तंत्रिका तंत्र के रोगों

    का ज्ञान .सारा खेल तंत्रिका तंत्रिका संवाद का ही है .न्यूरोन -न्यूरोन बातचीत है न्यूरोलोजी .शुक्रिया आकी सादर टिपण्णी का .

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